राजस्थान की आमेर रियासत

राजस्थान की आमेर रियासत

यह रियासत ढूढॉंड़ क्षेत्र में स्थापित की गई। 

आमेर का क़िला  राजस्थान के जयपुर में स्थित एक ऐतिहासिक नगर आमेर में राजपूत वास्तुकला का अद़भुत उदाहरण है। आमेर का क़िला दिल्ली – जयपुर राजमार्ग की जंगली पहाड़ियों के बीच अपनी विशाल प्राचीरों सहित नीचे माओटा झील के पानी में छवि दिखाता हुआ खड़ा है। प्राचीन काल में अम्‍बावती और अम्बिबकापुर के नाम से आमेर कछवाह राजाओं की राजधानी रहा है।

आमेर का क़िला
आमेर का क़िला



1137 ई0 में दुल्हेराय के द्वारा मीणाओं को पराजित कर कच्छवाह वंश की स्थापना की गई।

कवि कल्लोल द्वारा रचित ढोला मारू रा दोहा के अनुसार दुल्हेराय मूल रूप से नखर (वर्तमान मध्यप्रदेश में) के राजकुमार थे तथा इन्होने चौहान राजा नलहॅंस की बेटी माखन से विवाह किया था।

दुल्हेराय ने प्रारम्भ मे दौसा को अपनी राजधानी बनाया।

दुल्हेराय ने वर्तमान रामगढ़ के निकट जमवायमाता के मन्दिर का निर्माण करवाया।

दुल्हेराय ने कच्छवाह वंश की मुख्य रियासत के लिए वर्तमान आमेर क्षेत्र को भी विजय किया था।

1207 ई0 में इसी वंश के कोकिल देव के द्वारा दौसा के स्थान पर आमेर को राजधानी बनाया गया। 



कोकिल देव ने मीणाओं तथा बड़गुजरों को पराजित कर शेखावटी क्षेत्र तक साम्राज्य का विस्तार किया।

पंचम देव इस वंश के महान शासक हुए।

आमेर रियासत के पृथ्वीराज सिंह ने खानवा के युद्व में राणा सांगा की तरफ से बाबर कि विरूद्व युद्व लड़ा था।

पृथ्वीराज सिंह के पश्चात् भीमदेव शासक हुए।

भीमदेव के भाई कुॅंवर सांगा ने सांगानेर नगर की स्थापना की।

भीमदेव के भाई राव भारमल ने 1547 ई0 में भीमदेव की हत्या कर स्वंय को शासक घोषित कर दिया। 

महाराजा भीमदेव के पुत्र रतनसिंह एवं आसकरण नागौर के सूबेदार हादी खॉं की शरण में चले गऐ।

जब हादी खॉं ने आमेर पर आक्रमण किया तो राव भारमल ने अपनी बेटी किसना बाई का विवाह हादी खॉं से कर दिया।

राव भारमल राजस्थान का प्रथम राजपूत शासक था जिसने 1562 ई0 में अपनी बेटी हरका बाई (जोधा बाई) का विवाह मुगल सम्राट अकबर से कर मुगलों की अधीनता को स्वीकार कर ली।



राव भारमल ने 1558 ई0 में आमेर दुर्ग का निर्माण करवाया।

राव भारमल के प्रयासों से ही 1570 ई0 में अकबर ने नागौर दरबार का आयोजन किया था।

1573 ई0 में राव भारमल की मृत्यु के बाद राव भगवान दास आमेर के शासक बने।

राव भगवान दास ने अपनी बेटी मान बाई का विवाह अकबर के पुत्र शहजादा सलीम (जहॉंगीर) से कर दिया।

भगवान दास ने भी मुगल साम्राज्य के विस्तार में योगदान दिया था।

1589 ई0 में मानसिंह आमेर के शासक बने।

महाराजा मानसिंह के काल में आमेर दुर्ग में अधिकांश महल एवं मन्दिरों का निर्माण हुआ।

मानसिंह ने अपने पुत्र जगसिंह की याद में आमेर में जगत शिरोमणि मन्दिर का निर्माण करवाया था।

मानसिंह ने पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) को विजय कर वहॉं से शीला देवी की अष्ट भुजा प्रतिमा को लाकर आमेर में स्थापित किया।

महाराजा मानसिंह अकबर के परममित्र एवं प्रसिद्व मुगल सेनानायक थे।

अकबर ने मानसिंह को 7000 की मनसब प्रदान की थी। ( सैनिक रैंक )

मानसिंह के दरबारी कवि राम मुरारी दास ने मान प्रकाश नामक ग्रन्थ की रचना की थी।

महाराजा मानसिंह की मृत्यु के बाद मिर्जा राजा जयसिंह आमेर के शासक बनें।

इन्हें मिर्जा राजा की उपाधि मुगल बादशाह शाहजहॉं के द्वारा दी गई थी।

मिर्जा राजा जयसिंह ने तीन मुगल बादशाहों की सेवाएॅं की थी जहॉंगीर, शाहजहॉं और औरंगजेब

मिर्जा राजा जयसिंह ने जयगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया था तथा जयगढ़ दुर्ग में तोपखाने का निर्माण करवाया था। इसी तोपखाने में सवाई जयसिंह के काल में मध्यकाल की सबसे बड़ी जयबाण तोप का निर्माण हुआ था

मिर्जा राजा जयसिंह ने मराठा सरदार शिवाजी के साथ 1665 ई0 में पुरन्दर की संधी की थी इस संधि के द्वारा शिवाजी ने मुगल बादशाह औरंगजेब की अधीनता को स्वीकार कर लिया था।

मिर्जा राजा जयसिंह के दरबार में प्रसिद्व कवि बिहारी रहता था।

बिहारी ने बिहारी सत्सई नामक ग्रन्थ की रचना की थी।

मिर्जा राजा जयसिंह की 1667 ई0 में संदिग्ध अवस्था में मृत्यु हो गई।

मिर्जा राजा जयसिंह की मृत्यु के बाद उनका भाई बिशन सिंह आमेर का शासक बना।

बिशन सिंह की मृत्यु के बाद जयसिंह द्वितीय शासक बना।

जयसिंह द्वितीय को सवाई की उपाधि औरंगजेब ने दी थी।

सवाई जयसिंह द्वितीय ज्योतिष एवं नक्षत्र शास्त्र के ज्ञाता थे। इनके द्वारा ज्योतिष पर जयसिंह कारिका नामक ग्रन्थ की रचना की गई।

सवाई जयसिंह के काल में ज्योतिष आचार्यो ने मिलकर जीत मोहम्मदशाही नामक ग्रन्थ की रचना की थी।

सवाई जयसिंह ने नक्षत्रों का अध्ययन करने के लिए दिल्ली, जयपुर, मथुरा, वाराणसी ( बनारस ) तथा उज्जैन में वैद्य शालाओं की स्थापना करवायी थी।

प्रथम वैद्यशाला दिल्ली की तथा सबसे बड़ी वैद्यशाला जयपुर ( जन्तर मन्तर ) की है।



औरंगजेब की मृत्यु के बाद उनके पुत्रों के मध्य हुए उत्तराधिकार के युद्व में सवाई जयसिंह ने शहजादा मोअज्जम का साथ नही दिया था इसलिए शहजादा मुअज्जम विजय होकर बहादुर शाह प्रथम के नाम से मुगल बादशाह बना तो उसने सवाई जयसिंह को आमेर की गद्दी से अपदस्थ कर आमेर को खालसा घोषित कर दिया। ( मुगल राज्य में मिला दिया ) तथा आमेर का नाम बदलकर मोमीनाबाद कर दिया था।

सवाई जयसिंह ने शीघ्र ही बहादुर शाह प्रथम से समझौता कर लिया एवं पुनः आमेर के शासक बन गये।

सवाई जयसिंह ने 18 नवम्बर 1727 ई0 को जयपुर नगर की स्थापना की थी।

जयपुर नगर के वास्तुकार विद्याद्यर भट्टाचार्य थे।

1799 ई0 में सवाई प्रतापसिंह ने जयपुर में हवामहल का निर्माण करवाया।

1868 ई0 में महाराजा रामसिंह के द्वारा जयपुर को रंग करवाया गया।

जयपुर का रंग वास्तव में गैरू है।

1922 में जब प्रिंस ऑंफ वेल्स भारत भ्रमण पर आये तब वह जयपुर भ्रमण पर भी आये थे उनकी इस जयपुर यात्रा का वर्णन स्टेण्डरी के द्वारा “द रॉयल टाउन ऑंफ इण्डिया” नामक पुस्तक में किया गया। इसी पुस्तक में सर्वप्रथम जयपुर को पिंक सिटी कहा गया। तभी से सामान्य बोलचाल में जयपुर को पिंक सिटी कहा जाता है।

आधुनिक जयपुर के निर्माता महाराजा मानसिंह द्वितीय के प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माईल खॉं थे।

सवाई जयसिंह ने 1734 ई0 में मराठा आक्रमणों के विरूद्व सुरक्षा के लिए नाहरगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया था।

इस दुर्ग का वास्तविक नाम सुदर्शनगढ़ सुलक्षण गढ़ था।

दुर्ग निर्माण में आ रही बाधा को दूर करने के लिए इस दुर्ग का नाम बदलकर नाहरगढ़ दुर्ग कर दिया गया।

सवाई जयसिंह ने 1734 ई0 में मराठा आक्रमणों के विरूद्व राजस्थान के शासकों का एक संघ बनाने के लिए वर्तमान भीलवाड़ा जिले के हुरड़ा में एक सम्मेलन आयोजित किया था। यह सम्मेलन प्रस्तावित संघ का अध्यक्ष कौन बने इस प्रश्न पर विवाद को लेकर असफल हो गया।

1743 ई0 में सवाई जयसिंह की मृत्यु हो गई।

अम्बेर किला (Amer Fort) आमेर में स्थापित है. आमेर 4 वर्ग किलोमीटर (1.5 वर्ग मीटर) में फैला एक शहर है जो भारत के राजस्थान राज्य के जयपुर से 11 किलोमीटर दुरी पर स्थित है. Amer Fort ऊँचे पर्वतो पर बना हुआ है, जयपुर क्षेत्र का यह मुख्य पर्यटन क्षेत्र है. असल में आमेर शहर को मीनाओ ने बनवाया था और बाद में राजा मान सिंह प्रथम ने वहा शासन किया.

आमेर किले विशेषताएँ

  • आमेर क़िले के राजमहलों का निर्माण मिर्जा राजा मानसिंह ने करवाया था।
  • सवाई जयसिंह ने इसमें कुछ नये भवनों का निर्माण करवाया।
  • हिन्दू और फ़ारसी शैली के मिश्रित स्‍वरूप का यह क़िला देश में अपना एक विशिष्‍ट स्‍थान रखता है।
  • दीवान ए आम या जनता के दरबार का कक्ष महल के अंदर है और दीवान एक ख़ास या निजी श्रोताओं का कमरा और सुख निवास भी महल के अंदर है जहाँ वातानुकूलन के प्रयोजन हेतु पानी के झिरियों से गुजरती हुई ठण्‍डी हवा बहती है।
  • महल के मुख्‍य द्वार के बाहर कछवाहा राजाओं की कुल देवी शिला माता का मंदिर है।
  • महल में घुसते ही 20 खम्‍भों का राजपूत भवन शैली पर सफ़ेद संगमरमर व लाल पत्‍थर का बना दीवाने आम है।
  • दीवाने ख़ास और शीश महल पर्यटकों के आकर्षण का विशेष केन्‍द्र है।
  • महल में मावठा झील से आती ठण्‍डी हवाओं का आनन्‍द लेने के लिये सुख निवास भी स्थित है।
  • रानियों के लिये अनेक निजी कक्ष भी निर्मित है।
  • रानियों के निजी कक्षों में जालीदार परदों के साथ खिड़कियाँ हैं ताकि राज परिवार की महिलाऐं शाही दरबार में होने वाली कारवाइयों को गोपनीयता पूर्वक देख सकें।




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