कम्प्यूटर बेसिक्स | Computer Basic Book

कम्प्यूटर बेसिक्स

मूल इकाईयॉं




कंप्यूटर की मूल इकाइयों का मतलब कंप्यूटर की उन बातों से है जिनसे कंप्यूटर की गणनाओं का काम प्रारंभ होता है.

बिट
बिट अर्थात Binary digit, कम्प्यूटर की स्मृति की सबसे छोटी इकाई है । यह स्मृति में एक बायनरी अंक 0 अथवा 1 को संचित किया जाना प्रदर्शित करता है । यह बाइनरी डिजिट का छोटा रूप है. यहाँ एक सवाल उठता हैं की बिट ० और १ ही क्यू होता है ३-४ क्यू नहीं ? तो इसका जवाब दो तरह से आता हैं,

चूकी गणितीय गणना के लिये विज्ञानियों को ऐसा अंक चाहीये था जो किसी भी तरह के गणना को आगे बढ़ाने या घटाने पर गणितीय उतर पर असर न डाले तो केवल ० एक मात्र एसी संख्या हैं जिसे किसी भी अंक के साथ जोड़ने या घटाने पर कोई फर्क नहीं पड़ता और १ एक मात्र ऐसी संख्या हैं जिसे किसी अंक के साथ गुणा या भाग देने पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

दूसरी तरफ इलेक्ट्रॉनिकस में हम जानते हैं की ० और १ क्रमशः ऑन और ऑफ को दिखलाता हैं. कंप्यूटर भी इलेक्ट्रॉनि सिग्नल को ही पहचानता हैं इस कारण ० और १ का उपयोग किया जाता हैं.


बाइट
यह कम्प्यूटर की स्मृति (memory) की मानक इकाई है । कम्प्यूटर की स्मृति में की-बोर्ड से दबाया गया प्रत्येक अक्षर, अंक अथवा विशेष चिह्न ASCII Code में संचित होते हैं । प्रत्येकASCII Code 8 byte का होता है । इस प्रकार किसी भी अक्षर को स्मृति में संचित करने के लिए 8 बिट मिलकर 1 बाइट बनती है ।

कैरेक्टर



संख्यांको के अलावा वह संकेत है जो भाषा और अर्थ बताने के काम आते है । उदाहरण के लिए हम देखे
a b c d e f g h i j k l m n o p q r s t u v w x y z A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z 0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 ! @ # $ % ^ & * ( ) _ – = + | \ ` , . / ; ‘ [ ] { } : ” < > ?
कम्प्यूटर सिस्टम सामान्यतः कैरेक्टर को संचित करने के लिए ASCII कोड का उपयोग करते हैं । प्रत्येक कैरेक्टर 8 बिटस का उपयोग करके संचित होता है ।

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आस्की (ASCII) कोड क्या होताहै

American Standard Code For Information Interchange

आज हम कंप्यूटर पर आसनी जो कुछ भी लिखते हैं वो आस्की में ही लिखा होता है. प्रत्येक कंप्यूटरप्रयोगकर्ता अंकों, अक्षरों तथा संकेतों के लिए बाइनरी सिस्टम पर आधारित कोड का निर्माण करके कंप्यूटर को परिचालित कर सकता है! लेकिन उसके कोड केवल उसी के द्वारा प्रोग्रामों और आदेशों के लिए लागू होंगे! इससे कंप्यूटर के प्रयोगकर्ता परस्पर सूचनाओं का आदान प्रदान तब तक नहीं कर सकते जब तक किवे एक -दूसरे द्वारा इस्तेमाल किये हुए कोड संकेतों से परिचित न हों! सूचनाओं के आदान प्रदान की सुविधा के लिए अमेरिका मे एक मानक कोड तैयार किया गया है जिसे अब पूर विश्व मे मान्यता प्राप्त है! इसे आस्की (ASCII) के नाम से जाना जाता है! इसमे प्रत्येक अंक, अक्षरों वा संकेत को 8 बीटो से दर्शाया गया है! इन 8स्थानों पर केवल 0 और 1 की संख्या ही लिखी गयी है!

हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर

अव्यावहारिक तौर पर अगर कंप्यूटर को परिभाषित किया जाये तो हम हार्डवेयर को मनुष्य काशरीर और सॉफ्टवेर को उसकी आत्मा कह सकते हैं. हार्डवेयर कंप्यूटर के हिस्सों को कहते हैं,जिन्हें हम अपनी आँखों से देख सकते हैं, छू सकते हैं अथवा औजारों से उनपर कार्य कर सकते हैं! ये वास्तविक पदार्थ है! इसके विपरीत सॉफ्टवेयर कोई पदार्थ नहीं है! ये वे सूचनाएं, आदेश अथवा तरीके हैं जिनके आधार पर कंप्यूटर का हार्डवेयर कार्य करता है! कंप्यूटर हार्डवेयरसॉफ्टवेयर से परिचित होते हैं अथवा सॉफ्टवेयर कंप्यूटर के हार्वेयर से परिचित एवं उनपर आधारित होते हैं!




हार्डवेयर का निर्माण कारखानों में होता है, जबकि सॉफ्टवेयर कंप्यूटर ज्ञाता के मस्तिष्क की सोच द्वारा बनाएं जाते हैं, जिनके आधार पर कल -कारखाने हार्डवेयर को उत्पादित करते हैं! सामन्य भाषा में कहा जाए तो सॉफ्टवेयर कंप्यूटर द्वारा स्वीकृत विनिर्देश होते हैं जिनके माध्यम से कंप्यूटर कार्य करते हैं! कंप्यूटर हार्डवेयरों के निर्माण में उच्च टेक्नोलोजी का इस्तेमाल किया जता है! इनका निर्माण कलकारखानों में ही मशीनों व उपकरणों की सहायता से होता है! सॉफ्टवेयर कंप्यूटर सिद्धांतो के आधार पर हार्डवेयर के लिए आवश्यक निर्देश होते हैं, इन्हें तैयार करने के लिए किसी कारखाने की आवश्यकता नहीं होती! कोई भी व्यक्ति जो कंप्यूटर के मूल सिद्धांतो एवं कार्य प्रणाली से परिचित हो अपने मस्तिष्क के उपयोग से सॉफ्टवेयर तैयार कर सकता है

विभिन्न अंक प्रणाली

द्वि-अंकीय प्रणाली
यह कंप्यूटर की सबसे महत्वपूर्ण प्रणाली हैं जिसके द्वारा ही हम कंप्यूटर से बात करते है. इस प्रणाली के अन्तर्गत आंकड़ों को मुख्य रूप से केवल दो अंकों के संयोजन द्वारा दर्शाया जाता है । ये दो अंक उपरोक्त ‘0’ तथा ‘1’ होते हैं परन्तु इस प्रणाली को द्वि-अंकीय या द्वि-आधारी पद्धति का नाम इसलिये दिया गया है क्योंकि इसमें विभिन्न आंकड़ों के कूट संकेत उस दी गई संख्या को दो से लगातार

विभाजन के पश्चात प्राप्त परिणामों एवं शेषफल के आधार पर किया जाता है एवं इस कूट संकेत से पुनः दशमलव अंक प्राप्त करने पर इस कूट संकेत के अंकों को उसके स्थानीय मूल्य के बराबर 2 की घातनिकालकर गुणा करते हैं एवं इनका योग फल निकाल कर ज्ञात किया जाता है । इस प्रणाली में बने हुए एक शब्द में प्रत्येक अक्षर को एक बिट कहा जाता है ।
011001 यह एक 6 बिट की संख्या है ।
11010010 यह एक 8 बिट की संख्या है ।

ऑक्टल (8 के आधार वाली) प्रणाली
इस प्रणाली में उपयोग किये जाने वाले विभिन्न अंकों का आधार 8 होता है इन्ही कारणों से इस प्रणाली को ओक्टल प्रणाली के नाम से जाना जाता है । दूसरे शब्दों में इस प्रणाली में केवल 8 चिन्ह या अंक ही उपयोग किये जाते हैं – 0,1,2,3,4,5,6,7 (इसमें दशमलव प्रणाली की भांति 8 एवं 9 के अंकों का प्रयोग नहीं किया जाता) यहाँ सबसे बड़ा अंक 7 होता है (जो कि आधार से एक कम है) एवं एक ऑक्टल संख्या में प्रत्येक स्थिति 8 के आधार पर एक घात को प्रदर्शित करती हैं । यह घात ऑक्टल संख्या की स्थिति के अनुसार होती है । चूँकि इस प्रणाली में कुल “0” से लेकर “7” तक की संख्याओं को अर्थात 8 अंकों को प्रदर्शित करना होता है ।कम्प्यूटर को प्रषित करते समय इस ऑक्टल प्रणाली के शब्दों को बाइनरी समतुल्य कूट संकेतों में परिवर्तित कर लिया जाता है । जिससे कि कम्प्यूटर को संगणना हेतु द्वि-अंकीय आंकड़े मिलते हैं एवं समंक निरूपण इस ऑक्टल प्रणाली में किया जाता है जिससे कि समंक निरुपण क्रिया सरल एवं छोटी हो जाती है ।

हैक्सा (16 के आधार वाली) दशमलव प्रणाली
चुकी सामान्य गिनती ० से ९ तक की ही होती है इस कारन उससे ऊपर की गणना के लिए हैक्सा दशमलव प्रणाली का उपयोग किया जाता है.  हैक्सा दशमलव प्रणाली 16 के आधार वाली प्रणाली होती है . 16 आधार हमें यह बताता है कि इस प्रणाली के अन्तर्गत हम 16 विभिन्न अंक या अक्षर इस प्रणाली के अंतर्गत उपयोग कर सकते हैं । इन 16 अक्षरों में 10 अक्षर तो दशमलव प्रणाली के अंक 0,1,2,3,4,5,6,7,8,9 होते हैं एवं शेष 6 अंक A,B,C,D,E,F के द्वारा दर्शाये जाते हैं । जो कि दशमलव मूल्यों 10,11,12,13,14,15 को प्रदर्शित करते हैं । चूँकि हैक्सा दशमलव प्रणाली के अंतर्गत कुल 16 अंक प्रदर्शित करने होते हैं, इस प्रणाली के विभिन्न अक्षरों को द्वि-अंकीय प्रणाली के समतुल्य बनाने हेतु कुल 4 बिटों का प्रयोग किया जाता है ।

मैमोरी युक्तियॉ (Memory Device)

प्राथमिक संग्रहण
यह वह युक्तियाँ होती हैं जिसमें डेटा व प्रोग्राम्स तत्काल प्राप्त एवं संग्रह किए जाते हैं ।
1.रीड-राइट मेमोरी,रैम(RAM)
Random access memory – कंप्यूटर की यह सबसे महवपूर्ण मेमोरी होती है. इस मेमोरी में प्रयोगकर्ता अपने प्रोग्राम को कुछ देर के लिए स्टोर कर सकते हैं । साधारण भाषा में इस मेमोरी को RAM कहते हैं । यही कम्प्यूटर की बेसिक मेमोरी भी कहलाती है । यह निम्नलिखित दो प्रकार की होती है –
डायनेमिक रैम (DRAM)
डायनेमिक का अर्थ है गतिशील । इस RAM पर यदि 10 आंकड़े संचित कर दिए जाएं और फिर उनमें से बीच के दो आंकड़े मिटा दिए जाएं, तो उसके बाद वाले बचे सभी आंकड़े बीच के रिक्त स्थान में स्वतः चले जाते हैं और बीच के रिक्त  स्थान का उपयोग हो जाता है ।

स्टैटिक रैम (SRAM)
स्टैटिक रैम में संचित किए गए आंकड़े स्थित रहते हैं । इस RAM में बीच के दो आंकड़े मिटा दिए जाएं तो इस खाली स्थान पर आगे वाले आंकड़े खिसक कर नहीं आएंगे । फलस्वरूप यह स्थान तब तक प्रयोग नहीं किया जा सकता जब तक कि पूरी मेमोरी को “वाश” करके नए सिरे से काम शुरू न किया जाए ।

2.रीड ओनली मेमोरी (Read Only Memory)
आधुनिक कंप्यूटर की महत्वपूर्ण मेमोरी ROM  उसे कहते हैं, जिसमें लिखे हुए प्रोग्राम के आउटपुट को केवल पढ़ा जा सकता है, परन्तु उसमें अपना प्रोग्राम संचित नहीं किया जा सकता । बेसिक इनपुट आउटपुट सिस्टम ( BIOS) नाम का एक प्रोग्राम ROM का उदाहरण है, जो कम्प्यूटर के ऑन होने पर उसकी सभी इनपुट आउटपुट युक्तियों की जांच करने एवं नियंत्रित करने का काम करता है ।

प्रोग्रामेबिल रॉम (PROM)
इस स्मृति में किसी प्रोग्राम को केवल एक बार संचित किया जा सकता है, परंतु न तो उसे मिटाया जा सकता है और न ही उसे संशोधित किया जा सकता है ।

इरेजेबिल प्रॉम (EPROM)
इस I.C. में संचित किया गया प्रोग्राम पराबैंगनी किरणों के माध्यम से मिटाया ही जा सकता है । फलस्वरुप यह I.C. दोबारा प्रयोग की जा सकती है ।इलेक्ट्रिकली-इ-प्रॉम (EEPROM)
इलेक्ट्रिकली इरेजेबिल प्रॉम पर स्टोर किये गये प्रोग्राम को मिटाने अथवा संशोधित करने के लिए किसी अन्य उपकरण की आवश्यकता नहीं होती । कमाण्ड्स दिये जाने पर कम्प्यूटर में उपलब्ध इलैक्ट्रिक सिगल्स ही इस प्रोग्राम को संशोधित कर देते हैं ।

सॉफ्टवेयर के प्रकार

सॉफ्टवेयर दो प्रकार के होते हैं ।
1)
सिस्टम सॉफ्टवेयर
सिस्टम सॉफ्टवेयर” यह एक ऐसा प्रोग्राम होता है , जिनका काम सिस्टम अर्थात कम्प्यूटर को चलाना तथा उसे काम करने लायक बनाए रखना है । सिस्टम सॉफ्टवेयर ही हार्डवेयर में जान डालता है । ऑपरेटिंग सिस्टम, कम्पाइलर आदि सिस्टम सॉफ्यवेयर के मुख्य भाग हैं ।

2)एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर
एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर’ ऐसे प्रोग्रामों को कहा जाता है, जो हमारे कंप्यूटर पर आधारित मुख्य  कामों को करने के लिए लिखे जाते हैं । आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न उपयोगों के लिए भिन्न-भिन्न सॉफ्टवेयर होते हैं । वेतन की गणना, लेन-देन का हिसाब, वस्तुओं का स्टाक रखना, बिक्री का हिसाब लगाना आदि कामों के लिए लिखे गए प्रोग्राम ही एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर कहे जाते  हैं ।

कम्पाइलर और इन्टरप्रिटर

कम्पाइलर
कम्पाइलर किसी कम्प्यूटर के सिस्टम साफ्टवेयर का भाग होता है । कम्पाइलर एक ऐसा  प्रोग्राम है, जो किसी उच्चस्तरीय भाषा में लिखे गए प्रोग्राम का अनुवाद किसी कम्प्यूटर की मशीनी भाषा में कर देता है । निम्न चित्र में इस कार्य को दिखाया गया है ।

उच्चस्तरीय भाषा प्रोग्राम –> कम्पाइलर –> मशीनी भाषा प्रोग्राम

हर प्रोग्रामिंग भाषा के लिए अलग-अलग कम्पाइलर होता है पहले वह हमारे प्रोग्राम के हर कथन या आदेश की जांच करता है कि वह उस प्रोग्रामिंग भाषा के व्याकरण के अनुसार सही है या नहीं ।यदि प्रोग्राम में व्याकरण की कोई गलती नहीं होती, तो कम्पाइलर के काम का दूसरा भाग शुरू होता है ।यदि कोई गलती पाई जाती है, तो वह बता देता है कि किस कथन में क्या गलती है । यदि प्रोग्राम में कोई बड़ी गलती पाई जाती है, तो कम्पाइलर वहीं रूक जाता है । तब हम प्रोग्राम की गलतियाँ ठीक करके उसे फिर से कम्पाइलर को देते हैं ।

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इन्टरप्रिटर
इन्टरपेटर भी कम्पाइलर की भांति कार्य करता है । अन्तर यह है कि कम्पाइलर पूरे प्रोग्राम को एक साथ मशीनी भाषा में बदल देता है और इन्टरपेटर प्रोग्राम की एक-एक लाइन को मशीनी भाषा में परिवर्तित करता है । प्रोग्राम लिखने से पहले ही इन्टरपेटर को स्मृति में लोड कर दिया जाता है । 

कम्पाइलर और इन्टरप्रिटर में अन्तर
इन्टरपेटर उच्च स्तरीय भाषा में लिखे गए प्रोग्राम की प्रत्येक लाइन के कम्प्यूटर में प्रविष्ट होते ही उसे मशीनी भाषा में परिवर्तित कर लेता है, जबकि कम्पाइलर पूरे प्रोग्राम के प्रविष्ट होने के पश्चात उसे मशीनी भाषा में परिवर्तित करता है ।

सिंगल यूजर और मल्टीयूजर

जैसा की नाम से ही स्पष्ट है सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम में कम्प्यूटर पर एक समय में एक आदमी काम सकता है । सिंगल यूजर  ऑपरेटिंग सिस्टम मुख्यतः पर्सनल कम्प्यूटरों में प्रयोग किए जाते हैं, जिनका घरों व छोटे कार्यालयों में उपयोग होता है । डॉस, विंडोज इसी के उदाहरण है । मल्टीयूजर प्रकार केसिस्टमों में एक समय में बहुत सारे व्यक्ति काम कर सकते हैं और एक ही समय पर अलग-अलग विभिन्न कामों को किया जा सकता है । जाहिर है, इससे कम्प्यूटर के विभिन्न संसाधनों का एक साथ प्रयोग किया जा सकता है । यूनिक्स इसी प्रकार का ऑपरेटिंग सिस्टम है ।

मल्टी प्रोसेसिंग और मल्टी टास्किंग

मल्टी प्रोसेसिंग और मल्टी टास्किंग

मल्टी प्रोसेसिंग
एक समय मे एक से अधिक कार्य को संपादित करने  के लिए सिस्टम पर एक से अधिकसी.पी.यू रहते है । इस तकनीक को मल्टी प्रोसेसिंग कहते है । मल्टी प्रोसेसिंग सिस्टम का निर्माण मल्टी प्रोसेसर सिस्टम को ध्यान मे रखते हुए किया गया है । 




एक से अधिक प्रोसेसर उपल्ब्ध होने के कारण इनपुट आउटपुट एवं प्रोसेसींगतीनो कार्यो के मध्य समन्वय रहता है । एक ही तरह के एक से अधिक सी.पी. यू का उपयोग करने वाले सिस्टम को सिमिट्रिक मल्टी प्रोसेसर सिस्टम कहा जाता है ।

मल्टी टास्किंग
मेमोरी मे रखे एक से अधिक प्रक्रियाओ मे परस्पर नियंत्रण मल्टी टास्किंग कहलाता है . किसी प्रोग्राम से नियत्रण हटाने से पहले उसकी पूर्व दशा सुरक्षित कर ली जाती है जब नियंत्रण इस प्रोग्राम पर आता है प्रोग्राम अपनी पूर्व अवस्था मे रहता है । मल्टी टास्किंग मे यूजर को ऐसा प्रतित होता है कि सभी कार्य एक साथ चल रहे है 

कम्प्यूटर वायरस

VIRUS – Vital Information Resources Under Seized

यह नाम सयोग वश बीमारी वाले वायरस से मिलता है मगर ये उनसे पूर्णतः अलग होते है.वायरस प्रोग्रामों का प्रमुख उददेश्य केवल कम्प्यूटर मेमोरी में एकत्रित आंकड़ों व संपर्क में आने वाले सभी प्रोग्रामों को अपने संक्रमण से प्रभावित करना है ।वास्तव में कम्प्यूटर वायरस कुछ निर्देशों का एक कम्प्यूटर प्रोग्राम मात्र होता है जो अत्यन्त सूक्षम किन्तु शक्तिशाली होता है । यह कम्प्यूटर को अपने तरीके से निर्देशित कर सकता है । ये वायरस प्रोग्राम किसी भी सामान्य कम्प्यूटर प्रोग्राम के साथ जुड़ जाते हैं और उनके माध्यम से कम्प्यूटरों में प्रवेश पाकर अपने उददेश्य अर्थात डाटा और प्रोग्राम को नष्ट करने के उददेश्य को पूरा करते हैं । अपने संक्रमणकारी प्रभाव से ये सम्पर्क में आने वाले सभी प्रोग्रामों को प्रभावित कर नष्ट अथवा क्षत-विक्षत कर देते हैं । वायरस से प्रभावित कोई भी कम्प्यूटर प्रोग्राम अपनी सामान्य कार्य शैली में अनजानीतथा अनचाही रूकावटें, गलतियां तथा कई अन्य समस्याएं पैदा कर देता है ।प्रत्येक वायरस प्रोग्राम कुछ कम्प्यूटर निर्देशों का एक समूह होता है जिसमें उसके अस्तित्व को बनाएं रखने का तरीका, संक्रमण फैलाने का तरीका तथा हानि का प्रकार निर्दिष्ट होता है । सभी कम्प्यूटर वायरस प्रोग्राम मुख्यतः असेम्बली भाषा या किसी उच्च स्तरीय भाषा जैसे “पास्कल” या “सी” में लिखे होते हैं ।

वायरस के प्रकार
1. बूट सेक्टर वायरस
2. फाइल वायरस
3. अन्य वायरस

वायरस का उपचार : टीके
जिस प्रकार वायरस सूक्षम प्रोग्राम कोड से अनेक हानिकारक प्रभाव छोड़ता है ठीक उसी तरह ऐसे कई प्रोग्राम बनाये गये हैं जो इन वायरसों को नेस्तानाबूद कर देते हैं, इन्हें ही वायरस के टीके कहा जाता है । यह टीके विभिन्नन वायरसों के चरित्र और प्रभाव पर संपूर्ण अध्ययन करके बनाये गये हैं और काफी प्रभावी सिद्ध हुयें है ।

ऑपरेटिंग सिस्टम

ऑपरेटिंग सिस्टम

ऑपरेटिंग सिस्टम व्यवस्थित रूप से जमे हुए साफ्टवेयर का समूह है जो कि आंकडो एवं निर्देश के संचरण को नियंत्रित करता है

ऑपरेटिंग सिस्टम की आवश्यकता
आपरेटिंग सिस्टम हार्डवेयर एवंसाफ्टवेयर के बिच सेतु का कार्य करता है कम्पयुटर का अपने आप मे कोई अस्तित्व नही है । यङ केवल हार्डवेयर जैसे की-बोर्ड, मानिटर , सी.पी.यू इत्यादि का समूह है आपरेटिंग सिस्टम समस्त हार्डवेयर के बिच सम्बंध स्थापित करता है आपरेटिंग सिस्टम के कारण ही प्रयोगकर्ता को कम्युटर के विभिन्न भागो की जानकारी रखने की जरूरत नही पडती है साथ ही प्रयोगकर्ता अपने सभी कार्य तनाव रहित होकर कर सकता है यहसिस्टम के साधनो को बाॅटता एवं व्यवस्थित करता है।

आपरेटिंग सिस्टम के कई अन्य उपयोगी विभाग होते है जिनके सुपुर्द कई काम केन्द्रियप्रोसेसर द्वारा किए जाते है । उदाहरण के लिए प्रिटिंग का कोई किया जाता है तो केन्द्रिय प्रोसेसर आवश्यक आदेश देकर वह कार्य आपरेटिंग सिस्टम पर छोड देता है । और वह स्वयं अगला कार्य करने लगता है । इसके अतिरिक्त फाइल को पुनः नाम देना , डायरेक्टरी की विषय सूचि बदलना , डायरेक्टरी बदलना आदि कार्य आपरेटिंग सिस्टम के द्वारा किए जाते है । इसके अन्तर्गत निम्न कार्य आते है

1) फाइल पद्धति
फाइल बनाना, मिटाना एवं फाइल एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना । फाइल निर्देशिका को व्यवस्थित करना ।

2) प्रक्रिया
प्रोग्राम एवं आंकडो को मेमोरी मे बाटना । एवं प्रोसेस का प्रारंभ एवं समानयन करना । प्रयोगकर्ता मध्यस्थ फाइल की प्रतिलिपी ,निर्देशिका , इत्यादि के लिए निर्देश , रेखाचित्रिय डिस्क टाप आदि

3) इनपुट/आउटपुट
माॅनिटर प्रिंटर डिस्क आदि के लिए मध्यस्थ

आपरेटिंग सिस्टम की विशेषताए

1)मेमोरी प्रबंधन
प्रोग्राम एवं आकडो को क्रियान्वित करने से पहले मेमोरी मे डालना पडता है अधिकतर आपरेटिंग सिस्टम एक समय मे एक से अधिक प्रोग्राम को मेमोरी मे रहने की सुविधा प्रदान करता है आपरेटिंग सिस्टम यह निश्चित करता है कि प्रयोग हो रही मेमोरी अधिलेखित न हो प्रोग्राम स्माप्त होने पर प्रयोग होने वालीमेमोरी मुक्त हो जाती है ।
2) मल्टी प्रोग्रामिंग
एक ही समय पर दो से अधिक प्रक्रियाओ का एक दूसरे पर प्रचालन होना मल्टी प्रोग्रामिंग कहलाता है । विशेष तकनिक के आधार पर सी.पी.यू. के द्वारा निर्णय लिया जाता है कि इन प्रोग्राम मे से किस प्रोग्राम को चलाना हैएक ही समय मे सी.पी. यू. किसी प्रोग्राम को चलाता है
3) मल्टी प्रोसेसिंग
एक समय मे एक से अधिक कार्य के क्रियान्वयन के लिए सिस्टम पर एक से अधिक सी.पी.यू रहते है । इस तकनीक को मल्टी प्रोसेसिंग कहते है । एक से अधिक प्रोसेसर उपल्ब्ध होने के कारण इनपुट आउटपुट एवं प्रोसेसींगतीनो कार्यो के मध्य समन्वय रहता है ।
4) मल्टी टास्किंग
मेमोरी मे रखे एक से अधिक प्रक्रियाओ मे परस्पर नियंत्रण मल्टी टास्किंग कहलाता है किसी प्रोग्राम से नियत्रण हटाने से पहले उसकी पूर्व दशा सुरक्षित कर ली जाती है जब नियंत्रण इस प्रोग्राम पर आता है प्रोग्राम अपनी पूर्व अवस्था मे रहता है । मल्टी टास्किंग मे यूजर को ऐसा प्रतित होता है कि सभी कार्य एक साथ चल रहे है।
5) मल्टी थ्रेडिंग
यह मल्टी टास्किंग का विस्तारित रूप है एक प्रोग्राम एक से अधिक थ्रेड एक ही समय मे चलाता है । उदाहरण के लिए एक स्प्रेडशिट लम्बी गरणा उस समय कर लेता है जिस समय यूजर आंकडे डालता है
6)रियल टाइम
रियल टाइम आपरेटिंग सिस्टम की प्रक्रिया बहुत ही तीव्र गति से होती है रियल टाइम आपरेटिंग सिस्टम का उपयोग तब किया जाता है जब कम्पयुटर के द्वारा किसी कारेय विशेष का नियंत्रण किया जा रहा होता है । इस प्रकार के प्रयोग का परिणाम तुरंत प्राप्त होता है । और इस परिणाम को अपनी गरणा मे तुरंतप्रयोग मे लाया जाता है । आवशअयकता पडने पर नियंत्रित्र की जाने वाली प्रक्रिया को बदला जा सकता है । इस तकनीक के द्वारा कम्पयुटर का कार्य लगातार आंकडे ग्रहण करना उनकी गरणा करना मेमोरी मे उन्हे व्यवस्थित करना तथा गरणा के परिणाम के आधार पर निर्देश देना है

आपरेटिंग सिस्टम के प्रकार

उपयोगकर्ता की गिनती के आधार पर आपरेटिंग सिस्टम को दो भागो मे विभाजित किया गया है ।
1)एकल उपयोगकर्ता
एकल उपयोगकर्ता आपरेटिंग सिस्टम वह आपरेटिंग सिस्टम है जिसमे एक समय मे केवल एक उपयोगकर्ता काम कर सकता है ।
2)बहुल उपयोगकर्ता
वह आपरेटिंग सिस्टम जिसमे एक से अधिक उपयोगकर्ता एक ही समय मे काम कर सकते कर सकते है

काम करने के मोड के आधार पर भी इसे दो भागो मे विभाजित किया गया है ।

1)कैरेक्टर यूजर इंटरफेस
जब उपयोगकर्ता सिस्टम के साथ कैरेक्टर के द्वारा सूचना देता है तो इस आपरेटिंग सिस्टम को कैरेक्टर यूजर इंटरफेस कहते है
उदाहरण डॉस, यूनिक्स
2)ग्राफिकल यूजर इंटरफेस
जब उपयोग कर्ता कम्पयुटर से चित्रो के द्वारा सूचना का आदान प्रदान करता है तो इसे ग्राफिकल यूजर इंटरफेस कहा जाता है ।
उदाहरण विन्डो

कम्प्यूटर नेटवर्क

आज के युग मे उपयोगकर्ता को इलेक्ट्रानिक संचार की आवश्यकता है लोगो के परस्पर सूचना के संचार के संचार के लिए तकनीक की आवश्यकता है । एक अच्छी सूचना संचार पद्धति प्रत्येक संस्थानो के लिए आवश्यक है संस्थाए सूचना की प्रक्रिया के लिए परस्पर जुडे हुए कम्प्यूटर पर निर्भर रहती है इलेकट्रानिकी की सहायता एक से स्थान से दूसरे स्थान पर सूचना प्रेषित करने की क्रिया को दूरसंचार कहते है । एक या एक से अधिक कम्प्यूटर और विविध प्रकार के टर्मिनलो के बीच आंकडो को भेजना या प्राप्त करना डाटा संचार कहलाता है ।
नेटवर्क की रूप रेखा
सामान्यतया संचार नेटवर्क मे किसी चैनल के माध्यम से प्रेषक अपना संदेश प्राप्तकर्ता को भेजता है। किसी भी नेटवर्क के पाँच मूल अंग है ।

1) टर्मिनल
टर्मिनल मुख्य रूप से वीडियो टर्मिनल एवं वर्कस्टेशनो का समावेश होता है । इन पुट एवं आउट पुट उपकरण नेटवर्क मे डेटा भेजने एवं प्राप्त करने का कार्य करते है उदाहरणःमाइक्रोकम्प्यूटर ,टेलीफोन फेक्स मशीन आदि

2) दूरसंचार प्रोसेसर
दूरसंचार प्रोसेसर वे टर्मिनल और कम्प्यूटर के बीच रहते है । ये डाटा भेजने एवं प्राप्त करने के सहायता करते है । मोडेम मल्टीप्लेक्सर ,फ्रन्ट एण्ड प्रोसेसर जैसे उपकरण नेटवर्क मे होने वाली विविध क्रियाओ और नियंत्रणो मे सहायता करता है।
3)दूरसंचार चैनल एवं माध्यम
वे माध्यम जिनके उपर डाटा प्रेषित एवं प्राप्त किया जाता है उसे दूरसंचार चैनल कहते है । दूरसंचार नेटवर्क के विभिन्न अंगो को जोडने के लिए माध्यम का उपयोग करते है ।
4)कम्प्यूटर
नेटवर्क सभी प्रकार के कम्प्यूटर को आपस मे जोडता है । जिससे वे उसकी सूचना पर प्रक्रिया कर सके ।
5)दूरसंचार साफ्टवेयर
दूरसंचार साफ्टवेयर एक प्रोग्राम है जोकि होस्ट कम्प्यूटर पद्धति पर आधारित है । यह कम्प्यूटर पद्धति दूरसंचार विधियो को नियंत्रित करता है और नेटवर्क की क्रियाऔ को व्यवस्थित करता है

डाटा, प्रक्रिया और सूचना क्या है?

डाटा क्या है?
असिध्द तथ्य अंक और सांख्यिकी का समूह, जिस पर प्रक्रिया करने से अर्थपूर्ण सूचना प्रप्ता होती है।
प्रक्रिया क्या है ?
डाटा जैसे- अक्षर, अंक, सकंख्यिकी या किसी चित्र को सुव्यवस्थित करना उनकी गणना करना प्रक्रिया कहलाती है। डाटा को संकलित कर, जाँचा जाता है और किसी क्रम में व्यवस्थित करनें के बाद संग्रहीत कर लिया जाता है, इसके बाद इसे विभिन्न व्यक्यि (जिन्हें सूचना की आवश्यकता है) को भेजा जाता है। प्रक्रिया में निम्नालिखित पदो का समावेश होता है।
गणना :-जोडना, घटाना, गुड़ा करना, भाग देना।
तुलना :बराबर , बड़ा छोटा, शून्य, धनात्मक ऋणात्मक ।
निर्णय लेना : किसी सर्त के आधार पर विभिन्न अवस्थाएँ।
तर्क: आवश्यक परिणाम को प्राप्त करने के लिए पदों का क्रम।
केवल स्ख्याओं (अंकों) की गणना को ही प्रक्रिया नहीं कहते हैं। कम्प्यूटर की सहायता से दस्तवेजो में त्रुटियाँ ढ़ूढ़ना, टैक्ट को व्यवस्थित करना आदि भी प्रक्रिया कहलाता है।

सूचना क्या है?
जिस डाटा पर प्रक्रिया हो चुकी हो,वह सूचना कहलाती है। अर्थपूर्ण तथ्य,अंक या सांख्यिकी सूचना होती है। दूसरो शब्दों में डाटा पर प्रक्रिया होने के बाद जो अर्थपूर्ण डाटा प्राप्त होता है, उसे सूचना कहतें। अनुरूपता की विभिन्न श्रेणियों का गुण रखने वाली उपयोगी सामग्री होती होती है-सूचना निम्नालिखित कारणों से अति-आवश्यक और साहायक होती है-
(a) यह जानकारी
(b) यह वर्तमान और भविष्य के लिए निर्यय लेने में सहायता करती है
(c) यह भविष्य का मूल्यांकन करने में सहायक है।
सूचना के गुण
हम जानते है कि सूचना किसी प्रणाली के लिए अति अवश्यक कारक हैं इस लिए सूचना में अग्रलिखित गुण होने चाहियेः
(a) अर्थपूर्णता
(b) विस्मयकारी तत्व
(c)पूर्व जानकारी से सहमति
(d)पूर्व जानकारी में सुधार
(e) संक्षिप्तता
(f)शुध्दता या यथार्थता
(g)समयबध्ता
(h) कार्य-संपादन में सहायक

इन्टरनेट

इन्टरनेट शब्द को अगर दो भागो मे बाँट दिया जाये तो इंटरनेशनल + नेटवर्क दो शब्द बनते हैं, और दोनों शब्दों का मतलब निकाला जाये तो इसका अर्थ आता हैं अन्तर्राष्ट्रीय जाल अर्थात ऐसा जाल जिसमे सम्पूर्ण संसार शामिल हो.
इंटरनेट दुनिया भर में सार्वजनिक रूप से सुलभ कंप्यूटर के सुपर नेटवर्क है. इंटरनेट नेटवर्क  मे हजारों की  संख्या मे पूरी दुनिया के कंप्यूटर जुड़े हुए हैं|

इंटरनेट का सफर, १९७० के दशक में, विंट सर्फ (Vint Cerf) और बाब काहन् (Bob Kanh) ने शुरू किया गया। उन्होनें एक ऐसे तरीके का आविष्कार किया, जिसके द्वारा कंप्यूटर पर किसी सूचना को छोटे-छोटे पैकेट में तोड़ा जा सकता था और दूसरे कम्प्यूटर में इस प्रकार से भेजा जा सकता था कि वे पैकेट दूसरे कम्प्यूटर पर पहुंच कर पुनः उस सूचना कि प्रतिलिपी बना सकें – अथार्त कंप्यूटरों के बीच संवाद करने का तरीका निकाला। इस तरीके को ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल {Transmission Control Protocol (TCP)} कहा गया।
सूचना का इस तरह से आदान प्रदान करना तब भी दुहराया जा सकता है जब किसी भी नेटवर्क में दो से अधिक कंप्यूटर हों। क्योंकि किसी भी नेटवर्क में हर कम्प्यूटर का खास पता होता है। इस पते को इण्टरनेट प्रोटोकॉल पता {Internet Protocol (I.P.) address} कहा जाता है। इण्टरनेट प्रोटोकॉल (I.P.) पता वास्तव में कुछ नम्बर होते हैं जो एक दूसरे से एक बिंदु के द्वारा अलग-अलग किए गए हैं।
सूचना को जब छोटे-छोटे पैकेटों में तोड़ कर दूसरे कम्प्यूटर में भेजा जाता है तो यह पैकेट एक तरह से एक चिट्ठी होती है जिसमें भेजने वाले कम्प्यूटर का पता और पाने वाले कम्प्यूटर का पता लिखा होता है। जब वह पैकेट किसी भी नेटवर्क कम्प्यूटर के पास पहुंचता है तो कम्प्यूटर देखता है कि वह पैकेट उसके लिए भेजा गया है या नहीं। यदि वह पैकेट उसके लिए नहीं भेजा गया है तो वह उसे आगे उस दिशा में बढ़ा देता है जिस दिशा में वह कंप्यूटर है जिसके लिये वह पैकेट भेजा गया है। इस तरह से पैकेट को एक जगह से दूसरी जगह भेजने को इण्टरनेट प्रोटोकॉल {Internet Protocol (I.P.)} कहा जाता है।
अक्सर कार्यालयों के सारे कम्प्यूटर आपस में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं और वे एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं। इसको Local Area Network (LAN) लैन कहते हैं। लैन में जुड़ा कोई कंप्यूटर या कोई अकेला कंप्यूटर, दूसरे कंप्यूटरों के साथ टेलीफोन लाइन या सेटेलाइट से जुड़ा रहता है। अर्थात, दुनिया भर के कम्प्यूटर एक दूसरे से जुड़े हैं। इण्टरनेट, दुनिया भर के कम्प्यूटर का ऎसा नेटवर्क है जो एक दूसरे से संवाद कर सकता है।

कंप्यूटर और मानवीय मस्तिष्क

कंप्यूटर और मानवीय मस्तिष्क

कल्पनाशीलता अथवा रचनात्मकता कंप्यूटरों की सीमा के बाहर है. जिस किसी काम की कभी कल्पना नहीं की गई हो कंप्यूटर उसे नहीं कर सकते जबकि मानवीय मस्तिष्क इस सीमा को लांघने की शक्ति रखता है.कंप्यूटर मानवीय मस्तिष्क से संभव हो सकने वाले कामो में से बहुत कम काम ही कर सकता है इसलिए कंप्यूटर मानव के दास की भूमिका में ही केवल सटीक बैठता है. कंप्यूटर जो भी काम कर सकता है दरसल वो मानवीय मस्तिष्क का ही देन होता हैं. हरेक एक मनुष्य का मस्तिष्क अलग अलग होता है, वो एक ही काम को अलग अलग तरीकों से करेगा, परन्तु १० या १००० एक जैसा तैयार किया गया कंप्यूटर एक जैसा ही काम करता है.

कंप्यूटर प्रोग्रामर (जो कंप्यूटर को निर्देषित करता है) कंप्यूटर को पहले बतलाता है की ________ + _______ = ? का अगर कहीं जवाब देना हैं तो खाली जगह में भरा गया पहले नंबर का बिट  और दूसरे नंबर की बिट को जोड़ने पर जो भी बिट आयेगी उससे पुनः डिजिटल में प्रदर्शित करना है. इसके बाद जब भी कोई यूसर (जो बनाये गए प्रोग्राम को उपयोग करता है) ______+______=? के जगह ५ + ४ = ? पूछेगा तो कंप्यूटर तुरंत ५+४ = ९ को प्रदर्शित कर देगा. इसके बदले अगर वह बार बार कोई अलग संख्याभी देगा तो उससे तुरंत जवाब मिलेगा.

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कंप्यूटर और विद्युत धारा

बिना विद्युत धारा के कंप्यूटर की कल्पना भी नहीं की जा सकती हैं. विद्युत धारा प्रवाह के कंप्यूटर मे दो प्रकार के उपयोग होते हैं. एक शक्ति स्रोत के रूप मे और दूसरा परिचालन संकेत के रूप में.  शक्ति स्रोत के रूप मे विद्युत धारा इसके विभिन्न ऑपरेटिंग सिस्टमों की मोटरों का परिचालन करती हैं. सामन्यतः यह कार्य १२ वोल्ट पर संपादित होते हैं. कंप्यूटर द्वारा इस्तेमाल विद्युत धारा शक्ति का अधिकतम भाग इसीकार्य में खपत होता है. कंप्यूटर में विद्युत धारा का दूसरा कार्य अधिक महत्वपूर्ण हैं, यद्यपि इसमें विद्युत शक्ति की मामूली सी मात्रा ही उपयुक्त होती हैं. यह कार्य कंप्यूटर की कार्य प्रणाली के अनुसार संकेतों का उत्पादन करना हीं. इन्ही संकेतों के आधार पर कंप्यूटर सभी प्रकार के कार्य को सम्पन करता हैं. सामन्यतः यह कार्य ३-५ वोल्ट पर संपादित होते हैं.

25. बाइनरी नंबर रूपान्तरण

बाइनरी नंबर रूपान्तरण

हम जानते है की कंप्यूटर की मूल इकाई बस दो होती है ० और १. विश्व स्तरीय गणना के लिये १००० को मानक माना जाता है. मतलब १००० ग्राम = १ किलोग्राम, १००० मीटर = १ किलोमीटर आदि.

कंप्यूटर गणना के लिये अगर दो के गुणक मे १००० के मानक मे देखा जाये अर्थात,

1          X         1          =1

2          X         2          =4

1          X         2          =2

4          X         2          =8

8          X         2          =16

16        X         2          =32

32        X         2          =64

64        X         2          =128

128      X         2          =256

256      X         2          =512

512      X         2          =1024

1024    X         2          =2048

१००० के सबसे नजदीक १०२४ ही आता है. ठीक उससे एक पहले ५१२ आता है जो १००० से बहुत कम है और ठीक एक बाद २०४८ आता है जो १००० से बहुत ज्यादा होती है. इस कारण कंप्यूटर मे १०२४ को ही मानक मान लिया गया हैं.

अब हम डिजिटल नंबर को बाइनरी नंबर मे बदलने की सबसे आसान तरीका देखेंगे.

सबसे पहले हम एक चार्ट इस तरह से बनाएँगे –

………

128

64

32

16

8

4

2

1

अब जिस डिजिटल नंबर को बाइनरी नंबर मे बदलना है उसको लेंगे. उदाहरण के लिये जैसे, 10को बाइनरी नंबर मे बदलना है तो हम चार्ट मे देखेंगे की किन-किन नंबरों को जोड़ने से 10होता हैं. तो 8+2=10 होगा. तो हम चार्ट मे 8 के नीचे वाले खाने मे 1, और   2 के नीचे वाले खाने मे 1 लिखेंगे और बचे हुए खाने मे ० लिख देंगे.

………

128

64

32

16

8

4

2

1

1

0

1

0

=1010

अर्ताथ 10 का बाइनरी नंबर  1010 हुआ.

दूसरा उदाहरण –

13 को बाइनरी नंबर मे बदलना है तो हम चार्ट मे देखेंगे की किन-किन नंबरों को जोड़ने से 13होता हैं. तो 8+4+1=13 होगा. तो हम चार्ट मे 8 के नीचे वाले खाने मे 1, और   4 के नीचे वाले खाने मे 1 और  1 के नीचे वाले खाने मे 1 लिखेंगे और बचे हुए खाने मे ० लिख देंगे.

………

128

64

32

16

8

4

2

1

1

1

0

1

=1101

अर्ताथ 13 का बाइनरी नंबर  1101 हुआ.

ठीक इसी तरह अगर पहले से बाइनरी नंबर दिया हुआ हो तो उससे इस चार्ट में दाएँ से बाये लिख कर हम डिजिटल नंबर में बदल सकते हैं.

उदाहरण –

………

128

64

32

16

8

4

2

1

1

0

0

1

नीचे के खाने मे जहाँ जहाँ १ है अगर उसके योग को देखा जाये तो डिजिटल नंबर आ जाता हैं. ऊपर से चार्ट मे 8 और 1 के नीचे 1 हैं अतः 8+1 करने पर 9 आयेगा.

1001  डिजिटल नंबर 9 होता है.

कंप्यूटर भाषा (Computer Languages)

अपनी बातों को दूसरे के साथ एकदम सटीक तरीके से समझाने का माध्यम ही भाषा कहलाता है. हम कंप्यूटर से भी बात करते हैं मतलब हम कंप्यूटर को निर्देशित करते हैं और इस निर्देसन के लिए हम जिसभाषा का प्रयोग करते है वो कंप्यूटर भाषा के तौर पर जाना जाता हैं. कंप्यूटर केवल विद्युत धारा के चालू या बंद, ० या १ मे अंकित भाषा ही समझ सकता है इन्हें बिट Binary Digit कहा जाता है. अतः कंप्यूटर से यदि कोई कार्य समपन्न करना है तो इसी भाषा मे समादेश तथा सूचनाएं देनी होती है. शुरुआती दौर में कागज के कार्डों में छिद्र करके कंप्यूटरों को निर्देश दिए जाते थे.

कंप्यूटर भाषाओं के निम्न प्रकार होते हैं-

१.       मशीनी भाषा (Machine Language, Low Level Language, LLL)

२.      संयोजन भाषा (Assembly Language, Middle Level Language, MLL)

३.      उच्च स्तरीय भाषा (High Level Language, HLL)

मशीनी भाषाकंप्यूटरों के विकास के बाद उनसे संवाद स्थापना के लिए अनुदेश बाइनरी सिस्टम मे हीअंकित किये जाते थे. इससे मशीन से सीधे संपर्क होता हैं, इसलिए इसे मशीनी भाषा कहा जाता हैं. कंप्यूटर मूलतः केवल यही भाषा समझता है. आज भी कंप्यूटर से संपर्क करने लिए हम इसी भाषा का प्रयोग करते है मगर काम करने वालो को इसका आभास नहीं हो पाता है. उपयोगकर्ता तथा कंप्यूटर के बीच प्रयुक्तभाषाएँ तथा प्रोग्राम इस कार्य को संपन्न करते रहते है.

उदाहरण

अगर हम Keyboard से ‘A’ टाइप करते हैं तो कंप्यूटर पहले उसके लिए पूर्व से निर्धारित ASCII संख्या =65 पहचानती है और फिर उससे मशीनी भाषा मे बदलती है.               A = 65 = 1000001 मे बदलती हैं तब हमें एक आकृति प्राप्त होती है जो A होती हैं. यह सारी प्रक्रिया एक सेकंड के १००००० हिस्से मे होती है इस कारण हमें पता नहीं चलता.

मशीनी भाषा की समस्याएं- और १ मे कंप्यूटर को बार बार समझाने की प्रक्रीया आसान नहीं होती. अगरहमें कोई जटिल गणनाओं की आवश्यकता हो तो लिखने मे समस्या आ जाएगी.

संयोजन भाषा और १ मे कंप्यूटर को बार बार समझाने की प्रक्रीया आसान नहीं होती इससे भाड़ी तनाव की स्थिति उत्पन होती है. इस तनाव से मुक्ति के लिए विशेषज्ञओ ने सांकेतिक भाषाओं का अविष्कार किया. उन्होंने प्रत्येक प्रक्रीया के लिए एक सरल शब्द को चुन लिया. ये शब्द मशीनी भाषा के ही पर्याय मान लिये गए. इन शब्दों से निर्मित भाषाओं को संयोजन भाषा कहा जाता हैं. इन शब्दों को पुनः कंप्यूटर को मशीनी भाषा मे समझाने के लिये असेम्ब्लेर का उपयोग किया जाता है.

उदाहरण

अगर हमे शीर्षक प्रारम्भ करना है तो SOH कमांड का प्रयोग किया जाता. जब भी कंप्यूटर पर नया शीर्षक की आवश्यकता होती वहाँ इस कमांड के उपयोग से कंप्यूटर समझ जाता की उसे अब नया शीर्षक बनाने का काम करना हैं. मशीनी भाषा मे कंप्यूटर को यह बात बतलाने के लिये ,,,,,० जैसा एक लंबा लाइन लिखना पड़ता था.

संयोजन भाषा की समस्याएं- एक बार लिखे गए प्रोग्राम को बदलने मे समस्या उत्पन्न होती थी. इस भाषा मे प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को उस मशीन की हार्डवेयर की भी जानकारी रखनी पड़ती थी जिसमे वो प्रोग्राम चलता.

उच्च स्तरीय भाषाकंप्यूटर का व्यावसायिक उपयोग बढ़ाने के साथ एक नया समस्या सामने आया. हरेक व्यावसायिक कंप्यूटर उपयोगकर्ता को अपने व्यवसाय के अनुसार प्रोग्राम की आवश्यकता होने लगी. परन्तु कंप्यूटर कार्य प्रणाली को जानने वालों की संख्या बहुत ही सिमित थी. अचानक बड़ी संख्या मे विशेषज्ञ प्रोग्रामरों को तेयार करना संभव नहीं था. अतः विशेषज्ञ प्रोग्रामरो ने एक और भी आसान भाषा का विकास किया जिसे उच्च स्तरीय भाषा कहा गया. इस भाषा के अंतर्गत की-वर्ड का निर्माण किया गया. जो साधारण इंग्लिश शब्दों से मिलता था. इस कारण इसे आसानी से याद भी रखा जा सकता था. इसके उपयोग के लिये कंप्यूटर कार्य प्रणाली की जानकारी आवश्यक नहीं रह गया. उच्च स्तरीय भाषा को मशीनी भाषा मे कंप्यूटर को समझाने के लिये इंटर-प्रेटर की आवश्यकता होती है. C, C++, C#, FORTAN, PASCAL, ORACLE आदि इसके उदाहरण है.

27. कंप्यूटर लोजिक (तर्कशस्ति)

बोध के उपयोग की प्रक्रीया को लोजिक कहा जाता हैं. कंप्यूटर तंत्र के सॉफ्टवेर कंप्यूटर की बोध-तंत्र होते है जो वस्तुतः कार्यक्रम एवं क्रिया अनुक्रिया के दिशा निर्देश होते हैं. इन्हीं के अनुसार कंप्यूटर तंत्र कार्य करते हैं. इन दिशा निर्देशों के अनुपालन हेतु कंप्यूटर विद्युत संकेतों का उपयोग करते हैं. विद्युत संकेतों एवंसूचनाओ के द्विदिशी संपरिवर्तन को कंप्यूटर लोजिक कहा जाता हैं. दो प्रकार के कंप्यूटर लोजिक का उपयोग होता है जिन्हें अनुवर्ती / एनालोग तथा अंकीय / डिजिटल लोजिक कहा जाता हैं.

अनुवर्ती / एनालोग तर्क शस्ति/ लोजिक मे सूचना के परिणाम एवं उसके आवर्तन का यथावत निरूपण होता है. अतः कंप्यूटर तन्त्र मे विद्युत संकेत का परिणाम सूचना के परिणाम के समानुपाती होता है. एनालोग लोजिक के विद्युत संकेत सूचना उपलब्द्धि के समय से उसके परिणामस्वरूप अनवरत होते है. अंकीय लोजिक मे विद्युत संकेत अनवरत न हो कर उर्मियों के स्वरुप मे एक सुनिश्चित आवृत्ति पर अथवा सुनिश्चित अवधि के लिये उपस्तिथ होते हैं.

कंप्यूटर ब्लॉक आरेख

कंप्यूटर पर कोई भी काम पहले से निर्धारित तरीके के अनुसार ही सम्पन्न होता हैं. अर्थात अगर हम की-बोर्ड पर “अ” बटन दबाते है तो वह एक निश्चित प्रक्रीया को पूरा करते हुए ही  हमें मोनिटर परअ” के रूप में दिखलाई पड़ता हैं.

कंप्यूटर में कोई भी डाटा डालने की क्रिया को इनपुट क्रिया कहते हैं. कंप्यूटर में इनपुट का काम की-बोर्ड या मोउस के द्वारा किया जाता है. जब हम की-बोर्ड में कोई एक बटन दबाते हैं तो वह संकेत केंद्रीय प्रसंस्करण इकाई को भेजता हैं. वहाँ कण्ट्रोल में जाँच प्रक्रिया के बाद संकेत रजिस्टर में जाता हैं जहाँ प्रांभिक मेमोरी में जाने के बाद वह संकेत दिखने के लिये आउटपुट में भेज दिया जाता हैं. आउटपुट का काम संकेतों को आकृति में दिखाने के लिये किया जाता हैं. जो मुख्यतः मोनिटर या प्रिंटर होते है. मोनिटर में दिखने वाली कॉपी को सोफ्ट कॉपी और प्रिंटर से निकाले गए कॉपी को हार्ड कॉपी कहा जाता हैं.

कंप्यूटर बूटिंग

कंप्यूटर को ऑन/ऑफ करने की प्रक्रिया को बूटिंग के नाम से जाना जाता है. यह प्रत्येक कंप्यूटर के सबसे पहली प्रक्रिया होती हैं. एक पर्सनल कंप्यूटर में सामान्यतः केंद्रीय प्रसंस्करण इकाई (सीपीयू) के डब्बे में ऑन/ऑफ का बटन होता है जिसे दबा कर हम कंप्यूटर को बूट करते हैं.
बूटिंग दो प्रकार के होते हैं-
१)      कोल्ड बूटिंग
२)     वार्म बूटिंग

ऑन/ऑफ बटन दबा कर कंप्यूटर को खोलने की क्रिया को कोल्ड बूटिंग कहा जाता हैं. अगर कंप्यूटर खुल गया हो परन्तु ऑफ न हो रहा हो या कोई प्रोग्राम फस गया हो तो कंप्यूटर को की-बोर्ड के Alt+Ctrl+Delदबा कर या फिर रिस्टार्ट बटन का उपयोग कर कंप्यूटर को बंद किया जाता हैं, यह प्रक्रिया को वार्म बूटिंग के नाम से जाना जाता है.

डी.ओ.स.डोस (डिस्क ऑप्रेटिंग सिस्टम)

वैज्ञानिकों के अलावा साधारण उपभोक्ताओं के लिये एक ऑपरेटिंग सिस्टम की शुरुआत की गयीं जिसका नाम डी.ओ.स. –डोस (डिस्क ऑप्रेटिंग सिस्टम) रखा गया. यह ऑप्रेटिंग सिस्टम कंसोल मोड आधारित था, अर्थात इसमें माउस का उपयोग नहीं होता था न ही इसमें ग्राफ़िक से सम्बंधित कोई काम हो सकता था. इसमें फाइल और डायरेक्टरी बनाया जा सकता था जिसमे हम टेक्स्ट को सुरक्षित कर के रख सकते थे और पुनः उपयोग भी कर सकते थे.

डी.ओ.स. पूर्णतः आदेश (COMMAND) पर आधारित होता था. आदेश के दुवारा ही कंप्यूटर को निर्देशित कर सकते थे. जिन्हें जितना आदेश याद होता था उसे उतना ही जानकार माना जाता था. आदेश (COMMAND)- यह कंप्यूटर को निर्देशित करने का तरीका होता हैं. पहले ही कंप्यूटर को यह बतला दिया जाता है की निम्न शब्द का प्रयोग करने से निम्न प्रकार का ही काम करना हैं. और जब कोई उपभोक्ता बस उस आदेश को लिखता हैं तो कंप्यूटर स्वतः उस काम को निष्पादित करता हैं.

डी.ओ.स. को ऑप्रेटिंग सिस्टम का माँ भी कहा जाता हैं, क्योंकि हम आज जिस भी ऑप्रेटिंग सिस्टम का उपयोग करते हैं उसका मुख्य आधार डी.ओ.स. ही होता हैं. बाद के समय में मायक्रोसॉफ्ट कंपनी ने इसेखरीद लिया, उसके बाद इसे ऍम.एस.डी.ओ.स. के नाम से जाना जाने लगा. हम यहाँ डी.ओ.स. के कमांडो का ज्यादा चर्चा नहीं करेंगे क्योंकि आज हम प्रत्यक्ष रूप से इसका उपयोग नहीं करते हैं.

सबसे पहले हम चर्चा करेगे की प्रोम्प्ट क्या होता हैं?

डी.ओ.स. में साधारणतया हमें “C:\>_” प्रकार की आकृति बनी हुई दिखाई पड़ती हैं. जब हम डी.ओ.स. खोलते हैं तो स्क्रीन के बायीं ओर यह दिखलाई पड़ता हैं.

जहाँ-

C: यह बतलाता है कि हम हार्डडिस्क के किस भाग में हैं. सामान्यतः हार्डडिस्क C: D: E: में और फ्लॉपी A:के तौर पर दिखाई पड़ता हैं. यह क्रम कोई जरुरी नहीं होता.

\ यह बतलाता हैं कि हम किस डायरेक्टरी में हैं. डायरेक्टरी उस स्थान को कहा जाता हैं जहाँ हम फाइल को सुरक्षित रखते हैं, और फाइल हम उसे कहते हैं जिसके अंतर्गत सूचनाओं को रखा जाता हैं. दूसरे शब्दों में अगर कहें तो हम जो साधारण कॉपी पर लिखते हैं उससे फाइल कहा जाता हैं और उस कॉपी को सहेज कर रखने के लिये जो आलमारी या रैक का उपयोग किया जाता हैं उससे डायरेक्टरी कहते हैं.

> यह बतलाता हैं कि मुख्य जानकारी यहाँ समाप्त हुई.

_ यह टिमटिमाता छोटा लाइन कर्सर के नाम से जाना जाता हैं. यह जहाँ भी दिखता हैं उसका मतलब हुआ की हम उस जगह पर कुछ लिख सकते हैं.

कंसोल मोड में हम केवल की-बोर्ड  का इस्तेमाल कर सकते थे, मगर कंप्यूटर पर जरूरत हुई शब्दों के अलावा ग्राफिक्स की भी तब एक नए प्रकार का प्रणाली को उपयोग में लाया गया जिसे ग्राफिकल यूज़र इंटरफेस कहा जाता हैं. इसके आने से माउस का इस्तेमाल संभव हो सका.  इसमें आसानी से फोटो , वीडियो, ऑडियो  आदि को देखा या उसपर काम किया जा सकता हैं. हम साधारणतया आज जो भी ऑपरेटिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं वो ग्राफिकल यूज़र इंटरफेस पर ही आधारित होता हैं.  इसके आने के बादकंप्यूटर ने आश्चर्यजनक रूप से अपना विकास किया और कंप्यूटर के साथ एक दोस्ताना माहौल कायम हो सका. जहाँ पहले डोस में एक छोटा फाइल बनाने के लिये लंबा आदेश लिखना पड़ता था वही बस माउस के एक – दो क्लिक से ही फाइल बनने लगा. डोस से लगभग सभी आदेशों को चित्र के माद्यम से दिखलाया जाने  लगा.

पर्सनल कंप्यूटर की हार्डवेयर संरचना
सी० पि० यू० बक्से में कंप्यूटर के भिन्न भिन्न हार्डवेयरों को एक जगह व्यवस्थित करके रखा जाता हैं. मोनिटर कंप्यूटर का आउटपुट अंग है और माउस तथा की-बोर्ड इसके इनपुट अंग है.

विन्डोज़ की आन्तरिक/बाह्य एप्लिकेशन (सोफ्टवेयर)
जब कंप्यूटर मे ओपरेटिंग सिस्टम के तौर पर विन्डोज़ को लोड किया जाता है तो उसके साथ काम करने के लिए आवश्यक सोफ्टवेयर खुद ब् खुद लोड हो जाता है वहीँ विन्डोज़ का आन्तरिक एप्लिकेशन (सोफ्टवेयर) कहलाता है और जो सोफ्टवेयर विंडोज के लोड हो जाने के बाद अलग से किसी अन्य माध्यम से कंप्यूटर मेडाला जाता हैं उसे बाह्य एप्लिकेशन (सोफ्टवेयर) कहा जाता हैं.
आन्तरिक एप्लिकेशन के उदाहरण के लिए

MS-PAINT*                      – इस एप्लिकेशन का उपयोग चित्र बनाने के लिए किया जाता हैं.

CALCULATOR*               – अंकीय जोड़-घटा करने के लिए कैलकुलेटर का उपयोग किया जाता हैं.

INTERNET EXPLORER*        – इंटरनेट पर काम करने के लिए इस सॉफ्टवेर का उपयोग किया जाता हैं.

WINDOWS MULTIMEDIA*     – गाना-विडियो सुनने और देखने के लिए इस सॉफ्टवेर का उपयोग किया जाता हैं.

WINDOWS MOVIE MAKER*    – विडियो मे कुछ फेर बदल करने के लिए या जोड़ने आदि के लिए इस सॉफ्टवेर का उपयोग किया जाता हैं.

NOTEPAD*                  – यह एक टेक्स्ट एडिटर प्रोग्राम होता हैं, अर्थात इसके अंतर्गत लिखने आदि का काम होता हैं. यह प्रोग्राम दिखाने मे जितना साधारण लगता है उससे बहुत ज्यादा शक्तिशाली प्रोग्राम होता है. एसा कोई भी कंप्यूटर भाषा जिसे कमपईल करने की आवश्कता नहीं होती उसे नोटपेड पर लिखा जा सकता है जैसे                  HTML – (Hyper Text Markup Language*)
WORDPAD*                                       – यह भी एक टेक्स्ट एडिटर प्रोग्राम है जिसके अंतर्गत हम कोई पत्र या शब्दों से संबन्धित किसी काम को सम्पादित कर सकते हैं. इसके प्रयोग से हम साधारण टाइप राइटर्स की तुलना मे कहीं अच्छे तरीके से लिखने का काम कर सकते है.

बाह्य एप्लिकेशन के उदाहरण के लिए
MS OFFICE*                                       – यह एक बहुत उपयोगी प्रोग्राम का बण्डल है जिसके अंतर्गत लिखनेवाला काम तो होता ही है साथ ही साथ स्प्रेडशीट्स और प्रेसेंटेशन का भी काम होता हैं. स्प्रेडशीट्स का मतलब हुआ एक प्रकार का व्यापारिक लिखा जोखा वाला काम और प्रेसेंटेशन का मतलब हुआ लिखे हुए काम को दूसरों के पास दिखलाने का तरीका.
OUTLOOK*           – इस सोफ्टवेयर का प्रयोग इंटरनेट से मेल भेजने या मंगवाने के लिए किया जाता हैं. इसमें एक बार मेल आने के बाद पुनः उसे पढ़ने के लिए इन्टरनेट कनेक्शन की अवश्यकता नहीं होती.

PHOTOSHOP*        – चित्र से सम्बंधित वृहत काम के लिए इस सोफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता हैं.

CORELDRAW*        – लोगो डिजाइन से सम्बंधित काम के लिए इस सोफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता हैं.

FLASH*              – चलंत चित्र (Animation) बनाने के लिए इस सोफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता हैं.

PAGE MAKER*        – पत्र डिजाइन से सम्बंधित काम के लिए इस सोफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता हैं.

.NET*                – स्वयं का अलग काम करने के लिए प्रयुक्त होने वाले प्रोग्राम को बनाने के लिए से सम्बंधित काम के लिए इस सोफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता हैं.

ORACLE       *             – डाटाबेस के लिए इस सोफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता हैं. डाटाबेस का अर्थ हुआ एसी जगह जहाँ हम अपने डाटा को सुसज्जित तरीके से पुनः प्रयोग मे लाने के लिए रखते हैं. जैसे अगर हमे किसी विद्यार्थी का डाटा रखना है तो उससे जुड़ी बहुत सी जानकारी रखना होता है जैसे उसका नाम, क्लास, पिता का नाम, घर का पता इत्यादि.

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