राजस्थान की मेवाड़ रियासत

राजस्थान की मेवाड़ रियासत




राजस्थान की मेवाड़ रियासत
राजस्थान की मेवाड़ रियासत



    • वर्तमान चित्तौड़गढ़, राजसमन्द, उदयपुर एवं भीलवाड़ा जिले के क्षेत्रों में मेवाड़ रियासत का साम्राज्य था।
    • वर्तमान चित्तौड़गढ़ के निकट प्राचीन काल में शिवी जनपद का उदय हुआ जिसकी राजधानी मध्यमिका थी जिसे वर्तमान में नगरी के नाम से जाना जाता है।
    • प्राचीन काल में चित्रांगद मौर्य के द्वारा मेसा के पठार पर स्थित चित्रकुट की पहाड़ी पर चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण किया गया है।
    • गुहिल नामक व्यक्ति के द्वारा मेवाड़ रियासत की स्थापना की गई। कुछ इतिहासकारों के अनुसार गुहिल शिलादित्य नामक राजा का पुत्र था।
    • गुहिल के सिक्के आगरा से भी पुत्र हुए है।
    • मेवाड़ रियासत के वास्तविक संस्थापक बप्पा रावल थे।
    • बप्पा रावल बचपन में हरित ऋषि की गायें चराया करते थे।
    • बप्पा रावल को हरित ऋषि से वरदान में मेवाड़ रियासत का राज्य प्राप्त हुआ।
    • बप्पा रावल ने नागदा को अपनी राजधानी बनाया।
    • बप्पा रावल ने वर्तमान उदयपुर के निकट एगलिंगजी के मन्दिर का निर्माण करवाया।
    • मेवाड़ रियासत के शासक एकलिंगजी को मेवाड़ का राजा मानकर तथा स्वयं को एकलिंगजी का दीवान मानकर शासन किया करते है।
    • बप्पा रावल के काल में ही कुछ इतिहासकारों के अनुसार नागदा में शहस्त्र बाहु के मन्दिर का निर्माण हुआ।
    • जो वर्तमान में सास-बहु के मन्दिर के नाम से प्रसिद्व है।
    • बप्पा रावल के काल में ही मेवाड़ में अदभूत नाथ जी के मन्दिर का निर्माण हुआ।
    • 1231 ई0 में महाराजा जैत्रसिंह के काल में दिल्ली सल्तनत के सुल्तान इल्तुतमिश ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। जैत्रसिंह ने इल्तुतमिश को पराजित कर दिया।
    • लेकिन तुर्को ने नागदा को नष्ट कर दिया इसलिए महाराजा जैत्रसिंह ने नागदा के स्थान पर चित्तौड़गढ़ को अपनी राजधानी बनाया।
    • जैत्रसिंह के पश्चात् महाराजा समरसिंह का पुत्र महाराजा रतनसिंह इस वंश का प्रतापी शासक हुआ।
    • इनके काल का उल्लेख 1540 ई0 में मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा रचित पदमावत मे मिलता है।



    • राजा रतनसिंह की रानी का नाम पद्मनी तथा राजा रतनसिंह के सेनानायकों का नाम गोरा एवं बादल था।
    • राजा रतनसिंह के दरबारी व्यक्ति राघव चेतन ने अलाउद्वीन खिलजी को जब पद्मिनी की सुन्दरता का वर्णन सुनाया तो अलाउद्वीन खिलजी ने पद्मिनी को प्राप्त करने के लिए चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया। प्रारम्भ में अलाउद्वीन खिलजी ने कूटनीति से राजा रतनसिंह को बन्दी बना लिया तब गोरा एवं बादल ने चालाकी से राजा रतनसिंह को छुड़ा लिया इसके पश्चात् हुए युद्व में राजा रतनसिंह सहित सभी राजपूत वीर लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए तथा पद्मनी नेतृत्व में राजपूत रानियों ने जोहर किया।
    • जो राजस्थान का द्वितीय, मेवाड़ का प्रथम एवं अब तक का सबसे बड़ा जोहर था।
    • अलाउद्वीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ का नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया तथा चित्तौड़गढ़ का शासन अपने पुत्र खिज्र खॉं को दे दिया।
    • खिज्र खॉं ने चित्तौड़गढ़ में गम्भीरी नदी पर पुल का निर्माण करवाया।
    • 1326 ई0 में हम्मीर सिसोदिया के द्वारा चित्तौड़गढ़ पर पुनः अधिकार कर सिसोदिया वंश की स्थापना की।
    • हम्मीर सिसोदिया के काल में दिल्ली सल्तनत से सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया जिसे हम्मीर सिसोदिया ने विफल कर दिया।
    • हम्मीर सिसोदिया के पश्चात् क्षेत्रसिंह तथा क्षेत्रसिंह के पश्चात् लक्षसिंह मेवाड़ के महाराणा बने।
    • लक्षसिंह इतिहास में राजा लाखा के नाम से विख्यात हुए।
    • राजा लाखा के काल में एक बन्जारे के द्वारा पिछोला झील का निर्माण किया गया।
    • राजा लाखा ने अनेक युद्वों में विजय हासिल की लेकिन बूॅंदी राव बरसिंह हाड़ा को वह पराजित नही कर पाये।
    • राजा लाखा के पुत्र का नाम कुॅंवर चुड़ा था।
    • कुॅंवर चुड़ा को मेवाड़ का भीष्म कहा जाता है।
    • राणा लाखा का विवाह जीवन के अन्तिम पहर में मारवाड़ के राव रणमल की बहिन हॅंसाबाई के साथ हुआ।
    • राणा लाखा की मृत्यु के बाद राणा लाखा एवं हॅंसाबाई का पुत्र मोकल मेवाड़ के महाराणा बने।
    • कुॅंवर चुड़ा को मोकल का संरक्षक घोषित किया गया तथा हॅंसाबाई राजमाता बनी।
    • राव रणमल राठोड़ ने कूटनीति से कुॅंवर चुड़ा को मेवाड़ से निर्वासित कर मेवाड़ में राठोड़ो का प्रभुत्व स्थापित कर दिया।
    • महाराणा मोकल का काल मेवाड़ के इतिहास में सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का काल था।
    • महाराणा मोकल के पश्चात् उनका पुत्र कुम्भा महाराजा बना।
    • राणा कुम्भा के काल में रणमल राठोड़ अपने षड़यन्त्रों के कारण सिसोदिया सरदारों के हाथों मारे गये
    • राणा कुम्भा 1433 ई0 में मेवाड़ के महाराणा कुम्भा ने अभिनव भटृाचार्य एवं भारताचार्य की उपाधि धारण की।
    • महाराणा कुम्भा ने 1437 ई0 में सारंगपुर के यु़द्व में मालवा के शासक महमूद खिलजी को पराजित किया तथा इस मालवा विजय के उपलक्ष्य में चित्तोड़गढ़ दुर्ग में नौ खण्डों के विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया गया। विजय स्तम्भ को भारतीय मूर्तिकला का विश्व कोष कहा जाता है।
    • विजय स्तम्भ को हिन्दू देवी-देवताओं का अजायबघर भी कहा जाता है।




    • महाराणा कुम्भा के विरुद्ध मालवा के सुल्तान एवं गुजरात के शासक ने संयुक्त अभियान करने के लिए चंपानेर की संधि की।
    • महाराणा कुम्भा ने दोनों के संयुक्त अभियान को भी विफल कर दिया।
    • महाराणा कुम्भा ने जयदेव के गीत गोविन्द पर रसिक प्रिया नामक टीका लिखी थी।
    • महाराणा कुम्भा ने सुधा प्रबन्ध, संगीत राज एवं संगीत मीमोसा नामक ग्रन्थों की रचना की।
    • महाराणा कुम्भा के काल में अत्रि पुत्र महेश (अभिकवि) के द्वारा कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति की रचना की गई। जिसमें बप्पारावल से लेकर महाराणा कुम्भा तक की उपलब्धियों का वर्णन है।
    • महाराणा कुम्भा के काल में कान्हड़ व्यास के द्वारा एकलिंग महात्म्य की रचना की गई इसमे भी बप्पा रावल से लेकर महाराणा कुम्भा के काल तक की उपलब्धियों का वर्णन है।
    • कवि श्याममल दास द्वारा रचित वीर विनोद के अनुसार राजस्थान के 84 दुर्गो में से 32 दुर्गों का निर्माण कुम्भा के द्वारा करवाया गया था जिनमें से दो दुर्ग महत्वपूर्ण है।
    • अचलगढ़ दुर्ग : सिरोही 1452 ई0 में निर्माण महाराणा कुम्भा ने इस दुर्ग का निर्माण अपनी द्वितीय रक्षा पंक्ति के अन्तर्गत किया था।
    • महाराणा ने सबसे महत्वपूर्ण कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया।
    • कुम्भलगढ़ दुर्ग : राजसमन्द 1458 ई0 में निर्माण कुम्भलगढ़ दुर्ग के वास्तुकार मण्डन थे। महाराणा कुम्भा ने कुम्भलगढ़ दुर्ग में ही एक अन्य कटारगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया तथा इस कटारगढ़ दुर्ग में कुम्भा ने स्वयं का महल बनवाया।
    • चित्तोड़गढ़ दुर्ग में अधिकांश निर्माण कार्य महाराणा कुम्भा के काल में हुए।
    • महाराणा कुम्भा ने चित्तोड़गढ़ दुर्ग में कुॅंभ स्वामी नामक मन्दिरों का निर्माण करवाया।
    • महाराणा कुम्भा के जैन मन्त्री त्रेलोक के द्वारा श्रृंगार च्वरी मन्दिर का निर्माण करवाया।
    • महाराणा कुम्भा के काल में ही जैन व्यापारी धारणकशाह के द्वारा रणकपुर जैन मन्दिर का (पाली जिले में) निर्माण करवाया गया जिसके वास्तुकार कीर्तिधर थे।
    • महाराणा कुम्भा के काल में ही केसरयानाथ के मन्दिर का निर्माण हुआ।
    • महाराणा कुम्भा को जीवन के अन्तिम काल में उन्माद रोग हो गया।
    • महाराणा कुम्भा की उनके पुत्र उदा ने हत्या कर दी।
    • मेवाड़ के सिसोदिया सरदारों ने पितृहन्ता उदा के स्थान पर रायमल को मेवाड़ का महाराणा बना दिया।
    • महाराणा रायमल 1468 ई0 के काल में मेवाड़ रियासत कुम्भाकालीन व्यवस्था से पराभव को प्राप्त हुई थी।
    • कुॅंवर पृथ्वीराज को इतिहास में भगाणा पृथ्वी राज के नाम से जाना जाता है।
    • कुॅंवर पृथ्वी राज को रायमल ने अजमेर का गवर्नर नियुक्त किया। इसी समय कुॅंवर पृथ्वीराज ने अपनी पत्नी तारा के नाम पर अजयमेरू दुर्ग का नाम बदलकर तारागढ़ कर दिया था।
    • कुॅंवर पृथ्वीराज की मृत्यु सिरोही के महाराजा द्वारा धोखे से जहर देने से हुई।
    • जगमाल सौलंकी राजपूतों के हाथों मारा गया।
    • 1509 में रायमल की मृत्यु के बाद संग्रामसिंह मेवाड़ के महाराणा बने। जो इतिहास में राणा सांगा के नाम से प्रसिद्व हुए।
    • संग्रामसिंह राजस्थान के एक मात्र राजपूत शासक हुए जिन्होंने राजस्थान के राजपूत शासकों का एक संघ बनाया।
    • राणा सांगा के काल में मेवाड़ का साम्राज्य सबसे विस्तृत था।
    • 1517 ई0 में खातोली युद्व में राणा सांगा ने दिल्ली सल्तनत के सुल्तान इब्राहिम लोदी को पराजित कर दिया।
    • राणा सांगा राजस्थान के एकमात्र राजपूत शासक थे जिन्होंने दिल्ली में हिन्दू पद पादशाही की स्थापना करने का प्रयास किया।
    • खानवा का युद्व 1527 ई0 में 
    • खानवा का मैदान भरतपुर की रूपवास तहसील में है।
    • खानवा का युद्व राणा सांगा एवं बाबर के मध्य हुआ।
    • इस युद्व में बाबर की विजय हुई। विजय का कारण तोपखाना एवं तुलुगमा युद्व पद्वति।
    • इसी युद्व में बाबर ने जेहाद का नारा दिया एवं गाजी की उपाधि धारण की थी।
    • इस युद्व में घायल होकर मुर्छित हुए राणा सांगा को बसवा लाया गया।
    • 1528 ई0 में काल्पी (दौसा) नामक स्थान पर राणा सांगा की मृत्यु हो गई।
    • राणा सांगा का बड़ा पुत्र भोजराज था जिसका विवाह मेड़ता के रतन सिंह की पुत्री मीरा के साथ हुआ।
    • भोजराज की मृत्यु राणा सांगा के जीवन काल में ही हो गई थी।
    • राणा सांगा की मृत्यु के बाद विक्रमादित्य मेवाड़ के महाराणा बने।




    • राणा सांगा की विधवा कर्मावती का एक अल्प व्यस्क पुत्र था उदयसिंह
    • विक्रमादित्य के काल में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण करने की घोषणा की।
    • महारानी कर्मावती ने गुजरात के शासक बहादुर शाह के विरूद्व सहायता प्राप्त करने के लिए मुगल बादशाह हुमायूॅं को राखी भेजी।
    • हुमायूॅं समय पर मेवाड़ की सहायता नही कर सका फलस्वरूप इस आक्रमण में बाघ सिंह के नेतृत्व में सिसोदिया सरदार लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए तथा कर्मावती के नेतृत्व में राजपूत रानियों ने जोहर किया जो कि मेवाड़ का दूसरा जोहर था।
    • कर्मावती ने उदयसिंह की परवरिश की जिम्मेदारी पन्नाधाय को दी थी।
    • कुॅंवर पृथ्वीराज के दासी पुत्र बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर स्वयं को शासक घोषित कर दिया।
    • बनवीर उदयसिंह को भी मारना चाहता था लेकिन पन्नाधाय ने अपने पुत्र चन्दन का बलिदान देकर उदयसिंह को बचा लिया।
    • 1537 ई0 में मारवाड़ के राव मालदेव के सहयोग से कुम्भलगढ़ दुर्ग में उदयसिंह का राज्याभिषेक हुआ।
    • महाराणा उदयसिंह ने 1540 में बनवीर को पराजित कर चित्तोड़गढ़ पर अधिकार कर लिया।
    • महाराणा उदयसिंह के काल में 1544 में शेरशाह सूरी ने मेवाड़ पर आक्रमण करना चाहा लेकिन महाराणा उदयसिंह ने कूटनीति से इस आक्रमण से मेवाड़ की रक्षा की।
    • महाराणा उदयसिंह ने 1559 में उदयपुर नगर बसाया।
    • महाराणा उदयसिंह मेवाड़ के प्रथम शासक थे जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता को स्वीकार नही किया था।
    • अकबर ने 1567-68 में मेवाड़ चित्तोड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया। महाराणा उदयसिंह चित्तोड़गढ़ की जिम्मेदारी जयमल तथा कल्ला को देकर स्वयं उदयपुर चले गये।
    • इस आक्रमण में जयमल – कल्ला सहित सभी राजपूत वीर लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए तथा राजपूत रानियों ने जोहर किया जो मेवाड़ का तीसरा जोहर था।
    • अकबर ने जयमल -कल्ला की वीरता से प्रभावित होकर उनकी हाथियों पर बैठी हुई मूर्तियां आगरा दुर्ग के दरवाजे पर स्थापित करवाई।
    • महाराणा उदयसिंह ने चित्तोड़गढ़ के स्थान पर उदयपुर को अपनी राजधानी बनाकर मुगलों के विरूद्व संघर्ष जारी रखा।
    • 1572 ई0 में महाराणा उदयसिंह की मृत्यु के पश्चात उनके बड़े पुत्र प्रताप सिंह मेवाड़ के महाराणा बने।
    • प्रतापसिंह की माता का नाम जयवन्ता बाई था।
    • प्रताप सिंह को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था।
    • महाराणा प्रताप सिंह का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ था।
    • महाराणा प्रताप ने भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नही किया।
    • अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए जलाल खॉं, भगवान दास, मानसिंह एवं टोडरमल के नेतृत्व में चार शान्ति अभियान भेजे।
    • हल्दीघाटी का युद्व 21 जून 1576 ई0 में
    • इस युद्व का ऑंखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूॅंनी के द्वारा किया गया।
    • इस युद्व को आसफ खॉं ने जेहाद की संज्ञा दी थी।
    • इस युद्व में झालामान ने आत्मबलिदान कर महाराणा प्रताप की रक्षा की थी।
    • इस युद्व में घायल होकर चेतक की वीरगति हो गई।
    • इस युद्व में किसी भी पक्ष की निर्णायक विजय नही हुई थी।
    • इस युद्व के पश्चात् महाराणा प्रताप ने जंगल में चावण्ड को अपनी राजधानी बनाकर मुगलों के विरूद्व संघर्ष जारी रखा।
    • महाराणा प्रताप के पूर्व मंत्री भामाशाह ने अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति महाराणा प्रताप को देकर मुगलों के विरूद्व लड़ने के लिए प्रेरित किया।
    • महाराणा प्रताप ने भीलों की सेना गठित कर छापामार एवं गुरिल्ला युद्व पद्वति से मुगलों के विरूद्व संघर्ष जारी रखा।
    • महाराणा प्रताप 1597 ई0 में अपनी मृत्यु से पहले चित्तोड़गढ़ को छोड़कर सम्पूर्ण मेवाड़ को विजय कर लिया था।
    • महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद उनके पुत्र अमर सिंह मेवाड़ के महाराणा बने।




  • 1605 ई0 में अकबर की मृत्यु के बाद शहजादा सलीम (जहॉंगीर) ने मेवाड़ को विजय करने के लिए तीन बार सैनिक अभियान भेजे।
  • अन्ततः 1615 ई0 में मुगल-मेवाड़ संन्धि के द्वारा मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह ने सशर्त मुगलों की अधीनता को स्वीकार कर लिया।

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