प्रतिरक्षी संरचना एवं कार्य
एंटीबॉडी गोलाकार प्रोटीन (Globular protein) है। एंटीबॉडी प्रतिजन (एंटीजन Antigen) के साथ प्रतिक्रिया करके उनको नष्ट करवाने का कार्य करती हैं।
इनको इम्युनोग्लोबुलिन(Immunoglobulin)भी कहते है।
रक्त में तीन प्रकार के ग्लोबुलिन जाते है। जिनको अल्फा, बीटा और गामा ग्लोबुलिन कहते है। प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी Antibody) गामा ग्लोबुलिन हैं, जो रक्त के प्लाज्मा प्रोटीन का 20% भाग बनाती है।
सबसे सरल प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी Antibody) की संरचना Y के आकर की होती है। जिसमें 4 पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला शामिल है। जिसमें दो भारी श्रृंखला (H) और दो हल्की श्रृंखला (L) कहलाती है।
प्रत्येक श्रृंखलाए परस्पर एक दुसरे से डाइसल्फाइड बंध द्वारा जुड़े हुए होती हैं। हल्की श्रृंखला में लगभग 220 अमीनो अम्ल होते है, जिनका आण्विक भार लगभग 25000 डाल्टन होता है। तथा भारी श्रृंखला में 440 अमीनो अम्ल होते है।
प्रतिरक्षी का आण्विक भार 50,000-70,000 डाल्टन होता है।
हल्की श्रृंखला और भारी श्रृंखला को फिर से अस्थिर (Veriable Region) और स्थिर क्षेत्रों (Constant) में बांटा जाता है।
दोनों श्रृंखलाओ में –NH2 सिरे की ओर अस्थिर क्षेत्र तथा –COOH सिरे की ओर स्थिर क्षेत्र होता है। हल्की श्रृंखला में एक अस्थिर और एक स्थिर क्षेत्र होता है। इसके अस्थिर क्षेत्र को VL भी कहा जाता है। जबकि स्थिर क्षेत्र को CL भी कहा जाता है।
भारी श्रृंखला में एक अस्थिर (VH) और तीन स्थिर (CH) क्षेत्र होते हैं (IgG और IgA में तीन CH क्षेत्र होते हैं, जबकि IgA और IgE के चार CH होते हैं।)
हल्कि श्रृंखला अपने स्थिर क्षेत्र में पाए जाने वाले अमीनो अम्लो के आधार पर दो प्रकार के होते है।
- कप्पा (Ϗ)
- लैम्ब्डा (λ)
कप्पा (Ϗ) तथा लैम्ब्डा (λ) दोनों में से केवल एक प्रकार ही एक प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी Antibody) में पाए जाते है।
भारी श्रृंखला में पाँच प्रकार की इम्युनोग्लोब्युलिन श्रेणी होती हैं:-
- ϒ (गामा)
- α (एल्फा)
- µ (म्यु)
- ε (एप्सिलोन)
- δ (डेल्टा)
हाइपरवेरीबल क्षेत्र / अतिविभिन्नता क्षेत्र:-
हल्की और भारी श्रृंखला दोनों के अस्थिर क्षेत्र में एमिनो टर्मिनल (-NH2 सिरे) पर अत्यंत अस्थिर क्षेत्र होते हैं,जहा से प्रतिजन जुड़ते है। इनको प्रतिजन बंधन स्थल या पेराटोप (Antigen binding site or paratop) कहा जाता हैं।
प्रतिजन बंधक स्थल पाए जाने के कारण अस्थिर क्षेत्र को Fab ( Fragement Antigen Binding) कहा जाता है।
प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी Antibody) की अद्भुत विशिष्टता इन अत्यंत अस्थिर क्षेत्र के कारण ही होती है। यानी के प्रतिरक्षी प्रतिजन विशिष्ट होते है। यदि कोई प्रतिरक्षी किसी जीवाणु उदाहरण के लिए साल्मोनेला टाईफी के विरुद्ध बनी है, तो ये अन्य जीवाणु को नष्ट नहीं करवा सकती।
प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी Antibody) का अस्थिर क्षेत्र प्रतिजन से जुड़ता है। जबकि स्थिर क्षेत्र किसी कोशिका पर कोशिका ग्राही (Cell Receptor) से जुड़ता है।
प्रतिरक्षी (Antibody) के प्रकार:-
प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी Antibody) अपनी भारी श्रृंखला में उपस्थित इम्युनोग्लोब्युलिन के आधार पर पाँच प्रकार की होती है।
- IgG
- IgA
- IgM
- IgD
- IgE
IgG
ये रक्त सीरम में सर्वाधिक मात्रा में पायी जाने वाली प्रतिरक्षी है।
यह एकलक अवस्था में होती जिसमे दो समान प्रतिजन बंधक स्थल होते है। । यह सबसे छोटी प्रतिरक्षी है।
ये प्रतिरक्षी चार प्रकार की चार प्रकार की होती है। – IgG1, IgG2, IgG3, IgG4
IgG1 कुल IgG का 65% बनाता है।
IgG के कार्य
IgG रक्त, लसीका और आंत में प्रचुर मात्रा में पायी जाने वाली प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी Antibody) है। केवल IgG एक ऐसी प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी Antibody) है, जिसमें प्लेसेंटा को पार करने की क्षमता होती है।
यह नवजात शिशु को प्रतिरक्षा प्रदान करती है।
IgG पूरक तंत्र को सक्रिय (Activate Complement System) कर सकती है। (दूसरा IgM)
यह Opsonisation तथा phagocytosis (भक्षण) को बढ़ाती है।
फैगौसाइट (भक्षकाणु) की सतह IgG के लिए ग्राही (रिसेप्टर्स) होते है।
IgA
इसको स्रावी इम्युनोग्लोब्युलिन (Secretory Immunoglobulin) भी कहा जाता है। क्योंकि यह विभिन्न प्रकार के स्राव में पायी जाती है।
यह द्विलक अवस्था में पायी जाने वाली प्रतिरक्षी है।
जिसमें दो इम्युनोग्लोब्युलिन इकाईया आपस में J पोलीपेप्टाइड श्रृंखला (J chain) के द्वारा जुड़ी रहती है।
IgA के कार्य
यह इम्युनोग्लोब्युलिन मुख्य स्राव जैसे कोलोस्ट्रम , लार, आँसू, श्वसन, आंतों और जननांग पथ स्राव में पायी जाती है।
मल के साथ IgA का निष्कासन Coproantibody कहलाता है।
नवजात शिशु को अक्सर स्तनपान करने पर जोर क्यों दिया जाता है?
स्तनपान नवजात शिशु को निष्क्रिय प्रतिरक्षा प्रदान करता है। क्योंकि बच्चे को जन्म से पहले मां के रक्त के माध्यम से प्रतिरक्षी (Antibody) IgG प्राप्त होती है। जन्म के बाद पहले कुछ हफ्तों के दौरान, बच्चे को मां के दूध (कोलोस्ट्रम) के माध्यम से प्रतिरक्षी (Antibody) IgA प्रदान किया जाता है।
कुछ हफ्तों के बाद शिशुओं की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली काम करना शुरू कर देती और मां की प्रतिरक्षी (Antibody) IgA की निर्भरता रोक दी जाती।
कोलोस्ट्रम प्रसव के बाद कुछ दिनों तक स्रावित गाढे पीले दुग्ध को कहते है।
IgM
यह सबसे बड़ी इम्युनोग्लोब्युलिन इसलिए इसको मैक्रोग्लोब्युलिन या प्राकृतिक प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी Antibody) भी कहा जाता है।
ये पंचलक अवस्था में पायी जाती है।
इसमें भी IgA की तरह J पोलीपेप्टाइड श्रृंखला (J chain) पायी जाती है ।
IgM के कार्य
यह संक्रमण स्थल पर पहुंचने वाली प्रथम इम्युनोग्लोबुलिन है। जो प्राथमिक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रारंभ करने वाला प्रमुख इम्युनोग्लोबुलिन है।
यह एग्लूटिनेशन में सबसे अधिक कुशल होती है।
IgM में दस प्रतिजन बंधक स्थल होते हैं।
यह बी लसिकाणु की सतह पर प्रतिजन (एंटीजन Antigen) बाध्यकारी के रूप में कार्य करता है।
IgD
यह एकलक पायी जाने वाली प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी Antibody) है।
ये बी लसिकाणु की सतह पर प्रतिजन (एंटीजन Antigen) ग्राही के रूप में कार्य करती हैं।
यह रक्त सीरम में थोड़ी मात्रा में ही पायी जाती है।
IgE
यह एकलक पायी जाने वाली प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी Antibody) है। यह अतिसंवेदनशीलता या एलर्जी प्रतिक्रियाओं के लिए उतरदायी होती है। यह विशेष रूप से हेल्मिनथिज (कीड़ा संक्रमण) के विरुद्ध बचाव का काम करती है।
यह ज्यादातर श्लेष्म झिल्ली, त्वचा और फेफड़ों में उपस्थित होती है।
प्रतिरक्षी संरचना एवं कार्य
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