क्रियायें और काल (verbs & Tenses)

क्रियायें और काल

क्रियायें और काल (verbs & Tenses)

11 - क्रियायें और काल (verbs & Tenses)
क्रियायें और काल

जिस शब्द से कार्य का करना या होना पाया जाता है, उसे क्रिया कहते है |

  • बूढा आदमी जा रहा है |
  • बालक दौड़ रहा है |
  • सूरज उदय हो रहा है |
  • सैनिक गोली चला रहा है |

वाक्य (क) ‘जा रहा है’ क्योंकि इससे जाने का काम प्रकट हो रहा है |

वाक्य (ख) ‘दौड़ रहा है’ क्योंकि इससे दौड़ने काम प्रकट हो रहा है |

वाक्य (ग) में ‘उदय हो रहा है’ क्रिया है, क्योंकि इससे उदय होने का काम प्रकट हो रहा है |

वाक्य (घ) ‘चला रहा है’ क्रिया है क्योंकि इससे गोली चलाने का काम प्रकट हो रहा है |

घातु (Root Verb) – क्रिया के मूल रूप को धातु कहते है | जैसे – ज्ञा, पढ़, आ, गा, रो, हँस, बस, सो इत्यादि |

संज्ञार्थक क्रिया – धातु के आगे ‘ना’ लगाने से क्रिया का जो रूप बनता है उसे संज्ञार्थक क्रिया कहते है | संज्ञार्थक क्रियाएँ संज्ञा की तरह प्रयुक्त की जाती है | जैसे-

  • हँसना सभी पसंद करते है | (पसंद करना क्रिया का कर्ता है )
  • बच्चे रोना जानते है | (जानते है क्रिया का कर्म)
  • यही रो रोना है | (है क्रिया का पूरक)

क्रिया के भेद (Kinds of verb)

क्रिया के दो भेद होते है – 1. सकर्मक क्रिया 2. अकर्मक क्रिया

  1. सकर्मक क्रिया – जिन क्रियाओं के साथ उनका कर्म होता है | उन्हें अकर्मक क्रिया कहते है | जैसे- कृष्ण गाय देखता है | इसमें देखना क्रिया का फल गाय (कर्म) पर पड़ता है | अत: यह अकर्मक क्रिया है |
  2. अकर्मक क्रिया – जिन क्रियाओं के साथ उनका कर्म नहीं होता वे अकर्मक क्रिया कहलाती है | जैसे – लडकी हंसती है | इस वाक्य में हंसती क्रिया है तथा लडकी इसका कर्ता है | हंसती है क्रिया का फल इसके कर्ता (लडकी) पर ही पड़ता है | इसका क्रम नहीं है अत: यह अकर्मक क्रिया है |

सकर्मक तथा अकर्मक क्रिया की पहचान

क्रिया पर प्रश्न किया जावे ‘क्या’ या किसको का उत्तर आ जाए तो क्रिया अकर्मक है यदि न मिले तो अकर्मक है |

सकर्मकसुरेश पुस्तक पड़ता है – क्या पढ़ता है = पुस्तक

अकर्मकसुषमा मुस्कुराती है | – क्या मुस्कुराती है ? —

सकर्मक व अकर्मक क्रियाओं की दूसरी पहचान यह है की जिस क्रिया के साथ क्रम हो या आ सकता हो व सकर्मक क्रिया होगी  जैसे –

राधा पुस्तक पढ़ती है | यहाँ कर्म स्पष्ट है – पुस्तक

राधा पढ़ती है – यह पर कर्म नहीं है | परन्तु आ सकता है |

अकर्मक क्रिया को सकर्मक बनाने की विधिजब अकर्मक धातु से भाव वाचक संज्ञा बनाकर उसका कर्म उसका कर्म के रूप में प्रयोग किया जाए, तब अकर्मक क्रय सकर्मक बना जाती है –

अकर्मक

सकर्मक

अनिल हँसता है | 

गिरीश चलता है |

मोहनसिंह दौड़ता है |

अनिल तीखी हंसी करता है | 

गिरीश तेज चाल चलता है |

मोहनसिंह लम्बी दौड़ दौड़ता है |

प्रेरणार्थक प्रयोग में भी अकर्मक क्रिया सकर्मक बन जाती है –

अकर्मक

सकर्मक

गाडी चलती है | 

लता लजाती है |

वृक्ष बढ़ता है

इंजन गाडी को चलाता है | 

अध्यापिका लता को लजाती है

पानी वृक्ष को बढाता है |

सकर्मक किया के भेद  – सकर्मक किया के दो भेद होते है –

  1. प्रेरणार्थक क्रिया
  2. द्विकर्मक कर्मक क्रिया

प्रेरणार्थक क्रिया – जहां कर्ता स्वयं काम न करके किसी दुसरे से काम करवाता है , वहां प्रेरणार्थक क्रिया होती है –

  • छात्राएं पढ़ रही है |
  • अध्यापिका छात्राओं ओ पढ़ाती है |
  • प्रधानाध्यापिका अध्यापिका हो पढवाती है |

वाक्य (क) में साधारण क्रिया है |

वाक्य (ख) में पहली प्रेरणार्थक क्रिया है |

वाक्य (ग) में दूसरी प्रेरणार्थक क्रिया है |

प्रेरणार्थक क्रिया के दो भेद होते है –
1. प्रथक प्रेरणार्थक

2 दितीय प्रेरणार्थक

  • प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया वह क्रिया है जिसमे किसी काम को स्वयं न करके दुसरे से कराता है जिसे – वह लडकी हो हंसाती है | इस वाक्य में हंसने वाली लडकी है और ‘वह’ स्वयं न हंसकर लडकी हो हंसाती है |अत: यहाँ प्रेरणार्थक क्रिया है |
  • दितीय प्रेरणार्थक क्रिया वह क्रिया है जिसमे कर्ता किसी काम को स्वयं न करके अन्य व्यक्ति से कराने की प्रेरणा डेता है | जैसे – वह लडकी को उसके भाई से हंसवाता है |

इस वाक्य में हंसने वाली लडकी है जिसकों ‘वह’ स्वयं न हंसाकर उसके भाई से हंसवाता है | अत: यहाँ प्रेरणार्थक क्रिया है |

प्रेरणार्थक क्रियाओं के रूप

क्रिया

प्रथम प्रेरणार्थक

दितीय प्रेरणार्थक

खाना खिलाना खिलवाना
पीना पिलाना पिलवाना
कूदना कुदाना कुदवाना
बैठना बिठाना बिठवाना
रोना रुलाना रुलवाना
सीना सिलाना सिलवाना

2 द्विकर्मक क्रियाएँ वे क्रियाएँ है जिनमे दो कर्म हो | – जैसे- गुरु शिष्य हो पाठ पढाता है |

द्विकर्मक क्रियाओं का एक कर्म प्रधान या मुख्य होता है | और दूसरा गौण | इस वाक्य में पाठ मुख्य कर्म है तथा शिष्य गौण कर्म है |

सकर्मक व अकर्मक क्रियाओं के उपभेद

इन क्रियाओं के चार उपभेद है –

  1. अपूर्ण क्रिया
  2. संयुक्त क्रिया
  3. नामधातु क्रिया
  4. पूर्वकालिक क्रिया

अपूर्ण क्रिया – कुछ क्रियाएँ बिना अन्य शब्दों के पूरा अर्थ प्रकट नहीं कर सकती है | एसी क्रियाओं को अपूर्ण क्रिया कहते है | जैसे – वह है |

इस वाक्य में ‘है’ क्रिया पुरे अर्थ को प्रकट नहीं करती है | इसमें ‘है’ के पहले बुद्दिमान, मुर्ख, विद्वान आदि कोई पूरक शब्द लगाना आवश्यक है |तभी क्रिया का अर्थ पूर्ण होगा –

जैसे- वह मुर्ख है | वह विद्वान है | वह बुद्दिमान है |

संयुक्त क्रिया – जहाँ क्रिया में दो या दो से अधिक धातु मिले हुए हो तो वह संयुक्त क्रियाएँ बना ली जाती है | जैसे –

  • वर्षा होने लगी |
  • वह खा चूका था |
  • में जा सकता हु |
  • भाई को पढने दो |
  • बालक खेला करता है |

नाम धातु क्रिया – यह क्रिया विशेषत: मूल धातु से बनती है परन्तु कभी-कभी संज्ञा आदि शब्दों से भी क्रियाएँ बना ली जाती है |

जैसे –

संज्ञा

क्रिया

प्रयोग

लाज लजाना तुम्हारे काम मुझे लजाते है |
लात लतियाना सिपाही चोर को लतियाता है |
उद्दार उद्दारना गंगा पापियों को उद्दारती है |
दुःख दुखना मेरा पाँव दुखता है |

पूर्वकालिक क्रिया – किसी पूर्ण क्रिया के पहले आनेवाली अन्य क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते है | जैसे – पढ़कर खेलने जाओ |

खेल+कर – खेलकर

काल :- क्रिया का वह रूप जिसमे उसके होने या करने का समय जाना जाए काल कहलाता है | इसके तीन भेद है –

  1. भूतकाल
  2. वर्तमान काल
  3. भविष्यत काल

भूतकाल – बहुत काल क्रिया का वह रूप है जिससे बीते समय में क्रिया के होने या करने का बोध पाया जाए  जैसे – राम ने रावण को मारा था |

वर्तमान काल – वर्तमान काल क्रिया का क्रिया का वह रूप है जिससे वर्तमान काल समय में क्रिया का होना या करना पाया जाए  जैसे – गीता गाना गाती है |

भविष्यत काल – भविष्यत काल क्रिया का वह रूप है जिससे भविष्यत (आनेवाले) समय में क्रिया के होने या करने का बोध पाया जाता है |

जैसे – वह कल बम्बई जाएगा |

भूतकाल

भूतकाल के छ: भेद होते है –

  1. सामान्य भूत
  2. आसन्न भूत
  3. पूर्ण भूत
  4. अपूर्ण भूत
  5. सदिग्ध भूत
  6. हेतुमेतुमद भूत

सामान्य भूत – इसमें साधारण रूप से क्रिया के हो चुकने का ज्ञान होता है | यह नहीं जाना जा सकता की क्रिया को समाप्त हुए थोड़ी देर हुई है या अधिक | जैसे – मोहन ने पुस्तक पढ़ी |

आसन्न भूत – इस काल से यह ज्ञात होता है की कार्य निकट भूत में , अभी-अभी पूरा हुआ है | जैसे – मोहन ने पुस्तक पढ़ ली है |

उसने भोजन कर लिया है

पूर्ण भूत – इस काल से यह ज्ञात होता है की कार्य को समाप्त हुए बहुत अधिक समय व्यतीत हो चूका है | इसमें कार्य किसी निश्चित अवधि से पूर्व समाप्त हो जाता है | जैसे – मोहन पुस्तक पढ़ चूका है |

अपूर्ण भूत – इस काल से यह ज्ञात होता है की कार्य भूतकाल में आरम्भ किया गया था  परन्तु उसकी पूर्ति नहीं हुई थी | जैसे – मोहन पुस्तक पढ़ रहा था |

संदिग्ध भूत जिससे कार्य के भूत काल में होने का संदेह हो | जैसे- मोहन पुस्तक पढ़ रहा था |

हेतुमेतुमद भूत यह क्रिया का वह रूप है जिसमे भूत काल में होने वाली क्रिया का होना किसी दूसरी क्रिया के होने पर निर्भर हो | अर्थात इससे यह जाना जाता है की कार्य भूत काल में हो सकता था परन्तु किसी अन्य कार्य के न हो सकने के कारण न हो सका | जैसे- मोहन पढ़ा लिखा होता तो पुस्तक पढ़ लेता | यदि डाक्टर आ जाता तो रोगी न मरता | यदि वर्षा हो जाती तो अकाल न पड़ता |

वर्तमान काल

वर्तमान काल के तीन भेद है –

  1. सामान्य वर्तमान
  2. अपूर्ण वर्तमान
  3. संधिग्ध वर्तमान

सामान्य वर्तमान – इसमें साधारण रूप से वर्तमान काल में कार्य का होना पाया जाता है | जैसे – मोहन पुस्तक पड़ता है |

अपूर्ण वर्तमान- इससे ज्ञात होता है की कार्य वर्तमान काल में जारी (चालु) है | जैसे- मोहन पुस्तक पढ़ रहा है |

संदिग्ध वर्तमान – इससे कार्य के वर्तमान काल में होने में संदेह होता है | जैसे – मोहन पुस्तक पढ़ता होगा |

भविष्यत काल

भविष्यत काल के दो भेद है –

सामान्य भविष्य

संभाव्य भविष्यत

सामान्य भविष्यतजहां साधारण रूप से भविष्यत काल में कार्य का होना पाया जाता है | जैसे – मोहन पुस्तक पढ़ेगा | कल वर्षा होगी |

सम्भाव्य भविष्यत – जिसमे भविष्यत काल में कार्य होने में संदेह, सम्भावना या इच्छा प्रकट हो | जैसे – सम्भव है आज वर्षा हो | आज वह आ सकता है |

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