DNA प्रतिकृति

DNA प्रतिकृति

DNA प्रतिकृति:-

डीएनए के द्वारा अपने समान नया डीएनए बनाने की प्रक्रिया को डीएनए प्रतिकृति कहते है।
DNA की प्रतिकृति चरणों में पूरी होती है –

भौतिक संरचना

डीएनए अणु त्रिविमीय होता है और दो तंतुओं से बना होता है जो कि एक-दूसरे के चारों ओर कुंडलित होते हैं। फ्रैंकलिन और विल्किन्स ने डीएनए के एक्स किरण विवर्तन के अध्ययन से यह दर्शाया है कि डीएनए द्विकुंडिलत होता है। 1953 में जेम्स वाटसन व फैंसिस क्रिक को डीएनए की संरचना की खोज करने के लिये नोबेल पुरस्कार दिया गया। वाटसन और क्रिक मॉडल के अनुसार-

  1. डीएनए अणु दो कुंडलियों से निर्मित है, जिसमें डीएनए के दो तंतु होते हैं। दोनों तंतु प्रतिसमांतर रूप में रहते हैं, जिसका आशय यह हुआ कि एक तंतु में न्यूक्लियोटाइड का अनुक्रम 5’ से 3’ की दिशा में और दूसरे तंतु में 3’ से 5’ की दिशा में होता है। (3’ व 5’ का आशय उन कार्बन परमाणुओं से है, जिससे फॉस्फेट समूह जुड़े रहते हैं।)
  2. कुण्डली का आधार शर्करा फॉस्फेट से निर्मित होता है और नाइट्रोजनी क्षारक शर्करा से सहलग्न होते हैं।
  3. दोनों तंतुओं के क्षारक हाइड्रोजन बंधों द्वारा जुड़े होते हैं।
  4. शार्गपफ़ के नियमानुसार क्षारक युग्मन अति विशिष्ट होता है। एक एडेनीन प्यूरीन क्षारक सदैव थाइमीन-पिरिमिडीन क्षारक के साथ युग्मित होता है। प्यूरीन क्षारक ग्वानीन-पिरिमिडीन क्षारक, साइटोसीन के साथ संयुक्त होता है। क्षारक के ये युग्म पूरक क्षारक कहलाते हैं।

मानव रंग पर प्रभाव

अब यह साबित हो चुका है कि किसी एक व्यक्ति का डीएनए 99.9 प्रतिशत दूसरे व्यक्ति जैसा ही होता है, चाहे वे दोनों अलग-अलग जाति के ही क्यों न हों। बाक़ी 0.1 प्रतिशत में जो विविधता है वही एक व्यक्ति को दूसरे से अलग करती है। इस तथ्य के आधार पर जीव-विज्ञानी कहते हैं कि आज का मानव अफ़्रीका में 2 लाख साल पहले रहने वाले होमो सेपियन्स का वंशज है। यानी हम सबके पूर्वज अफ़्रीकी थे। अफ़्रीका बहुत गर्म प्रदेश है। सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बचने में काला रंग बड़ी मदद करता है। त्वचा का रंग मैलेनिन नामक एक रसायन से निर्धारित होता है। मैलेनिन की मात्रा के अधिक होने से त्वचा का रंग काला हो जाता है। काला रंग फ़ोलेट नामक विटामिन बी को भी नष्ट होने से बचाता है। काली त्वचा सूर्य की तेज़ किरणों को भीतर जाने से रोकती है, जिससे विटामिन डी3 का उत्पादन प्रभावित होता है, लेकिन जब मानव ठंडे प्रदेशों की ओर बढ़ा तो विटामिन डी3 की कमी से उसकी त्वचा का रंग हल्का पड़ने लगा। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि तेरह हज़ार साल पहले तक यूरोपीय लोगों का रंग गहरा हुआ करता था, वह धीरे-धीरे गोरे हुए।

पराकुण्डलन को खोलना:-

DNA कुंडली में पाये जाने वाले पराकुण्डलन (Spuercoiling) को Topoisomerase द्वारा अकुंडलित किया जाता है। Topoisomerase Enzymeमें डीएनए रज्जुक (Strand) काटने (Nuclease) तथा उनको पुनः जोड़ने (Ligase) की क्षमता होती है। Topoisomerase दो प्रकार का होता है। –
Topoisomerase-I
Topoisomerase-II – E.coli में इसे DNA gyrase भी कहते है।

फॉस्फॉलिरिकरण:-

डीएनए के संश्लेषण (synthesis) में काम आने वाले न्यूक्लिओटाइड में केवल एक ही फॉस्फेट समूह जुडा होने के कारण मोनोफॉस्फेट के रूप में होता है। डीएनए के सभी चार प्रकार के मोनोफॉस्फेट ATP से 2-2 अणु फॉस्फेट के लेकर ट्राई फॉस्फेट बनाते है। इसे फॉस्फॉलिरिकरण (Phosphorylation) कहते है। यह प्रक्रिया फोस्फोराइलेज (Phosphorilase) एंजाइम की उपस्थिति में होती है। इससे चार प्रकार के डिऑक्सीन्यूक्लिओटाइड ट्राईफॉस्फेट (dNTP) बनते है –
डिऑक्सीएडिनोसिन ट्राईफॉस्फेट (dATP)
डिऑक्सीग्वानोसिन ट्राईफॉस्फेट (dGTP)
डिऑक्सीसाईटीडीन ट्राईफॉस्फेट (dCTP)
डिऑक्सीथायमिडीन ट्राईफॉस्फेट (dTTP)

आरंभन स्थल:-

DNA प्रतिकृति की क्रिया डीएनए के कुछ विशिष्ट स्थानों से शुरू होती जिनको आरंभन स्थल, समारम्भन स्थल या द्विगुणन मूल कहते है। एक ही शब्द का हिंदी में अलग-अलग अनुवाद किया जाता है इसलिए में आपको English शब्दों पर भी ध्यान देने का सुझाव दुगा। प्रोकेरियोट कोशिका में केवल एक ही आरंभन स्थल (Replication Origin Site) होता है। जो कोशिका झिल्ली से जुड़ा रहता है। इसे Ori-C कहते है। जबकि युकेरियोट में बहुत सारे आरंभन स्थल होते है। जिसके कारण युकेरियोट में प्रतिकृति कई स्थानों से शुरू होती है।

डीएनए कुण्डली का पृथक्करण:-

डीएनए के दोनों रज्जुक (Strand) को पृथक करने का कार्य Helicase Enzyme द्वारा किया जाता है। रज्जुक को लड़ी, वलयक आदि भी कहा जाता है।
Helicase आरंभन स्थल से जुड़कर दोनों रज्जुको के क्षार युग्म के Hydrogen बंध को तोड़कर दोनों रज्जुक (Strand) को अलग कर देता है। इस एंजाइम को Origin Binding Protein भी कहा जाता है।

जब Helicase दोनों रज्जुको को अलग करने के बाद दोनों रज्जुको को स्थिरता प्रदान करने तथा फिर से कुंडलित होने से रोकने के लिए DNA Binding Protein (DBP) अलग हुए दोनों रज्जुक (Strand) से जुड़ जाती है। इस प्रोटीन को Single Stranded Binding protein (SSB Protein) या हेलिक्स स्थाई कारक प्रोटीन (Helix Stabilising Protein) भी कहते है।
डीएनए के दोनों पृथक रज्जुक (Strand) Y आकार की संरचना बनाते है। जिसे प्रतिकृति द्विशाखा (Replication Fork) कहते है।

नये डीएनए रज्जुक का संश्लेषण:-

डीएनए रज्जुक (DNA Strand) पर नये रज्जुक (Strand) का निर्माण डीएनए पालीमरेज एंजाइम द्वारा किया जाता है। लेकिन यह बहुलकीकरण (Polymerization) की शुरुआत नहीं कर सकता इसलिए DNA निर्भर RNA Polymerase (DNA dependent RNA Polymerase) के द्वारा 60-70 न्यूक्लिओटाइड युक्त छोटे पूरक लड़ी (Complementary Chain) का निर्माण किया जाता है। जिसे RNA Primer कहते है। जिससे बहुलकीकरण (Polymerization) की शुरुआत होती है।
RNA Primer बनने के बाद DNA Polymerase एंजाइम इसके 3’ सिरे के हाइड्रोक्सिल (-OH) से नये dNTP को जोड़कर 5’-3’ की दिशा में नये डीएनए का संश्लेषण (synthesis) करते है। याद रखे की DNA Polymerase एंजाइम केवल 5’-3’ दिशा में ही बहुलकीकरण (Polymerization) करता है।

DNA निर्भर RNA Polymerase को DNA Primase भी कहते है। DNA Primase Helicase के साथ जुड़ा रहता है। जिसे Primosome कहते है।

सतत एवं असतत DNA संश्लेषण:-

DNA Polymerase एंजाइम केवल 5’-3’ दिशा में ही बहुलकीकरण (Polymerization) करता है। इसलिए 3’-5’ रज्जुक (Strand) पर नए सतत रज्जुक (Continuous Strand) का संश्लेषण (synthesis) 5’-3’ दिशा में होता है। जबकि 5’-3’ रज्जुक (Strand) पर छोटे –छोटे RNA Primer का निर्माण होता है। जिससे 3’-5’ दिशा में असतत रज्जुक (Discontinuous Strand) का संश्लेषण (synthesis) होता है। इस असतत डीएनए रज्जुक (Discontinuous Strand) को ओकाजाकी खण्ड (Okazaki Fragment) कहते है। ये ओकाजाकी खण्ड सिर्फ RNA Primer के बने होते है।

अग्रगामी एवं पश्चगामी रज्जुक:-

DNA के सतत रज्जुक (Strand) को अग्रगामी रज्जुक (Leading Strand) कहते। इसमें केवल एक ही RNA Primer होता। इनका निर्माण Replication Fork की तरफ होता है। तथा असतत डीएनए रज्जुक (Discontinuous DNA Strand) को पश्चगामी रज्जुक (Lagging Strand) कहते है। इसमें कई RNA primers होते है। इनका निर्माण Replication Fork से विपरीत दिशा में होता है। RNA primers को DNA Polymerase-I द्वारा पृथक किया जाता है। और DNA ligase द्वारा इन खण्ड को जोड़ दिया जाता है।

DNA प्रतिकृति की समाप्ति:-

E.coli में DNA प्रतिकृति प्रक्रिया की समाप्ति में लिए समापक अनुक्रम (Terminating Sequence) पाये जाते है। जिनको Ter site कहते है। DNA प्रतिकृति की समाप्ति के लिए Tus Protein सहायता करती है।
प्रोकेरियोट तथा युकेरियोट दोनों में DNA प्रतिकृति की द्विदिशात्मक (Bidirectional) होता है।

DNA Polymerase के प्रकार:-

प्रोकेरियोट में DNA Polymerase तीन प्रकार का होता है:-

DNA Polymerase-I

इसे DNA Polymerase-A भी कहा जाता है। ये ओकाझाकी खंडो को हटा कर नये डीएनए के संश्लेषण (synthesis) का काम करता है। ये Proofreading (सम्भावित संशोधन हेतु DNA अनुक्रम को पढ़ना) का कार्य करता है। इसे कोर्नबर्ग एंजाइम (Kornberg Enzyme) भी कहते है।

DNA Polymerase-II

इसे DNA Polymerase-B भी कहा जाता है। ये डीएनए की मरम्मत का कार्य करता है।

DNA Polymerase-III

इसे DNA Polymerase-C भी कहा जाता है। ये डीएनए रज्जुक (Strand) का दीर्घीकरण (Elongation) करता है। यह भी Proofreading का कार्य करता है।

युकेरियोट में DNA Polymerase पांच प्रकार का होता है।

DNA Polymerase-α :- ये प्रतिकृति की शुरुआत करता है। इसमें Primase क्षमता होती है।

DNA Polymerase-β :- ये डीएनए की मरम्मत का कार्य करता है।

DNA Polymerase-γ :- ये mt-DNA की प्रतिकृति बनता है।

DNA Polymerase-δ :- ये डीएनए संश्लेषण (synthesis) में भाग लेता है। और डीएनए रज्जुक (Strand) का दीर्घीकरण (Elongation) करता है।

DNA Polymerase-ε :- ये डीएनए की मरम्मत का कार्य करता है।

SSB- Replication Protein A also called as Rp-A
PCNA- Proliferating Cell Nuclear Antigen
Rf-C – Replication factor- C

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