राष्ट्रीय एकता पर निबंध

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भूमिका : भारत एक विशाल देश है। इसकी भौगोलिक और प्राकृतिक स्थिति ऐसी है कि इस एक देश में अनेक देशों की कल्पना को सहज रूप से किया जा सकता है। इस देश में 6 ऋतुओं का एक अद्भुत क्रम है। देश में एक ही समय में एक क्षेत्र में गर्मी का वतावरण होता है तो एक तरफ सर्दी का वातावरण होता है। एक क्षेत्र में हरियाली होती है तो दूसरे क्षेत्र में दूर-दूर तक रेती के अलावा और कुछ दिखाई नहीं देता है।

जनसंख्या की दृष्टि से भारत का संसार में दूसरा स्थान है। भारत में हिंदू, सिक्ख, ईसाई, मुसलमान, पारसी, बौद्ध धर्म आदि सभी धर्मों और संप्रदायों के लोग रहते हैं। सभी लोग भारत को राष्ट्र कहने में गौरव का अनुभव करते हैं। भारत देश किसी भी एक धर्म, जाति, वंश या संप्रदाय का देश नहीं है। भारत में आचार-विचार, रहन-सहन, भाषा और धर्म आदि सभी विभिन्नताओं का होना स्वभाविक है।

इन विभिन्नताओं में अनेकता में एकता के दर्शन भारत की सर्वप्रमुख विशेषता है। इसी विशेषता और समंवय की भावना के कारण भारतीय संस्कृति अजर-अमर बन गयी है। जब किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए बहुत से लोग मिलकर काम करते हैं तो उसे संगठन कहते हैं। संगठन ही सभी शक्तियों की जड़ होता है। एकता एक महान शक्ति है इसी के बल पर अनेक राष्ट्रों का निर्माण हुआ था। सभी लोगों के पूजा स्थल व उपासना विधि अलग होते हुए भी सभी लोग एक ही ईश्वर की पूजा करते हैं।

सभी में एक भारतीयता की भावना व राष्ट्रीय एकता है। इसी तरह भारत कश्मीर से कन्याकुमारी और असम से काठियावाड़ तक एक व्यापक अखण्ड भारत है जिसके पश्चिम में पाकिस्तान, पूर्व में बर्मा, बांग्लादेश, उत्तर में नगाधिराज हिमालय व दक्षिण में हिन्द महासागर है। उक्त सीमाओं से घिरा हुआ यह देश हमारा भारत है। इसका कहीं से भी कोई खण्ड अलग न हो, इसको अखण्ड भारत कहते हैं। देश की एकता व अखंडता हमेशा बनी रहे यह सभी भारतवासियों का कर्तव्य होता है।

एकता को खतरा : अंग्रेजों ने भारत में एकछत्र राज्य करने के लिए सबसे पहले यहाँ की एकता पर प्रहार किया क्योंकि कोई भी शासक अपना प्रभुत्व जमाने के लिए जनता में एकता नहीं चाहता है। इसलिए अंग्रेजों ने ‘फूट डालो राज करो’ की प्रबल नीति अपनाई जिसके कारण वे सैंकड़ों वर्षों तक भारत के सशक्त शासक बने रहे।

जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत में धर्मों व जातियों तथा वर्गों के आधार पर कलह, दंगे भडकते रहते हैं। वे कभी किसी एक धर्म के लोगों को संरक्षण देते और दूसरों को तंग करते तो कभी दूसरे धर्मों के लोगों को प्रोत्साहित करते जिससे जनता परस्पर लडती रहे। फिर भारत के स्वतंत्र होने पर अंग्रेज भारत की अखंडता समाप्त करके ही गये थे।

भारत का विभाजन होना अंग्रेजों की नीति थी। इस तरह से उन्होंने हमारी एकता और अखण्डता को तोडा था। आज के समय में भारत में समय-समय पर सांप्रदायिक दंगे होते रहते हैं। एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों से लड़ते रहते हैं। देश में कई जगहों पर वर्ग संघर्ष छिड़ा रहता है। स्वर्ण और हरिजनों के कलह भी देखने को मिलते हैं।

आज के समय में आरक्षण और अनारक्षण पर लड़ाई-झगड़ा चलता रहता है। भाषा के आधार पर भी कई जगहों पर झगड़ा होता रहता है। दक्षिण में हिंदी के विरोध में सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाई जाती है। उत्तर भारत में अंग्रेजी का विरोध प्रबल है। कहीं पर उर्दू का विरोध हुआ था तो कहीं पर हिंदी का विरोध हुआ।

इस तरह से ही राष्ट्रिय एकता खतरे में पड़ी थी। राष्ट्रिय अखण्डता भी विगत दशकों से संकट में है। कुछ आतंकवादी अलग जगह चाहते हैं। कश्मीर के आतंकवादी अलग कश्मीर की मांग कर रहे हैं। कुछ समय से अब पूरे भारत में हिंदू आतंकवाद ने भी अपने पैर फैलाकर हमारी सरकार को परेशान कर दिया है। इस तरह कतिपय स्वार्थी तत्व भारत को छिन्न-छिन्न कर देना चाहते हैं।

भेदभाव के कारण : देश और राष्ट्र में अंतर होता है। देश का संबंध सीमाओं से होता है क्योंकि देश एक निश्चित सीमा से घिरा हुआ होता है। राष्ट्र का संबंध भावनाओं से होता है क्योंकि एक राष्ट्र का निर्माण देश के लोगों की भावनाओं से होता है। जब तक किसी देश के वासियों की विचारधारा एक नहीं होती है वह राष्ट्र कहलाने का हकदार नहीं होता है।

हमारे यहाँ आज तक शासकों ने अपने स्वार्थों की वजह से इस देश को राष्ट्र नहीं बनने दिया। आज राजनैतिक नेताओं ने अपनी दलगत राजनीति की वजह से देश को राष्ट्र बनाने में बाधा उत्पन्न की है। वोट प्राप्त करने के लिए सारे देश को धर्मों, जातियों, भाषाओं की संकीर्ण धाराओं में बाँट दिया है।

अभी देश के नेताओं, अधिकारीयों व जनता में राष्ट्रिय भावना जाग्रत नहीं हुई है। वे पहले कोई और होते हैं और फिर बाद में भारतीय होते हैं। जब कोई भी व्यक्ति सत्ता में आता है तो वह अपने वहाँ के वर्ग का समर्थन करते हुए दिखाई देता है। वोटों की राजनीति सभी को लड़ाने का काम करती है।

इसी कारण से नेताओं की तुष्टिकरण की नीति देश को राष्ट्र बनने से रोक रही है। आज देश के लोग ही संविधान के प्रति जल रहे हैं। कहीं-कहीं पर राष्ट्र ध्वज को जलाने और उसे फाड़ने के समाचारों को भी सुना जाता है। जब राष्ट्रिय गीत गया जाता है उस समय खड़े न रहना एक साधारण सी बात बन गई है। इन सभी गलतियों के लिए दंडों को निर्धारित किया गया है लेकिन किसी को भी दंड नहीं दिया जाता है।

यही है नेताओं की तुष्टिकरण की नीति। इसकी वजह से देशद्रोहियों को अक्सर बढ़ावा मिलता है। आज के समय में देश में देश-द्रोहियों, राजनेताओं को बहुत अधिक प्रोत्साहन मिलता है। इसी वजह से सभी में राष्ट्रिय भावना का आभाव बढ़ता ही जा रहा है जिसकी वजह से देश की एकता और अखंडता खतरे में पड़ रही है। देश में भ्रष्टाचार, अनाचार, बेईमानी, धोखाधड़ी उच्च स्तर पर छाए हुए है।

भारत में उत्पन्न समस्याएँ : स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद से ही देश में अनेक समस्याएं उत्पन्न होती रही है। इन समस्या में सांप्रदायिक की समस्या सबसे प्रमुख समस्या है। हमारे देश का विभाजन भी इसी समस्या की वजह से हुआ था। कुछ स्वार्थी लोगों ने हमारे देश में साम्प्रदायिकता की भावना को फैला दिया था जिसकी वजह से हम आज तक उससे मुक्त नहीं हो पाए हैं। हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए और प्रगति के लिए राष्ट्रिय एकता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। हर वर्ग में एकता के बिना कोई भी देश उन्नति नहीं कर सकता है। वर्तमान समय के देश में अनुशासन और आपसी वातावरण की बहुत जरूरत है।

दूषित राजनीति : कुछ सालों से हमारे देश का वातावरण दूषित राजनीति की वजह से विषैला होता जा रहा है। धर्म में अंधे होने के कारण लोग आपस में झगड़ रहे हैं। अपने-अपने स्वार्थों की पूर्ति में लगे हुए लोग आपसी प्रेम को निरंतर भूलते जा रहे हैं। स्वार्थ की भावनाओं, प्रांतीयता एवं भाषावाद की वजह से राष्ट्रिय भावना बहुत प्रभावित हो रही है।

हमारे देश के लोगों में संकीर्णता की भावना पनप रही है और व्यापक दृष्टिकोण लुप्त होता जा रहा है। इसी वजह से विश्व-बंधुत्व की भावना अपने परिवार तक ही सीमित होकर रह गई है। अगर कोई कोशिश भी करता है तो वह प्रदेश स्तर तक जाकर ही असफल हो जाता है। इसी के फलस्वरूप सांप्रदायिक ताकतें मजबूत होती जा रही हैं।

असमानताओं में समानता : जम्मू-कश्मीर, असम आदि प्रदेशों में नर-संहार के किस्से सुनने को मिलते हैं। इन सब के लिए स्वार्थी नेता जिम्मेदार हैं, जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए देश को दांव पर लगा रहे हैं। अनेक प्रकार की विषमताओं के होते हुए भी जब हम राष्ट्रिय एकता के बारे में सोचते हैं तो हमें पता चलता है कि इस राष्ट्रिय एकता की वजह से धार्मिक भावना, आध्यात्मिकता, समंवय की भावना, दार्शनिक दृष्टिकोण, साहित्य, संगीत और नृत्य आदि ऐसे अनेक तत्व हैं जो देश को एकता के सूत्र में बांधे हुए हैं।

सिर्फ जनता को एकजुट होकर कोशिश करने की जरूरत है। आज के समय में राष्ट्रिय एकता के लिए व्यक्तिगत और सार्वजिनक संपत्ति की सुरक्षा का प्रबंध करना जरूरी है। शत्रुपक्ष पर कठोर दंडनीति लागू की जानी चाहिए। पुलिस की गतिविधियों पर भी नियंत्रण रखना चाहिए।

आज के समय में सभी संगठनों को मिलकर राष्ट्रिय एकता के लिए कोशिश करनी चाहिए। हमारी स्वतंत्रता राष्ट्रिय एकता पर निर्भर करती है। इसके अभाव की वजह से स्वतंत्रता असंभव है। हमारी स्वतंत्रता के लिए हमें पूरी कोशिश करनी चाहिए, हमें एकजुट होकर राष्ट्रिय एकता की रक्षा करनी चाहिए, जिससे हम और हमारे वंशज खुली हवा में साँस ले सकें।

भारतीय संस्कृति और सभ्यता : भारतीय संस्कृति भावात्मक एकता का आधार है लेकिन बहुत बार राजनीतिक स्वार्थ, अस्पर्शयता, सांप्रदायिक तनाव, भाषा भेद, क्षेत्रीय मोह तथा जातिवाद आदि की संकीर्णता की भावनाओं के प्रबल होने पर हमारी भावात्मक एकता को खतरा पैदा हो जाता है।

परिणामस्वरूप अदूरदर्शी, मंद बुद्धि, धर्मांध लोग गुमराह होकर अपने छोटे-छोटे स्वार्थों की पूर्ति के लिए अलग-अलग रास्ते की मांग करने लगते हैं। राजनीतिक दलबंदी का सहयोग पाकर ये स्वार्थ कई बार भयंकर रूप धारण कर लेते हैं। राष्ट्रिय एकता के लिए भावात्मक एकता बहुत जरूरी होती है।

भावात्मक एकता बनाये रखने के लिए भारत सरकार हमेशा से ही प्रयत्नशील रही है। हमारे संविधान में ही धर्म निरपेक्ष, समाजवादी समाज की परिकल्पना की गयी है। धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में भी ऐसे अनेक संगठन बनाये गए हैं जो राष्ट्रिय एकता के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। सच्चा साहित्य भी प्रथक्तावादी प्रवृत्तियों का विरोधी रहा है।

अनेकता में एकता : वर्तमान समय में भावात्मक एकता के लिए सरकार को चाहिए कि वह राष्ट्रिय शिक्षा की व्यवस्था करें। चल-चित्र, दूरदर्शन और रेडियो भी राष्ट्रिय एकता में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं। सामूहिक खेल-कूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा धार्मिक और शैक्षिक यात्राएं भी राष्ट्रिय और भावात्मक एकता में सहायक हो सकती है।

ह्रदय परिवर्तन और सद्भावना वातावरण बनाने की बहुत अधिक जरूरत है। धार्मिक संकीर्णता और सांप्रदायिक मोह राष्ट्रिय एकता में सबसे बाधक तत्व हैं। धर्म, ज्ञान और विश्वास में नहीं, वह तो कर्म और आचरण में बस्ता है। वास्तव में पूछा जाये तो सभी धर्म एक हैं, केवल पूजा की विधियाँ भिन्न-भिन्न हैं।

इसी भिन्नता की वजह से एक ही धर्म के भिन्न-भिन्न रूप होते हैं। प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने भी देशवासियों को संकीर्णता से ऊपर उठकर धर्म के व्यापक रूप की प्रेरणा देते हुए कहा था कि हे मेरे देश के लोगों! धर्म को एकवचन में ही रहने दो। हमारे देश में लोग धर्म के नाम पर कुछ लोग स्वार्थों की पूर्ति करने के लिए अनेक लोगों की शक्ति का दुरूपयोग करके राष्ट्रिय भावना का हनन कर रहे हैं।

उपसंहार : किसी भी देश की रक्षा और प्रगति देश की एकता और अखंडता पर निर्भर करती है। हमारे देश में जब तक उच्च स्तर पर राष्ट्रिय भावना नहीं आती है तब तक राष्ट्रिय एकता भी नहीं आती है। भारत देश को सबल बनाने के लिए सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द बनाये रखने की जरूरत है।

हमें इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए कि प्रेम-से-प्रेम और नफरत-से-नफरत उत्पन्न होती है। हमारा रास्ता प्रेम और अहिंसा का होना चाहिए। नफरत और हिंसा सब तरह की बुराईयों की जड़ होती है। संतों, महात्माओं और धर्म गुरुओं ने भी यह संदेश दिया है कि किसी में भी छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं होता है।

सभी धर्मों में सत्य, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता का पाठ विस्मरण होता है। प्रार्थना और आराधना की पद्धति अलग हो सकती है लेकिन उनके लक्ष्य हमेशा एक ही होते हैं। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च सभी धार्मिक स्थल एक ही संदेश देते हैं।

यह खुशी की बात है कि हमारा देश राष्ट्रिय एकता के लिए राष्ट्र की आय का तीन प्रतिशत व्यय कर रहा है और हमारी सरकार भी इसके लिए अनेक प्रयास कर रही है। हम भारतवासियों से प्रार्थना करते हैं कि वे भी अपने पूर्वजों की तरह एकता के सूत्र में बंध जाएँ क्योंकि यही सच्चे अर्थों में देश की उन्नति की आपकी उन्नति होती है।

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