लक्ष्मणगढ़ दुर्ग
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विवरण‘लक्ष्मणगढ़ दुर्ग’ राजस्थान के प्रसिद्ध क़िलों तथा ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। इस दुर्ग की सीधी खड़ी इमारत बहुत प्रभावशाली है।
राज्यराजस्थान
ज़िलासीकर
स्थानलक्ष्मणगढ़
निर्माण काल1862
निर्माणकर्ताराजा लक्ष्मण सिंह
क्या देखें‘राधिका मुरली मनोहर मंदिर’, ‘चेतराम संगनीरिया हवेली’, ‘राठी परिवार हवेली’, ‘श्योनारायण कयल हवेली’, ‘डाकनियों का मंदिर’ तथा ‘शेखावाटी की हवेलियाँ’ आदि।
संबंधित लेखराजस्थान, राजस्थान का इतिहास, सीकर
अन्य जानकारीवर्तमान समय में यह खूबसूरत क़िला दुर्भाग्यवश सीकर के एक व्यवसायी की निजी संपत्ति है। इसलिए आम जनता के लिए क़िला नहीं खोला गया है। फिर भी राजस्थान के इस दुर्ग का भ्रमण करने का रास्ता पूरी तरह बंद नहीं हुआ है।




लक्ष्मणगढ़ दुर्ग राजस्थान में सीकर ज़िले के लक्ष्मणगढ़ कस्बे में स्थित है। लक्ष्मणगढ़ की सघन बस्ती के पश्चिमी छोर पर मध्यम ऊंचाई की पहाड़ी पर बना यह दुर्ग सारे कस्बे से नज़र आता है। दुर्ग की सीधी खड़ी इमारत बहुत प्रभावशाली है। राजस्थान में ही नहीं, बल्कि भारत में यह क़िला अपने स्थापत्य और गोलाकार चट्टानों के विशाल खंडों पर बना होने के कारण बहुत प्रसिद्ध है।

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स्थिति

लक्ष्मणगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर सीकर शहर से लगभग 30 कि.मी. उत्तर में स्थित एक छोटा-सी क़स्बा है। इस छोटे से कस्बे में सीकर के राजा लक्ष्मण सिंह द्वारा बनवाया गया भव्य क़िला है, जिसे ‘लक्ष्मणगढ़ दुर्ग’ के नाम से जाना जाता है। लक्ष्मणगढ़ दुर्ग एक श्रेष्ठ राजसी आवास होने के साथ-साथ यहां स्थित प्रसिद्ध घंटाघर, बहुत-सी प्राचीन हवेलियों, शानदार भित्तिचित्रों और छतरियों के लिए प्रसिद्ध है। इसीलिए लक्ष्मणगढ़ दुर्ग को राजस्थान के ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण क़िलों में शुमार किया जाता है। यह अद्भुत क़िला लक्ष्मणगढ़ शहर के पश्चिम में स्थित है।[1]

निर्माण

सीकर के राजा लक्ष्मण सिंह ने सीकर की प्रजा की रक्षा के लिए लक्ष्मणगढ़ की पहाड़ी पर इस दुर्ग का निर्माण 1862 ई. में कराया और 1864 ई. में इस दुर्ग के चारों ओर लक्ष्मणगढ़ शहर बसाया। अवधि को देखते हुए यह राजस्थान के अन्य दुर्गों में से सबसे नया माना जा सकता है। इससे पहले यह क्षेत्र बेरगांव के नाम से जाना जाता था। बेरगांव लंबे समय तक मील जाट शासकों की राजधानी रहा था। कहा जाता है कि कानसिंह सालेढ़ी ने सीकर ठिकाने को घेर लिया था। इसके अलावा भी सीकर ठिकाना आस पास के राजपूत राजाओं के निशाने पर रहता था। इसलिए सीकर को सुरक्षा प्रदान करने के लिए उन्नीसवीं सदी के मध्य में राव राजा लक्ष्मण सिंह ने इस दुर्ग को बनवाया और सीकर की प्रजा की सुरक्षा मजबूत की। इतिहास के खूबसूरत स्थापत्य का यह दुर्ग शानदार उदाहरण है। पर्यटन की दृष्टि से लक्ष्मणगढ़ दुर्ग विशेष स्थान रखता है।

निजी संपत्ति

वर्तमान समय में यह खूबसूरत क़िला दुर्भाग्यवश सीकर के एक व्यवसायी की निजी संपत्ति है। इसलिए आम जनता के लिए क़िला नहीं खोला गया है। फिर भी राजस्थान के इस दुर्ग का भ्रमण करने का रास्ता पूरी तरह बंद नहीं हुआ है। दुर्ग के मुख्य द्वार के बाहर से एक रास्ता बना हुआ है। यह रास्ता दुर्ग में बने एक मंदिर तक जाता है। यह मंदिर आम जनता और पर्यटकों के लिए खुला है। ऊंचाई पर बने इस मंदिर से लक्ष्मणगढ़ का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।[1]

हवेलियाँ

मार्ग के ही ठीक नीचे लक्ष्मणगढ़ की प्रसिद्ध ‘चार चौक की हवेली’ का दृश्य भी देख सकते हैं। हवेलियों के लिए प्रसिद्ध सीकर ज़िले की यह ख़ास हवेली है। मार्ग से उतरने के बाद अपनी बनावट, स्थापत्य और भित्ति चित्रों के कारण आकर्षण का केंद्र इस हवेली के दर्शन किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ निम्न स्थानों को भी देखा जा सकता है-

  1. ‘राधिका मुरली मनोहर मंदिर’
  2. ‘चेतराम संगनीरिया हवेली’
  3. ‘राठी परिवार हवेली’
  4. ‘श्योनारायण कयल हवेली’
  5. ‘डाकनियों का मंदिर’

शेखावाटी की हवेलियों और क़िलों में बनी सुंदर ‘फ्रेस्को पेंटिंग्स’ दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इसी के चलते शेखावाटी अंचल को “राजस्थान की ओपन आर्ट गैलरी” भी कहा जाता है। 1830 से 1930 ई. के दौरान व्यापारियों ने अपनी सफलता और समृद्धि को प्रमाणित करने के उद्देश्य से सुंदर एवं आकर्षक चित्रों से युक्त हवेलियों का निर्माण कराया था। इनमें ‘चार चौक की हवेली’, ‘चेतराम संगनीरिया की हवेली’, ‘राठी परिवार की हवेली’, ‘श्योनारायण कयल की हवेली’ आदि प्रमुख हैं। इन हवेलियों के रंग, शानों-शौकत के प्रतीक थे। समय गुजरा तो परंपरा बन गए और अब विरासत का रूप धारण कर चुके हैं।[1]

कैसे पहुंचें




जयपुर से सीकर के लिए मीटर गेज की ट्रेनें चलती हैं। साथ ही बसों की भी अच्छी व्यवस्था है। सीकर में रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पास पास ही हैं। यहां से लक्ष्मणगढ़ की दूरी लगभग 30 कि.मी. है। सीकर से टैक्सी के जरिये भी लक्ष्मणगढ़ पहुंचा जा सकता है।

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