अगुआड़ा दुर्ग | |
विवरण | अगुआड़ा दुर्ग का नामकरण पुर्तग़ालियों ने एक मीठे पानी के झरने के नाम पर किया था। |
राज्य | गोवा |
ज़िला | दक्षिण गोवा |
निर्माण काल | 17वीं शताब्दी |
स्थापना | अगुआड़ा दुर्ग 1612 ई. में पुर्तग़ालियोंद्वारा बनाया गया था। |
भौगोलिक स्थिति | पूर्व- 15° 29′ 16.80″, उत्तर- 73° 45′ 46.80″ |
मार्ग स्थिति | अगुआड़ा दुर्ग, पणजी राष्ट्रीय राज्य मार्ग संख्या 17 से 12.6 किमी की दूरी पर स्थित है। |
कैसे पहुँचें | जलयान, हवाई जहाज़, रेल, बस आदि |
डाबोलिम हवाई अड्डा | |
थिविम रेलवे स्टेशन | |
कंदोलिम बस अड्डा | |
साइकिल-रिक्शा, ऑटो-रिक्शा, मीटर-टैक्सी, सिटी बस | |
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह |
एस.टी.डी. कोड | 0832 |
ए.टी.एम | लगभग सभी |
गूगल मानचित्र | |
संबंधित लेख | संत फ़्रांसिस आसिसी गिरजाघर, से कैथेड्रल गिरजाघर, वरका तट, हरमल तट |
भाषा | कोंकणी, अंग्रेजी, हिंदी, पुर्तग़ाली और मराठी |
अन्य जानकारी | अगुआड़ा में पुर्तग़ालियों द्वारा दुर्ग निर्माण का मुख्य उद्देश्य इसके माध्यम से गोवा की अपनी बस्ती की सुरक्षा करना था। |
अद्यतन | 14:04, 20 नवम्बर 2011 (IST) |
अगुआड़ा दुर्ग महाराष्ट्र के मुंबई शहर से लगभग 400 किलोमीटर दक्षिण में गोवा राज्य में मांडवी नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है। अगुआड़ा पुर्तग़ाली भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है- ‘पानी का स्थल’। इसका नामकरण पुर्तग़ालियों ने एक मीठे पानी के झरने के नाम पर किया था। इस दुर्ग को आठ वर्षों में निर्मित किया गया था।
इतिहास
1612 ई. में इसके पूर्ण होने पर पुर्तग़ालियों ने इसका नाम ‘फोर्ट सांता कैथेरिना’ रखा। अगुआड़ा में पुर्तग़ालियों द्वारा दुर्ग निर्माण का मुख्य उद्देश्य इसके माध्यम से गोवा की अपनी बस्ती की सुरक्षा करना था। दुर्ग समुद्र की ओर ऊँचे परकोटों और दो सुदृढ़ बुर्जों द्वारा सुरक्षित है। इस दुर्ग पर मराठों ने भी आक्रमण किया था। परंतु अंग्रेज़ों ने उसे असफल कर दिया। मराठों के साथ 1741 ई. की संधि के बाद यह दुर्ग पुर्तग़ालियों के अधिकार में आ गया।
लक्ष्य
मांडवी नदी के मुहाने पर बसा अगुआड़ा क़िला 1612 ईस्वी में तौयार हुआ था। इसे पुर्तग़ालियों ने बनवाया था। हर क़िले की तरहा इस क़िले का निर्माण भी दुश्मनों से सुरक्षा के लिए किया गया। लेकिन एक मकसद और था- यूरोप से आने वाले जहाजों के लिय ताज़ा पानी मुहैया कराना। क़िले में पानी जमा रहे, इसके लिए यहाँ एक विशाल टंकी बनवाई गई। इसे संभालने के लिए 16 बड़े स्तंभों का प्रयोग किया गया। टंकी की भंडारण क्षमता कई लाख गैलन है। इसमें पानी एकत्र करने के लिए प्राकृतिक झरनों की मद्द ली जाती थी। मजे की बात है कि ये झरने क़िले के अन्दर ही थे। 17वीं और 18वीं शताब्दी में दूर-दराज से आने वाले जहाज़ यहाँ रुकते और ताजे पानी का स्टॉक लेकर आगे बढ़ जाते। यकीन नहीं होता कि सामान्य-सा दिखने वाला क़िला किसी जमाने में पानी का इतना बड़ा स्रोत रहा होगा। क़िले के प्रांगण में प्रवेश करते हैं तो टंकी सामने ही दिखाई देती है। इस पर खड-ए होकर चारों तरफ नज़र दौड़ाएँ तो लगेगा जैसे लंबी आयताकार दीवार ने आपको घेरा हुआ है। एक कोने पर सफ़ेद रंग का लाइट हाउस तो दूसरे किनारे पर मांडवी नदी है। ये दोनों क़िले की ख़ूबसूरती में भरपूर इजाफ़ा करते हैं। यहाँ निरभ्र शांति है, और सुकून चाहने वालों के लिए किसी सौगात से कम नहीं हैं यह जगह।
क़िले की संरचना
क़िले की बाहरी दीवार लगभग ढह चुकी है। अंदर की दीवारें मज़बूत हैं जो तीन तरफ़ से चौड़ी खाई से घिरी हैं। चौथा छोर नदी की तरफ खुलता है। क़िले की संरचना कुछ ऐसी है कि इसे दो भागों में बांट सकते हैं- एक ऊपरी और दूसरा निचला भाग। क़िले के उपरी हिस्से में पानी की टंकी, लाइट हाउस, बारूद रखने का कक्ष और बुर्ज हैं, जबकि निचला हिस्सा पुर्तग़ाली जहाजों की गोदी के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। ख़ास बात यह कि अगुआड़ा देश का एकमात्र क़िला है जिस पर कभी किसी का आधिपत्य नहीं हो सका। यही वजह है कि पुर्तग़ाली क़िलों में अगुआड़ा सबसे अहम है।
मार्ग स्थिति
अरपोरा से कैंडोलिम और सिन्क्वेरिम समुद्र तट की तरफ़ जाने वाली सड़क आगे क़िले तक ले जाती है। फ़ोर्ट रोड पर चहल-पहल भरे बाज़ार हैं, तो कई अच्छे विदेशी रेस्तरां और कैफ़े भी है। बाज़ार पार करने के बाद हल्की चढ़ाई है। रास्ता थोड़ा घुमावदार हो जाता है, लेकिन ख़ूबसूरत नज़ारे वहाँ भी संग-संग रहते हैं। ट्रैफ़िक न के बराबर है और सड़क के दोनों तरफ झाड़ियाँ है।
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