ऊतकऊतक

ऊतक

इस लेख में मानव शरीर से संबंधित उल्लेख है।

समान गुणों वाली, एक ही आकार की तथा एक ही कार्य करने वाली कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहते हैं।

जैसा कि ज्ञात है कि मानव एक बहुकोशीय प्राणी है,

जिसमें कोशिकाओं रचना तथा कार्य में एक-दूसरे से भिन्न होता हैं।

एक प्रकार की कोशिकाएँ, एक ही प्रकार का कार्य करती हैं और

एक ही वर्ग के ऊतकों जैसे- अस्थि, उपस्थि, पेशी आदि का निर्माण करती हैं।

संक्षेप में समान रचना तथा समान कार्यों वाली कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहते हैं।

प्रत्येक ऊतक का अपना विशिष्ट कार्य होता है।

ऊतकों का निर्माण करते समय कोशिकाएँ आपस में एक-दूसरे से एक विशेष अन्तराकोशिकी पदार्थ के द्वारा जुड़ी और

सम्बन्धित रहती हैं।

बहुत से ऊतक मिलकर शरीर के अंगों,

जैसे- आमाशय, गुर्दे, यकृत, मस्तिष्क आदि का निर्माण करते हैं।

प्रत्येक अंग का भी अपना विशिष्ट कार्य होता है।

विभिन्न अंग परस्पर मिलकर किसी संस्थान का निर्माण करते हैं जो किसी विशेष कार्य को करता है,

जैसे-नाक, स्वरयन्त्र, श्वास प्रणाल एवं फेफड़े मिलकर श्वसन संस्थान (तन्त्र) का निर्माण करते हैं,

जो कि शरीर एवं वायुमण्डल के बीच ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान करता है।

मानव शरीर का निर्माण निम्नलिखित प्रारम्भिक ऊतकों के मिलने से होता है-

  • उपकला ऊतक

  • संयोजी ऊतक

  • पेशी ऊतक

  • तन्त्रिका ऊतक

ऊतक सृष्टि के समस्त सजीव प्राणियों, जंतुओं एवं वनस्पतियों की संरचनात्मक ईकाई (structural unit) कोशिका (cell) होती है।

सत्रहवीं शताब्दी में राबर्ट हुक ने कोशिका की सरंचना का वर्णन किया था।

तब से लेकर लगभग 150 वर्षो तक इस विषय पर अनुसंधान होते रहे।

इसी प्रसंग में सन्‌ 1824 में आर.जे.एच. डयूट्रोशे (R.J.H. Dutrochet) ने ऊतकों से संबद्ध कुछ अध्ययन किए थे।

अपना मत व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा है : जंतुओं के सभी सावयवी ऊतक (organic tissues) अत्यधिक छोटी छोटी गुलिकाकार (globular) एवं संसंजन (cohesion) द्वारा परस्पर जुड़ी कोशिकाओं द्वारा बने होते हैं।

इस प्रकार, जंतुओं और वनस्पतियों के सभी अंग वास्तव में विविध प्रकार से रूपांतरित कोशिकीय ऊतक (cellular tissue) मात्र ही होते हैं।

उद्विकास के क्रम में एककोशिकीय जीवों से बहुकोशिकीय जीवों की उत्पत्ति हुई। कोशिकाविभाजन (cell division) के फलस्वरूप कोशिकाओं के संरचनात्मक एवं शरीरक्रियात्मक (structural and physiological) रूपों में विशेषता आती गई और

उनके समुच्चय (aggregate) से ऊतक, ऊतकों से अंगप्रत्यंग और अंगप्रत्यंगों से युक्त विविध प्रकार के जटिल जीवों की उत्पत्ति होती गई।

ऊतकों की सभी कोशिकाएँ प्राय: आकृति, आकार तथा कार्य में एक जैसी होती और परस्पर सहायोग से कार्य करती हैं।

इनके संघटित रहने के कारण इनका जीवन टिकाऊ और कार्य में दक्षता (efficiency) आती है।

इन कोशिकाओं में ऐसी व्यवस्था होती है कि ये विशेषीकृत कार्यो का अत्यंत कौशल से संपादन करती हैं।

ऊतक की परिभाषा करते हुए यह बतलाया गया है कि यह एक जैसी अनेक विशेषीकृत कोशिकाओं का समुच्चय होता है, जो कतिपय जटिल कार्य संपादित करती हैं। ये कोशिकाएँ समूहों (groups) अथवा स्तरों (layers) के रूप में पाई जाती हैं और विशिष्ट कार्यों का संपादन करती हैं। आपस में ये एक प्रकार के स्वस्रवित कुछ इस प्रकार की होती है कि इनके द्वारा निर्मित अंग परस्पर अन्योन्याश्रित होते हैं।

इन ऊतकों से विशेष प्रकार के कार्य संपादित होते हैं, जैसे सुरक्षा, भोजन का पाचन, पेशियों का संकोचन इत्यादि। रक्त, अस्थि, मांसपेशी, कार्टिलेज, वसा, तंत्रिकाओं आदि की गणना मुख्य ऊतकों में होती है। कार्य की दृष्टि से ऊतकों के निम्नलिखित चार मुख्य प्रकार बतलाए गए हैं।

1-इपीथीलियमी ऊतक (epithelial tissues)

2-योजक (connective tissues)

3-पेशीय (muscular tissues)

4-तंत्रिकीय (nervous tissues)

इपीथीलियमी ऊतक-

इपीथीलियमी ऊतकों को कभी कभी आवरक या रेखीय (covering of lining) ऊतक भी कहते हैं। इनका न्यास (arrangement) इस प्रकार का होता है कि इससे किसी गुहा (cavity) को रेखा (lining) या मुक्त सतहों (free surfaces)का आवरण (covering) बन जाता है। इपीथिलियमी ऊतक एक या अनेक कोशिकास्तरों (cell layers) द्वारा बने होते हैं। जैस, त्वचा एवं पाचक नलिका (di estive layers) के ऊतक इपीथिलियमी ऊतक होते हैं। ये कोशिकाएँ दृढ़तापूर्वक संघटित (rigidly compact)और एक अंतर्कोशिकीय आसंजन (adhesion) द्वारा परस्पर जुड़ी तथा अक्सर एक आधारीय झिल्ली (basement membrane) पर स्थित होती हैं।

इपीथिलियमी ऊतक

इपीथीलियम ऊतक शरीर की अन्य कोशिकाओं द्वारा स्रवित रस द्रव्यों का चूषण (absorption) तथा अनेक प्रकार के तरलों का स्रावण (secretion) अथवा उत्सर्जन करते हैं। गर्भरथ भ्रूण की प्राणप्रतिष्ठा के साथ जब अंगप्रत्यंगों की उत्पत्ति होने लगती है तो प्रथम ऊतक इपीथिलियमी ऊतक ही होते हैं। ये ऊतक बाह्यत्व्चा तथा अंतस्तवचा के रूप में प्रकट होते हैं। कोशिकाओं के एक स्तरवाले ऊतक को सरल तथा एकाधिक स्तरोंवाले ऊतक को स्तरित (stiatified) ऊतक कहते हैं। बाह्यत्वचा की कोशिकाओं के तल पर सूक्ष्म खाँच (grooves) या कटक (ridges) पाए जाते हैं, जिनके कारण अंतर्कोशिकीय सेतु (intercelluar bridges) अथवा अंतर्शाखाएँ (interdigitations) बन जाती हैं जिनकी आकृति अंगुलियों की भाँति होती है। प्रत्येक सेतु में परस्पर सटी हुई दो भुजाएँ होती हैं, जो एक कोशिका से दूसरी तक फैली रहती हैं। संरचना, आकृति तथा विन्यास के आधार पर इन ऊतकों को कई प्रकारों में विभक्त किया गया है।

योजक ऊतक-इन्हें आधारक (supporive) ऊतक भी कहते हैं। इस प्रकार के ऊतक अंगों के बीच के रिक्त स्थानों को भरते, शरीर के विभिन्न भागों को एक दूसरे से मिलाते, और उन्हें परस्पर जोड़ते हैं।

अवकाशी ऊतक

इन ऊतकों में एक विशेष प्रकार का अंतर्कोशिकीय पदार्थ अथवा मैट्रिक्स () पाया जाता है। यह पदार्थ इन कोशिकाओं द्वारा ही उत्पन्न किया जाता है और बहुत दृढ़ होता है। योजक ऊतक की कोशिकाएँ संगठित न होकर बिखरी रहती हैं। इस ऊतक की विशेषता यह है कि इसकी कोशिकाएँ तो सजीव, किंतु मैट्रिक्स निर्जीव होता है। यही निर्जीव पदार्थ अन्य ऊतकों को परस्पर बाँधे रहता है। इन कोशिकाओं की उत्पत्ति भ्रूण को मेसेन्काइमी (mesenchyme) कोशिकाओं से होती है, जिनमें बारीक जीवद्रव्यीय प्रवर्ध (protoshasmic proceses) उगे रहते हैं। संयोजी ऊतक भी कई प्रकार के होते हैं। चित्र 2, 3 और 4 में विभिन्न प्रकार के संयोजो ऊतक दिखाए गए हैं।

तांतव ऊतक

पेशीय ऊतक-पेशियों का निर्माण ऐसी कोशिकाओं द्वारा हुआ होता है, जो आवश्यकता पड़ते ही तत्काल सिकुड़ जाती हैं।

ये कोशिकाएँ लंबी, लंबी रेशों की आकृति की, होती हैं। उत्तेजना प्राप्त होने पर ये किसी भी दिशा में मुड़ सकती हैं। पेशी की कोशिकाएँ स्रवण कार्य नहीं करतीं और वे संयोजी ऊतक द्वारा परस्पर जुड़ी रहती हैं।

पेशीय ऊतक तीन प्रकार के होते हैं : स्तरित, अनस्तरित तथा हार्दिक। स्तरित ऊतक (striated tissue) को स्वैच्छिक (voluntary), पट्टीदार (striped) या कंकालीय (skeletal) पेशी ऊतक भी कहते हैं।

स्तरित पेशीय रेशे बहुत लंबे, बेलनाकार होते और सार्कोलेमा (sarcolemma) नामक एक अति पतली झिल्ली द्वारा ढँके रहते हैं। स्तरित पेशी के संकुचनशील रेशों में दो प्रकार के पदार्थ पाए जाते हैं, जिनके कारण ये रेशे गहरी और हल्की पट्टियों से युक्त दिखलाई देते हैं। अनस्तरित पेशी ऊतक को चिकना पेशी रेशा भी कहते हैं।

इन्हें अनैच्छिक (involuntary) पेशी भी कहते हैं। स्तरित पेशी उन स्थानों पर पाई जाती है जहाँ तीव्र गति की आवश्यकता होती है। जैसे तेजी से उड़नेवाले कीड़ों के पंखों में ऐसी पेशियाँ अत्यधिक विकसित होती हैं। हार्दिक पेशी (cardiac muscle) केवल हृदय (heart) की दीवालों में पाई जाती है। यह विशेष प्रकार की पट्टीदार पेशी होती है, जिसके रेशे शाखायुक्त होते तथा इनकी प्रशाखाएँ समीपवर्ती रेशों की शाखाओं से जुड़ी रहती हैं।

जालक ऊतक

तंत्रिकीय ऊतक-तंत्रिकीय ऊतक की कोशिकाएँ अति उत्तेजनशील (irritable) होती हैं। उच्चतर जंतुओं में तंत्रिकातंत्र अतिविकसित अवस्था में होता है। तंत्रिकातंत्र (nervous system) तंत्रिका ऊतक द्वारा बना होता है। इस ऊतक को कोशिकाएँ तंत्रिका कोशिकाएँ (cells) कहलाती हैं। इन कोशिकाओं में रेशें होते हैं। तात्रिकाएँ समस्त शरीर में फैली रहती हैं और इनमें न्यूरानों (neurons) की श्रृंखलाएँ (chains) पाई जाती हैं। तंत्रिका रेशे कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) द्वारा बने तथा एक कोशिका झिल्ली (cell membrane) द्वारा ढके रहते हैं। कुछ रेशों की लंबाई तीन फुट तक होती है, जैसे स्पाइनल कार्ड से निकलकर हाथ या पैर तक फैला रेशा तीन फुट से भी अधिक लंबा होता है। तंत्रिका रेशे दो प्रकार के होते हैं : ऐक्सन और डेंड्राइट। ऐक्सन कोशिका संवेदनाओं को दूर ले जाती और डेंड्राइट बाहरी संवेदनाओं को कोशिका तक ले आती है।

पादप ऊतक

कोशिकाओं का ऐसा समूह जिसमें समान अथवा असमान कोशिकाएँ उत्पत्ति , कार्य , संरचना में समान होती हैं , पादप ऊतक कहलाती हैं |

पादप ऊतक के प्रकार

पादप ऊतक दो प्रकार के होते हैं |

  1. विभज्योतकीय ऊतक ( Meristematic tissue )
  2. स्थायी ऊतक ( Permanenet tissue )

1. विभज्योतकीय ऊतक

वे ऊतक जो विभाजन की क्षमता रखते है , विभज्योतकीय ऊतक कहते हैं |

विभज्योतकीय ऊतक तीन प्रकार के होते हैं –

 शीर्षस्थ विभज्या ( Apical meristem )

जड़ , तने व शाखाओं के अग्रस्थ पर पाये जाने वाले ऊतक |

 पार्श्वीय विभज्या ( Lateral meristem )

द्वित्तीय वृद्धि को संचालित करते तथा जड़ एवं तने के पार्श्व भाग में पाये जाते हैं |

अन्तर्वेशी विभज्या ( Intercalary meristem )

तिरछी पट्टियों के रूप में शीर्षस्थ प्रभाजी ऊतक के नीचे पाये जाते जो शीर्षस्थ प्रभाजी ऊतक शेष बचा हुआ भाग होते हैं ,

तथा पौधों के भागों की लंबाई में वृद्धि करते हैं |

2. स्थायी ऊतक

वे ऊतक जिनमें विभाजन की क्षमता नही पायी जाती स्थायी ऊतक कहलाते है |

स्थायी ऊतक दो प्रकार के होते हैं |

1.  सरल स्थायी ऊतक ( Simple permanenet tissue )

मृदु ऊतक ( Parenchyma )

प्रोटीन , वसा , मंड जैसे खाद्य पदार्थों का संचय मृदु ऊतक द्वारा होता हैं |

स्थुल कोण ऊतक ( Collenchyma ) 

तनने की क्षमता ( Tensile strength ) स्थुल कोण ऊतक द्वारा होती हैं |

द्रढ़ ऊतक ( Sclerenchyma ) 

कठोर बीजावरण का निर्माण द्रढ़ ऊतक द्वारा होता हैं |

उदाहरण – द्रढ़ ऊतक के कारण नाशपाती खाने में कठोर लगता हैं

तथा नारियल एवं अखरोट तथा लेग्यूमिनोसी  कुल के बीजों में कठोर बीजावरण द्रढ़ कोशाओं ( Stone cells ) के कारण होता हैं |

2. जटिल ऊतक ( Complex tissue )

एक से अधिक कोशिकाओं से बने ऊतक जटिल स्थायी ऊतक  कहलाते हैं |

जटिल स्थायी ऊतक के द्वारा संवहन की क्रिया संचालित होती हैं | इसलिए इनको संवहनीय ऊतक भी कहते हैं |

जटिल ऊतक दो प्रकार के होते हैं –

दारु ( Xylem )

जड़ो द्वारा अवशोषित जल तथा खनिज लवणों का पौधों के अन्य भागों तक संवहन करते हैं |

दारू जटिल ऊतक चार प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बनता हैं –

◆ वहिनिकाएँ ( Tracheids ) ◆ वाहिकाएँ ( Vessels ) ◆ काष्ट मृदु ऊतक ( Wood parenchyma )

◆ काष्ट तंतु ( Wood fiberes )

अधोवाही ( Phloem )

ये घुलनशील अवस्था मे पौधों के हरे भागों में निर्मित भोज्य पदार्थों का संवहन पौधे के विभिन्न भागों में करते हैं |

अधोवाही को बास्ट कहते हैं | अधोवाही जटिल ऊतक चार प्रकार की कोशिकाओं से बना होता हैं –

◆ चालनी अवयव / नलिका ( Sieve elements / tubes ) ◆ सखि कोशाएँ ( Companion cells )

◆ फ्लोएम मृदु ऊतक ( Phloem parenchyma ) ◆ फ्लोएम रेशे ( Phloem fiber )

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