गोवर्धन पूजा पर निबंध
प्रस्तावना:- आप को पता ही है कि दीपावली पूरे पांच दिन की होती है और दीपावली के दूसरे दिन जो त्योहार होता है। वो है “गोवर्धन पूजा” इस त्योहार का भी बहुत महत्व है। इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। गोवर्धन के नाम से ही हम को समझमे आ जाता हैं, कि गाय के गोबर और गाय का इस त्योहार में अत्यधिक महत्व है। भगवान श्री कृष्ण जी के द्वारा शुरू किए गए इस त्योहार का महत्व अपनी एक अलग ही छाप छोड़ती है।
गोवर्धन पूजा का नाम गोवर्धन किस प्रकार पड़ा:- दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रथमा को अन्नकुट का त्योहार मनाया जाता है। पौराणिक कथानुसार यह पर्व द्वापर युग में आरंभ हुआ था। क्योंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन और गायों के पूजा के निमित्त पके हुए अन्न भोग में लगाये थे, इसलिए इस दिन का नाम अन्नकुट पडा, कई जगह इस पर्व को गोवर्धन पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
गोवर्धन पूजा की विधि:- गोवर्धन पूजा या अन्नकुट दिवाली के दूसरे दिन मनाने वाले त्योहार है। इस दिन लोग गोबर से अपने आंगन को साफ करके उसे लिप कर उसपे गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर या उसका चित्र बनाकर भगवान गोवर्धन की पूजा की जाती है। पूजा करने के बाद गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की जाती और पूजा सम्पन्न होने के बाद प्रसाद के रूप में अन्नकूट का भोग लगाया जाता है और उसको प्रसाद के तौर पर वितरित किया जाता है।
गोवर्धन पूजा में गायो की पूजा का महत्व:- गोवर्धन पूजा वाले दिन सभी अपनी-अपनी गायों और बेलो को स्नान कराते है। फूल-माला, धूप, चन्दन आदि से पूजा की जाती है। गायों को पकवान प्रसाद के तौर पर खिलाया जाता है। उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है। सभी इस दिन अपनी गायों को कलर, घुंघरू, मोरपँख, आदि से सजाया जाता है। ये परम्परा द्वापरयुग से चली आ रही है। जब से श्रीकृष्ण जी व्रन्दावन में थे। तब से श्रीकृष्ण जी को गायो से बहुत लगाव था। वो गायो को स्वयं चराने ले जाते थे। फिर उनके बीच मे बैठकर बासुरी बजाते थे जिससे गाय और ग्वालवासी सभी मंत्रमुग्ध हो जाते थे और गाय श्रीकृष्ण के पास से कही नही जाती थी। वही चरती रहती थी। इसलिए गायो का महत्व हमारे हिन्दू धर्म मे अत्यधिक है।
गोवर्धन पूजा किस प्रकार मनाते है:- गोवर्धन पूजा हिन्दुओ का मुख्य त्योहार है। सम्पूर्ण भारत मे बड़े ही उत्साह और हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्तगण छप्पन प्रकार के पकवान, आंगन पर रंगोली, पूजा स्थल पर रंगोली, पके हुए चावलों को पर्वत के आकार में बनाकर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करते है। तदोपरांत श्रद्धा और भक्तिपूर्वक उनकी पूजा अर्चना करते है। उसके बाद अपने स्वजनों और अतिथियों के साथ बाल गोपाल को अर्पित कर इस महाप्रसाद को भोजन रूप में ग्रहण करते है। अन्नकुट के पवित्र दिन पर चंद्र दर्शन अशुभ माना जाता है। इसलिए प्रतिपदा में दित्तिया तिथि के हो जाने पर इस पर्व को अमावस्या को ही मनाने की परंपरा है।
गोवर्धन पूजा की कथा:- गोवर्धन पूजा की परम्परा द्वापर युग से ही चली आ रही हैं। उससे पहले ब्रज में इंद्र भगवान की पूजा की जाती थी। तब श्रीकृष्ण जी ने ब्रजवासियों को समझाया कि हमें इंद्र देवता की पूजा नही करनी चाहिए वो तो केवल हमें बरसात द्वारा पानी ही देते है, पर गाय का गोवर उसको हमे सरक्षण करना चाहिए। इससे पर्यावरण भी अच्छा रहेगा और इससे हमारे आस पास का वातावरण भी शुद्ध रहेगा इसका प्रयोग हम हमारी खेती में भी कर सकते हैं। इसलिए हमें इंद्र की नही गोवर का पर्वत बना कर गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। इस बात से इंद्र देवता कृष्ण जी से और ब्रजवासियों से बहुत नराज़ हो गए और उन्होंने भारी बरसात करवा दी सब कुछ तहस नहस होने लगा तब श्रीकृष्ण जी ने उस गोबर्धन पर्वत को अपनी उंगली से उठाकर सभी ब्रजवासियों को उनके क्रोध से बचाया और इसके बाद से ही ब्रजवासियों ने इंद्र देवता की पूजा को छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू की और ये परम्परा आज भी हमारे भारत देश मे विधमान है।
उपसंहार:- इस प्रकार गोवर्धन पूजा ना केवल अहंकार को तोड़ने बल्की पर्यावरण पर भी अधिक महत्व पर जोर देता है। इसलिए जिस प्रकार श्रीकृष्ण ने इंद्र का अहंकार को खत्म किया उसी प्रकार हम मानव को भी इसे कभी हमारे आस पास भी नही भटकने देना चाहिए। जब भगवान का अहंकार टूट सकता है। तो हम मानव तो भगवान के आगे कुछ नही है और गोवर्धन पूजा जो कि गोवर और गाय को महत्व देती है। तो श्रीकृष्ण द्वारा ब्रजवासियों की रक्षा का भी एक उदाहरण है। इस प्रकार गोवर्धन पूजा जो श्रीकृष्ण जी द्वारा द्वारका युग से प्रारंभ किया था। उसका पालन हम भारत वासी आज तक निभाते आ रहे है और आगे भी निभाएंगे।