भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित हिमालय भू-वैज्ञानिक और संरचनात्मक रूप से नवीन वलित पर्वत श्रंखला है,
जिसका निर्माण यूरोपीय और भारतीय प्लेट के अभिसरण से टर्शियरी कल्प में हुआ था|
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यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियां- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है
जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं। इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर है।
यह पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक चापाकार रूप में लगभग 2400 किमी. की लंबाई में विस्तृत है|
हिमालय पर्वत की चौड़ाई पश्चिम पश्चिम से पूर्व की ओर जाने पर घटती जाती है, इसीलिए कश्मीर में इसकी चौड़ाई लगभग 400 किमी. है और अरुणाचल प्रदेश की इसकी चौड़ाई सिमटकर 150 किमी. तक ही रह जाती है|
इसके विपरीत हिमालय की ज़्यादातर ऊँची चोटियाँ इसके पूर्वी आधे भाग में पायी जाती हैं|
हिमालय के उत्तर में ट्रांस हिमालय पाया जाता है, जिसमें काराकोरम, लद्दाख और जास्कर श्रेणियाँ शामिल हैं|
हिमालय को दो आधारों पर विभाजित किया जाता है:
1. उत्तर से दक्षिण विभाजन
2. पश्चिम से पूर्व विभाजन
हिमालय का उत्तर से दक्षिण विभाजन
हिमालय में उत्तर से दक्षिण क्रमशः वृहत हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक नाम की तीन समानांतर पर्वत श्रेणियाँ पायी जाती हैं| यह तीनों श्रेणियाँ घाटियों या भ्रंशो के द्वारा आपस में अलग होती हैं|
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वृहत हिमालय (Great Himalaya)
हिमालय की सबसे ऊतरी श्रेणी को वृहत हिमालय, ग्रेट हिमालय,हिमाद्रि आदि नामों से जाना जाता है|
यह हिमालय की सर्वाधिक सतत और सबसे ऊँची श्रेणी है, जिसकी औसत ऊँचाई लगभग 6000 मी. है| हिमालय की सर्वाधिक ऊँची चोटियाँ (माउंट एवरेस्ट, कंचनजंघा आदि) इसी पर्वत श्रेणी में पायी जाती हैं|
हिमालय की इस श्रेणी का निर्माण सबसे पहले हुआ था और इसका कोर ग्रेनाइट का बना हुआ है| यहाँ से कई बड़े-बड़े ग्लेशियरों की उत्पत्ति होती है|
मध्य/लघु हिमालय
यह वृहत हिमालय के दक्षिण में स्थित श्रेणी है, जिसे ‘हिमाचल’ के नाम से भी जाना जाता है| इसकी औसत ऊँचाई 3700 मी. से 4500 मी. तक पायी जाती है और औसत चौड़ाई लगभग 50 किमी. है| लघु हिमालय श्रेणी में पीरपंजाल, धौलाधर और महाभारत उप श्रेणियाँ अवस्थित हैं| इनमें सर्वाधिक लंबी और महत्वपूर्ण उप श्रेणी पीरपंजाल है| कश्मीर की घाटी, कांगड़ा की घाटी और कुल्लू की घाटी आदि लघु हिमालय में ही स्थित है| लघु हिमालय पर्वतीय पर्यटन केन्द्रों के लिए प्रसिद्ध है|
शिवालिक
लघु हिमालय की दक्षिण में स्थित शिवालिक श्रेणी हिमालय की सबसे बाहरी श्रेणी है| इसकी ऊँचाई 900 मी. से लेकर 1500 मी. तक ही पायी जाती है और पूर्वी हिमालय में इसका विस्तार लगभग नहीं पाया जाता है|
शिवालिक श्रेणी की चौड़ाई 10 मी. से 50 मी. के बीच ही पायी जाती है|
इस श्रेणी का निर्माण अवसादी और असंगठित चट्टानों से हुआ है| शिवालिक के पर्वतपादों के पास जलोढ़ पंख या जलोढ़ शंकु पाये जाते हैं|
लघु व शिवालिक हिमालय के मध्य पायी जाने वाली घाटी को ‘दून’ कहा जाता है|
देहारादून, कोटलीदून, पाटलीदून प्रसिद्ध दून घाटियों के ही उदाहरण हैं|
हिमालय का पश्चिम से पूर्व विभाजन
हिमालय को नदी घाटियों के आधार पर भी पश्चिम से पूर्व कई भागों में विभाजित किया गया है|
इसका विवरण निम्नलिखित है:
1. पंजाब हिमालय– सिंधु और सतलज नदी के मध्य विस्तृत हिमालय
(इसे पुनः कश्मीर हिमालय और हिमाचल हिमालय के नाम से दो उप-भागों में बाँटा जाता है)
2. कुमायूँ हिमालय– सतलज और काली नदी के मध्य विस्तृत हिमालय
3. नेपाल हिमालय– काली और तीस्ता नदी के मध्य विस्तृत हिमालय
4. असम हिमालय– तीस्ता और दिहांग नदी के मध्य विस्तृत हिमालय
दिहांग गॉर्ज के बाद हिमालय दक्षिण की तरफ मुड़ जाता है, जहाँ इसे ‘पूर्वांचल’ या ‘उत्तर-पूर्वी’ हिमालय कहा जाता है|
इसका विस्तार भारत के सात उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाया जाता है|
पूर्वांचल हिमालय में पटकई बूम, मिज़ो हिल्स, त्रिपुरा हिल्स, नागा हिल्स आदि शामिल हैं|
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Division of the Himalayas – हिमालय का अनुदैर्ध्य विभाजन , himalaya ka vargikaran