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दिल्ली
delhi%2Bmap - दिल्ली
नामराष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली
राजभाषा(एँ)हिन्दी, अंग्रेज़ी, पंजाबी और उर्दू
जनसंख्या1,38,50,507
· घनत्व9,340[1] /वर्ग किमी
क्षेत्रफल1,483 वर्ग किमी
भौगोलिक निर्देशांक28°36′36″ उत्तर 77°13′48″ पूर्व
जलवायुदिल्ली की जलवायु उपोष्ण है। दिल्ली में गर्मी के महीने मई तथा जून बेहद शुष्क और झुलसाने वाले होते हैं।
तापमान20 – 30 °C औसत
· ग्रीष्म25 – 46 °C
· शरद7 – 25 °C
वर्षा617 मिमी
ज़िले9
मुख्य ऐतिहासिक स्थलइंडिया गेट, क़ुतुब मीनार, जामा मस्जिद, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, लाल क़िला आदि
मुख्य पर्यटन स्थलहुमायूँ का मक़बरा, दिल्ली हाट, जंतर मंतर, अक्षरधाम मन्दिरराष्ट्रीय रेल संग्रहालय दिल्ली
मुख्य धर्म-सम्प्रदायहिन्दू, इस्लाम, सिक्ख, बौद्ध, जैनएवं अन्य
लिंग अनुपात1000/821♂/♀
साक्षरता81.82%
· स्त्री87.37%
· पुरुष74.71%
उच्च न्यायालयदिल्ली
उपराज्यपालनजीब जंग
मुख्यमंत्रीअरविंद केजरीवाल
विधानसभा सदस्य70
लोकसभा क्षेत्र7
राज्यसभा सदस्य3
प्रमुख त्योहारलोहड़ी, होली, गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, ईद, दिवाली, दशहरा, रक्षाबंधन आदि
नदीयमुना
राजकीय पक्षीघरेलू गौरैया (House Sparrow)
बाहरी कड़ियाँआधिकारिक वेबसाइट
अद्यतन‎
Emblem of India 2 - दिल्ली




दिल्ली भारत की राजधानी एवं महानगरीय क्षेत्र है। इसमें नई दिल्ली सम्मिलित है जो कि ऐतिहासिक पुरानी दिल्ली के बाद बसी थी। महान ऐतिहासिक महत्त्व वाला यह महानगरीय क्षेत्र महत्त्वपूर्ण व्यापारिक, परिवहन एवं सांस्कृतिक हलचलों से भरा है। दिल्ली देश के उत्तरी मध्य भाग में गंगा की एक प्रमुख सहायक नदी यमुना के दोनों तरफ़ बसी है। दिल्ली, भारत का तीसरा बड़ा शहर है। यहाँ के ऐतिहासिक स्थल तथा रमणीय स्थल अपने आप में विशेष हैं। पर्यटन विकास के उद्वेश्य से यह आगरा और जयपुर से जुड़ा है।

दिल्ली तो है दिल वालों की। दिल्ली के इतिहास में सम्पूर्ण भारत की झलक सदैव मौजूद रही है। अमीर ख़ुसरो और ग़ालिब की रचनाओं को गुनगुनाती हुई दिल्ली नादिरशाह की लूट की चीख़ों से सहम भी जाती है। चाँदनी चौक-जामा मस्जिद की सकरी गलियों से गुज़रकर चौड़े राजपथ पर 26 जनवरी की परेड को निहारती हुई दिल्ली 30 जनवरी को उन तीन गोलियों की आवाज़ को नहीं भुला पाती जो राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के सीने में धँस गयी थी। दिल्ली ने दौलताबाद जाने के तुग़लकी फ़रमानों को भी सुना और लाल क़िले से प्रधानमंत्री के अभिभाषणों पर तालियाँ भी बजायी। कभी रघुराय ने दिल्ली की रायसीना पहाड़ी को अपने कैमरे में क़ैद कर लिया तो कभी हुसैन के रंगों ने दिल्ली को रंग दिया। दिल्ली कभी कुतुबमीनार की मंज़िलों को चढ़ाने में पसीना बहाती रही तो कभी हुमायूँ के मक़बरे में पत्थरों को तराशती रही। नौ बार लूटे जाने से भी दिल्ली के शृंगार में कोई कमी नहीं आयी। आज भी दिल्ली विश्व के सुन्दरतम नगरों में गिनी जाती है।[3]

नामकरण

  • अनुश्रुति है कि इसका नाम ‘राजा ढीलू’ के नाम पर पड़ा जिसका आधिपत्य ई.पू. पहली शताब्दी में इस क्षेत्र पर था। बिजोला अभिलेखों (1170ई.) में उल्लेखित ढिल्ली या ढिल्लिका सबसे पहला लिखित उद्धरण है। महाभारत काल में पाण्डवों द्वारा बसाया गया इन्द्रप्रस्थ नगर, आज हमारे देश का हृदय माना जाता है।
  • एक मत के अनुसार दिल्ली का नामकरण फ़ारसी शब्द ‘दहलीज़’ पर पड़ा है। जिसका अर्थ है ‘प्रवेश द्वार’।
  • कुछ अन्य लोगों के मतानुसार आठवीं सदी में कन्नौज के राजा दिल्लू के नाम पर इसका नामांकन हुआ है। कई मुग़ल साम्राज्यों ने भी दिल्ली पर अपनी प्रभावी छाप छोड़ी है। कई अवसरों पर दिल्ली ने कई साम्राज्यों के पतन में अपनी छाप छोड़ी है। ऐसे बहुरूपदर्शी भूतकाल में न केवल दिल्ली बल्कि विश्व के महानतम लोकतंत्र की खोज की जा सकती है।

इतिहास

महाभारत काल से ही दिल्ली का विशेष उल्लेख रहा है। दिल्ली का शासन एक वंश से दूसरे वंश को हस्तांतरित होता गया। यह मौर्योंसे आरंभ होकर पल्लवों तथा मध्य भारत के गुप्तों से होता हुआ 13वीं से 15वीं सदी तक तुर्क और अफ़ग़ान और अंत में 16 वीं सदी में मुग़लों के हाथों में पहुँचा। 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध और 19वीं सदी के पूर्वार्द्ध में दिल्ली में अंग्रेज़ी शासन की स्थापना हुई।

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दिल्ली (शाहजहाँबाद) का एक दृश्य, वर्ष 1858

1911 में कोलकाता से राजधानी दिल्ली स्थानांतरित होने पर यह शहर सभी तरह की गतिविधियों का केंद्र बन गया। 1956 में केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा प्राप्त हुआ। दिल्ली के इतिहास में 69 वाँ संविधान संशोधन विधेयक एक महत्त्वपूर्ण घटना है, जिसके फलस्वरूप राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम 1991 में लागू हो जाने से दिल्ली में विधानसभा का गठन हुआ। दिल्ली का पुरातात्विक परिदृश्य अत्यंत दिलचस्प है। सहस्राब्दियों पुराने स्मारक क़दम-क़दम पर खड़े नज़र आते हैं। नए या पुराने क़िलेबंद स्थान पर निर्मित 13 शहरों ने दिल्ली–अरावली त्रिकोण के लगभग 180 वर्ग किलोमीटर के एक सीमित क्षेत्र में अपनी मौजूदगी के निशान छोड़े हैं। दिल्ली के बारे में यह किंवदंती प्रचलित है कि जिसने भी यहाँ नया शहर बनाया, उसे इसे खोना पड़ा। सबसे पुराना नगर इंद्रप्रस्थ, क़रीब 1400 ई.पू निर्मित किया गया माना जाता है और वेदव्यास रचित महाकाव्य महाभारत में इसका वर्णन पांडवों की राजधानी के रूप में मिलता है। इस त्रिकोण में निर्मित दिल्ली का दूसरा शहर है अनंगपुर या आनंदपुर, जिसकी स्थापना लगभग 1020 ई. में तोमर राजपूत नरेश अनंगपाल (अनङ्पाल) ने राजनिवास के रूप में की थी। यह शहर अर्द्धवृत्ताकार निर्मित तालाब सूरजकुंड के आसपास बसा था। अनंग पाल ने बाद में इसे 10 किलोमीटर पश्चिम की ओर लालकोटपर स्थापित एक दुर्ग में स्थानांतरित किया।

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भौगोलिक संरचना

दिल्ली एक जलसंभर पर स्थित है। जो गंगा तथा सिंधु नदी प्रणालियों को विभाजित करता है। दिल्ली की सबसे महत्त्वपूर्ण स्थालाकृति विशेषता पर्वत स्कंध (रिज) है, जो राजस्थान प्रांत की प्राचीन अरावली पर्वत श्रेणियों का चरम बिंदु है। अरावली संभवत: दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत माला है, लेकिन अब यह पूरी तरह वृक्ष विहीन हो चुकी है। पश्चिमोत्तर पश्चिम तथा दक्षिण में फैला और तिकोने परकोट की दो भुजाओं जैसा लगने वाला यह स्कंध क्षेत्र 180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। कछारी मिट्टी के मैदान को आकृति की विविधता देता है तथा दिल्ली को कुछ उत्कृष्ट जीव व वनस्पतियाँ उपलब्ध कराता है। यमुना नदी त्रिभुजाकार परकोटे का तीसरा किनारा बनाती है। इसी त्रिकोण के भीतर दिल्ली के प्रसिद्ध सात शहरों की उत्पत्ति ई.पू. 1000 से 17 वीं शताब्दी के बीच हुई।

जलवायु

दिल्ली की जलवायु उपोष्ण है। दिल्ली में गर्मी के महीने मई तथा जून बेहद शुष्क और झुलसाने वाले होते हैं। दिन का तापमान कभी-कभी 40-45 सेल्सियस तक पहुँच जाता है। मानसून सामान्यत: जुलाई में आता है और तापमान को कम करता है। लेकिन सितंबर के अंत तक मौसम गर्म, उमस भरा और कष्टप्रद रहता है। यहाँ की वार्षिक औसत वर्षा लगभग 617 मिमी[4] है। अक्टूबर से मार्च के बीच का मौसम काफ़ी सुहावना रहता है। हालांकि दिसंबर तथा जनवरी के महीने खूब ठंडे व कोहरे से भरे होते हैं और कभी-कभी वर्षा भी हो जाती है। शीतकाल में प्रतिदिन का औसत न्यूनतम तापमान 7 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है, लेकिन कुछ रातें अधिक सर्द होती है।

प्रशासन एवं नियोजन

प्रशासनिक व्यवस्था

दिल्ली ने प्रशासनिक व्यवस्था में कई फेरबदल देखे हैं। 2 अगस्त, 1858 को ब्रिटिश संसद ने भारत सरकार अधिनियम पारित किया, जिसने भारत की अंग्रेज़ी सत्ता को ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश राज में स्थानांतरित कर दिया। 1876 में महारानी विक्टोरिया के शासनाधिकार में ‘भारत की सम्राज्ञी’ पदवी शामिल हो गई।

अर्थव्यवस्था

किसी भी ऐतिहासिक राजधानी की तरह दिल्ली भी वैविध्यपूर्ण केंद्र है, जिसमे प्रशासन, सेवाएं और निर्माण अच्छी तरह मिले–जुले हैं। दिल्ली कला एव हस्तकौशल की प्रचुर विविधता का केंद्र रहा है। मुग़ल काल में दिल्ली रत्न और आभूषण, धातु पच्चीकारी, क़सीदाकारी, सोने की पच्चीकारी, रेशम और ज़री का काम, मीनाकारी और शिल्प, मूर्तिकला और चित्रकला के लिए विख्यात थी। दिल्ली का वर्तमान प्रशासकीय महत्त्व उस समय से है, जब भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से लेकर महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया और ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी, वाणिज्यिक और सेवा केन्द के रूप में विकसित हो गई। यहाँ की लगभग तीन–चौथाई आबादी व्यापार लोक प्रशासन, सामुदायिक, सामाजिक और निजी सेवाओं में संलग्न है।

कृषि

दिल्ली में गेहूँ, बाजरा, ज्वार, चना और मक्का आदि की प्रमुख फ़सलें हैं, लेकिन अब किसान अनाज वाली फ़सलों की बजाय फलों और सब्जियों, दुग्‍ध उत्‍पादन, मुर्ग़ी पालन, फूलों की खेती को ज़्यादा महत्‍व दे रहे हैं। ये गतिविधियाँ खाद्यान्‍नों, फ़सलों के मुक़ाबले अधिक लाभदायक साबित हुई हैं।

सिंचाई

दिल्‍ली के गाँवों का तेज़ी से शहरीकरण होने की वजह से सिंचाई के अंतर्गत आने वाली खेती योग्‍य भूमि धीरे-धीरे कम होती जा रही है। राज्‍य में ‘केशोपुर प्रवाह सिंचाई योजना चरण तृतीय’ तथा ‘जल संशोधन संयंत्र से सुधार एवं प्रवाह विस्‍तार सिंचाई प्रणाली’ नामक दो योजनाएं चलाई जा रही है। राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्‍ली के ग्रामीण क्षेत्र में 350 हेक्‍टेयर की सिंचाई राज्‍य नलकूपों द्वारा और 1,376 हेक्‍टेयर की सिंचाई अतिरिक्‍त पानी द्वारा की जा रही है। इसके अलावा 4,900 हेक्‍टेयर भूमि की सिंचाई हरियाणा सरकार के अधीन पश्चिमी यमुना नहर द्वारा की जा रही है।[5]

शिक्षा

दिल्ली, भारत में शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है। दिल्ली के विकास के साथ-साथ यहाँ शिक्षा का भी तेज़ी से विकास हुआ है। प्राथमिक शिक्षा तो प्रायः सार्वजनिक या नि:शुल्क है। एक बहुत बड़े अनुपात में बच्चे माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। स्त्री शिक्षा का विकास हर स्तर पर पुरुषों से अधिक हुआ है। यहाँ की शिक्षा संस्थाओं में विद्यार्थी भारत के सभी भागों से आते हैं। दिल्ली में उच्चतर शिक्षा एवं अनुसंधान के अनेक केन्द्र हैं। लगभग ग्यारह विश्वविद्यालय, अनेक महाविद्यालय, अनगिनत प्राथमिक शिक्षा केन्द्र पूरी दिल्ली में फैले हैं। यहाँ कई सरकारी एवं निजी शिक्षा संस्थान हैं जो कला, वाणिज्य, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, आयुर्विज्ञान, विधि और प्रबंधन में उच्च स्तर की शिक्षा देने के लिये विख्यात हैं। उच्च शिक्षा के संस्थानों में सबसे महत्त्वपूर्ण दिल्ली विश्वविद्यालय है जिसके अन्तर्गत कई कॉलेज एवं शोध संस्थान हैं। गुरु गोबिन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, टेरी – ऊर्जा और संसाधन संस्थान एवं जामिया मिलिया इस्लामिया उच्च शिक्षा के प्रमुख संस्थान हैं।

यातायात और परिवहन

भारत सरकार ने दिल्‍ली शहर में बढ़ते वाहन प्रदूषण और यातायात की अस्‍त-व्‍यस्‍त स्थिति को देखते हुए ‘मास रैपिड ट्रांज़िट’ प्रणाली लागू करने का निर्णय लिया गया। इसमें अति आधुनिक तकनीक का इस्‍तेमाल किया जा रहा है। दिल्‍ली में मेट्रो रेल परियोजना सफलता से चल रही है। दिल्‍ली सड़कों, रेल लाइनों और विमान सेवाओं के ज़रिये भारत के सभी भागों से भलीभांति जुड़ी हुई है। यहाँ तीन हवाई अड्डे हैं। इंदिरा गांधी अंतर्राष्‍ट्रीय हवाई अड्डा अंतर्राष्‍ट्रीय उड़ानों के लिए, पालम हवाई अड्डा घरेलू उड़ानों के लिए तथा सफदरजंग हवाई अडडा प्रशिक्षण उड़ानों के लिए इस्‍तेमाल किया जाता है। दिल्‍ली में तीन महत्‍वपूर्ण रेलवे स्‍टेशन भी हैं। ये दिल्‍ली जंक्‍शन, नई दिल्ली रेलवे स्‍टेशन और निज़ामुद्दीन रेलवे स्‍टेशन के नाम से जाने जाते हैं।[6]तीन अंतर्राष्‍ट्रीय बस अड्डे- कश्‍मीरी गेट, सराय काले ख़ाँ और आनंद विहार बस अड्डा हैं।

कला

16वीं से लेकर 19वीं शताब्दी तक दिल्ली की कला और वहाँ के रहन सहन पर मुग़ल सल्तनत का प्रभाव रहा। मुग़लों के समय में तुर्की, फ़ारसी और भारतीय कलाओं के मिश्रण ने एक नई कला को जन्म दिया। जामा मस्जिद और लाल क़िला इसी वक्त में बनाए गए थे। दिल्ली दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है। लेकिन 1911 में नई दिल्ली की स्थापना हुई और ब्रिटिश वास्तुकला ने दिल्ली के क़िलों और महलों के बीच अपनी जगह बना ली। एड्विन लुटियंस[7] ने इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन सहित नई दिल्ली को एक आधुनिक रूप दिया।

वास्तुकला

दिल्ली के वैविध्यपूर्ण इतिहास ने विरासत में इसे समृद्ध वास्तुकला दी है। शहर के सबसे प्राचीन भवन सल्तनत काल के हैं और अपनी संरचना व अलंकरण में भिन्नता लिए हुए हैं। प्राकृतिक रुपाकंनों, सर्पाकार बेलों और क़ुरान के अक्षरों के घुमाव में हिन्दू राजपूत कारीगरों का प्रभाव स्पष्ट नज़र आता है। मध्य एशिया से आए कुछ कारीगर कवि और वास्तुकला की सेल्जुक शैली की विशेषताएं मेहराब की निचली कोर पर कमल- कलियों की पंक्ति, उत्कीर्ण अलंकरण और बारी-बारी से आड़ी और खड़ी ईटों की चिनाई है। ख़िलजी शासन काल तक इस्लामी वास्तुकला में प्रयोग तथा सुधार का दौर समाप्त हो चुका था और इस्लामी वास्तुकला में एक विशेष पद्धति और उपशैली स्थापित हो चुकी थी जिसे पख़्तून शैली के नाम से जाना जाता है। इस शैली की अपनी लाक्षणिक विशेषताएं हैं। जैसे घोड़े के नाल की आकृति वाली मेहराबें, जालीदार खिड़कियां, अलंकृत किनारे बेल बूटों का काम (बारीक विस्तृत रूप रेखाओं में) और प्रेरणादायी, आध्यात्मिक शब्दांकन बाहर की ओर अधिकांशत: लाल पत्थरों का तथा भीतर सफ़ेद संगमरमर का उपयोग मिलता है।

संग्रहालय

हस्तशिल्प संग्रहालय

यह संग्रहालय दिल्ली में प्रगति मैदान के अदिती पवैलियन में स्थित है। ग्रामीण जनजीवन की झाँकी प्रस्तुत करता लोक एवं आदिवासी कलाकृतियों का यह अनूठा संग्रहालय है। इस संग्रहालय में भारत की समृद्ध हस्तशिल्प परंपरा को प्रदर्शित किया गया है।

गुड़िया संग्रहालय

यह संग्रहालय आई. टी. ओ. के पास बहादुरशाह ज़फ़र मार्ग पर चिल्‍ड्रन बुक ट्रस्‍ट की बिल्डिंग में स्थित है। लगभग 6,000 गुड़ियों से भरा यह संग्रहालय बाल पुस्तक ट्रस्ट का ही एक हिस्सा है। यहाँ अंतर्राष्ट्रीय संग्रह की अधिकांश गुड़िया अपनी पारम्परिक वेशभूषा में प्रदर्शित हैं। यहाँ विश्व भर के खिलौना निर्माताओं का आगमन रहता है। यहीं स्थित बी.सी. रॉय बाल पुस्तकालय है, जिसमें बच्चों के लिए उत्तम पुस्तकों का संग्रह है। छोटे बच्चों के लिए यहाँ खेलघर भी बना है।

राष्ट्रीय संग्रहालय

राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली के दस जनपथ में स्थित है। यह 1960 में निर्मित हुआ था। भारत में कहीं पर भी प्राप्त कलाकृतियों का यह अनूठा संग्रह है। तीन विभिन्न मंज़िलों में बंटे इस संग्रहालय में ऐतिहासिक मानव सभ्यता के अवशेष, मौर्यकालीन, गांधार, गुप्त एवं अन्य राजवंशों के समय के भित्तिचित्र, प्रस्तर खण्ड, ताम्र पत्रादि एवं अनगिनत दुर्लभ कलाकृतियाँ प्रदर्शित हैं।

राष्ट्रीय रेल संग्रहालय

अपनी तरह का यह भारत का पहला संग्रहालय है। राष्ट्रीय रेल संग्रहालय दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाक़े में स्थित है। राष्ट्रीय रेल संग्रहालय संग्रहालय भारतीय रेल के 140 साल के इतिहास की झलक प्रस्तुत करता है। विभिन्न प्रकार के रेल इंजनों को देखने के लिए देश भर से लाखों पर्यटक यहाँ आते हैं। दस एकड़ क्षेत्र में फैले आठ कोण वाले इस भवन की स्थापना 1 फ़रवरी1977 को हुई थी।

कला दीर्घाएँ

राष्ट्रीय आधुनिक कला दीर्घा

यह देश की एक प्रमुख एवं प्रतिष्ठित दीर्घा है। जयपुर के तत्कालीन महाराजा के निवास स्थान जयपुर हाउस में 1954 में शुरू हुई इस दीर्घा में 19वीं एवं 20वीं शताब्दी की लगभग 15,000 दुर्लभ कलाकृतियों का संग्रह है। यहाँ का मुख्य आकर्षण है नंदलाल बोस, राजा रवि वर्मा, अमृता शेरगिल एवं जामिनी रॉय द्वारा तैयार की गई उत्कृष्ट कलाकृतियाँ। भारत के कुछ प्रसिद्ध मूर्तिकारों के कार्य को भी इस दीर्घा में प्रदर्शित किया गया है। यहीं पर एक पुस्तकालय एवं विक्रय केन्द्र भी है, जहाँ से पोस्टर, चित्रमय पोस्टकार्ड, कैटलाग आदि ख़रीदे जा सकते हैं। बच्चों में कला के प्रति अभिरुचि पैदा करने के लिए यहाँ समय-समय पर स्कूली बच्चों के लिए विशेष भ्रमण, सभा, फ़िल्म प्रदर्शन इत्यादि भी आयोजित किए जाते हैं।

ललित कला अकादमी

भारतीय कला के प्रति देश-विदेश में समझ बढ़ाने और प्रचार-प्रसार के लिए भारत सरकार ने नई दिल्ली में 1954 में ललित कला अकादमी (नेशनल अकादमी ऑफ़ आर्टस) की स्थापना की थी। इसके लिए यह अकादमी प्रकाशनों, कार्यशालाओं तथा शिविरों का आयोजन करती है। यह प्रतिवर्ष एक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी तथा प्रत्येक तीसरे वर्ष ‘त्रैवार्षिक भारत’ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी भी आयोजित करती है। यह संस्था देश की प्रतिभाओं को तराशने का कार्य करती है। यहाँ एक विशेष वीथिका (गैलेरी) फ़िरोजशाह रोड पर रवीन्द्र भवन में स्थित है।

गढ़ी स्टूडियो

ललित कला अकादमी द्वारा दिल्ली विकास प्राधिकरण की सहायता से कला कुटीर में स्थापित यह स्टूडियो कलाकारों के लिए स्वर्ग है। यह फ़्राँस की राजधानी पेरिस से प्रेरित है, जहाँ कलाकारों को स्टूडियो और लॉजिंग की सुविधा दी जाती है। यहाँ विश्व के ख्यातिप्राप्त कलाकारों के व्याख्यान व प्रदर्शन इत्यादि आयोजित किए जाते हैं।

त्रिवेणी कला संगम

तानसेन मार्ग पर स्थित इस सांस्कृतिक केन्द्र में चार गैलेरियाँ आई हुई हैं। ज़मीन तल में स्थापित वीथिका में पुरानी दुर्लभ कलाकृतियाँ हैं, जबकि सबसे बड़ी वीथिका है श्रीराधारानी वीथिका, जहाँ स्थापित एवं नए कलाकारों के शो आयोजित किए जाते हैं। त्रिवेणी वीथिका में कलाकारों के लघु कार्य प्रदर्शित किए जाते हैं।

पर्यटन

दिल्‍ली एक आकर्षक पर्यटन स्थल है। दिल्‍ली में मंदिरों से लेकर मॉल तक, क़िलों से लेकर उद्यान तक और अनेक ऐतिहासिक इमारतें और क़िले हैं जो इतिहास की जीवंत निशानियाँ हैं। प्रतिवर्ष लाखों सैलानी दिल्‍ली आते हैं और यहाँ की मिश्रित संस्‍कृति को जानने की कोशिश करते हैं। दिल्‍ली राज्‍य पर्यटन और परिवहन विकास निगम पर्यटकों को यहाँ के विभिन्‍न स्‍थानों की सैर कराने के लिए विशेष बस सेवाएं चलाता है। निगम ने पैरा सेलिंग, पर्वतारोहण और नौकायन जैसी साहसिक गतिविधियों के लिए सुविधाएं विकसित की हैं। निगम ने दिल्‍ली हाटका विकास किया है, जहाँ काफ़ी और विभिन्‍न राज्‍यों की खाद्य वस्‍तुएँ एक जगह उपलब्‍ध हैं। दिल्‍ली के विभिन्‍न भागों में ऐसी ही ‘हाट’ बनाने की योजना है।

बाग़-बग़ीचे

दिल्ली में कई बाग़-बग़ीचे है। जिनमें जापानी शैली में बना बुद्ध जयन्ती पार्क, कनॉट प्लेस के बीच में स्थित सेंट्रल पार्क जो दुकानों में आने-जाने के लिए छोटे मार्ग के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, साथ ही ऑफ़िस आने-जाने वालों के लिए थोड़ी देर सुस्ताने की जगह है। चाणक्यपुरी में स्थित पार्क, डिस्ट्रिक्ट पार्क, लोदी गार्डन, महावीर जयन्ती पार्क, मुग़ल गार्डन, राष्ट्रीय गुलाब पार्क, एशिया का सबसे बड़ा नेशनल ज़ूलोजिकल पार्क (चिड़ियाघर), क्यूडिशा बाग़, रौशन आरा गार्डन आदि हैं। इसके अलावा दिल्ली में महात्मा गांधी के समाधि स्थल राजघाट, जवाहरलाल नेहरू के समाधि स्थल शान्तिवन एवं लालबहादुर शास्त्री के समाधि स्थल विजय घाट को भी बग़ीचों का रूप दिया गया है।

दर्शनीय स्थल

अशोक के शिलालेख

कालका जी मन्दिर के पास स्थित बहाईपुर गाँव में हाल में ही अशोक महान के चट्टानों पर खुदे शिलालेख मिले हैं। ये सभी लघु-शिलालेख अशोक ने अपने राजकर्मचारियों को संबोधित करके लिखवाए हैं। अशोक ने सबसे पहले लघु-शिलालेख ही खुदवाए थे, इसलिए इनकी शैली उसके अन्य लेखों से कुछ भिन्न है।

गांधी स्मृति

बिड़ला भवन के बरामदे में स्थापित यह वह जगह है, जहाँ 30 जनवरी, 1948 को प्रार्थना सभा में जाते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी। इसे बाद में स्मारक का रूप दे दिया गया।

हौज़ ख़ास

अलाउद्दीन खिलजी द्वारा सन् 1305 में सिरी के निवासियों के लिए बनाया यह ऐसा पिकनिक स्थल है, जो गर्मियों में ठण्डा और सर्दियों में गरम रहता है।

पुराना सचिवालय

ई. माटुंग थॉमस द्वारा 1912 में यह भवन कुछ ही महीनों में बनकर तैयार हुआ था। अब यहाँ दिल्ली विधानसभा चलती है।


संसद भवन

नई दिल्ली स्थित सर्वाधिक भव्य भवनों में से एक है, जहाँ विश्व में किसी भी देश में मौजूद वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूनों की उज्ज्वल छवि मिलती है। राजधानी में आने वाले भ्रमणार्थी इस भवन को देखने ज़रूर आते हैं। संसद की दोनों सभाएं लोक सभा और राज्य सभा इसी भवन के अहाते में स्थित हैं। 144 खम्बों की यह विशाल इमारत 171 मीटर के व्यास में फैली है। हर खम्बे की ऊँचाई 8.3 मीटर है। अद्भुत लकड़ी का चौखटा अपनी तरह की कला में एक उत्तम स्थान रखता है।

बेगम सामरू का महल

यह इलेक्ट्रानिक सामान के थोक एवं फुटकर व्यापार का केन्द्र है। आजकल इसे भागीरथ बिल्डिंग के नाम से जाना जाता है। इसे बेगम सामरू (1753-1836) के रहने के लिए बनाया गया था, जिसने एक लालची सैनिक वाल्टर रेनहर्ड से निकाह कर लिया था।

कोतवाली

1857 की क्रान्ति के असफल हो जाने के बाद अंग्रेज़ों ने दिल्ली पर क़ब्ज़ा करने के लिए इसकी स्थापना की थी। कुछ स्वतंत्रता सैनानियों को यहाँ बन्दी बनाकर रखा गया था। कैप्टन हेडसन द्वारा काटे गए मुग़ल राजकुमारों के सिरों का जुलूस भी यहीं पर लाया गया था।

तुग़लकाबाद

दिल्ली का तीसरा हिस्सा, ग़यासुद्दीन तुग़लक़ द्वारा 1321 से 1325 के बीच बसाया हुआ ऊँची पहाड़ी पर बनाया गया क़िला है। अन्दर घुसते ही संगमरमर का बना ग़यासुद्दीन का मक़बरा नज़र आता है। यह क़िला दक्षिण से पूर्व तक मुहम्मद तुग़लक द्वारा बनाए अदिलाबाद क़िले तक फैला है।

धार्मिक स्थल

हिन्दू धार्मिक स्थल

कालकाजी मन्दिर

चिराग दिल्ली फ़्लाई ओवर से चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित कालका जी के इस मन्दिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में किया गया था। हालाँकि मन्दिर का विस्तार पिछले 50 सालों का ही है, लेकिन मन्दिर का सबसे पुराना हिस्सा अठारहवीं शताब्दी का है। दिल्ली के व्यापारियों द्वारा यहाँ निकट ही धर्मशाला भी बनवाई गई है। अक्टूबर-नवम्बर में आयोजित वार्षिक नवरात्र महोत्सव के समय देश-विदेश से हज़ारों श्रद्धालु यहाँ आते हैं।

  • लक्ष्मीनारायण मन्दिर (बिड़ला मन्दिर)
  • झंडेवाला देवी मन्दिर
  • आद्या कात्यायनी शक्तिपीठ मन्दिर
  • मां संतोषी मन्दिर
  • चांदनी चौक का शिव-गौरी मन्दिर
  • संकट हरणी मंगल करणी शक्तिपीठ
  • भैरव मन्दिर
  • इनके अतिरिक्त दिल्ली में हिन्दुओं के अन्य मन्दिर हैं- सफ़ेद संगमरमर का छतरपुर का दुर्गा मन्दिर, मां सात मंजिला मन्दिर, 1724 में जयपुर के महाराजा जयसिंह द्वारा खड़कसिंह मार्ग पर स्थित हनुमान मन्दिर, काली बेरी का मन्दिर और जोगमाया का मन्दिर।

जैन धार्मिक स्थल

अहिंसा स्थल

कुतुबमीनार के पास तीन एकड़ क्षेत्र में फैला यह स्थल भव्य बगीचे के बीच भगवान महावीर की कमल में स्थित आदमकद प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है। 1980 में स्थापित यह प्रतिमा 17 फ़ीट ऊँची एवं 50 टन वज़नी है।

दिगम्बर जैन मन्दिर

शाहजहाँबाद में 1656 में निर्मित यह मन्दिर भगवान आदिनाथ को समर्पित है। यह मन्दिर चेरिटी पक्षी अस्पताल के लिए भी मशहूर है।

ईसाई धार्मिक स्थल

सेक्रेड हार्ट कैथड्रल चर्च

गुरुद्वारा बंगला साहिब मार्ग के पास दिल्ली की दो प्रमुख कान्वेण्ट स्कूलों सेंट कोलम्बिया एवं कान्वेण्ट ऑफ़ जीसस एवं मैरी के मध्य में स्थित सेक्रेड हार्ट कैथड्रल चर्च है।

सेण्ट जेम्स चर्च

1836 में जेम्स स्कीनर द्वारा बनाई गई सेण्ट जेम्स चर्च दिल्ली का सबसे पुराना चर्च है। पश्चिमी शैली में निर्मित यह चर्च केवल रविवार के दिन ही खुलता है।

सेण्ट थॉमस चर्च

दिल्ली में तीसरा चर्च सेण्ट थॉमस चर्च है। जो 1930-32 में उन ईसाईयों के लिए बनाई गई थी, जो धर्म परिवर्तन करके ईसाई बने हैं। वॉल्टर जॉर्ज नामक वास्तुशिल्पी द्वारा लाल ईटों से निर्मित यह चर्च पंचकुइयाँ मार्ग पर स्थित है।

सिक्खों के धार्मिक स्थल

बंगला साहिब गुरुद्वारा

यह गुरुद्वारा गुरु हरकिशन साहिब जी की याद में बनाया गया है, जो होशियारपुर से दिल्ली छोटी माता के प्रकोप से दिल्ली वासियों को बचाने आए थे। इस परिसर में गुरु ने निवास किया था एवं यहाँ पर एक झील भी स्थित है। कहा जाता है कि इसका पानी औषधीय गुण लिए हुए है।

अन्य गुरुद्वारे हैं-

दमदमा साहिब गुरुद्वारा, रकाबगंज गुरुद्वारा, सीसगंज गुरुद्वारा, मजनूं का टीला गुरुद्वारा इत्यादि।

मुस्लिम धार्मिक स्थल

चिराग देहलवी दरगाह

नसीरूद्दीन मोहम्मद की याद में निर्मित इसे रौशन चिराग़ देहलवी के नाम से भी जाना जाता है।

फ़तेहपुर मस्जिद

सन 1650 में इसे शाहजहाँ की बीवी फ़तेहपुरी बेगम ने बनवाया था।

हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया

चिश्ती संतों में चौथे नम्बर के शेख़ निज़ामुद्दीन चिश्ती को समर्पित यह दरगाह मुस्लिम समाज के लिए अत्यन्त पाक स्थल है। ‘हर गुरुवार शाम को देश के नामी क़व्वाल यहाँ अपना हुनर दिखाते हैं तथा अमीर खुसरो की गज़लें गाते हैं। यहीं उर्स भी आयोजित किया जाता है।

जामा मस्जिद

लाल पत्थरों से बनी यह मस्जिद मुग़ल काल में विश्व की उम्दा मस्जिदों में से एक है। 1644 में इस मस्जिद का निर्माण शाहजहाँ द्वारा शुरू करवाया गया था और 1650 में यह बनकर तैयार हुई। इस पर तत्कालीन 10 लाख रुपया लागत आई। इसके बीच में एक चबूतरा है, जहाँ पर पूर्व, उत्तर एवं दक्षिण में बनी सीढ़ियों से जाया जा सकता है।

अन्य मुस्लिम धार्मिक स्थल

खिड़की मस्जिद, मोठ की मस्जिद, सुनहरी मस्जिद, क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार ख़ाँ की दरगाह आदि।

प्रदर्शनी स्थल

प्रगति मैदान

149 एकड़ क्षेत्र में फैला यह मैदान एशिया के सर्वोत्तम प्रदर्शनी स्थलों में से एक है। मथुरा रोड पर पुराने क़िले से आगे स्थित देश के इस सर्वोत्तम मैदान में 54,685 वर्गमीटर क्षेत्र में फैले 15 विशाल प्रदर्शनी स्थल हैं। इसके अलावा यहाँ 10,000 वर्ग मीटर का खुला क्षेत्र है। जहाँ समय-समय पर व्यापारिक प्रदर्शनियाँ आयोजित की जाती हैं। इस मैदान में कई दर्शनीय स्थल भी हैं। जैसे- राष्ट्रीय विज्ञान केन्द्र (नेशनल साइंस सेंटर), द हॉल ऑफ़ नेशनल, अदभुत हस्तशिल्प संग्रहालय एवं स्टेट्स पवैलियन (नेशनल हेण्डीक्राफ़्ट्स एंड हेण्डलूम म्यूज़ियम)। इसके अलावा नेहरू पवैलियन एवं डिफ़ैन्स पवैलियन भी दर्शनीय हैं।

दिल्ली हाट

‘लिटिल इण्डिया’ के दर्शन कराने वाला यह साप्ताहिक बाज़ार हस्तशिल्प, व्यंजन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए प्रसिद्ध है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के उत्तर में अरबिन्दो मार्ग पर एक एकड़ क्षेत्र में फैला यह बाज़ार दिल्ली पर्यटन, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी), डीसी (हस्तशिल्प) एवं हैण्डलूम का संयुक्त प्रयास है। स्थायी स्थल पर लगने वाला यह बाज़ार किसी ग्रामीण मेले सा प्रतीत होता है। यहाँ हस्तशिल्पी एवं भाग लेने वाले बदलते रहते हैं। प्रत्येक हस्तशिल्पी को दो सप्ताह तक के लिए दी जाने वाली यहाँ कुल 62 स्टॉल हैं, जो क्रमिक रूप से बदलती रहती हैं, ताकि देश-विदेश के अधिकतम हस्तशिल्पों को यहाँ भागीदारी और अपने प्रदर्शित करने का अवसर मिल सके। देश के लगभग सभी प्रान्तों के हस्तशिल्पों को यहाँ पर एक साथ देखा जा सकता है। किसी पर्यटक के लिए पूरे भारत का भ्रमण कठिन हो सकता है, लेकिन वह यहाँ पूरे भारत के हर प्रान्त के खान-पान, हस्तशिल्प एवं संस्कृति की झलक देख सकता है। उचित मूल्य पर आधिकाधिक उत्पाद भी यहाँ से ख़रीदे जा सकते हैं।

खानपान

दिल्‍ली में खाने पीने की बहुत सी दुकानें और भोजनालय हैं। देश के विभिन्‍न प्रांतों के व्‍यंजनों का स्‍वाद लेने के लिए दिल्‍ली हाट का रुख़ कर सकते हैं। यहां देश के लगभग हर भाग का भोजन मिलता है। कुल मिलाकर दिल्‍ली में हर तरह के भोजन का ज़ायक़ा लिया जा सकता है। दिल्‍ली में चाँदनी चौक एक जगह है जो फ़्रूट चाट, गोल गप्‍पों, पकौड़ों और बहुत सी चीज़ों के लिए मशहूर है।

संस्कृति

दिल्ली की संस्कृति यहाँ के लम्बे इतिहास और भारत की राजधानी के रूप में ऐतिहासिक स्थिति से पूर्ण प्रभावित रही है, यह शहर में बने कई महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारकों से ज्ञात है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने दिल्ली शहर में लगभग 1200 धरोहर स्थल घोषित किए हैं, जो कि विश्व में किसी भी शहर से कहीं अधिक है। महानगर होने की वजह से दिल्ली में भारत के सभी प्रमुख त्‍यौहार मनाए जाते हैं। दिल्ली पर्यटन और परिवहन विकास निगम कुछ वार्षिक उत्‍सवों का भी आयोजन करते हैं। ये रौशनआरा उत्‍सव, शालीमार उत्‍सव, कुतुब उत्‍सव, शीतकालीन मेला, उद्यान और पर्यटन मेला, जहाने-ख़ुसरो उत्‍सव तथा आम महोत्‍सव हैं।

खेल

दिल्ली खेलों की दृष्टि से भी काफ़ी महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। क्रिकेट और फुटबॉल दिल्ली के मुख्य खेल हैं। यहाँ अनेक स्टेडियम मौजूद हैं जैसे- फ़िरोज़शाह कोटला स्टेडियम, जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम, श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्टेडियम, सिरी फोर्ट कांप्लेक्स, कर्णी सिंह शूटिंग रेंज, तालकटोरा स्टेडियम, त्यागराज स्टेडियम, यमुना स्पोटर्स कांप्लेक्स, आर. के. खन्ना स्टेडियम और दिल्ली विश्वविद्यालय।

19वें राष्ट्रमंडल खेल

अक्टूबर,2010 को समाप्त हुए 19वें राष्ट्रमंडल खेलों की मेज़बानी दिल्ली ने की। विभिन्न खेलों के लिए आयोजित किया जाने वाला यह अब तक का सबसे बड़ा आयोजन रहा। भारत पूरे तीन दशकों बाद ऐसे किसी आयोजन का मेज़बान बना। इससे पहले भारत 1982 में एशियाई खेलों की मेज़बानी की थी। इससे पहले भारत 1982 में एशियाई खेलों की मेज़बानी कर चुका है। एशिया में भी यह 1998 के क्वालालंपुर, मलेशिया के बाद दूसरा बड़ा आयोजन है।[8]

बच्चों की दिल्ली

दिल्ली में बच्चों के मनोरंजन एवं शिक्षा के लिए बहुत कुछ है। यहाँ बच्चों के लिए मनोरंजन पार्क, विज्ञान केन्द्र, प्लेनेटेरियम (खगोल शिक्षा संग्रहालय), संग्रहालय और चिड़ियाघर है। बाल भवन-कोटला रोड पर स्थित बाल भवन में बच्चों के लिए नियमित रूप से नाटक, संगीत, चित्रकारी आदि के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। राष्ट्रीय बाल संग्रहालय एवं विज्ञान सेंटर आदि भी यहीं पर स्थित हैं। बच्चों के लिए पुस्तकालय-चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट, बी.सी.राय मेमोरियल वाचनालय, नेशनल बुक ट्रस्ट, ब्रिटिश कौंसिल पुस्तकालय इत्यादि।

सौ वर्ष की राजधानी

ग़ुलामी के दौर में अंग्रेज़ सम्राट जॉर्ज पंचम ने 12 दिसम्बर, 1911 को कोलकाता के स्थान पर दिल्ली को राजधानी बनाया। इसकी रूपरेखा और निर्माण कार्यों की देखरेख ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुचेंस (लुटियन्स) ने की थी। एक सौ पचास वर्षों तक कोलकाता के ज़रिये भारत पर शासन करने के बाद अंग्रेजों ने अपनी साम्राज्य विस्तार के मद्देनजर राजधानी को उत्तर भारत स्थानांतरित कर दिल्ली को नए स्थान के रूप में चुना था तथा यहाँ नयी राजधानी बनाने का महत्वाकांक्षी अभियान शुरू किया था।[9] किंग जॉर्ज पंचम के राज्यारोहण का उत्सव मनाने और उन्हें भारत का सम्राट स्वीकारने के लिए दिल्ली में आयोजित दरबार में ब्रिटिश भारत के शासक, भारतीय राजकुमार, सामंत, सैनिक और अभिजात्य वर्ग के लोग बड़ी संख्या में एकत्र हुए थे। दरबार के अंतिम चरण में एक अचरज भरी घोषणा की गई। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हॉर्डिंग ने राजा के राज्यारोहण के अवसर पर प्रदत्त उपाधियों और भेंटों की घोषणा के बाद एक दस्तावेज़ सौंपा। अंग्रेज़ राजा ने वक्तव्य पढ़ते हुए राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने, पूर्व और पश्चिम बंगाल को दोबारा एक करने सहित अन्य प्रशासनिक परिवर्तनों की घोषणा की। दिल्ली वालों के लिए यह एक हैरतअंगेज फैसला था, जबकि इस घोषणा ने एक ही झटके में एक सूबे के शहर को एक साम्राज्य की राजधानी में बदल दिया, जबकि 1772 से ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता थी।

दिल्ली पर कविताएँ

(1) दिल्ली (नवनीत पाण्डे द्वारा)

दिल्ली
केवल नाम नहीं है किसी शहर का
पहचान है एक देश की
प्राण है एक देश का
यह अलग बात है-
दिल्ली में एक नहीं
कई दिल्लियां हैं-
पुरानी दिल्ली, नई दिल्ली,
दिल्ली कैंट, दिल्ली सदर आदि- आदि
हर दिल्ली के अपने रंग,
अपने क़ानून – क़ायदे
आपकी दिल्ली, मेरी दिल्ली
ज़ामा मस्ज़िद वाली दिल्ली
बिड़ला मंदिर वाली दिल्ली
शीशगंज गुरुद्वारे वाली दिल्ली
चर्चगेट वाली दिल्ली
साहित्य अकादमी वाली दिल्ली
हिन्दी ग्रंथ अकादमी वाली दिल्ली
एनएसडी वाली दिल्ली
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय वाली दिल्ली
महात्मा गांधी विश्वविद्यालय वाली दिल्ली
दिल्ली की सोच में
दिल्ली दिल वालों की है
दिल्ली से बाहर की खबर के अनुसार
दिल्ली दिल्ली वालों की है
दिल्ली किसकी है?
इस प्रश्न का सही- सही उत्तर
स्वयं दिल्ली के पास भी नहीं है
वह तो सभी को अपना मानती है
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
पहुंचता है दिल्ली का अख़बार
हर गली, गांव, शहर की दीवारें उठाए हैं
दिल्ली के इष्तहार
आंखे देखती हैं- दिल्ली
कान सुनते हैं- दिल्ली
होंठ बोलते हैं- दिल्ली
सब करते हैं-
दिल्ली का एतबार
दिल्ली का इंतज़ार
दिल्ली की जयकार
पैरों में पंख लग जाते हैं
सुनते ही दिल्ली की पुकार
दुबक जाते हैं सुनते ही
दिल्ली की फटकार
दिल्ली की ललकार
सब को जानती है दिल्ली
सब को छानती है दिल्ली
सब को पालती है दिल्ली
सब को ढालती है दिल्ली

दिल्लीः
अर्थात् प्रेयसी का दिल
दिल्लीः
अर्थात् प्रेमी की मंजिल
दिल्लीः
अर्थात् सरकार
दिल्लीःअर्थात् दरबार।




 

(2) दिल्ली (ग़ुलाम मोहम्मद शेख द्वारा)

टूटे टिक्कड़ जैसे किले पर
कच्ची मूली के स्वाद की-सी धूप
तुगलकाबाद के खंडहरों में घास और पत्थरों का संवनन
परछाइयों में कमान, कमान में परछाइयाँ;
खिड़की मस्जिद
आँखों को बेधकर सुई की मानिंद
आर-पार निकलती
जामा-मस्जिद की सीढ़ियों की क़तार

पेड़ की जड़ों से अन्न नली तक उठ खड़ा होता क़ुतुब
चारों ओर महक
अनाज की, माँस की, ख़ून की, जेल की, महल की
बीते हुए कल की, सदियों की

साँस इस क्षण की
आँख आज की उड़ती है इतिहास में
उतरती है दरार में ग़ालिब की मजार की
भटकती है ख़ानखानान की अधखाई हड्डी की खोज में
ओढ़ जहाँआरा की बदनसीबी को
निकल पड़ती है मक़बरा दर मक़बरा ।

अभी भी धूल, अभी भी कोहरा
अब भी नहीं आया कोई फ़र्क माँस ओर पत्थर में
लाल किले की पश्चिमी कमान में सोई
फ़ाख्ता की योनि की छत से होती हुई
घुपती है मेरी आँख में
किरण एक सूर्य की।

अभी तो भोर ही है
सत्य को संभोगते हैं स्वप्नसवेरा कैसा होगा ?

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