अंडा
अंडा उस गोलाभ वस्तु को कहते हैं जिसमें से पक्षी, जलचर और सरीसृप आदि अनेक जीवों के बच्चे फूटकर निकलते हैं। पक्षियों के अंडों में, मादा के शरीर से निकलने के तुरंत बाद, भीतर केंद्र पर एक पीला और बहुत गाढ़ा पदार्थ होता है जो गोलाकार होता है। इसे योक कहते हैं। योक पर एक वृत्ताकार, चिपटा, छोटा, बटन सरीखा भाग होता है जो विकसित होकर बच्चा बन जाता है। इन दोनों के ऊपर सफेद अर्ध तरल भाग होता है जो ऐल्ब्युमेन कहलाता है। यह भी विकसित हो रहे जीव के लिए आहार है। सबके ऊपर एक कड़ा खोल होता है जिसका अधिकांश भाग खड़िया मिट्टी का होता है। यह खोल रध्रंमय होता है जिससे भीतर विकसित होने वाले जीव को वायु से आक्सीजन मिलता रहता है। बाहरी खोल सफेद, चित्तीदार या रंगीन होता है जिससे अंडा दूर से स्पष्ट नहीं दिखाई पड़ता और अंडा खाने वाले जंतुओं से उसकी बहुत कुछ रक्षा हो जाती है।
अंडे का आकार
प्रत्येक जाति की चिड़ियों के अंडों में, थोड़ी बहुत भिन्नता भले ही हो, पर इनकी अपनी एक विशेषता होती है। प्रत्येक जाति के पक्षियों के अंडों का आकार, माप और रंग अनूठा होता है।
पक्षियों के जीवन और उनके अंगों के आकार, माप, सतह की रचना (texture) और रंग में एक संबंध है। उसी प्रकार एक थोक या समूह (clutch) के अंतर्गत अंडों की संख्या और किसी ऋतु में थोकों की संख्या में एक संबंध होता है।
अंडे की माप मुख्यत: अंडा देनेवाली चिड़िया के डीलडौल पर निर्भर करती है, किंतु यह आवश्यक नहीं है कि अनुपात हमेशा एक हो। इसके दो कारण हैं :
- प्रत्येक जाति के पक्षियों में बच्चे विकास की विभिन्न अवस्थाओं में अंडे से बाहर निकलते हैं और यह उस जाति के पक्षी की अपने जीवन की परिस्थितियों पर निर्भर होता है।
- जिन पक्षियों में उद्भवन अवधि (incubation period) लंबी होती है उनके अंडों में स्वभावत: बड़े होने की प्रवृत्ति होती है, किंतु कोयल जैसी चिड़िया के अंडे बिल्कुल ही छोटे होते हैं और यह उसके विचित्र जातीय स्वभाव के कारण है।
मुर्गी के अंडे का जो आकार होता है, वही आकार प्राय: अन्य चिड़ियों के अंडों का होता है। अंडा एक दिशा में लंबा होता है और उसका एक छोर गोलाकार और दूसरा छोर थोड़ा नुकीला होता है। अंडे एक छोर पर गोल और दूसरे छोर पर नुकीले होने से सरलता से लुढ़क नहीं पाते। साथ साथ अंडों के नुकीले भाग घोंसले के मध्य में केंद्रित हो जाने और उनका गोलाकार भाग बाहर की ओर होने से, यदि घोंसले में तीन चार अंडे हों तो वे सभी आसानी से अँट जाते हैं। कुछ चिड़ियों के अंडे लगभग गोलाकार होते हैं। उल्लू के अंडे गोलाकार और बतासी के अंडे पतले और दोनों छोरों पर गोल होते हैं।
कुछ चिड़ियों के अंडों की सतहें चिकनी होती हैं, कुछ की चमकीली (glossy), कुछ की बहुत अधिक पालिशदार (highly burnished) और कुछ की खुरदरी तथा खड़ियानुमा होती है।
रासायनिक संरचना
अंडे के ऐल्ब्युमेन के तीन स्तर होते हैं। इनकी रासायनिक संरचना भिन्न-भिन्न होती है जैसा निम्नलिखित सारणी से प्रतीत होता है:
आंतरिक सूक्ष्म स्तर | मध्य स्थूल स्तर | बाह्य सूक्ष्म स्तर | |
---|---|---|---|
अंडश्लेष्म (ओवोम्यूसिन) | 1.10 | 5.11 | 1.91 |
अंडावर्तुलि (ओवोग्लोबुलिन) | 9.59 | 5.59 | 3.66 |
अंड ऐल्ब्युमेन (ओवोऐल्ब्युमेन) | 89.29 | 89.19 | 94.43 |
इन तीनों स्तरों के जल की मात्रा में कोई विभिन्नता नहीं होती। श्यानता में अवश्य विभिन्नता होती है, परंतु यह एक कलिलीय (कलायडल) घटना समझी जाती है। अंड ऐल्ब्युमेन में चार प्रकार के प्रोटीनों का होना तो निश्चित रहता है– अंडश्वेति (अंड ऐल्ब्युमेन), समश्वेति (कोनाल्ब्युमेन), अंडश्लेष्मा (ओवोम्यूकॉएड) तथा अंडश्लष्मि, परंतु अंडाबर्तुली का होना अनिश्चित है। अंडश्वेति में प्रस्तुत भिन्न-भिन्न प्रोटीनों की मात्रा निम्नलिखित सारणी में दी गई है
अंडश्वेति | 77 प्रतिशत |
समश्वेति | 3 प्रतिशत |
अंडश्लेष्माभ | 13 प्रतिशत |
अंडश्लेष्मि | 7 प्रतिशत |
अंडावर्तुलि | लेशमात्र |
कहा जाता है कि अंडश्वेति का कार्बोहाइड्रेट वर्ग क्षीरीधु (मैनोज़) है। अन्य अनुसंधान के अनुसार यह एक बहुशर्करिल (पॉलीसैकाराइड) है जिसमें 2 अण (मॉलेक्यूल) मधुम-तिक्ती (ग्लुकोसामाइन) के हैं, 4 अणु क्षीरीधु के और 1 अणु किसी अनिर्धारित नाइट्रोजनमय संघटक का है। अंडश्लेष्माभ में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है (लगभग 10 प्रतिशत)। संयुक्त बहुशर्करिल मधुम-तिक्ती तथा क्षीरीधु का समाण्विक (इक्विमॉलेक्यूलर) मिश्रण होता है। किस हद तक यो प्रोटीन जीवित अवस्था में वर्तमान रहते हैं, यह कहना अति कठिन है।
वसा एवं प्रोटीन
मुर्गी के अंडे का केंद्रीय भाग पीला होता है, उस पर एक पीला स्तर विभिन्न रचना का होता है। इन दोनों पीले भागों के ऊपर श्वेत स्तर होता है जो मुख्यत ऐल्बयुमेन होता है। इसके ऊपर कड़ा छिलका होता है। योक का मुख्य प्रोटीन आंडोपीति (बिटेलिन) है जो एक प्रकार का फास्फो प्रोटीन है। दूसरी श्रेणी का प्रोटीन लिवेटिन है जो एक कूट-आवर्तुलि (स्युडोग्लोबुलिन) है जिसमें 0.067 प्रतिश फासफोरस होता है। तीसरा प्रोटीन आंडोपोति श्लेष्माभ (विटेलोम्युकाएड) है जिसमें 10 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट होता है। योक में क्लीव वसा, भास्वयेय, तथा सांद्रव (स्टेरोल) भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं। 55 ग्राम के एक अंडे में 5.58 ग्राम क्लीब वसा तथा 1.28 ग्राम फास्फेट होता है, जिसमें 0.68 ग्राम अंडपीति (लेसिथिन) होता है। अंडपीति के वसाम्ल (फ़ैटी ऐसिड) अधिकांश समतालिक (आइसोपासिटिक), म्रक्षिक (ओलेइक), आतसिक लिनोलेइक), अदंतमीनिक (क्लुपानोडोनिक) तथा 9:10- षोडशीन्य (डेक्साडेकानोइक) अम्ल हैं। तालिक तथा वसा अम्ल कम मात्रा में होते हैं। अंडे में मास्तिष्कि (सेफ़ालिन) भी होती है, तथा 1.75 प्रतिशत पित्त सांद्रव (कोलेस्टेरोल)।
विटामिन
अंडे के पीले तथा श्वेत दोनों ही भागों में विटामिन पाए जाते हैं, किंतु पीले भाग में अधिक मात्रा में, जैसा इस सारणी में दिया गया है-
विटामिन | पीले भाग में | श्वेत भाग में |
---|---|---|
ए | + | – |
बी1 | + | – |
बी2 | + | + |
पी-पी | + | – |
सी | – | – |
डी | + | – |
ई | + | – |