छठ पूजा पर निबंध
प्रस्तावना:- जिस प्रकार दुर्गा पूजा, दिपावली आदि त्योहारो को हिंदुओं में धूमधाम से मनाया जाता है। उसी प्रकार छठ पूजा भी हिंदुओ का प्रमुख त्योहार है। लेकिन इस त्योहार का उत्साह और रोनक सबसे अधिक बिहार में देखने को मिलती है। छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार छठ मइया सूर्यदेवता की बहन है और कहा जाता है कि सूर्यदेवता की उपासना से छठ मइया प्रसन्न होती है और घरों में शुख शांति और धन धान्य से सम्पन्न करती है। इसलिए छठ पूजा को लोग धूमधाम से मनाते है।
छठ पूजा कब मनाते है:- भगवान सूर्यदेव के प्रति भक्तों के अटूट आस्था का अनूठा पर्व छठ पर्व हिन्दू पंचाग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। वैसे छठ पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। चेत्र शुक्ल षष्ठी, व कार्तिक शुक्ल षष्ठी इन दो तिथियों को यह पर्व मनाया जाता है हालांकि कार्तिक शुक्ल षष्ठी वको मनाए जाने वालों छठ पूजा मुख्य मानी जाती है। कार्तिक छठ पूजा का विशेष महत्व माना जाता हैं।
छठ माता को किस किस नाम से जाना जाता है :- छठ पूजा चार दिन तक बहुत धूमधाम से मनाने वाला पर्व है। इसे डाला छठ, छठी मइया, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि नामसे जाना जाता है।
छठ पूजा क्यों करते है:- छठ पूजा बिहार का मुख्य त्योहार है। छठ का त्योहार भगवान सूर्य देवता का धरती पर धनधान्य की प्रचुरता के लिए धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है लोग विशेष इच्छाओं की पूर्ति के लिए इस पर्व को मनाते है। इस पर्व का आयोजन मुख्यत गंगा के तट पर होता है और कुछ गांवों पर महिलाएं छोटे तालाबो अथवा पोखरों के किनारे ही धूमधाम से इस पर्व को मनाते है। सूर्य देव की कृपा से सेहत अच्छी रहती है। सूर्यदेव की कृपा से घर मे धन धान्य के भंडार भरे रहते है। छठ माई सन्तान प्रदान करती है। सूर्य जैसी ही श्रेष्ट सन्तान के लिए भी यह व्रत रखा जाता है।
छठ माता की उत्पती:- छठ माता को सूर्य देव की बहन माना जाता है। छठ पूजा कथा के अनुसार छठ माता भगवान की पुत्री देवसेना बताई गई है। अपने परिचय में वे कहती है। कि वह प्रकति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई है। यही कारण है कि उन्हें षष्ठी कहा जाता है। संतान की चाहत रखने वाले जातक के लिए यह पुजा बहुत लाभकारी मानी जाती हैं। पौराणिक ग्रन्थो में इसे रामायण काल में भगवान श्री राम के अयोध्या वापसी के बाद सीता जी के साथ मिलकर कार्तिक शुक्ल षष्टी को सूर्योउपसना करने से भी जोड़ा जाता है।
छठ व्रत विधि:- छठ पूजा चार दिन तक चलने वाला त्योहार है।
- पहला दिन- खाये नहाय
छठ पूजा व्रत चार दिन तक किया जाता है। इसके पहले दिन नहाने खाने की विधि होती है। जिसमें व्यक्ति को घर की सफाई कर स्वयं शुद्ध होना चाहिए तथा केवल शुद्ध शाकाहारी भोजन ही करना चाहिए।
- दूसरा दिन-खरना
इसके दूसरे दिन खरना की विधि की जाती है। खरना में व्यक्ति को पूरे दिन का उपवास रखकर शाम के समय गन्ने का रस या गुड़ में बने हुए व्यंजन ओर चावल की खीर को प्रसाद के रुप में खाना चाहिए ।इस दिन बनी गुड़ की खीर बेहद स्वादिष्ट होती है।
- तीसरा दिन-अधर्य
तीसरे दिन सूर्य षष्टी को पूरे दिन उपवास रखकर शाम के समय डूबते सूर्य को अधर्य देने के लिए पूजा की सामग्रियों को लकड़ी के डाले में रखकर घाट पर ले जाते है। शाम को सूर्य को अध्र्य देने के बाद घर आकर सारा सामान वैसे ही रखे रहने देते है। इस दिन रात के समय छठी माता के गीत गाते है और व्रत कथा सुनाते है।
- चोथा दिन-सुबह का अधर्य
इसके बाद घर लौटकर अगले(चौथे) दिन सुबह-सुबह सूर्य निकलने से पहले घाट पर पहुँचना चाहिए उगते हुए सूर्य की पहली किरण को अधर्य देना चाहिए। इसके बाद घाट पर छठ माता को प्रणाम कर उनसे सन्तान रक्षा का वर मांगते है। अधर्य देने के बाद घर लौटकर सभी मे प्रसाद वितरण करना चाहिए तथा स्वम भी प्रसाद खाकर व्रत खोलने की विधि है।
इस प्रकार दीपावली के बाद आने वाले इस त्योहार को ना केवल बिहार में बल्कि हमारे देश के प्रत्येक ऐसे स्थान पर ये पर्व मनाते है। जहाँ इस त्योहार को मनाने वाले रहते है।यह त्योहार भी बोहुत धूमधाम से ओर हर्षोउल्लास के साथ मनाने की परंपरा है।जो कि दीपावली के बाद से ही शुरू हो जाती है।
- छठ व्रत कथा
कथा के अनुसार प्रियवत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। परंतु दोनों की कोई संतान नही थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने एक दिन सन्तान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रष्टी यज्ञ करवाया इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गयी।
नो महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ। संतान शोक में वह आत्महत्या का मन बना लिया। परन्तु जैसे ही, राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुई।
देवी ने राजा को कहा की “में षष्टि देवी हुँ”। मै लोगो को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूँ। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है। मै उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूँ। यदि तुम मेरी पूजा करोंगे तो मै तुम्हे पुत्र रत्न प्रदान करूँगी। देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया।
राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठि तिथि के दिन देवी षष्ठि की पूरे विधि-विधान से पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा।
इसी प्रकार छठ व्रत के संदर्भ में एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रोपती ने छठ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाए पूरी हुई तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।
उपसंहार:- छठ से संबंधित कई प्रचलित और पौराणिक कथाएं है। जो ये साबित करती है की छठ पूजा कितनी महत्वपूर्ण है। छठ पूजा का व्रत बहुत ही कठिन होता है। इसमें सभी व्रतधारको को सुख-सुविधाओं को त्यागना होता है। इसके तहत व्रत रखने वाले लोंगो को जमीन पर एक कम्बल या चादर बिछाकर सोना होता है। इसमें किसी तरह की सिलाई नही होनी चाहिए। ये व्रत ज्यादातर महिलाएं करती है। वर्तमान में अब कुछ पुरूष भी यह व्रत करने लगे है। इस प्रकार छठ पूजा ना केवल बिहारी समाज के लोग बल्कि जहाँ भी इस समाज के लोग रहते है वहा छठ माता की पूजा करते है। छठ मइया भी अपनी कृपा दृष्टि सब पर बनाकर रखती है।