दुर्गा पूजा पर निबंध
भूमिका : दुर्गा पूजा भारत का एक धार्मिक त्यौहार है। दुर्गा पूजा को दुर्गोत्सव या षष्ठोत्सव के नाम से भी जाना जाता है।
दुर्गा देवी जी हिमालय और मेनका की पुत्री और सती का अवतार थीं जिनकी बाद में भगवान शिव से शादी हुई थी। दुर्गा पूजा पहली बार तब शुरू हुई थी जब भगवान राम ने रावण को मारने के लिए देवी दुर्गा से शक्ति प्राप्त करने के लिए पूजा की थी। यह एक परंपरागत अवसर है जो लोगों को एक भारतीय संस्कृति और रीति में पुनः जोड़ता है।
दुर्गा पूजा का त्यौहार हर साल पतझड़ के मौसम में आता है। दुर्गा पूजा हिन्दुओं के महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। इस त्यौहार को हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा हर साल महान उत्साह और विश्वास के साथ मनाया जाता है। सभी लोग कई स्थानों पर शहरों या गांवों में दुर्गा पूजा को अच्छे से सांस्कृतिक और परम्परागत तरीके से मनाते हैं।
यह अवसर बहुत ही खुशी वाला होता है खासकर विद्यार्थियों के लिए क्योंकि उन्हें छुट्टियों के कारण अपने व्यस्त जीवन से कुछ आराम मिल जाता है। दुर्गा पूजा के त्यौहार को बहुत ही अच्छे तरीके से मनाया जाता है और कुछ बड़े स्थानों पर मेलों का भी आयोजन किया जाता है। दुर्गा पूजा को बहुत से राज्यों जैसे – ओडिशा, सिक्किम, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के लोग बहुत ही बड़े तौर पर मनाते हैं।
विशेष : इस दिन लोगों द्वारा दुर्गा देवी की पूरे नौ दिन तक पूजा की जाती है। त्यौहार के अंत में दुर्गा देवी की मूर्ति या प्रतिमा को नदी या पानी के टैंक में विसर्जित किया जाता है। बहुत से लोग नौ दिन का उपवास रखते हैं हालाँकि कुछ लोग केवल पहले और आखिरी दिन ही उपवास रखते हैं। लोगों का मानना होता है कि इससे उन्हें देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होगा। लोगों का विश्वास होता है कि दुर्गा माता उन्हें सभी समस्याओं और नकारात्मक उर्जा से दूर रखेंगी।
दुर्गा पूजा के नाम : दुर्गा पूजा को बंगाल, असम, उड़ीसा में अकाल बोधन, दुर्गा का असामयिक जागरण शरदकालीन पूजा, पूर्वी बंगाल वर्तमान में बांग्लादेश में दुर्गा पूजा को भगवती पूजा के रूप में भी मनाया जाता है, इसे वेस्ट बंगाल, बिहार, उड़ीसा, दिल्ली और मध्य प्रदेश में दुर्गा पूजा के नाम से जाना जाता है।
दुर्गा पूजा की कहानी : यह माना जाता है कि एक बार महिषासुर नामक एक राजा था। महिषासुर ने स्वर्ग में देवताओं पर आक्रमण किया था। महिषासुर बहुत ही शक्तिशाली था जिसके कारण उसे कोई भी हरा नहीं सकता था। उस समय ब्रह्मा , विष्णु और शिव भगवान के द्वारा एक आंतरिक शक्ति का निर्माण किया गया जिनका नाम दुर्गा रखा गया था।
देवी दुर्गा को महिषासुर का विनाश करने के लिए आंतरिक शक्ति प्रदान की गई थी। देवी दुर्गा ने महिषासुर के साथ पूरे नौ दिन युद्ध किया था और अंत में दसवें दिन महिषासुर को मार डाला था। दसवें दिन को दशहरा या विजयदशमी के रूप में कहा जाता है। रामायण के अनुसार भगवान श्री राम ने रावण को मारने के लिए देवी दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए चंडी पूजा की थी।
श्री राम ने दुर्गा पूजा के दसवें दिन रावण को मारा था और तभी से उस दिन को विजयदशमी कहा जाता है। इसीलिए देवी दुर्गा की पूजा हमेशा अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। एक बार देवदत्त के पुत्र कौस्ता ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद अपने गुरु वरतन्तु को गुरु दक्षिणा देने का निश्चय किया हालाँकि उसे 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का भुगतान करने के लिए कहा गया था।
कौस्ता इन्हें प्राप्त करने के लिए राम के पूर्वज रघुराज के पास गया हालाँकि वो विश्वजीत के त्याग के कारण यह देने में असमर्थ थे। इसलिए कौस्ता इंद्र देव के पास गए और इसके बाद वे कुबेर के पास आवश्यक स्वर्ण मुद्राओं की अयोध्या में शानु और अपति पेड़ों पर बारिश कराने के लिए गए।
इस तरह से कौस्ता को अपने गुरु को गुरु दक्षिणा देने के लिए मुद्राएँ प्राप्त हुई थीं। उस घटना को आज के समय में अपति पेड़ की पत्तियों को लूटने की एक परंपरा के माध्यम से याद किया जाता है। इस दिन लोग इन पत्तियों को एक दूसरे को सोने के सिक्के के रूप में देते हैं।
दुर्गा पूजा का महत्व : भारत को मातृभक्त देश कहा जाता है। हम भारत को ही श्रद्धा से भारत माता कहते हैं। भारत देश में देवताओं से ज्यादा देवियों को अधिक महत्व दिया जाता है। सभी देवी देवताओं में माँ दुर्गा को सबसे ऊँचा माना जाता है क्योंकि उन्ही से विश्व को सभी प्रकार की शक्तियाँ मिलती हैं। इसीलिए दुर्गा पूजा का महत्व भी अन्य पूजा-पाठ से बढकर माना जाता है। नवरात्रि या दुर्गा पूजा के त्यौहार का बहुत अधिक महत्व होता है।
नवरात्रि का अर्थ नौ रात होता है। दसवें दिन को विजयदशमी या दशहरे के नाम से जाना जाता है। दुर्गा पूजा एक नौ दिनों तक चलने वाला त्यौहार है। दुर्गा पूजा के दिनों को स्थान , परंपरा , लोगों की क्षमता और लोगों के विश्वास के अनुसार मनाया जाता है। बहुत से लोग इस त्यौहार को पांच , सात या पूरे नौ दिनों तक मनाते हैं।
लोग दुर्गा देवी की प्रतिमा की पूजा षष्टी से शुरू करते हैं और दशमी को खत्म करते हैं। समाज या समुदाय में कुछ लोग दुर्गा पूजा को पास के क्षेत्रों में पंडाल को सजा कर भी मनाते हैं। इस दिन आस-पास के सभी मन्दिर विशेष तौर पर सुबह के समय पूर्ण रूप से भक्तिमय हो जाते हैं। बहुत से लोग इस दिन घरों में भी सुव्यवस्थित ढंग से पूजा करते हैं और आखिरी दिन प्रतिमा के विसर्जन के लिए भी जाते हैं।
लोगों द्वारा देवी दुर्गा की पूजा ताकत और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की जाती है। देवी दुर्गा अपने भक्तों को नकारात्मक उर्जा और नकारात्मक विचारों को हटाने के साथ ही शांतिपूर्ण जीवन देने में मदद करती हैं। इसे भगवान राम की बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी मनाया जाता है। लोग इस दिन को रात के समय रावण के बड़े पुतले को जलाकर और पटाखे जलाकर मनाते हैं।
दुर्गा पूजा का उत्सव : पूजा शुरू होने से लगभग दो महीने पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। तीन से चार महीने पहले से ही मूर्तिकार मूर्तियाँ बनाना शुरू कर देते हैं। बाजारों में दुकाने सजने लगती हैं। हस्तशिल्पी तरह-तरह के सामान और खिलौने बनाने लगते हैं और बाजारों में कपड़े-गहने तथा अन्य चीजें खरीदने-बेचने वालों की भीड़ लग जाती है।
देवी दुर्गा की मूर्ति में उनके साथ दस हाथ और उनका वाहन सिंह होता है। असुरों और पापियों का नाश करने के लिए माँ दुर्गा दस तरह के हथियार रखती हैं। देवी दुर्गा के पास लक्ष्मी, सरस्वती , कार्तिकेय और गणेश जी की मूर्तियाँ भी स्थापित की जाती हैं। दुर्गा पूजा के उत्सव को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
भक्तों के द्वारा यह माना जाता है कि इस दिन देवी दुर्गा ने बैल राक्षस महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। देवी दुर्गा को ब्रह्मा , भगवान विष्णु और शिव जी के द्वारा महिषासुर राक्षस को मारकर दुनिया को इससे आजाद कराने के लिए बुलाया गया था। पहले दिन मंत्रों के साथ देवी का कलश स्थापित किया जाता है। देवी दुर्गा की पूजा अर्चना पूरे दस दिनों तक होती रहती हैं।
देवी दुर्गा ने बहुत दिनों के युद्ध के बाद दसवें दिन उस राक्षस को मार गिराया था जिसे दशहरे के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि का वास्तविक अर्थ देवी दुर्गा और राक्षस महिषासुर के बीच युद्ध के नौ दिन और नौ रातों से है। दुर्गा देवी जी की पूजा के त्यौहार से भक्तों और दर्शकों सहित पर्यटकों की एक स्थान पर बहुत बड़ी भीड़ जुड़ जाती है।
आखिरी तीन दिनों में पूजा का उत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। हर गली मोहल्ले में इसकी एक अलग ही झलक दिखाई देती है क्योंकि शहरों और गांवों में कई जगह माँ दुर्गा की बड़ी-छोटी मूर्तियाँ को बनाया और सजाया जाता है। ये मूर्तियाँ देखने में बहुत ही सुंदर लगती हैं।
बहुत से गांवों में नाटक और रामलीला जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। इन तीन दिनों में पूजा के दौरान लोग दुर्गा पूजा मंडप में फूल , नारियल , अगरबत्ती और फल लेकर जाते हैं और माँ दुर्गा का आशीर्वाद लेते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
दुर्गा पूजा का कारण : नवरात्रियों में देवी दुर्गा की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि यह माना जाता है कि देवी दुर्गा ने 10 दिन और रात तक युद्ध करने के बाद महिषासुर नाम के राक्षस को मारा था। देवी दुर्गा के दस हाथ थे और सभी हाथों में विभिन्न हथियार भी थे। देवी दुर्गा की वजह से सभी लोगों को राक्षस महिषासुर से मुक्ति मिली थी जिसकी वजह से सभी लोग देवी दुर्गा की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं।
दुर्गा पूजा : इस त्यौहार पर देवी दुर्गा की पूरे नौ दिन तक पूजा की जाती है। पूजा के दिन स्थानों के अनुसार अलग-अलग होते हैं। माता दुर्गा के भक्त पूरे नौ दिन तक या केवल पहले या आखिरी दिन उपवास रखते हैं। दसवां दिन विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन देवी दुर्गा ने एक राक्षस के ऊपर विजय प्राप्त की थी।
माता दुर्गा जी की प्रतिमा को सजाकर प्रसाद , जल , कुमकुम , नारियल , सिंदूर आदि को सभी लोग अपनी क्षमता के अनुसार अर्पित करके पूजा करते हैं। ऐसा लगता है जैसे देवी दुर्गा आशीर्वाद देने के लिए सभी के घरों में जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि माता दुर्गा की पूजा करने से आनन्द , समृद्धि की प्राप्ति होती है और अंधकार का नाश तथा बुरी शक्तियाँ खत्म होती हैं।
मूर्ति का विसर्जन : पूजा के बाद लोग पवित्र जल में देवी दुर्गा जी की मूर्ति के विसर्जन के समारोह का आयोजन करते हैं। भक्त अपने घर उदास चेहरों के साथ लौटते हैं और माता से फिर से अगले साल बहुत से आशीर्वाद के साथ आने के लिए प्रार्थना करते हैं।
दुर्गा पूजा के प्रभाव : लोगों की लापरवाही के कारण यह पर्यावरण पर बड़े स्तर पर प्रभाव डालता है। देवी दुर्गा की प्रतिमा को बनाने और रंगने में जिन पदार्थों का प्रयोग किया जाता है वे स्थानीय पानी के स्त्रोतों में प्रदुषण का कारण बनते हैं।
इस त्यौहार से पर्यावरण के प्रभाव को कम करने के लिए सभी को प्रयत्न करने चाहिएँ। भक्तों को सीधे ही मूर्ति को पवित्र गंगा के जल में विसर्जित नहीं करना चाहिए और इस परंपरा को निभाने के लिए कोई अन्य सुरक्षित तरीका निकालना चाहिए।
उपसंहार : दुर्गा पूजा का उत्सव वास्तव में शक्ति पाने की इच्छा से मनाया जाता है जिससे विश्व की बुराईयों का नाश किया जा सके। जिस प्रकार देवी दुर्गा ने सभी देवी-देवताओं की शक्ति को इकट्ठा करके दुष्ट राक्षस महिषासुर का नाश किया था और धर्म को बचाया था उसी प्रकार हम अपनी बुराईयों पर विजय प्राप्त करके मनुष्यता को बढ़ावा दे सकें यही दुर्गा पूजा का यही संदेश होता है।
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