जन्माष्टमी पर निबंध

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जन्माष्टमी पर निबंध

भूमिका : सभी जातियाँ अपने महापुरुषों के जन्म दिवस को बड़ी धूमधाम से मनाती आई है। जन्माष्टमी का त्यौहार सभी हिन्दुओं के लिए एक बहुत ही प्रमुख त्यौहार होता है और इसे हर साल मनाया जाता है। इसे भगवान कृष्ण की जयंती के रूप में मनाया जाता है इसी लिए इसे कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं।

इसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे – कृष्णाष्टमी , गोकुलाष्टमी , अष्टमी रोहिणी , श्री कृष्ण जयंती , श्री जयंती आदि। भगवान कृष्ण हिन्दू धर्म के भगवान थे। उन्होंने धरती पर मानव रूप में जन्म लिया था जिससे वे मानव जीवन को बचा सकें और मानव के दुखों को दूर कर सकें।

कुछ लोगों का मानना है कि कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे। लेकिन अधिकांश लोग इसे जन्माष्टमी ही कहते हैं। जन्माष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को पूरी दुनिया में बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

जन्माष्टमी को सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में रहने वाले भारतीय भी बड़ी आस्था और उल्लास के साथ मनाते हैं। श्री कृष्ण युगों-युगों से हमारी आस्था के केंद्र रहे हैं। वे कभी तो यशोदा माँ के लाल होते हैं तो कभी ब्रज के नटखट कान्हा।हिन्दू इस त्यौहार को भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण के जन्म के रूप में मनाते हैं।

दिन प्रतिदिन उनके भक्तों की संख्या बढती ही जा रही है। जब संसार में पाप, अत्याचार, द्वेष और घृणा अधिक बढ़ जाते हैं , धर्म का नाश होने लगता है , सज्जन और दीन दुखियों को सताया जाने लगता है तब इस संसार में एक महान शक्ति अवतार लेती है और धर्म की स्थापना करती है।

श्री कृष्ण ने भी धरती पर तभी अवतार लिया था जब कंस का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया था और दीन दुखियों को सताया जाने लगा था। उनका स्वरूप देखने में बहुत ही आकर्षक लगता था जिस वजह से सारी गोपियाँ उन पर मोहित थीं। उनके हाथों में बांसुरी और सिर पर मोरपंख लगा हुआ था।

श्री कृष्ण का जन्म : श्री कृष्ण का जन्म रात के 12 बजे उनके मामा कंस के कारागार में हुआ था। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी श्रावण माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन रोहिणी नक्षत्र में पडती है। इनके पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम देवकी था। यह त्यौहार अगस्त या सितम्बर में पड़ता है।

कृष्ण जन्माष्टमी से एक दिन पहले सप्तमी के दिन लोग वृत रखते हैं और आधी रात 12 बजे कृष्ण का जन्म होने के बाद घंटियाँ बजाकर श्री कृष्ण की आरती की जाती है। इसके बाद लोग अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों में प्रसाद बाँटकर ख़ुशी प्रकट करते हैं। उसके बाद वे खुद खाना खाते हैं। इस तरह से पूरे दिन वृत रखकर यह त्यौहार मनाया जाता है।

पौराणिक कथा : देवकी कंस की बहन थी और कंस मथुरा का राजा था। उसने मथुरा के राजा और अपने पिता अग्रसेन को जेल में बंदी बना लिया और खुद राजा बन गया था। कंस को अपनी बहन प्राणों से भी प्रिय थी। देवकी का विवाह कंस के मित्र वसुदेव के साथ हुआ था।

कंस बहुत ही अत्याचारी था। जब वह अपनी बहन देवकी को विवाह के बाद रथ पर उसके ससुराल छोड़ने जा रहा था तब एक आकाशवाणी हुई – ‘ जिस बहन को तुम इतने प्यार से विदा कर रहे हो उसकी आठवीं संतान तुम्हारी मौत का कारण बनेगी ‘। इस आकाशवाणी को सुनकर कंस घबरा गया था।

उसने अपनी बहन और उसके पति को कारखाने में बंद कर दिया था। देवकी को सात पुत्र हुए लेकिन कंस ने उन्हें बहुत ही बेहरमी से मार दिया। जब देवकी के आठवें पुत्र का जन्म हुआ था तब कारागार के सारे पहरेदार सोये हुए थे। वसुदेव अपने बच्चे को गोकुल के नन्द बाबा के घर छोड़ आये और उनकी लडकी को लेकर लौट आये।

जब सुबह हुई तो वासुदेव ने उस कन्या को कंस को सौंप दिया था। कंस ने जैसे ही उसे पत्थर पर पटका तो वह लडकी उडकर आकाश में चली गई और जाते-जाते उसने कहा कि तुझे मारने वाला अभी जीवित है और गोकुल पहुंच चुका है। इस आकाशवाणी को सुनकर कंस बहुत घबरा गया था।

उसने कृष्ण को मारने के लिए बहुत प्रयत्न किये। उसने बहुत से राक्षसों को जैसे – पूतना , वकासुर को कृष्ण को मरने के लिए भेजा लेकिन कोई भी कृष्ण को मार नहीं पाया। श्रीकृष्ण ने सभी की हत्या कर दी थी।

जन्माष्टमी का महत्व : हम लोग पहले से ही जानते हैं कि जैसे ही विवाहित जीवन शुरू होता है। हर दंपत्ति की इच्छा होती है कि पूरे जीवन के लिए उसके पास एक अनूठा बच्चा हो। हालाँकि सभी जोड़ों को यह आशीर्वाद मिलता है लेकिन किसी को जल्दी हो जाता है और किसी को कुछ कारणों की वजह से देर में होता है।

मातृत्व उपहार के लिए सभी विवाहित औरतें वृत रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि जो जन्माष्टमी के दिन पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इस वृत को पूरा करती हैं उन्हें इस वृत का फल एक बच्चे के आशिर्वाद के रूप में मिलता है। जो महिलाएं अविवाहित होती हैं वो भविष्य में एक अच्छे बच्चे की कामना के लिए इस दिन का वृत रखती हैं।

जब पति और पत्नी दोनों पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ वृत रखते हैं तो वह अधिक प्रभावकारी होता है। लोग सूर्योदय से पहले उठकर नहा-धोकर साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर तैयार हो जाते हैं। उसके बाद ईष्ट देव के सामने पूरी भक्ति और विश्वास के साथ पूजा करते हैं।

वे कृष्ण के मन्दिर जाते हैं और प्रसाद , धूप , बत्ती , दिया , फूल , फल , भोग और चन्दन चढाते हैं। वे भक्त गीतों को गाते हैं और संतान गोपाल मन्त्र का भी जाप करते हैं। बाद में वे कृष्ण जी की मूर्ति की घी के दिए से आरती उतारते हैं और उनसे संतान की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

कुछ लोग कृष्ण के जन्म और पूजा के बाद वृत तोड़ते हैं लेकिन कुछ लोग सूर्य के उदय होने पर वृत खोलते हैं। जब भगवान का जन्म हो जाता है उसके बाद भक्ति और पारंपरिक गीत गाये जाते हैं। अगर हम पूरी भक्ति और विश्वास के साथ प्रार्थना करते हैं भगवान श्री कृष्ण उसके सभी पापों और कष्टों को दूर कर देते हैं और हमेशा मानवता की रक्षा करते हैं।

कब और क्यों मनायी जाती है : भगवान श्रीकृष्ण के जन्म दिन को बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है जन्माष्टमी को श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। जन्माष्टमी रक्षाबंधन के बाद भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आती है। श्रीकृष्ण देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र थे।

मथुरा नगरी का राजा कंस था और वह बहुत अत्याचारी था। कंस के अत्याचार दिनों-दिन बढ़ते ही जा रहे थे। एक समय पर आकाशवाणी हुई कि उसकी बहन देवकी का आठवाँ पुत्र उसका वध करेगा। यह आकाशवाणी सुनकर कंस ने अपनी बहन और उसके पति को कारागार में डाल दिया।

कंस ने एक-एक करके देवकी के सात शिशुओं को मौत के घाट उतार दिया। जब देवकी को आठवीं संतान हुई तो भगवान विष्णु ने वासुदेव को यह आदेश दिया कि वे कृष्ण को गोकुल के यशोदा माँ और नन्द बाबा के पास पहुँचा दे जहाँ पर वह कंस से सुरक्षित रह सकेगा। श्री कृष्ण का पालन-पोषण यशोदा माँ और नन्द बाबा की देखरेख में हुआ। उनके जन्म की ख़ुशी की वजह से ही हर साल जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाने लगा।

दही-हांड़ी प्रतियोगिता : जन्माष्टमी के दिन देश में कई जगहों पर मटकी फोड़ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है। दही हांड़ी में सभी जगह के बालक भाग लेते हैं। हांड़ी को छाछ और दही से भर दिया जाता है और इसे एक रस्सी की मदद से आसमान में लटका दिया जाता है।

इस मटकी को फोड़ने के लिए बालकों द्वारा प्रयास किया जाता है। दही हांड़ी प्रतियोगिता में जो टीम विजयी होती है उसे उचित इनाम दिया जाता है। जो टीम मटकी को फोड़ने में सफल हो जाती है वह टीम इनाम की हकदार होती है।

लोक रक्षक श्रीकृष्ण : ऐसा कहा जाता है कि जब कृष्ण जी का जन्म हुआ था तब कारखाने के सारे पहरेदार सो गये थे और देवकी और वासुदेव की बेड़ियाँ अपने आप ही खुल गयीं थीं और कारखाने के दरवाजे अपने आप ही खुल गये थे। तब एक आकाशवाणी हुई कि कृष्ण को जल्द से जल्द गोकुल पहुँचा दिया जाये।

उसके बाद कृष्ण के पिता उन्हें सूप में सुलाकर वर्षा ऋतु में उफनती हुई नदी को पर करके गोकुल गये थे और कृष्ण को नन्द के यहाँ छोडकर आये थे। सब लोग इसको कृष्ण का ही चमत्कार मानते हैं। नहीं तो कंस ने कृष्ण के सातों भाइयों को मार दिया था। फिर कृष्ण ने बचपन में कंस और उसके राक्षसों को कैसे मार दिया था।

इसी वजह से लोग उन्हें भगवान का अवतार मानते थे। इसी वजह से लोग उनकी पूजा अर्चना करते हैं। श्री कृष्ण ने गोकुल में रहकर अनेक बाल लीलाएं की थीं। वे अपने ग्वाले दोस्तों के साथ गाय चराने के लिए जाते थे। गोकुल के सभी लोग कृष्ण से बहुत प्यार करते थे। कृष्ण भी सब की सहायता करने के लिए हमेश तत्पर रहते थे।

श्री कृष्ण को गेंद का खेल बहुत प्रिय था। उन्होंने इंद्र के घमंड को चूर-चूर कर दिया था। उन्होंने बड़ी-बड़ी विपत्तियों से ब्रज को बचाया था। श्री कृष्ण ने लोक रक्षा के लिए बहुत से काम किये थे। इसी वजह से वे जनता में बहुत लोकप्रिय हो गये थे।उन्होंने उन्हें अपना मित्र बनाया था जिन्हें समाज में छोटा समझा जाता है।

उन्हीं मित्रों के साथ उन्होंने अपना जीवन बिताया था। उन्होंने लोगों को गायों का महत्व बताया था। गायों की रक्षा और पालन के लिए उन्होंने जनता को उत्साहित किया। इससे खेती की उन्नति भी हुई। इससे गोपालों से लोगों के स्वास्थ्य में बहुत सुधार हुआ। श्री कृष्ण ने कंस का वध किया और उसके बंधन से अपने माता-पिता और नाना को मुक्त किया और अपने नाना को फिर से मथुरा का राजा बनाया था।

मन्दिरों के दृश्य : जिस दिन श्री क्रष्ण जन्माष्टमी होती है उस दिन मन्दिरों को खासतौर पर सजाया जाता है। जिस दिन जन्माष्टमी होती है तब पूरा दिन वृत रखने का विधान होता है। जन्माष्टमी पर सभी लोग 12 बजे तक वृत रखते हैं।जन्माष्टमी के दिन मन्दिरों में झाकियाँ सजाई जाती हैं और भगवान श्री कृष्ण को झूला झुलाया जाता है।

इस दिन रासलीला का भी आयोजन किया जाता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन हर बच्चे के घर के सामने पालने सजाये जाते हैं। वे उस पालने में छोटे से कृष्ण को सुला देते हैं। कंस का कारखाना बनाकर उसमें देवकी और वासुदेव को बैठा देते हैं और कारखाने के बाहर सिपाही तैनात कर देते हैं।

इसी तरह से कृष्ण के आस-पास अन्य खिलौने रख देते हैं। इन्हें देखने के लिए आस-पास से बहुत से लोग आते हैं। उन लोगों के आस-पास मेला सा लग जाता है जहाँ पर जगह अधिक होती है वहाँ पर झूले और खिलौने बेचने वाले भी आ जाते हैं।बच्चे यहाँ पर पलना देखने के साथ-साथ झूला भी झूलते हैं और खिलौने भी खरीदते हैं।

विशेषकर जन्माष्टमी पर बच्चे बहुत ही उत्साहित होते हैं क्योंकि कई तरह के खिलौने खरीदकर उन्हें पालना सजाना होता है। कई जगहों पर कृष्ण लीला भी की जाती है। इसमें मथुरा का जन्मभूमि मन्दिर और बांकेबिहारी का मन्दिर प्रमुख होता है। बच्चे लोगों को बताते थे कि श्री कृष्ण अपने मित्रों से साथ कैसे गाय चराने जाते थे।

गोपियाँ उन्हें कितना प्यार करती थीं। उनकी बांसुरी की धुन को सुनने के लिए वे सारा काम छोडकर भाग खड़ी होती थीं। इस तरह की कई क्रियाओं की झाँकियाँ इस दिन मन्दिरों में दिखाई देती हैं। मथुरा , वृंदावन और ब्रज के अन्य नगरों में यह त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर तीन -चार दिन पहले से ही मन्दिर सजने शुरू हो जाते हैं।जन्माष्टमी के दिन मन्दिर की शोभा चरमोत्कर्ष पर पहुंच जाता है। बिजली से जलने वाले रंगीन बल्बों से मन्दिरों को सजाया जाता है। कहीं-कहीं पर झाँकियाँ निकलती हैं जो गली, मोहल्ले और दुकानों से होती हुई मन्दिर तक पहुंचती हैं।

भक्तगणों का सुबह से तांता लगा रहता है जो आधी रात तक थामे नहीं थमता है।इस दिन समाज सेवक भी मन्दिर के कामों को करवाने में मदद करते हैं।जन्माष्टमी के दिन मन्दिर में इतनी भीड़ होती हैं कि लोगों को लाईनों में खड़े होकर भगवान कृष्ण के दर्शन करने पड़ते हैं। सुरक्षा के लिए मन्दिर के बाहर पुलिस खड़ी की जाती है।

उपसंहार : जन्माष्टमी के दिन वृत रखने का विधान है। लोगों को अपने सामर्थ्य के अनुसार वृत रखना चाहिए। भगवान कोई भी हो वह हम से यह नहीं कहता है कि तुम मेरे लिए भूखे रहो इसी वजह से अपनी श्रद्धा के अनुसार वृत करना चाहिए।अगर आप पुरे वृत में कुछ भी नहीं खायेंगे तो आपके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है।

इसी वजह से हमे श्री कृष्ण के संदेशों को अपनाना चाहिए। जब जब संसार में कष्ट , पाप , अनाचार और भ्रष्टाचार बढ़ता है उसे खत्म करने के लिए कोई न कोई बड़ी शक्ति भी जरुर जन्म लेती है। इसीलिए मनुष्य को हमेशा सत्कर्म में ही लगे रहना चाहिए।

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