रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध
भूमिका : किसी भी देश की संस्कृति और सभ्यता मात्र घटनाओं, तिथियों, सिद्धांतों और नियमों की स्थापना से रूप नहीं लेती है बल्कि उसका सत्य और यतार्थ उन मनीषियों के जीवन और कार्य से रूपायित होते हैं जो मानवता का मार्ग दर्शन करते हैं। वे देश और काल की परिधि से भी नहीं घिरे होते हैं।
वे क्षुद्र बंधनों में कभी नहीं बंधते हैं। रविन्द्र नाथ टैगोर जी ने अपनी काव्यकला से संसार भर में ख्याति प्राप्त कर नोबल पुरस्कार प्राप्त करके भारतीय कविता और कवियों का मन बढ़ाया था। आज के समय में उन्हें कवि गुरु के नाम से संबोधित किया जाता है।
रविन्द्र नाथ टैगोर जी को विश्वविख्यात साहित्यकार, चित्रकार, पत्रकार, अध्यापक, तत्वज्ञानी, संगीतज्ञ, दार्शनिक, शिक्षाशास्त्री के रूप में आज भी याद किया जाता है। रविन्द्र नाथ टैगोर जी ने बंगाल में नवजागृति लाने में अपना एक महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
रविन्द्र नाथ जी को उन लोगों की पंक्ति में गिना जाता है जिन्होंने देश के नाम को पूरी दुनिया में अमर कर दिया था। विश्व साहित्य के अद्वितीय योगदान देने वाले महान कवि उपन्यासकार और साहित्य के प्रकाश स्तम्भ के रूप में टैगोर जी को आज भी याद किया जाता है। सही अर्थों में कहा जाये तो वे एक ऐसे प्रकाश स्तम्भ थे जिन्होंने अपने प्रकाश से पूरे संसार को आलोकित किया था।
जन्म : रविन्द्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कलकत्ता में हुआ था। इनका पूरा नाम रविन्द्र नाथ ठाकुर था। इनके पिता का नाम देबेन्द्रनाथ टैगोर था और माता का नाम सारदा देवी था। इनका जन्म कलकत्ता के एक धनी परिवार में हुआ था। ये अपने पिता की 15 संतानों में से 14 नंबर की संतान थे।
शिक्षा : रविन्द्र नाथ जी को सबसे पहले ओरियंटल सेमेनरी स्कूल में भर्ती करवाया गया था लेकिन उनका वहां पर मन न लगने की वजह से उन्हें वहाँ से घर वापस लाया गया था। रविन्द्र नाथ जी की अधिकांश शिक्षा घर पर ही हुई थी। रविन्द्र नाथ जी को संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी, चित्रकला और संगीत की शिक्षा के लिए अलग-अलग अध्यापकों को घर पर ही नियुक्त किया गया था।
सन् 1868 से सन् 1874 तक इन्होने स्कूली शिक्षा प्राप्त की थी। सन् 1874 के बाद इनकी स्कूली शिक्षा बंद हो गई थी। 17 साल की उम्र में वकालत की पढाई के लिए इन्हें इनके भाई के साथ इंग्लेंड भेजा गया था। वहां पर इन्होने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में कुछ समय तक हेनरी माले नामक अध्यापक से अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की थी। वे वहां पर एक साल तक रहे थे।
विवाह : रविन्द्र नाथ टैगोर जी का विवाह 9 दिसंबर, 1883 को मृणालिनी देवी से हुआ था। रविन्द्र नाथ जी ने सन् 1910 में अमेरिका से लौटने पर प्रतिमा देवी नाम की एक विधवा से विवाह करके ‘विधवा विवाह’ की प्रेरणा देने की कोशिश की थी। इससे पहले ही उनकी पहली पत्नी का देहांत हो गया था।
जीवन : रविन्द्र नाथ के परिवार के लोग सुशिक्षित और कला प्रेमी थे। माता जी की मृत्यु के बाद इनकी खेल-कूद में रूचि नहीं रही थी। वे अकेले बैठे सोचते रहते थे, अपनी बात किसी से नहीं कहते थे और अपनी बातों को कविता के रूप में लिखने का प्रयास करते थे।
13 वर्ष की उम्र में उनकी सबसे पहली कविता पत्रिका में छपी थी। टैगोर जी एक दार्शनिक, कलाकार और समाज सुधारक भी थे। कलकत्ता के निकट इन्होने एक स्कूल की स्थापना की थी जो आज विश्व भारती के नाम से बहुत प्रसिद्ध है। रविन्द्र नाथ जी ने उस स्कूल में खुद एक अध्यापक के पद पर कार्य किया था।
उनका यह विद्यालय उदारता एवं विभिन्न संस्कृतियों का एक संगम स्थल है। इस विद्यालय को विश्व की अद्वितीय शैक्षिक संस्था के रूप से भी जाना जाता है। इन्हें अभिनय और चित्रकला का बड़ा शौक था। ये दर्शनशास्त्र से भी बहुत अधिक लगाव रखते थे। रविन्द्र नाथ जी सन् 1905 तक एक बहुत बड़े कवि के रूप में प्रसिद्ध हो गये थे।
रविन्द्र नाथ जी सन् 1906 में गठित राष्ट्रिय शिक्षा परिषद से जुड़े जिसमें उन्होंने शिक्षा के सुधार के विषय में अच्छी सलाह सरकार तक पहुंचाई थी। सन् 1907 में वे बंगीय साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में चुने गये थे। रविन्द्र नाथ जी एक सच्चे और महान देशभक्त भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से देशभक्ति की भावना को सभी के ह्रदय में जागृत किया था।
जिसके फलस्वरूप वे स्वतंत्रता के लिए प्रेरित हो उठे थे। सन् 1905 के बंग-भंग के दौरान वे विभिन्न आंदोलनों में भाग लेते रहे थे। जब सन् 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था तो उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दी गई सर की उपाधि को वापस लौटा दिया था। टैगोर जी स्वतंत्रता को मानव की प्रकृति और अधिकार मानते थे। स्वदेशी आंदोलन में उनकी भूमिका बहुत ही सक्रिय रही थी।
व्यक्तित्व : रविन्द्र नाथ टैगोर जी विश्व कवि ही नहीं थे वे देश और मानवता के पुजारी भी थे। रविन्द्र नाथ जी एक चित्रकार, संगीतज्ञ, पत्रकार, अध्यापक, दार्शनिक, शिक्षाशास्त्री, महान प्रकृति प्रेमी और साहित्यकार भी थे। रविन्द्र नाथ जी साहित्यकार व्यक्तित्व में विशेषता यह थी कि उनकी अधिकांश रचनाएँ बंगला में ही लिखी गई थीं।
इन रचनाओं में प्राकृतिक दृश्यों और वातावरण का मनमोहक संसार ही चित्रित नहीं है बल्कि उनमें मानवीयता का भी उद्घोष है। रविन्द्र नाथ जी की साहित्यिक प्रतिभा सर्वतोमुखी थी। रविन्द्र नाथ जी ने कहानियां, नाटक, उपन्यास, निबंध और कविताएँ भी लिखी थीं।
उन्होंने अपनी रचनाओं में मानवीय दुखों और निर्बलताओं को बहुत ही कलात्मक ढंग से लिखा है। वे किसी भी सिद्धांत के पोषक नहीं हैं। मन और आत्मा से लिखी गईं उनकी रचनाएँ कहीं-कहीं दार्शनिक हो चली हैं। वे राष्ट्रीयता और विश्वमानवता के पोषक थे। वे गाँव के विकास को देश का समूचा विकास मानते थे।
कार्यकलाप : जब ये 13 साल के थे तब इनकी पहली कविता अभिलाषा एक तत्वभूमि नाम की पत्रिका में छपी थी। इंग्लेंड से वापस आने के बाद वे घर के शांतपूर्ण वातावरण में बंगला भाषा में लिखने का कार्य शुरू करने लगे थे। उन्हें इस कार्य में बहुत जल्दी प्रसिद्धि प्राप्त हुई थी।
रविन्द्र नाथ जी ने अनेक कविताएँ, लघु कहानियाँ, उपन्यास, नाटक और निबंध लिखे थे। इनकी सभी रचनाएँ सर्वप्रिय हुई थीं। इनकी बहुत सी रचनाओं का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में किया जा चुका है। रविन्द्र नाथ जी ने सन् 1877 तक अनेक रचनाएँ की थीं जिनका प्रकाशन अनेक पत्रिकाओं में हुआ था।
सन् 1892 में रविन्द्र नाथ जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता, घरेलू उद्योंगों के विषयों पर बहुत ही गंभीर लेख लिखे थे। इसी के साथ ही उनका कविता लेखन भी चलता रहा था। सन् 1907 से पहले उनका गोरा नामक उपन्यास प्रकाशित हो गया था। अपनी पत्नी के देहांत से पहले उन्होंने गीतांजली नामक ग्रंथ की रचना कर दी थी और उसका अंग्रेजी अनुवाद भी कर दिया था।
शिक्षा दर्शन : टैगोर जी एक महान शिक्षाशास्त्री थे। रविन्द्र नाथ जी के अनुसार सर्वोत्तम शिक्षा वही है जो संपूर्ण दुनिया के साथ-साथ हमारे जीवन का भी सामंजस्य स्थापित करती है। शिक्षा का काम मनुष्य को इस स्थिति तक पहुंचाना है। रविन्द्र नाथ जी ने शिक्षा को विकास की प्रिक्रिया माना है और उसे मनुष्य के शारीरिक, बौद्धिक, आर्थिक, व्यावसायिक तथा आध्यात्मिक विकास का आधार माना है।
रविन्द्र नाथ जी ने शिक्षा को प्राचीन भारतीय आदर्श का स्थान दिया है। टैगोर जी के अनुसार वही शिक्षा श्रेष्ठ है जो मनुष्य को आध्यात्मिक दर्शन देकर जीवन-मरण से मुक्ति दिलाती है। उनके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य बालक को पूर्ण जीवन की प्राप्ति कराना है जिससे बालक का पूर्ण विकास हो सके।
शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक के समस्त अंगों और इन्द्रियों को प्रशिक्षित कर जीवन की वास्तविकता से परिचित करवाना, उसे पर्यावरण की जानकारी देकर उससे अनुकूलन स्थापित करवाना, बालक को धैर्य, आत्मानुशासन, नैतिक एवं आध्यात्मिक गुणों की शिक्षा देना होता है।
टैगोर जी का मानना था कि पेड़ों पर चढना, तालाबों में डुबकियाँ लगाना, पेड़ों से फल तोडना, फूलों को तोडना, प्रकृति के साथ अनेक तरह की अठखेलियाँ करने से बालक के शरीर के साथ-साथ मस्तिष्क के आनंद और बचपन के स्वाभाविक आवेगों की भी संतुष्टि होती है। विद्यालयों को प्रकृति के सान्निध्य में होना चाहिए। उनका विकास केवल जीव मात्र की सेवा में होना चाहिए।
बालक वृक्षों के माध्यम से पशु-पक्षी, जल तथा हवा के रहस्यों को प्राप्त कर सकें। रविन्द्र जी के पाठ्यक्रम में इतिहास, विज्ञान, प्रकृति, भूगोल, साहित्य, नाटक, भ्रमण, बागवानी, प्रयोगशाला, ड्राइंग, खेलकूद, समाज सेवा के विषय सहित बहुत से क्रिया प्रधान पाठ्यक्रम शामिल थे। उन्होंने भ्रमण को ही उत्तम शिक्षा की विधि माना था। उन्होंने शिक्षा को एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान दिया था।
विद्यालयों को प्रकृति और समाज के बीच संतुलन स्थापित करने वाला होना चाहिए। रविन्द्र नाथ जी ने शिक्षा के सर्वोत्तम आदर्शों को स्थापित करने के लिए लगातार संघर्ष किया था। रविन्द्र नाथ जी ने शिक्षा के क्षेत्र में नवीन प्रयोगों को करके उसे आदर्श जीवन का एक सजीव प्रतिक बना दिया था। वे भारतीय संस्कृति के अतीत और गौरव के संरक्षक थे। रविन्द्र नाथ जी ने देश के कोने-कोने में भारतीय सांस्कृतिक आदर्शों का प्रचार भी किया था।
सम्मान व पुरस्कार : रविन्द्र नाथ जी की साहित्य सेवाओं के लिए उन्हें सन् 1913 को नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
मृत्यु : रविन्द्र नाथ जी की मृत्यु 7 अगस्त, 1941 को कलकत्ता में किडनी इंफेक्शन की वजह से हुई थी।
उपसंहार : महान व्यक्तित्व केवल अपनी प्रगति तक सीमित और संतुष्ट नहीं रहते हैं। उनका ध्येय पूरी मानव जाति के कल्याण से होता है। आज के समय में जब भी राष्ट्रगान के मधुर स्वर कानों में पड़ते हैं तो सभी को कविगुरु रविन्द्र नाथ जी की याद आ जाती है। भारत के इतिहास में रविन्द्र नाथ जी को युगों तक याद किया जायेगा।
रविन्द्र नाथ जी का जीवन साहित्यकार, शिक्षाशास्त्री, अध्यापक और एक दार्शनिक के रूप में देश के लोगों को प्रेरणा देता रहेगा। गाँधी जी को राष्ट्रपति की उपाधि रविन्द्रनाथ टैगोर जी ने दी थी। टैगोर जी की मृत्यु पर गाँधी जी ने कहा था – ‘हमने केवल एक विश्वकवि को नहीं बल्कि एक राष्ट्रवादी मानवता के पुजारी को खो दिया।’
उन्होंने शांतिनिकेतन के रूप में राष्ट्र के लिए नहीं बल्कि पूरे संसार के लिए अपनी एक विरासत छोड़ी है। रविन्द्र नाथ जी ने सामाजिक और सांस्कृतिक धरातल पर जन जागरण और सेवा का क्षेत्र अपनाया और साहित्य सृजन से इस भाव की कलात्मक अभिव्यक्ति भी की थी। रविन्द्र नाथ जी समाज की रचना के पक्षपाती रहे थे।
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