ईंधन ( Fuel )
जो पदार्थ जलने पर ऊष्मा और प्रकाश उत्पन्न करते है ईंधन कहलाते है | ईंधन मुख्तय: तीन प्रकार के होते है –
- ठोस ईंधन ( Solid fuels ) – ये ईंधन ठोस रूप में होते है तथा जलाने पर कार्बनडाईऑकक्साइड , कार्बन मोनो ऑक्साइड व ऊष्मा उत्पन्न करते है | लकड़ी , कोयला आदि ठोस ईंधन होते है |
- द्रव ईंधन ( Liquid fuels ) – ये ईंधन विभिन्न प्रकार के हाइड्रोकार्बन के मिश्रण से बने होते है तथा जलाने पर कार्बन डाई ऑक्साइड व जल का निर्माण करते है जैसे – कैरोसिन , पेट्रोल , डीजल , एल्कोहाल आदि |
- गैस ईंधन ( Gas fuels ) – जिस प्रकार ठोस द्रव ईंधन जलाने पर ऊष्मा उत्पन्न करते है उसी प्रकार कुछ एसी गैस है जो जलने पर ऊष्मा उत्पन्न करती है | गैस ईंधन द्रव व ठोस ईंधन की अपेक्षा अधिक सुविधाजनक होते है व पाइपो द्वारा एक स्थान से दुसरे स्थान एक सरलता पूर्वक भेजे जा सकते है | इसके अतिरिक्त गैस ईंधन की ऊष्मा सरलतापूर्वक नियंत्रित की जा सकती है |
- प्रोड्यूसर गैस ( Goal Gas ) – प्रोड्यूसर गैस मुख्यत: नाइट्रोजन व कार्बन मोनोऑक्साइड गैसों का मिश्रण है | इसमें 60% नाइट्रोजन 30% कार्बन मोनोऑक्साइड व शेष कार्बन डाईऑक्साइड व मिथेन गैस होती है | इसका प्रयोग ईंधन तथा काँच व इस्पात बनाने में किया जाता है |
- वाटर गैस ( water gas ) – वाटर गैस कार्बन गैसों मोनोऑक्साइड ( CO ) व हाइड्रोजन ( H2 ) गैसों का मिश्रण होती है | इस गैस से बहुत अधिक ऊष्मा की मात्रा प्राप्त होती है | इसका प्रयोग अपचायक के रूप में एल्कोहाल , हाइड्रोजन आदि के औधोगीकरण निर्माण में होता है |
- प्राकृतिक गैस – यह पेट्रोलियम कुँआ से निकलती है इसमें 95% हाइड्रोकार्बन होता है जिसमे 80% मीथेन रहता है | घरो में प्रयुक्त होने वाली द्रवित प्राक्रतिक गैस को एल. पी. जी. कहते है | यह ब्युटेन एवं प्रोपेन का मिश्रण होता है जिसे उच्च दाब पर द्रवित करके सिलेंडरो में भरा जाता है | एल. पी. जी. अत्यधिक ज्वलनशील होती है | अत: इसमें होने वाली दुर्घटना से बचने के लिए इसमे सल्फर के यौगिक ( मिथाइल मरकॉप्टेन ) को मिला देते है , ताकि इसके रिसाव की इसकी गंध से पहचान लिया जावे |
- गोबर गैस ( bio-gas ) – गीले गोबर ( पशुओ के मल ) के सड़ने पर ज्वलनशील मिथेन-गैस बनती है जो वायु लो उपस्थिति में सुगमता से जलती है | गोबर गैस संयत्र में शेष रहे पदार्थ का उपयोग कार्बनिक खाद के रूप में किया जाता है |
- सी. एन. जी. ( Compressed Natural gas ) – सी. एन. जी. में 80-90% मात्रा मिथेन गैस होती है | यह के प्रकार की हाइड्रोकार्बन मिश्रित गैस है | यह गैस पेट्रोलियम कुंओ से स्वत: निकलती है |अत: इसे प्राक्रतिक गैस कहा जाता है | इसका प्रयोग वाहनों में ईंधन के रूप में किया जाता है | भारत में प्रथम सी. एन. जी. स्टेशन तमिलनाडू के नागपट्टम नामक स्थान पर स्थापित किया गया था |
- एक अच्छे ईंधन में निम्लिखित गुण होने चाहिए –
- वह सस्ता एवं आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए |
- उसका उष्मीय मान उच्च होना चाहिए |
- जलने के बाद उससे अधिक मात्रा में अपशिष्ट पदार्थ नहीं बचना चाहिए |
- जलने के दौरान या बाद कोई हानिकारक पदार्थ नहीं बचना चाहिए |
- उसका जमाव . परिवहन आसान होना चाहिए |
- उसका जलना नियंत्रित होना चाहिए |
- उसका प्रज्वलन ताप ( ignition temp. ) निम्न होना चाहिए |
किसी भी अच्छे ईंधन का उष्मीय मान अधिक होना चाहिए | सभी ईंधनो में हाइड्रोजन का उष्मीय मान सबसे होती है परन्तु सुरक्षित भण्डारण की सुविधा नहीं होने के कारण उपयोग आमतौर पर नहीं किया जाता है |
दहन –
दहन के रासायनिक अभिक्रिया है जिसमे पदार्थ ऑक्सीकरण से संयोग कर ऊष्मा तथा प्रकाश उत्सर्जित करता है जैसे –
2Mg + o2 = 2Mgo + उष्मा + प्रकाश
4Na + o2 = 2Na2O + उष्मा + प्रकाश
CH4 + 2O2 = CO2 + 2H2 + उष्मा + प्रकाश
दहन की क्रिया ऑक्सीकरण है | सभी दहन ऑक्सीकरण है लेकिन सभी ऑक्सीकरण दहन नहीं है | इसका कारण यह है की अभी ऑक्सीकरण अभिक्रियाओ में कोई आवश्यक नहीं है की ऊष्मा तथा प्रकाश उत्सर्जित हो ही |
दहन के लिए आवश्यक शर्ते –
दहन की अभिक्रिया के लिए निम्न तीन शर्ते आवश्यक है –
- दहनशील पदार्थ की उपस्तिथि |
- दहन के पोषक पदार्थ की उपस्तिथि |
- ज्वलन-ताप की उपस्तिथि
दहन के विभिन्न प्रकार –
दहन मुख्यत: पांच प्रकार के होते है –
- मन्द दहन – ऐसा दहन जिसमे ऊष्मा एवं प्रकाश बहुत ही कम उत्सर्जित होता है मंद दहन कहलाता है | मंद दहन में कभी-कभी प्रकाश उत्पन्न होता ही नहीं है | जैसे – लोहे पर जंग लगना , सांस लेने की क्रिया |
- द्रुत दहन – ऐसा दहन जिसमे ऊष्मा तथा प्रकाश काफी तीव्रता से उत्सर्जित होता है | उसे द्रुतदहन कहते है जैसे – पेट्रोल के पास जलती वस्तु को ले जाना |
- उध्दहन – उध्दहन एक ऐसा द्रुत दहन है जो ज्वाला के साथ उत्पन्न होता है | जैसे – मैग्नीशियम के फ़ीते का जलना |
- स्वत: दहन – ऐसा दहन जिसमे बाहर से ऊष्मा देने की आवश्कता नहीं पडती है स्वत: दहन कहलाता है | जैसे- कोयले की खानों में आग लगना |
- विस्फोटक – ऐसा दहन जिसमे ऊष्मा एवं प्रकाश उत्सर्जित होने के अलावा बड़ी तेजी से आवाज भी उत्पन्न होती है विस्फोटक कहलाता है | जैसे – हाइड्रोजन तथा क्लोरिन गैस के मिश्रण का जलना |
अपस्फोटन ( Knocking ) ओक्टेन संख्या ( Octane Number ) – कुछ ईंधन ऐसे होते है जिनका ज्वलन समय से पहले हो जाता है जिससे ऊष्मा पूर्णतया कार्य में परिवर्तित न होकर धात्विक ध्वनि उत्पन्न करने में नष्ट हो जाती है | यही धात्विक ध्वनि अपस्फोटन कहलाती है | ऐसे ईंधन जिनका अपस्फोटन अधिक होता है उपयोग के लिए उचित नहीं माने जाते है | अपस्फोटन कम करने के लिए ऐसे ईंधनो में अपस्फोटोरोधी यौगिक मिला दिए जाते है जिससे इनका अपस्फोटन कम हो जाता है | सबसे अच्छा अपस्फोटोरोधी योगिक टेट्रा एथिल व्यक्त किया जाता है |\ किसी ईंधन जिसकी ओक्टेन संख्या जितनी अधिक होगी उसका अपस्फोटन उतना ही कम होता है तथा वह उत्तम ईंधन माना जाताहै |
कोयला – कार्बन निम्न कोटि का कोयला है जिसे जलाने पर राख और धुवा निकलता है | इसमें कार्बन की मात्रा 65% से 60% तक होती है |
लिग्नाईट कोयला – इस में जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है | इसका रंग भूरा होता है | इसमें कार्बन की मात्रा 65% से 70% तक होती है |
बिटुमिनस कोयला – इसका प्रयोग धरेलू कार्यो के होता है | इसे मुलायम कोयला भी कहा जाता है | इसमें कार्बन की मात्रा 70% से 85% तक होती है |
एन्थ्रासाईट कोयला – इसमें कार्बन की मात्रा 85% से भी अधिक रहती है | यह कोयले की सबसे उत्तम कोटि है |
कार्बन एवं उसके यौगिक
- कार्बन – कार्बन एक अधातु है जो प्रक्रति में मुक्त तथा अनेक औगिको के रूप में पाया जाता है | प्रकृति में कार्बन ही के ऐसा तत्व है जिसके सबसे अधिक यौगिक पाए जाते है | कार्बन अपररूपता प्रदर्शित करता है | यह क्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलिय दोनों रूपों में पाया जाता है | हीरा तथा ग्रेफाईट कार्बन के क्रिस्टलीय अपरूप है जबकि पत्थर . लकड़ी का कोयला , हड्डी आदि इसके क्रिस्टलीय रूप है | वायुमंडल में कार्बन , कार्बन डाई ऑक्साइड के रूप में पाया जाता है | इसके अतिरिक्त यह सभी जीवो जीवधारियो पेड़-पौधों चट्टानों आदि में पाया जाता है |
- कार्बन डाईऑक्साइड – यह एक रंगहीन गंधहीन गैस है | जिसका जलीय विलयन
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