ग्रंथियां (Glands)
किसी जीव के उस अंग को कहते हैं जो हार्मोन, दूध आदि का संश्लेषण करती हैं। इस लेख में मानव शरीर की ग्रंथियों से सम्बंधित जानकारी दी गई है। जीवों के शरीर में विशेषतया दो प्रकार की हैं। एक वे जिनमें स्त्राव बनकर वाहिनी द्वारा बाहर आ जाता है। दूसरी वे जिनमें बना स्त्राव बाहर न आकर वहीं से सीधा रक्त में चला जाता है। ये अंत: स्त्रावी ग्रंथियाँ कहलाती हैं। कुछ ग्रंथियाँ ऐसी भी हैं जिनमें दोनों प्रकार के स्त्राव बनते हैं। एक स्त्राव वाहिनी द्वारा ग्रंथि से बाहर निकलता है और दूसरा वहीं रक्त में अवशोषित हो जाता है।
शरीर में हॉर्मोन ग्रन्थियों का काम
शरीर में हॉर्मोन ग्रन्थियों का काम बेहद महत्तवपूर्ण होता है। हर हॉर्मोन का शरीर के अंगों के विशिष्ठ उतको में/पर विशिष्ठ कार्य होता है। उदाहरण के लिए अग्न्याश्य ग्रथिं द्वारा निकलने वाला इन्सुलिन खून में शर्करा (शुगर) की मात्रा पर नियंत्रण रखता है। पुरुष हॉर्मोन को यौनिक कार्य को और महिला यौन हॉर्मोन माहवारी चक्र और प्रजनन को नियमेक करते हैं। मस्तिष्क के ठीक नीचे स्थित पीयूष ग्रन्थि शरीर की बाकी सब अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियों का काम नियंत्रित करती है। शरीर में हॉर्मोन के स्तर में बदलाव से शरीर के कामों पर काफी असर पड़ता है। हॉर्मोन ग्रंथियों की कुछ गड़बड़ियाँ काफी आम हैं (जैसे मधुमेह या घेंघा रोग)। इन्हें नज़रअन्दाज़ नहीं करना चाहिए। आजकल कुछ हार्मोन काफी आम तौर पर इस्तेमाल होते हैं। जैसे स्टीरॉएड हॉर्मोनया मुँह से ली जाने वाली गर्भनिरोधक गोली ओरल पिल)। कुछ हॉर्मोन हॉर्मोनक़त्रिम तरीको से वैसे ही बनाए जाते हैं जैसे कि स्टीरॉएड। कुछ हॉर्मोन जानवरों के अंगों से प्राप्त करते हैं जैसे कि इनसुलिन।
हॉर्मोन चिेकित्सा विज्ञान में अब काफी प्रगती हुई है, तथा इसकी शाखा के विशेषज्ञ भी उपलब्ध है। यह ठीक नहीं कि पतला न दिखने के लिये या शरीर गठन के लिये या खेल प्रतियोगिताओं में जीतने के लिये या जोड़ों की बीमारियों के लिये कुछ होर्मोनों का बहुत ही गलत ढंग से इस्तेमाल करते हैं। इस अध्याय में हम हॉर्मोन ग्रंथियों और उससे निकलने वाले हॉर्मोन के कार्य और इनकी मात्रा में गड़बड़ी से होने वाले असर को समझेंगे।
लसिका ग्रंथियाँ
शरीर में सबसे अधिक संख्या लसिका ग्रंथियों की है। वे असंख्य हैं और लसिका वाहिनियों (Lymphatics) पर सर्वत्र जहाँ तहाँ स्थित हैं। अंग के जोड़ों पर तथा उदर के भीतर आमाशय के चारों ओर और वक्ष के मध्यांतराल में भी इनकी बहुत बड़ी संख्या स्थित है। ये वाहिनियों द्वारा परस्पर जुड़ी हुई हैं। वाहिनियों और इन ग्रंथियों का सारे शरीर में रक्तवाहिकाओं के समान एक जाल फैला हुआ है। ये लसिका ग्रंथियाँ मटर या चने के समान छोटे, लंबोतरे या अंडाकार पिंड होते हैं। इनके एक और पृष्ठ पर हलका गढ़ा सा होता है, जो ग्रंथि का द्वार कहलाता है। इसमें होकर रक्तवाहिकाएँ ग्रंथि में आती हैं और बाहर निकलती भी हैं। ग्रंथि के दूसरी ओर से अपवाहिनी निकलती है, जो लसिका को बाहर ले जाती है और दूसरी अपवाहिनियों के साथ मिलकर जाल बनाती है। ग्रंथि को काटकर सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखने से उसमें एक छोटा बाह्य प्रांत दिखाई पड़ता है, जो प्रांतस्थ (कारटेक्स, cortex) कहलाता है। ग्रंथि में आने वाली वाहिकाएँ इसी प्रांतस्थ में खुलती हैं। ग्रंथि का बीच का भाग अंतस्थ (Medulla) कहलाता है, जो द्वार के पास ग्रंथि के पृष्ठ तक पहुँच जाता है। यहीं से अपवाहिनी निकलती है, जो लसिका और ग्रंथि में उत्पन्न हुए उन लसिका स्त्रावों को ले जाती है जो अंत में मुख्य लसिका वाहिनी द्वारा मध्यशिरा में पहुँच जाते हैं।
अंत: स्रावी ग्रंथियां
जन्तुओं में विभिन्न शारीरिक क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वयन तंत्रिका, तंत्र के अतिरिक्त कुछ विशिष्ट रासायनिक यौगिकों के द्वारा भी होता है। ये रासायनिक यौगिक हार्मोन (Hormone) कहलाते हैं। हार्मोन शब्द ग्रीक भाषा (Gr. Hormaein = to stimulate or excite) से लिया गया है, जिसका अर्थ है- उत्तेजित करने वाला पदार्थ। हार्मोन का स्राव शरीर की कुछ विशेष प्रकार की ग्रन्थियों द्वारा होता है, जिन्हें अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine glands) कहते हैं। अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ (Ductless glands) के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इनमें स्राव के लिए नलिकाएँ (Ducts) नहीं होती हैं। नलिकाविहीन होने के कारण ये ग्रन्थियाँ अपने स्राव हार्मोन्स को सीधे रुधिर परिसंचरण में मुक्त करती है। रुधिर परिसंचरण तंत्र द्वारा ही इनका परिवहन सम्पूर्ण शरीर में होता है।
ग्रन्थियों के प्रकार:- कशेरुकी जन्तुओं में तीन प्रकार की ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं। ये हैं-
(a) बहिःस्रावी ग्रन्थियाँ (Exocrine glands):- शरीर की ऐसी ग्रन्थियाँ जिनके द्वारा स्रावित स्राव को विभिन्न अंगों तक पहुँचाने के लिए वाहिनियाँ या नलिकाएँ होती हैं, बहिःस्रावी ग्रन्थियाँ (Exocrine Glands) कहलाती है। बहिःस्रावी ग्रन्थियों को नालिकयुक्त ग्रन्थियां (Duct glands) भी कहते हैं। बहिःस्रावी ग्रन्थियों के स्राव को एन्जाइम (Enzyme) कहा जाता है। स्वेद ग्रन्थि, दुग्ध ग्रन्थि, लार ग्रन्थि, श्लेष्म ग्रन्थि, अश्रु ग्रन्थि आदि बहिःस्रावी ग्रन्थि के प्रमुख उदाहरण हैं।
(b) अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine Glands):- बहिःस्रावी ग्रन्थियों के विपरीत अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ नलिकाविहीन (Ductless) होती हैं। अतः इन्हें नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ (Ductless glands) भी कहते हैं। अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ नलिका (Duct) के अभाव में अपने स्राव को सीधे रुधिर परिसंचरण में मुक्त करती हैं। अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्रावित स्राव को अन्तःस्राव या हार्मोन (Hormone) कहते हैं। ये हार्मोन फिर रुधिर के साथ उन अंगों तक चले जाते हैं, जहाँ इनका प्रभाव होना होता है। पीयूष ग्रन्थि, थाइरॉयड ग्रन्थि, अधिवृक्क ग्रन्थि, पैराथाइरॉयड ग्रन्थि पीनियल काय, थाइमस ग्रन्थि आदि प्रमुख अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ हैं।
(c) मिश्रित ग्रन्थियाँ (Mixed glands):- कुछ ग्रन्थियाँ ऐसी होती हैं जो बहिःस्रावी तथा अन्तःस्रावी दोनों ही प्रकार की होती हैं, उन्हें मिश्रित ग्रन्थियाँ कहते हैं। जैसे- अग्न्याशय (Pancreas)।
हॉर्मोन ग्रन्थियाँ
ग्रन्थि शरीर का वो अंग होती है जो पदार्थ (हॉर्मोन), दुध या रस का निर्माण कर उसे रक्त प्रवाह में या बाहर स्त्रावित करते हैं। हॉर्मोनरसायनिक वाहक है जो कुछ खास तरह की उतकों से रूधिर (रक्त) या अंतराकाशी (इंटरस्टिशियल) द्रव्य में स्रावितकिये जाते है जो अन्य कोशिका या उतकों की क्रिया को नियत्रित करने के लिये उपयुक्त होते है। जो ग्रथिं’ स्राव रक्तप्रवाह में सीधे स्त्रावित होते है उन्हे अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियाँ कहते है ये हारमोन स्त्रावित करती हैं। हीईपोथैलामस, पीयूष (पिटयुटरी), अवटु (थायरॉएड),पैराथायरॅायड, ,पैराथायरॅायड, अग्न्याश्य ग्रंथि(अग्नाशय के कुछ भाग), अधिवृक्क, (सुपारिनल), वृषण और डिम्बग्रन्थी शरीर की मुख्य अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियाँ हैं।
वह ग्रथिं’स्राव जो शरीर के अंदर की गुहिका (केविटी) या अंतराकाशी (इंटरस्टिशियल) जगह या बाहरी सतह जैसे मॅुह, त्वचा पर स्त्रावित करते है उन्हे बाहय:स्त्रावी ग्रन्थियाँ कहते है कुछ ग्रन्थियों से ये स्त्राव वाहिनियों से निकलते हैं। कर्णपूर्व, लार ग्रन्थि, पित्ताशय और स्तन आदि ग्रन्थियॉं इस किस्म के उदाहरण हैं। आमाशय, ऑंतों, जनन, अंगों, श्वासनली और ऑंखों में भी हज़ारों ऐसी ग्रन्थियाँ होती हैं। इन स्त्रावों के विशिष्ट काम होते हैं।
शरीर में हारमोन ग्रन्थियों का काम बेहद महत्तवपूर्ण होता है। हर हॉर्मोन का शरीर के अंगो के विशिष्ठ उतको में/पर विशिष्ठ कार्य होता है। उदाहरण के लिए अग्न्याश्य ग्रथिंद्वारा निकलने वाला इन्सुलिन खून में शर्करा (शुगर) की मात्रा पर नियंत्रण रखताहै। पुरुष हारमोन प यौनिक कार्य को और महिला यौन हारमोन माहवारी चक्र और प्रजनन को नियमेक करते हैं। मस्तिष्क के ठीक नीचे स्थित पीयूष ग्रन्थि शरीर की बाकी सब अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियों का काम नियंत्रित करती है। शरीर में हारमोन के स्तर में बदलाव से शरीर के कामों पर काफी असर पड़ता है। हारमोन ग्रंथियों की कुछ गड़बड़ियाँ काफी आम हैं (जैसे मधुमेह या घेंघा रोग)। इन्हें नज़रअन्दाज़ नहीं करना चाहिए।आजकल कुछ हार्मोन काफी आम तौर पर इस्तेमाल होते हैं।जैसे स्टीरॉएड हॉर्मोनया मुँह से ली जाने वाली गर्भनिरोधक गोलीओरल पिल)। कुछ हारमोन हॉर्मोनक़त्रिम तरीको से वैसे ही बनाए जाते हैं जैसे कि स्टीरॉएड। कुछ हारमोन जानवरों के अंगों से प्राप्त करते हैं जैसे कि इनसुलिन।
हारमोन चिेकित्सा विज्ञान में अब काफी प्रगती हुई है, तथा इसकी शाखा के विशेषज्ञ भी उपलब्ध है। यह ठीक नहीं कि पतला न दिखने के लिये या शरीर गठन के लिये या खेल प्रतियोगिताओं में जीतने के लिये या जोडो की बिमारीयो के लिये कुछ हारमोनों का बहुत ही गलत ढंग से इस्तेमाल करते हैं।
अंतस्रावी तंत्र (एंडोक्राईन) का कार्य का प्रथम चरण
हायपोथैलामस मस्तिष्क का एक छोटा भाग जो अंतस्रावी तंत्र (एंडोक्राईन) के लिये संम्पूर्ण समन्वयक केन्द्र का काम करता है। वातावरण से सभी संवेदी आगत (सेंसरी इनपुट) केंद्रीय तंत्रीका तंत्र तक पहॅूचा दिये जाते है। यह केंद्रीय तंत्रीका तंत्र के सारे संकेतो को ग्रहण करने के उपरान्त समाहित करने का काम करता है। तंत्रि अन्त:स्त्रावी संकेतो का आरंभ होने के बाद इन संकेतो की प्रतिकिया में हायपोथैलामस इपोथैलेमिक हॉर्मोनस (मोचित (रिलिसींग)कारक) तुरन्त पास में स्थित पीयूष ग्रंथि ((पिटूइटेरी ) में रक्त वाहिनीयों के द्वारा छोड दिये जाते है।
अंतस्रावी तंत्र (एंडोक्राईन) कार्य का दुसरा चरण
पीयूष ग्रन्थि (पिटयुटरी)
यह ग्रन्थि मस्तिष्क के नीचे की खोपड़ी में हायपोथैलामस के पास ही स्थित होती है। मस्तिष्क में हायपोथैलामस से स्रावित हाइपोथैलेमिक मोचित (रिलिसींग) कारक हॉर्मोनस इस ग्रन्थि को स्त्रावित करने के लिए उत्तेजित करता है। पीयूष ग्रन्थि के दो अलग अलग कार्यत्मक भाग होते है पश्च पीयूष ग्रंथि और अग्र पियुष ग्रंथि। पश्च पीयूष ग्रंथि हायपोथैलामस से निकले कई सारे तंत्रिकाक्ष (एक्सान) से मिलकर बनी होती है। यह तंत्रिकाक्ष दो तरह के हॅार्मोन, ऑक्सीटोसिन और वेसोप्रेसिन प्रतिमूत्रलहारर्मोन (एंटि डायूरेटिक हॉरमोन) पैदा करते है। यह दोनो हॅार्मोन तंत्रीकांक्ष के स्रावित करने वाली कणिकी (ग्रेनियुल) में संग्रह कर ली जाती है और वहॉ से वह संकेत प्राप्त होते ही स्राव कि लिये पहले से तैयार रहती है।
अग्र पियुष ग्रंथि रूधिर (रक्त) में आये हाइपोथैलेमिक मोचित (रिलिसींग) कारक हॉर्मोनस के प्रतिक्रियाओ स्वरूप हॅार्मोन पैदा करते है। / ये अगले चरण के अन्त:स्त्रावी ग्रंथीयो ऐडि्रिनल कारटेक्स, अवटू (थाईराइड) ग्रंथि, डिंब (ओवरी) और वृषण (टेसटिस) को प्रेरित करते है। फिर यह ग्रंथियॉ अपने विशिष्ठ हॅार्मोन को स्रावित करती है। जो रूधिर (रक्त्) प्रवाह के माध्यम सें उनके लक्षीत उतको तक पहॅुच जाते है। हार्मोन कासकैड हर स्तर पर संकेतो को ग्रहण कर उसे पहले से से ओर बढा कर अगले कासकैड के अगले हॅार्मोन स्रावित करने की तैयार रहते है साथ ही साथ पिछले हॅार्मोन के पुनर्भरण नियमन (फिडबैक इन्हीबिसन) करते है। (मुख्य अन्त:स्त्रावी तंत्र और उसके लक्ष्य उतक )
ध्दि (ग्रोथ) तथा विभेदन हार्मोन
इसअग्रपीयूष ग्रंथि द्वारा स्त्रावित सबसे महत्वपूर्ण हारमोन वृध्दि (ग्रोथ) हारमोन है। यह हॉर्मोनकिसी भी व्यक्ति के उचित शारीरिक विकास विशेष कर उॅचाई के लिए ज़रूरी है। इस हारमोन की मात्रा में कमी से वृध्दि रुक जाती है और उसकी उॅचाई उम्र कि अनुसार सामान्य से कम रहती है तो उसे बौनापन कहते हैं। अगर बचपन में ही इस समस्या का पता चल जाए तो इसे हारमोन देकर ठीक किया जा सकता है। पर एक बार हडि्डयों का बनना पूरा हो जाए तो फिर इसमें सुधार होना सम्भव नहीं होता।
इस हारमोन की अधिक मात्रा में स्राव से व्यक्ति बहुत लम्बा और बड़ा हो जाता है। उसका चेहरा, हाथ और पैर काफी भारी हो जाते हैं। उसकी लम्बाई नौ फुट तक भी बढ़ सकती है। पीयूष ग्रन्थि में खराबी बहुत कम ही देखने में आती है।
अन्य पीयूष ग्रन्थि हॉर्मोन
जिसमे अ्ग और पश्च पीयूष ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन उनके लक्ष्य के बारे में जानकारी दी गई है। उदाहरण के लिये पीयूष ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित अन्य हारमोनों में स्तनों, डिम्ब ग्रन्थियों, वृषण, अवटु और एड्रिनल ग्रन्थियों को उत्तेजित करने वाले हॉर्मोन हैंउत्तेजित करने के लिए जो क्रियाविधि काम में आती हैं उसका एक उदाहरण _ धात्री महिला के स्तन में दुध निर्माण । स्तन में दूध बनने की प्रकिया बच्चे के जन्म के पहले से ही शुरू हो जाता है। शिशु द्वारा स्तन को चूसने से निपल द्वारा तंित्रका के माध्यम से मस्तिष्क तक संकेत पहुँचता है। मस्तिष्क फिर अग्रपीयूष ग्रन्थि को एक प्रोलेक्टिन हॉर्मोन स्त्रावित करने के लिए सन्देश भेजता है। प्रोलेक्टिन हॉर्मोन स्रावित होने के बाद रक्त में आ जाता है और स्तनों के ऊतकों तक पहुँच उन्हें संकुचित करता है। इससे स्तनों से दूध निकलने लगता है। अन्य ग्रन्थियों के उत्तेजित होने के लिए भी इसी तरह की जैव रासायनिक परिस्थितियाँ काम करती है। लड़कियों व लड़कों में यौवनारम्भ के समय पीयूष ग्रन्थि से ही उत्तेजन मिलता है जो जनन ग्रन्थि पर काम करता है।
अवटु ग्रन्थि
अवटु ग्रन्थि गले के सामने स्वरयंत्र और श्वसन नली के बीच में स्थित होती है। इसका आकार तितली जैसा होता है।
थायरोक्सिन की अधिकता
थायरॉईड हॉर्मोन ज्यादा होने का प्रभाव-
नेत्रगोलक कुछ बाहर आने से ऑखे बडी दिखती है।
अधिक थायरोक्सिन स्त्रावित होने से ग्रेव्स बीमारी हो जाती है। ऐसे मामले कम होते हैं जिनमें बीमारी गम्भीर रूप ले ले। परन्तु ऐसे मामले बहुत होते हैं जिनमें थोड़ी बहुत बीमारी हो। हालाँकि आम तौर पर इसका पता ही नहीं चलता। ग्रन्थि में कोई भी दिखाई देने वाली वृध्दि नहीं होती क्योंकि एक छोटा-सा भाग भी बहुत सारा थायरोक्सिन बना सकता है। सिर्फ कुछ ही मामलों में ग्रन्थि में सूजन दिखाई देती है।
लक्षण
कम गम्भीर मामलों में धड़कन, काँपने, पैरों और हाथों में पसीना आने, हल्के बुखार और नेत्रगोलक के बाहर निकलने की शिकायत होने लगती है। बीमार व्यक्ति आम तौर पर कमज़ोरी और धड़कन की शिकायत करता है। आम तौर पर इन लक्षणों को यह कहर नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है कि ये तो उसकी आदत घबराहट है । निदान के लिए थायरोक्सिन के स्तर की जाँच करना ज़रूरी होता है।
जिस व्यक्ति को अवटु अति सक्रियता की गम्भीर समस्या होती है उसे हाथ काँपना और ऑंखों के गोले बाहर आना साफ दिखाई देता है। हम बीमार व्यक्ति का हाथ फैलाकर उस पर कागज़ रखकर काँपने की जाँच कर सकते हैं।
इलाज
चाहे बीमारी मध्यम दर्जे की हो या गम्भीर इलाज ज़रूरी है। इलाज में दवाइयाँ, अगर ज़रूरी हो तो ऑपरेशन या रेडियो सक्रिय आयोडीन का इस्तेमाल होता है। बीमारी के हिसाब से अलग-अलग व्यक्ति में अलग-अलग तरह से इलाज होता है।
कम थायरोक्सिन
अवटु ग्रन्थि में से स्त्राव कम होने से हायपो थॉयरॉईडिझम (अवटु अल्प सक्रियता) की समस्या नवजात शिशुओं और वयस्कों दोनों को हो सकती है। नवजात शिशुओं में यह माँ को घेंघा रोग होने पर होता है।
लक्षण
वयस्कों में भार बढ़ जाना और मोटापा, शरीर पर सूजन इस बीमारी का खास लक्षण है। बहुत अधिक कमज़ोरी लगना इस बीमारी में होने वाली आम शिकायत है। मानसिक अवसादन, यौन इच्छा कम होना, मासिक स्त्राव या माहवारी में काफी बदलाव, भूख न लगना आदि समस्याएं भी दिखती है। थायरोक्सिन हॉर्मोन द्वारा इलाज से बीमारी में फायदा होता है। इलाज पूरी ज़िन्दगी चलता है। महिलाओं में इस बीमारी का संभव ज्यादा होता है।