जीव अपने स्पीशीज के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जनन करते हैं |
जनन करने वाले जीव संतति का सृजन करते हैं जो बहुत सीमा तक उनके समान होते हैं |
जीव को संतति उत्पन्न करने के लिए अत्यधिक उर्जा व्यय करनी पड़ती हैं |
आधारभूत स्तर पर जनन जीव के अभिकल्प का ब्लूप्रिंट तैयार करता है |
शरीर का अभिकल्प समान होने के लिए उनका ब्लूप्रिंट भी समान होना चाहिए |
कोशिका के केन्द्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के डी.एन.ए. के अणुओं में आनुवंशिक गुणों का सन्देश होता है जो जनक से संतति पीढ़ी में जाता है |
कोशिका के केन्द्रक के डी. एन. ए. में प्रोटीन संशलेषण हेतु सुचना निहित होती है |
यदि DNA में निहित सूचनाएं (सन्देश) भिन्न होने की अवस्था में बनने वाली प्रोटीन भी भिन्न होगी |
विभिन्न प्रोटीन के कारण शारीरिक अभिकल्प में भी विविधता आ जाती है |
जनन की मूल घटना डी. एन. ए. (DNA ) की प्रतिकृति (copy) बनाना है |
डी. एन. ए. (DNA ) की प्रतिकृतियाँ जनन कोशिकाओं में बनता है |
संतति कोशिकाएँ समान होते हुए भी किसी न किसी रूप में एक दुसरे से भिन्न होती हैं | जनन में होने वाली यह विभिन्नताएँ जैव-विकास का आधार हैं |
विभिन्नताएँ स्पीशीज की उत्तरजीविता बनाए रखने में उपयोगी हैं |
अपनी जनन क्षमता का उपयोग कर जीवों की समष्टि पारितंत्र में स्थान ग्रहण करते हैं |
जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाईन ही जीव को विशिष्ट स्थान के योग्य बनाती है |
जीवों में जनन की दो विधियाँ है – (i) लैंगिक जनन (ii) अलैंगिक जनन |
लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न जीवों में विभिन्नताएँ सबसे अधिक पायीं जाती हैं |
एकल जीवों में जनन अलैंगिक जनन के द्वारा होता है जबकि युगल जीव जिनमें नर एवं मादा दोनों होते है उनमें जनन प्रक्रिया लैंगिक जनन के द्वारा होता है |
अलैंगिक जनन प्रक्रिया में जीव विखंडन, खंडन, पुनर्जनन, मुकुलन, कायिक प्रवर्धन तथा बीजाणु समासंघ द्वारा जनन करते है |
एककोशिक जीवों में विखंडन द्वरा नए जीवों की उत्पति होती है |
विखंडन विधि दो प्रकार की होती है – (i) द्विखंडन (ii) बहुखंडन
अमीबा में जनन द्विखंडन विधि के द्वारा होता है |
प्लैज्मोडियम जैसे जीव में जनन बहुखंडन के द्वारा होता है |
सरल संरचना वाले बहुकोशिक जीवों में जनन खंडन विधि के द्वारा होता है |
प्लेनेरिया में जनन पुनरुदभवन विधि के द्वारा होता है |
हाईड्रा एवं यीस्ट जैसे जीवों में पुनर्जनन की क्षमता वाली कुछ विशेष कोशिकाएँ होती है जहाँ से मुकुल बन जाता है और यही से एक नए जीव की उत्पत्ति होती है, जिसे मुकुलन कहा जाता है |
पौधों में बहुत से ऐसे एकल पौधे हैं जिनमें जनन के लिए विशेष कोशिकाएँ नहीं होती है ऐसे पौधे अपने कायिक भाग जैसे जड़, तना, तथा पत्तियों का उपयोग जनन के लिए करते हैं |
कायिक प्रवर्धन द्वारा उगाये गए पौधों में विभिन्नताएँ कम पाई जाती है एवं अनुवांशिक रूप से जनक पौधे के समान होते हैं |
उत्तक संवर्धन तकनीक का उपयोग समान्यत: सजावटी पौधों के संवर्धन में किया जाता है |
नर में शुक्राणु एवं मादा में अंडाणु जनन कोशिकाएँ होती हैं |
डी. एन. ए. प्रतिकृति बनने के समय इनमें कुछ त्रुटियाँ रह जाती हैं यही परिणामी त्रुटियाँ जीव की समष्टि में विभिन्नताओं का स्रोत हैं |
प्रत्येक डी.एन.ए. (DNA) प्रतिकृति में नयी विभिन्नताओं के साथ-साथ पूर्व पीढ़ियों की विभिन्नताएँ भी संग्रहित होती रहती है |
जनन प्रक्रिया में जब दो जीव भाग लेते हैं तो विभिन्नताओं की संभावना बढ़ जाती है |
लैंगिक जनन में दो भिन्न जीवों से प्राप्त डी.एन.ए. (DNA) को समाहित किया जाता है |
लैंगिक जनन करने वाले जीवों के विशिष्ट अंगों (जनन अंगों) में कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाओं की परत होती है जिनमें जीव की कायिक कोशिकाओं की अपेक्षा गुणसूत्रों की संख्या आधी होती है तथा डी.एन.ए. (DNA) की मात्रा भी आधी होती है | यें दो भिन्न जीवों की युग्मक कोशिकाएँ होती है जो लैंगिक जनन में युग्मन द्वारा युग्मनज (जायगोट) बनाती हैं जो संतति में गुणसूत्रों की संख्या एवं डी.एन.ए. (DNA) की मात्रा को पुनर्स्थापित करती हैं |
गतिशील जनन-कोशिका को नर युग्मक कहते है तथा जिस जनन कोशिका में भोजन का भंडार संचित रहता है, उसे मादा युग्मक कहते है |
पुष्पी पौधों में पुंकेसर नर जननांग होता है जो परागकण बनाता है जबकि स्त्रीकेसर मादा जननांग होता है | इसके तीन भाग होते है (i) वर्तिकाग्र (ii) वर्तिका (iii) अंडाशय |
जिस पुष्प में केवल स्त्रीकेसर अथवा पुंकेसर ही उपस्थित रहता है तो ऐसे पुष्प एकलिंगी कहलाता है | जैसे – पपीता, तरबूज आदि |
जब पुष्प में स्त्रीकेसर एवं पुंकेसर दो उपस्थिति हो तो यह पुष्प उभयलिंगी पुष्प कहलाता है | जैसे- गुडहल एवं सरसों आदि |
पुंकेसर के एक अन्य भाग जिसे परागकोष कहते है उसी पर परागकण चिपके रहते हैं |
परागकोशों से परागकणों का वर्तिकार्ग्र पर पहुँचने की प्रक्रिया को परागण कहते है |
यदि परागकणों का स्थानांतरण उसी पुष्प के परागकोशों से उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर होता है तो ऐसे परागण को स्वपरागण कहते है |
जब किसी अन्य पुष्प का परागकण का किसी दुसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरण होता है तो ऐसे परागण को परापरागण कहते है |
परापरागण में एक पुष्प के परागकण दुसरे पुष्प तक स्थानांतरण वायु, जल, अथवा प्राणी जैसे वाहकों के द्वारा संपन्न होता है |
परागित परागकण परागण के बाद वर्तिका से होते हुए बीजांड तक पहुँचती है जहाँ अंडाशय में उपस्थित मादा युग्मक से संलयन होता है, इस प्रक्रिया को निषेचन कहते है |
बीजांड में भ्रूण विकसित होता है, जो बाद में बीज में परिवर्तित हो जाता है |
बीज का नए पौधे में विकसित होने की प्रक्रिया को अंकुरण कहते है |
रजोदर्शन से लेकर रजोनिवृति तक की अवधि स्त्रियों में जनन काल कहलाता है |
किशोरावस्था की वह अवधि जिसमें जनन-ऊत्तक परिपक्व (mature) होना प्रारंभ करते है यौवनारंभ कहलाता है |