राजस्थान के प्रमुख त्यौहार Major festivals of Rajasthan

( स्त्रोत :- उत्तरभारत का काशीपंचांग तथा मध्य भारत का उज्जैन पंचांग )

आखा तीज या अक्षय तृतीय – वैशाख शुक्ला 3 – राज्य में कृषक सात अन्नो तथा हल का पूजन करके शीघ्र वर्षा की कामन के साथ यह त्यौहार मनाते है | शास्त्रानुसार इस दिन सतयुग और त्रेतायुग का आरम्भ माना जाता है क्योंकि इसक दिन किया हुआ तप , दान , जप , और ज्ञान अक्षय और फलदायक होता है | सम्पूर्ण वर्ष में यह एक मात्र अबूझ सावा है | इस दिन देश में हजारो विवाह विशेतय:बाल विवाह संपन्न होते है |

वत सावित्री व्रत या बडमावस ( ज्येष्ठ अमावस्या ) – इस व्रत से स्त्री को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है | इस व्रत के अंतर्गत स्त्रियाँ बड या बरगद की पूजा कर पुत्र और पति की आरोग्यता के लिए प्रार्थना करती है |  वत-सावित्री की कथा सुनी जाती है |



निर्जला एकादशी ( ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी ) – इस व्रत में एकादशी के सूर्योदय से द्वादसी के सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं किया जाता है | इस व्रत से श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है |

गुरु पूर्णिमा ( आषाड़ पूर्णिमा ) – इस दिन गुरु पूजन होरा है व यथा शक्ति गुरूजी को भेट दी जाती है |

नाग पंचमी ( श्रावण कृष्णा 5 ) – यह नागो का त्यौहार है | इस दिन सर्प की पूजा की जाती है | कही कही पर यह त्यौहार श्रावण शुक्ला पंचमी को मनाया जाता है |

हरियाली अमावस ( श्रावण अमावस्या ) – इस दिन भोजन में खीर व मालपुए बनाये जाते है | ब्राहमणों को भोजन कराते है | लोग अपने परिवार के साथ अन्य रमणीय स्थान या उधान में जाकर आनंद लेते है |

जलझुलनी / देवझुलनी एकादशी – भाद्रपद शुक्ल के 11 दिन देव मुर्तिया को पालिकियों और विमानों ( बेवान ) में विराजमान का जुलुस में गाजे-बाजे के साथ जलाशय के पास ले जाकर स्नान करवाया जाता है |

घुडला का त्यौहार – यह त्यौहार राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में चैत्र कृष्णा अष्टमी से लेकर चैत्र शुक्ला तृतीय तक मनाया जाता है | इस दिन स्त्रियाँ एकत्रित होकर कुम्हार के घर जाकर छिद्र किये हुए घड़े में दीपक रखकर अपने घर गीत गाती हुई जाती है | यह घड़ा बाद में तालाब में बहा दिया जाता है इस त्यौहार पर चैत्र सुदी तीज को मेला भी भरता है |



देवशयनी एकादशी – आषाड़ शुक्ला 11 के दिन भगवान् विष्णु 4 माह के लिए सो जाते है | इस दिन से 4 माह तक कोई मांगलिक कार्य संपन्न नहीं होता है |

श्रावणी तीज या छोटी तीज – जयपुर में इस दिन तीज माता की सवारी निकलती है | तीज के साथ ही मुख्तय: त्योहारों का आगमन माना जाता है जो गणगौर के साथ समाप्त होता है |

रक्षाबंधन – ( श्रावण पूर्णिमा ) – इस दिन घर के प्रमुख द्वार के दोनों और श्रवण कुमार के चित्र बनाकर पूजा की जाती है | इसे नारियल पूर्णिमा भी कहते है |

बड़ी तीज / सातुडी तीज / कजली तीज ( भाद्र कृष्णा ) – यह त्यौहार स्त्रियों के सुहाग की दीर्घायु व मंगलकामना के लिए मनाया जाता है , जिसमे स्त्रियाँ दिनभर निराहार रहकर रात्रि को चन्द्रमा के दर्शन कर अर्थ देकर भोजन ग्रहण करती है |इस दिन संध्या  पश्चात स्त्रियाँ नीम की पूजा कर तीज माता की कहानी सुनती है इस दिन सत्तू खाया जाता है |

बुदी तीज – ( भाद्र कृष्णा ) इस दिन व्रत रखकर गायो का पूजन किया जाता है | सात गायो के लिए आटे की लोई बनाकर उन्हें खिलाकर ही भोजन किया जाता है |

कृष्ण जनमाष्टमी ( भाद्रपद कृष्णा 8 ) – इसे कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया  जाता है | इस दिन मंदिरों में कृष्ण जन्म से संबंधित झाकिया सझाई जाती है | पुरे दिन उपवास के बाद रात के बारह बजे श्री कृष्ण के जन्म होने पर श्री कृष्ण की आरती तथा विषेश पूजा-अर्चना करके भोजन किया जाता है |

गोगा नवमी ( भाद्रपद कृष्णा 9 ) – इस दिन लोकदेवता गोगाजी की पूजा की जाती है इस दिन हनुमानगड जिले में गोगामेडी नामक स्थान पर मेला लगता है |

बछबारस ( भाद्रपद कृष्णा 12 ) – इस दिन पुत्रवती स्त्रियाँ पुत्र की मंगल कामना के लिए व्रत रखती है  | इस दिन गेंहू जौ और गाय के दूध से बनी वस्तुओ का उपयोग किया जाता है तथा अंकुरित चने , मटर , मोठ तथा मुंग युक्त भोजन किया जाता है | इस दिन गाय व बछड़ो की सेवा की जाती है |

गणेश चतुर्थी – भाद्रपद शुक्ला 4 इसे सम्पूर्ण भारत में धूम-धाम से मनाया जाता है | विघ्न विनायक श्री गणेश जी को देवताओ के सर्वोच्च स्थान प्राप्त है | इनका वाहन चूहा है व इनका प्रिय भोजन मोदक है | महाराष्ट्र में यह त्यौहार विशिष्ठ रूप से मनाया जाता है व जुलुस के साथ गणपति की प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है | इस पर्व को गणेश जन्मोत्सव के रूप में मनाते है | मंदिरों में गणेश जी की झाकिया सझाई जाती है व श्रृद्धा पूर्वक लड्डू चड़ाए जाते है |



ऋषि पंचमी ( भाद्रपद शुक्ला 5 ) – इस दिन गंगा स्नान का विषेश महात्म्य है | यह व्रत जाने-अनजाने में हुए पापो के प्रक्षालन के लिए किया जाता है | गणेश जी के कलश , नवग्रह तथा सप्त ऋषि व अरुधती की पूजा करके कथा सुनी जाती है | महेश्वरी समाज में राखी इस दिन मनाई जाती है |

राधाष्टमी ( भाद्रपद शुक्ला 8 ) – इस दिन को राधा जी के जन्म के रूप में मनाया जाता है | इस दिन अजमेर की निम्बार्क पीठ सलेमाबाद में मेला भरता है |

साँझी – इस त्यौहार में 15 दिन तक कुंवारी कन्याए भाँती-भांति की संध्याए बनाती है व पूजा करती है |

नवरात्रा – यह वर्ष में दो बार मनाये जाते है | प्रथम नवरात्रा चैत्र शुक्ला एकम से नवमी तक व द्वितीय आश्विन शुक्ला एकम से नवमी तक होते है | नौ दिन तक दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है | नवें दिन कन्याओ को भोजन करवाया जाता है | चैत्र मांस की नवरात्री को वासन्तीय नवरात्री भी कहते है |

मकर संक्रांति – यह सैदव 14 जनवरी को मनाई जाती है | इस संक्रांति के एक दिन पूर्व टिल के लड्डू , पपड़ी , बरफी आदि बनाये जाते है इस दिन दिल खोलकर दान करते है | जयपुर में इस दिन सभी पतंग उड़ाते है | इस दिन रूठी सास को मनाने की परम्परा है | सुहागिन स्त्रियाँ सुहाग की तेरह कलप कर तेरह सुहागिनों को भेंट करती है |

मौनी अमावस्या – ( माघ अमावस्या ) इस दिन मौन व्रत किया जाता है | यह दिन मनु का जन्म दिवस भी है | ऐसा माना जाता है की मौन रहने से आत्मबल में वृद्धि होती है मौन धारण करके व्रत का समापन करने वाले व्यक्ति को मुनि पद प्राप्त होता है |

बंसत पंचमी – इस दिन ऋतुराज बसंत के आगमन का प्रथम दिवस माना जाता है | भगवान् श्री कृष्ण इस उत्सव के अधिदेवता है इसलिए ब्रज प्रदेश में आज भी इस दिन राधा और कृष्ण की लीलाए रचाई जाती है इस दिन से फाग उड़ाना प्रारम्भ करते है जिसका क्रम फाल्गुन की पूर्णिमा तक चलता है गेंहू और जौ की स्वर्णिम बालियाँ भगवान् को अर्पित की जाती है | बसंत ऋतू कामोद्दीपक होती है | इस दिन कामदेव और रति का प्रधान रूप में पूजन करते है |

शिवरात्रि – यह शिवाजी का जन्मोत्सव है| इस दिन श्रीद्धालुगण व्रत रखते है व शिव पुराण का पाठ करते है दुसरे दिन प्रात: जौ, तिल , खीर म बिल्व पत्रों का हवन करके ब्राहमणों को भोजन कराकर व्रत का पालन किया जाता है |

होली ( फाल्गुन पूर्णिमा ) – इस दिन हरिन्यकश्यप की आज्ञा से बहन होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हुई थी लेकिन प्रहलाद बच गयाऔर होलिका जल गई | अत: भक्त प्रहलाद की स्मृति में इस पर्व को मानते है इस दिन सब स्त्रियाँ बच्चे सूत की कुकडी , जल का लौटा , नारियल आदि द्वारा होली की पूजा करते है होली में कच्चे चने व गेंहू की बालियाँ आदि भुनकर खाई जाती है होली के जलने के बाद पुरुष होली के डंडे को बाहर निकालते है क्योंकि इस डंडे को भक्त प्रहलाद का पतीक मानते है |

धुलण्डी ( चैत्र कृष्णा 1 ) – चैत्र माह की कृष्णा प्रतिपदा को होली के दुसरे दिन धुलण्डी मनाई जाती है इस दिन होली की अवशठी राख की वंदना की जाती है व रंग गुलाल आदि से सभी  होली खेलते है |

शीतलाष्टमी ( चैत्र कृष्णा ) – इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है व ठंडा भोजन किया जाता है | समस्त भोजन सप्तमी की संध्या को की बनाकर रखा जाता है | बच्चे के चेचक निकलने पर शीतला माता की ही पूजा की जाती है |

नववर्ष – हिन्दुओ का नववर्ष इसी दिन प्रारम्भ होता है | इस दिन गुडी पडवा का त्यौहार भी मनाया जाता है

सिंजारा – यह त्योहार पुत्री और पुत्रवधु के प्रति प्रेम के प्रतीक है | गणगौर व तीज के एक दिन पूर्व सिंजारा भेजा जात है जिसमे साडी , श्रृंगार की सामग्री , चूड़ी , मेहन्दी , रोली , मिठाई आदि पुत्री व पुत्रवधू को भेजी जाती है |
गणगौर – यह सुहागिन स्त्रियों का महत्पूर्ण त्योहार है |यह शिव व पार्वती के आखंड प्रेम का त्यौहार है |गणगोर में गण शिव व गौर पार्वती अक प्रतीक है | इस दिन कुंवारी कन्याये मनपसन्द वर की प्राप्ति तथ विवाहित स्त्रियाँ अपने अखंड सौभाग्य की कामना करती है | चैत्र कृष्णा एकम से ही गणगौर पूजन आरम्भ हो जाता है व चैत्र शुक्ला तृतीय तक यह क्रम चलता रहता है| इस दिन गणगौर की सवारी निकाली जाती है | जयपुर व उदयपुर की गणगौर प्रशिद्ध है |

रामनवमी – ( चैत्र शुक्ला ) – मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की जन्म दिवस के रूप में यह त्यौहार मनाया जाता है इस दिन रामायण पाठ किया जाता है | श्रद्धालुगण सरयू नदी में स्नान करके पुण्य लाभ कमाते है | यह अंतिम नवरात्रा को मनाई जाती है |

दुर्गाष्टमी – ( आश्विन शुक्ला 8 ) यह संपूर्ण भारत में विशेषत: प. बंगाल में उल्लासपूर्वक मनाया जाता है इस  दिन देवी दुर्गा की पूजा होती है |

दशहरा ( आश्विन शुक्ला 10 ) – यह सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है | इस दिन भगवान् राम ने रावण का वध करके विजय पाई थी इसलिए इसको विजयदशमी भी कहा जाता है | इस दिन सूर्यास्त के समय रावण कुम्भकरण व मेघनाद के पुतले जलाए जाते है | राजस्थान के कोटा शहर में तथा भारत के मैसूर शहर में दशहरे का बहुत बड़ा मेला लगता है और लीलाटांस पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है |

शरद पूर्णिमा – आश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते है | इसे राम पूर्णिमा भी कहते है | ज्योतिषों के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में केवल इसी दिन चन्द्रमा षोडस कलाओं से परिपूर्ण होता है इस दिन व्रत किया जाता है |

करवा चौथ – ( कार्तिक कृष्णा 4 ) यह त्यौहार स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय त्यौहार है | इस दिन सुहागिन स्त्रियाँ व्रत रखती है व सायकाल चाद्रोद्य पर चन्द्रमा को अर्थ्य देकर भोजन करती है व पति के स्वास्थ्य , दीर्गायु एवं मंगल कामना करती है |



अहोई अष्टमी ( कार्तिक कृष्णा 11 ) – इस दिन पुत्रवती स्त्रियाँ निर्जल व्रत करती है | दीवार पर स्याव माता व उसके बच्चे बनाये जाते है व शाम को चन्द्रमा को अर्थ्य देकर भोजन किया जाता है |

तुलसी एकदशी – इस दिन तुलसी की पूजा की जाती है | तुलसी नामक पौधे की महिमा वेदग्रंथो के साथ साथ धर्मशास्र्त्रो में भी वर्णित है तुलसी को विष्णु प्रिया भी  माना जाता है |

धनतेरस ( कार्तिक कृष्णा 13 ) – इस दिन धन्वन्तरी ( वैध जी ) का पूजन किया जाता है | इस दिन यमराज का भी पूजन किया जाता है | यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पपर रखा जाता है | इस दिन नये बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है

दीपावली ( कार्तिक अमावस्या ) – यह हिन्दुओ का सबसे बड़ा त्यौहार है | इस दिन भगवान् राम चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण करके अयोध्या लौटे थे | यह पर्व लक्ष्मी का पर्व है | विक्रम संवत का प्रारम्भ भी इसी दिन से माना जाता है | यह आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द व भगवान महावीर का निर्वाण भी माना जाता है | इस दिन वैश्य लोग अपने-अपने भही खाते बदलते है और वर्ष भर लाभ-हानि का विवरण तैयार करते है | इस दिन घर दूकान व सहर को खूब सजाया जाता है | मिठाइयाँ बनाई जाती है तथा शाम को लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है

गोवर्धन पूजा व अन्नकूट ( कार्तिक शुक्ला 1 ) – इस दिन प्रभात के समय गौ के गोबर से गोवर्धन की पूजा की जाती है व छप्पन प्रकार के पकवानों से बने अन्नकूट से मंदिर में भोग लगाया जाता है |

भैया दूज – ( कार्तिक शुक्ला 2 ) इस पर्व का मुख्य लक्ष्य भाई-बहन के पावन संभंध तथा प्रेमभाव की स्थापना करना है इस दिन बहन-भाई के तिलक लगाकर उसके स्वास्थ्य व दीर्घायु होने की मंगल कामना करती है | इसे यम द्वितीय के रूप में भी मनाया जाता है |

आंवला नवमी / अक्षय नवमी – ( कार्तिक शुक्ला 9 ) इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है व भोजन में आंवला अवश्य लिया जाता है | इस व्रत को करने से व्रत , पूजन , तर्पण आदि का फल अक्षय हो जाता है | इसलिए इसे अक्षय नवमी भी कहते है |

देवऊठनी ग्यारस ( कार्तिक शुक्ला 11 ) – इसे प्रबोधिनी एकादशी कहते है | इस दिन भगवान् विष्णु चार माह रक् निंद्रावस्था में रहने के बाद जागते है  | इस दिन से ही समस्त मांगलिक कार्य प्रारम्भ हो जाते है | प्रात: काल स्नान करके घर के आँगन में चौक पूरा कर भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करते है | भगवान् विष्णु की कदम्ब पुष्पों तथा तुलसी की मंजरियों के द्वारा पूजा की जाती है |

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