पंजाब | |
राजधानी | चंडीगढ़ |
राजभाषा(एँ) | पंजाबी भाषा, हिन्दी भाषा |
स्थापना | 1 नवम्बर, 1956 |
जनसंख्या | 2,42,89,296 |
· घनत्व | 484 /वर्ग किमी |
क्षेत्रफल | 50,362 |
भौगोलिक निर्देशांक | 30.73°N 76.78°E |
ज़िले | 22 |
सबसे बड़ा नगर | लुधियाना |
बड़े नगर | अमृतसर, जालंधर |
लिंग अनुपात | 1000:876 ♂/♀ |
साक्षरता | 69.7% |
· स्त्री | 63.55% |
· पुरुष | 75.63% |
राज्यपाल | कप्तान सिंह सोलंकी |
मुख्यमंत्री | प्रकाश सिंह बादल |
विधानसभा सदस्य | 117 |
लोकसभा क्षेत्र | 13 |
बाहरी कड़ियाँ | अधिकारिक वेबसाइट |
अद्यतन | 15:45, 30 जनवरी 2016 (IST) |
भारत के उत्तर पश्चिम में पंजाब राज्य है ,जिसकी सीमायें पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में जम्मू और कश्मीर राज्य, उत्तर पूर्व में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में हरियाणा और राजस्थान राज्य हैं। ‘पंजाब’ शब्द फारसी के ‘पंज’ जिसका अर्थ होता है ‘पांच’ और ‘आब’ जिसका अर्थ होता है ‘पानी’ के मेल से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘पांच नदियों का क्षेत्र’ है। इसलिए इसे पाँच नदियों की भूमि भी कहा जाता है। ये पांच नदियां हैं-
- सतलुज नदी
- व्यास नदी
- रावी नदी
- चिनाव नदी
- झेलम नदी
आज़ादी के बाद सन् 1947 में भारत के विभाजन के समय चिनाब और झेलम नदियां पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में चली गयीं थीं। 20 ज़िलों के इस ख़ूबसूरत राज्य में अब चार नदियाँ बहती हैं-
- सतलुज,
- व्यास,
- रावी,और
- घग्गर
भूमि उपजाऊ होने और पानी की अच्छी व्यवस्था होने के कारण एक मुहावरा प्रयोग में लाया जाता है कि यहाँ ‘धरती सोना उगलती’ है। पंजाब का क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किलोमीटर है। पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ है जो संयुक्त रूप से पंजाब और हरियाणा प्रदेश की राजधानी है। और 2001 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या 243.59 लाख है। राज्य में साक्षरता 52 प्रतिशत है। पंजाब में मुख्य रूप से पंजाबी और हिन्दी भाषा बोली जाती हैं। राज्य के मुख्य नगर अमृतसर, जालंधर, लुधियाना और पटियाला हैं।
इतिहास
प्राचीन समय में पंजाब भारत और ईरान का क्षेत्र था। यहाँ मौर्य, बैक्ट्रियन, यूनानी, शक, कुषाण, गुप्त आदि अनेक शक्तियों का उत्थान और पतन हुआ। पंजाब मध्यकाल में मुस्लिम शासकों के अधीन रहा। यहाँ सबसे पहले गज़नवी, ग़ोरी, ग़ुलाम वंश, ख़िलजी वंश, तुग़लक,लोदी और मुग़ल वंश के शासकों ने यहाँ राज किया।
15वीं और 16वीं शती में गुरु नानकदेव जी की शिक्षाओं से भक्ति आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा। सिख पंथ ने एक धार्मिक और सामाजिक आंदोलन को जन्म दिया, मूल रूप से जिसका उद्देश्य सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों को दूर करना था। दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों को ‘खालसा पंथ’ के रूप में संगठित किया। मुग़लों के दमन और अत्याचार के ख़िलाफ़ सिक्खों को एकत्र करके ‘पंजाबी राज’ की स्थापना की। पंजाब में ही बनवारीदास ने उत्तराडी साधुओं की मंडली बनाई थी। एक फ़ारसी लेखक ने लिखा है कि ‘महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब को ‘मदम कदा'(‘बाग़-ए-बहिश्त’)’ अर्थात स्वर्ग में बदल दिया था। उनके देहांत के बाद अंग्रेज़ों की साज़िशों से यह साम्राज्य समाप्त हो गया। 1849 में दो युद्धों के बाद पंजाब ब्रिटिश साम्राज्य में आ गया था।
गांधी जी के स्वतंत्रता आन्दोलन से पहले ही ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ पंजाब में संघर्ष प्रारम्भ हो गया था। स्वतंत्रता संग्राम में लाला लाजपतराय ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। स्वतंत्रता संग्राम में पंजाब के नागरिकों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। देश हो या विदेश, पंजाब बलिदान में सबसे आगे रहा। विभाजन का कष्ट भी उठाना पड़ा जिसके कारण बड़े पैमाने पर रक्तपात और विस्थापन का दंश उठाया और पुनर्वास के साथ साथ राज्य के नये सिरे से संगठित करने की चुनौती का बख़ूबी सामना किया। पूर्वी पंजाब की आठ रियासतों को मिलाकर नया राज्य ‘पेप्सू’ बनाया गया और ‘पूर्वी पंजाब राज्य संघ, पटियाला’ का निर्माण करके पटियाला को इसकी राजधानी बनाया गया। 1956 में ‘पेप्सू’ को पंजाब में मिला दिया गया। 1966 में पंजाब के कुछ भाग से ‘हरियाणा’ राज्य का निर्माण किया गया।
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में पंजाब के अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने योगदान दिया है जिसमें से प्रमुख हैं- करतार सिंह सराभा · ऊधम सिंह · भगतसिंह · सुखदेव · लाला लाजपत राय · राजकुमारी अमृत कौर · प्रताप सिंह कैरों · सोहन सिंह भकना · इन्द्र विद्यावाचस्पति · जगतराम · भाई परमानन्द · गुरुबख्श ढिल्लो · मदन लाल ढींगरा · गुरदयाल सिंह ढिल्लों · पंडित कांशीराम · राम सिंह · गोकुलचन्द नारंग · हरि किशन सरहदी · बलवंत सिंह ·
भूगोल
- भू-आकृति
पंजाब का अधिकांश हिस्सा समतल मैदानी है, जो पूर्वोत्तर में समुद्र तल से लगभग 275 मीटर से दक्षिण-पश्चिम में लगभग 168 मीटर की ऊँचाई की अनुवर्ती ढलान वाला है। भौतिक रूप से इस प्रदेश को तीन हिस्सों में बाँटा जा सकता है। पूर्वोत्तर में 274-914 मीटर की ऊँचाई पर स्थित शिवालिक पहाड़ियाँ राज्य का बहुत ही छोटा हिस्सा हैं। दक्षिण में शिवालिक पहाड़ियाँ संकरे और लहरदार तराई क्षेत्र के रूप में फैली हुई हैं, जिनसे होकर कई मौसमी धाराएँ बहती हैं। इनका स्थानीय नाम चोस है और इनमें से कई मैदानों में किसी नदी में शामिल हुए बिना ही समाप्त हो जाती हैं। तीसरा क्षेत्र जलोढ़ उपजाऊ मिट्टी वाला विशाल समतल मैदान है। मैदानी क्षेत्र में नदियों के किनारे निम्नभूमि पर स्थित बाढ़ के मैदान और उनके बीच में कम ऊँचाई पर स्थित समतल क्षेत्रों को अलग-अलग पहचाना जा सकता है। पहले रेत के टीलों से ढके दक्षिणी-पश्चिमी ऊँचे क्षेत्र को सिंचाई के व्यापक विस्तार के साथ ही लगभग समतल कर दिया गया है, जिससे समूचा परिदृश्य परिवर्तित हो गया है।
जलवायु
अंतर्देशीय उपोष्ण कटिबंधीय अवस्थिति के कारण पंजाब की जलवायु अर्द्ध शुष्क से अर्द्ध नम के बीच विविधतापूर्ण है। गर्मी का मौसम बेहद गर्म होता है; जून में औसत तापमान 34° से. होता है और विशेष रूप से गर्म दिनों में यह 45° से. तक पहुँच जाता है। यहाँ शीत ऋतु में सर्दी भी काफ़ी पड़ती है। जनवरी में औसत तापमान 13° से. होता है और कई बार रात के समय तापमान जमाव बिन्दु तक गिर जाता है। पूर्वोत्तर में स्थित शिवालिक पहाड़ियों में अधिकतम वार्षिक वर्षा 1,245 मिमी. दर्ज की जाती है, जो क्रमश: घटती हुई, दक्षिण-पश्चिम में लगभग 356 मिमी. रह जाती है। वार्षिक वर्षा का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के महीनों, जुलाई से सितम्बर के बीच होता है। पश्चिमी विक्षोभ के कारण दिसम्बर से मार्च तक शीत ऋतु में होने वाली वर्षा कुल वर्षा के एक-चौथाई हिस्से से भी कम होती है।
वन्य एवं प्राणी जीवन
सदियों से मानव बस्तियों के विकास के कारण पंजाब के मैदानी क्षेत्र के अधिकांश जंगल समाप्त हो गए हैं। शिवालिक पहाड़ियों के विशाल हिस्से में जंगलों की व्यापक कटाई के फलस्वरूप वृक्षों की जगह अब झाड़ीदार वनस्पति पाई जाती है। पर्वतीय ढलानों पर वन लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं। प्रमुख सड़कों के किनारे और ऊपर तथा बंजर भूमि पर यूकलिप्टस व पॉपलर के वृक्ष लगाए गए हैं।
प्रदेश के कुल क्षेत्रफल के तीन-चौथाई हिस्से में खेती होने के कारण वन्य जीवों के पर्यावास में भारी कमी आई है। इसके बावजूद पक्षियों, कृतंक जन्तुओं और साँप व अन्य जानवरों की कई प्रजातियों ने कृषि पर्यावरण के अनुसार स्वयं को अनुकूलित कर लिया है।
अर्थव्यवस्था
कृषिपंजाब की अर्थव्यवस्था में उत्पादन और वाणिज्यिक कृषि की प्रमुखता है और यहाँ विभिन्न लघु व मध्यम आकार के उद्योग हैं। भारत के मुख्य राज्यों में से पंजाब में प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है। भारत के कुल क्षेत्रफल के मात्र 1.6 प्रतिशत भू-भाग वाला पंजाब लगभग भारत के कुल अन्न उत्पादन का 12 प्रतिशत हिस्सा पैदा करता है।
पंजाब कृषि प्रधान राज्य है। पंजाब की भूमि बहुत ही उपजाऊ है। यहाँ गेंहू और चावल की फ़सल मुख्य रूप से होती है्। पंजाब राज्य में दिश के भौगोलिक क्षेत्र के सिर्फ़ 1.5 प्रतिशत भाग में देश के गेहूँ के उत्पादन का 22 प्रतिशत, चावल का 12 प्रतिशत और कपास की भी 12 प्रतिशत पैदावार का उत्पादन करता है। आजकल पंजाब में फ़सल गहनता 186 प्रतिशत से भी अधिक है। पिछले दो तीन दशकों में पंजाब ने गेहूँ का 40 से 50 प्रतिशत अधिक उत्पादन करके ‘देश की खाद्य टोकरी’ और ‘भारत का अनाज भंडार’ होने का ख़िताब ले लिया है। पंजाब का विश्व के कुल उत्पादन में, चावल एक प्रतिशत, गेहूँ दो प्रतिशत और कपास में 2 प्रतिशत का योगदान है। पंजाब में प्रति हेक्टेयर खाद का उत्पादन 177 किलोग्राम है। राष्ट्रीय स्तर पर खाद 90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग की जाती है। 1991-92 से 1988-99 तक और 2001 से 2003-04 तक लगातार कृषि विस्तार सेवाओं का राष्ट्रीय उत्पादक पुरस्कार प्राप्त किया है। आनंदपुर साहब में विश्व की सबसे बड़ी अनाज मंडी है।
- हरित क्रांति
पंजाब में कृषि का जबरदस्त विकास मुख्यत: हरित क्रांति का परिणाम है, जिसने राज्य में आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी की शुरुआत की। अधिक पैदावार वाले गेहूँ और चावल के बीजों के आगमन साथ ही इन फसलों के उत्पादन में कई गुना वृद्धि हुई। गेहूँ और चावल की खेती लगभग तीन-चौथाई कृषि क्षेत्र में होती है। अन्य वाणिज्यिक फसलों में कपास, गन्ना, आलू, और तिलहन हैं। मक्का, मूंगफली, चना, बाजरा और कुछ दलहनों की खेती में पिछले कुछ वर्षों में कमी आई है। हालांकि गेहूँ व चावल की उपज अब भी काफ़ी अच्छी है, इसमें और वृद्धि नहीं हो रही है। चावल के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होने के कारण भूमि के पोषक तत्त्व कम होते जा रहें। जिससे मिट्टी अनुपजाऊ हो रही है। परिणामस्वरूप उत्पादकता बनाए रखने के लिए अधिक उर्वरक का इस्तेमाल करना पड़ता है। मिट्टी की उर्वरता को फिर से प्राप्त करने के लिए और कृषि को लाभकारी उद्यम बनाने के लिए कृषि में विविधता लाने का प्रयास किया जा रहा है। बागबानी, फूलों की खेती, मुर्गीपालन और डेयरी उद्योगों का धीरे-धीरे विकास हो रहा है।
सिंचाई
पंजाब में सिंचाई के लिए 1134 सरकारी नहरें हैं, जिनसे भूमि की सिंचाई होती है। यहाँ सभी प्रकार की खेती होती है। कृषि प्रधान राज्य होने के कारण कृषि विकास को प्राथमिकता दी जाती है। पंजाब सरकार फ़सलों के विविधीकरण के लिए अनेक योजनाएँ चला रही है। पानी के सही इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करके विभिन्न ज़िलों के सिंचाई क्षेत्र में 0.97 लाख हेक्टेयर को बढ़ाया लिया है। राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्र 50.36 लाख हेक्टेयर है। कुल भूमि में से 42.90 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती होती है। राज्य में 33.88 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में नहरों से सिंचाई की जाती है। मुख्य नहरों और उनकी शाखाओं की कुल लम्बाई 14,500 कि.मी. है। रावी नदी पर बना ‘रणजीत सागर बाँध’ एक बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना है। 160 मीटर ऊंचे इस बांध में 3.48 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई उपलब्ध कराने की क्षमता है।
विश्व बैंक की सहायता से पंजाब में सिंचाई और जल परियोजनाओं का दूसरा चरण पूरा हो गया है। 1,0920 कि.मी. नालियों का निर्माण किया जा चुका है। 1260 कि.मी. लम्बी नालियों की मरम्मत और 53 कि.मी. नई नालियों का निर्माण किया गया है। भटिंडा नहर प्रणाली की तीन नहरों की क्षमता बढ़ाने के लिए 18.83 करोड की लागत की परियोजनाएँ पूरी कर ली हैं।
रणजीत सागर बाँध के अतिरिक्त पानी के लिए पुनर्निमाण की परियोजना प्रारम्भ की गयी है। 364.10कि.मी. लम्बी मुख्य नहर के निर्माण कार्य में से 298 कि.मी. के लगभग कार्य पूरा किया जा चुका है, 1,507 कि.मी. छोटी नालियों का का निर्माण 140 करोड रुपये की लागत से पूरा हो चुका है। बानुर नहर में सदैव पानी रहे, 38.08 करोड की लागत की योजना का प्रस्ताव नाबार्ड के पास भेजा है। पंजाब के कांदी क्षेत्र के विकास के लिए 11 छोटे बांधों को बनाया गया है जिनसे 12,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई का लक्ष्य है। राज्य में 1,615 टयूबवैल लगे हुए हैं। राज्य के कुल सिंचित क्षेत्र में से 60 प्रतिशत की सिंचाई निजी और सरकारी टयूबवैलों से और 40 प्रतिशत नहरों से सिंचाई होती है।
- सिंचित प्रदेश
पंजाब का लगभग समूचा कृषि क्षेत्र सिंचित है और इस प्रकार यह देश का सर्वाधिक सिंचित प्रदेश है। सरकारी नहरें और नलकूप सिंचाई के प्रमुख साधन हैं। हिमाचल प्रदेश में स्थित भाखड़ा बांध परियोजना राज्य के सिंचाई का अधिकांश जल उपलब्ध कराती है। दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम पंजाब में मुख्यत: नहरों के ज़रिये सिंचाई होती है, जबकि उत्तर और पूर्वोत्तर में नलकूपों (तीन-चौथाई से अधिक नलकूप बिजली द्वारा चालित) का व्यापक उपयोग होता है और दक्षिण-पश्चिम में फुहारों से सिंचाई भी प्रचलित है। लगभग 1970 में संपन्न हुई चकबंदी के कारण निजी नलकूप सिंचाई का तेजी से विकास हुआ, साथ ही यंत्रों के इस्तेमाल समेत कृषि की कार्यकुशलता में भी वृद्धि हुई। आमतौर पर ज़्यादा खेतों वाले किसानों को हरित क्रांति की कार्यकुशलता में भी वृद्धि हुई। ज़्यादा खेतों वाले किसानों को हरित क्रांति से ज़्यादा लाभ हुआ, जिसमें राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में आय की विषमता बढ़ी। सूती,,ऊनी और रेशमी वस्त्र उद्योग, खाद्य उत्पाद , धातु उत्पादन, परिवहन उपकरण व पुर्जे, धातु व मिश्र धातु उद्योगों में सबसे ज़्यादा श्रमिक कार्यरत हैं।
बिजली
भाखड़ा बाँध, भाखड़ा मेन लाइन, नाँगल पनबिजली योजना, गंगूवाल और कोटला पावर हाउस, हरिके बैराज, सरहिंद फीडर, माधोपुर हेडवर्क को बैराज बनाना और पोग में व्यास नदी का बांध आदि कुछ सिंचाई और पनबिजली परियोजना हैं। माधोपुर व्यास लिंक का निर्माण रावी नदी के अतिरिक्त पानी को व्यास में स्थानांतरित करने के लिए किया गया है। व्यास-सतलुज नदी लिंक परियोजना में व्यास नदी के पानी का प्रयोग बिजली के उत्पादन के बाद इस पानी को गोविंद सागर झील में भेजने का प्रबंध किया गया है। मुकेरिया और आनंदपुर साहिब पनबिजली योजनाएँ महत्त्वपूर्ण सिंचाई और बिजली परियोजनाएं हैं।
रणजीत सागर बांध योजना एक बहु उद्देशीय परियोजना है जिसमें रावी नदी पर 160 मीटर ऊंचा बांध बनाया जा रहा है जिससे 3.48 लाख हेक्टेयरभूमि के लिए सिंचाई की क्षमता है। रणजीत सागर बाँध की चारों इकाइयां सफलतापूर्वक चल रही हैं। इस परियोजना से 2100 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन किया जा सकेगा। कुल उत्पादन की 4.6 बिजली जम्मू और कश्मीर को दी जाएगी।
उद्योग
महत्त्वपूर्ण उद्योगों में होजरी, साइकिल, सिलाई मशीन, खेल के समान, बिजली की मशीनें, उपकरण व पुर्जों का निर्माण शामिल है। जीवाश्म ईंधनों के अभाव में पंजाब के उद्योगों को ऊर्जाकी कमी का सामना करना पड़ता है। राज्य के लगभग तीन-चौथाई घरों में बिजली का उपयोग होता है। नये बिजली घर और तापविद्युत परियोजनाएँ काम कर रही हैं लेकिन माँग आपूर्ति से कहीं अधिक है।
परिवहन
- सड़क मार्ग
- पंजाब राज्य की सड़कों की कुल लम्बाई 50,506 कि.मी. है।
- सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि लगभग सभी गांव सड़कों से जुड़े हुए है।
- पंजाब राज्य सरकार की सड़कों, पुलों और भवनों के रखरखाव का दायित्व पी.डब्लू.डी. की है।
- ‘पंजाब सड़क और बाँध विकास बोर्ड’ की स्थापना 1998 में हुई। इसका उद्देश्य राज्य की सड़कों के लिए अतिरिक्त साधन जुटाना था।
- रेल मार्ग
- देश की रेल प्रणाली के एक हिस्से, उत्तरी रेलवे का कार्यकुशल व्यापक संजाल पंजाब में है।
- रेल सेवा की तरह ही डाक व तार सेवा और रेडियों तथा टेलीविश्ज़न का प्रसारण केंद्र सरकार के नियंत्रण में है।
- राज्य में रेलवे मार्ग की कुल लम्बाई 3,726.06 कि.मी. है।
- पाकिस्तान से जुड़ा रेल मार्ग भी पंजाब के अमृतसर से है।
- बंदरगाह
- दिल्ली से चंडीगढ़ और अमृतसर, लुधियाना और भटिंडा नगरों के लिए भी नियमित हवाई सेवाएँ उपलब्ध हैं।
- पंजाब राज्य में चार नागरिक विमान क्लब अमृतसर, लुधियाना, पटियाला और जालंधर में हैं। इनके अतिरिक्त चंडीगढ़ में एक अंतरराज्यीय हवाई अड्डा, राजासांसी (अमृतसर) में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और पटियाला, सहनेवाल (लुधियाना) में दो हवाई अड्डे हैं।
शिक्षा
सरकार के साथ- साथ में निजी संगठनों ने भी स्कूल और महाविद्यालय स्तर पर बालक- बालिकाओं की शिक्षा के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मान्यता प्राप्त निजी प्रबंधन वाले संस्थानों को काफ़ी हद तक सरकार से मदद मिलती है। छह से ग्यारह साल तक के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य है। वस्तुत: प्रत्येक गाँव के निकट प्राथमिक विद्यालय और राज्य में उच्चतर माध्यमिक, उच्च और मध्य विद्यालयों के सधन नेटवर्क के बावजूद पंजाब में 1991 तक सिर्फ़ 58.5 प्रतिशत जनसंख्या (सात साल और उससे अधिक आयू के) साक्षर थी, जबकि भारत का औसत 52.2 प्रतिशत है। साक्षरता दर अनुसूचित जनजाति (41 प्रतिशत), विशेषकर महिलाओं में (31 प्रतिशत ), काफ़ी कम है।
पंजाब में छह विश्वविद्यालय हैं: पटियाला में पंजाबी विश्वविद्यालय, अमृतसर में गुरुनानक देव विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय (केंद्र द्वारा संचालित और चंडीगढ़ केंद्रशासित प्रदेश में स्थित), लुधियाना में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, जालंधर में पंजाब तकनीकी विश्वविद्यालय (राज्य के सभी इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान इससे संबद्ध हैं), और फ़रीदकोट में बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ़ हेल्थ साइंसेज़ (सभी मेडिकल/ डेंटल और आयुर्वेदिक कॉलेज इससे संबद्ध हैं)। राज्य में 225 से अधिक कॉलेज और व्यावसायिक संस्थान हैं। व्यावसायिक संस्थानों में बेअंत कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी (गुरदासपुर), बी. बी. एस. कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग (फ़तेहगढ़), बी. जे कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी (रोपड़), कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग (लुधियाना), बी. आर. ए. रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज (जालंधर), जी. एन. डी. इंजीनियरिंग (लुधियाना), जी.आर. स्कूल ऑफ़ प्लानिंग ऐंड आर्किटेक्चर (अमृतसर), एस. बी. एस. कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी (फ़िरोज़पुर), एस. एल. इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी (संगरूर), एस. यू. एस. कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग ऐड टेक्नोलॉजी (मोहाली), थापर इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी (पटियाला), आदेश इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी और जी. ज़ेड. एस. कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी (भटिंडा) शामिल हैं।
प्रबंधन और कंप्यूटर विज्ञान ऐप्लीकेशन में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम की शुरुआत करने पर बल दिया जा रहा है। साथ ही प्रसारण के ज़रिये रोज़गारोन्मुख तथा सांस्कृतिक शिक्षा का प्रसार भी महत्त्वपूर्ण है। पंजाब में व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा प्राप्त लोग बड़ी संख्या में होने चाहिए, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि सभी स्तरों पर विशषकर स्कूलों में शैक्षिक प्रबंधन सुनिश्चित किया जाए।
सांस्कृतिक जीवन
लोकगीत, प्रेम और युद्ध के नृत्य मेले और त्योहार, नृत्य, संगीत तथा साहित्य इस राज्य के सांस्कृतिक जीवन की विशेषताएं हैं। पंजाबी साहित्य की उत्पत्ति को 13 वीं शताब्दी के मुसलमान सूफी संत शेख़ फरीद के रहस्यवादी और धार्मिक दोहों तथा सिक्ख पंथ के संस्थापक, 15वीं-16वीं शताब्दी के गुरु नानक से जोड़ा जा सकता है। जिन्होंने पहली बार काव्य अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में व्यापक रुप से पंजाबी भाषा का उपयोग किया। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में पंजाबी साहित्य को समृद्ध बनाने में वारिस शाह की भूमिका अतुलनीय है। 20वीं शताब्दी के आरंभ में कवि व लेखन भाई वीरसिंह तथा कवि पूरण सिंह और धनी राम चैत्रिक के लेखन के साथ ही पंजाबी साहित्य ने आधुनिक काल में प्रवेश किया। हाल के वर्षों में पंजाबी संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को चित्रित करने वाली विभिन्न लेखकों, कवियों और उपन्यासकारों की भूमिका भी काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। कवियों में सबसे प्रसिद्ध मोहन सिंह माहिर और शिव कुमार बटालवी थे; उपन्यासकारों में जसंवतसिंह कंवल, गुरदयाल सिंह और सोहन सिंह शीतल उल्लेखनीय हैं; कुलवंत सिंह विर्क एक विख्यात लेखक हैं। पंजाब के ग्रामीण जीवन का चित्रण करने वाले सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में से एक ज्ञानी गुरदित सिंह की मेरा पिण्ड है, जो पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट रचना है।
पंजाब में कई धार्मिक और मौसमी त्योहार, जैसे- दशहरा, दीपावली, बैसाखी और विभिन्न गुरुओं तथा संतों की वर्षगांठ-मनाए जाते हैं। भांगड़ा, झूमर और सम्मी यहाँ के लोकप्रिय नृत्य हैं। पंजाब की स्थानीय नृत्य शैली गिद्दा, महिलाओं की विनोदपूर्ण गीत-नृत्य शैली है। सिक्खों के धार्मिक संगीत के साथ-साथ उपशास्त्रीय मुग़ल शैली भी लोकप्रिय है, जैसे खयाल, ठुमरी, गजल और कव्वाली।
राज्य के उल्लेखनीय वास्तुशिल्प स्मारकों में अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर) है, जो उत्तर मुग़ल शैली के अनुरूप निर्मित है। इसके गुंबद और ज्यामितीय रुपांकन जैसी प्रमुखताएं सिक्खों के अधिकांश पूजा स्थलों में दुहराई गई हैं। स्वर्ण मंदिर में सोने की जरदोजी का काम, बूटेदार फलक और रंगीन पत्थरों से सज्जित संगमरमर की दीवारें हैं। अन्य महत्त्पूर्ण भवनों में अमृतसर में जलियाँवाला बाग़ में शहीद स्मारक, दुर्गियाना (अमृतसर में भी) का हिन्दू मंदिर, कपूरथला में स्थित मूर शैली की मस्जिद और भटिंडा तथा बहादुरगढ़ में स्थित पुराने क़िले हैं।
- त्योहार
- दशहरा
- दीपावली
- होली
- मुक्तसर का माघी मेला
- क़िला रायपुर में ग्रामीण खेल
- पटियाला का बसंत
- आनन्दपुर साहिब का होला मोहल्ला
- तलवंडी साबू में वैशाखी
- सरहिंद में रोज़ा शरीफ़ पर उर्स, छप्पर मेला
- फ़रीदकोट में शेख़ फ़रीद आगम पर्व
- गांव रामतीरथ में राम तीरथ
- सरहिंद में शहीदी ज़ोर मेला
- हरि वल्लभ संगीत सम्मेलन
- जालंधर में बाबा सोदाल आदि
पर्यटन
- पंजाब की पावन भूमि से संत भी पैदा हुए और ऐतिहासिक युद्ध भी हुए। पुरातत्त्व ज्ञान का यहाँ भंडार है।
- राज्य में पर्यटकों की रुचि के बहुत से स्थान हैं।
- इनमें अमृतसर का स्वर्णमंदिर, दुर्गियाना मंदिर, जलियाँवाला बाग़, स्टील सिटी- गोविन्दगढ़ में, आनंदपुर साहब में तख़्त श्री केशगढ़ साहब, खालसा सांस्कृतिक परिसर, भाखड़ा-नांगल बांध, पटियाला में क़िला अंदरून, मोतीबाग़ राजमहल, हरिके पट्टन में आर्द्र भूमि, पुरातात्विक महत्त्व का संगोल और छतवीर चिडियाघर, आम ख़ास बाग़ में मुग़लकालीन स्मारक परिसर और सरहिंद में अफ़ग़ान शासकों की क़ब्रें और शेख़ अहमद का रोज़ा शरीफ, जालंधर में सोदाल मंदिर और महर्षि वाल्मीकि का स्मारक आदि मुख्य हैं।
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