तंत्रिका तंत्र | the nervous system
तंत्रिका तंत्र- मानव तंत्रिका तंत्र एक ऐसा तंत्र होता है जो अंगो व वातावरण के मध्य सामंजस्य स्थापित करता है तथा विभिन्न अंगो के कार्यो को नियंत्रित करता है | मानव तंत्रिका तंत्र को तीन भागो में विभक्त किया गया है |
( 1 ) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र- केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में मुख्य रूप से मस्तिष्क , मेरुरज्जु तथा इनसे निकलने वाली तंत्रिका कोशिकाए शामिल होती है |
(A) मस्तिष्क – मानव मस्तिष्क केंद्रीय तंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग है यह हमारे शरीर का समन्वय अंग है | मस्तिष्क अस्थियो के खोल में बंद रहता है जिसे क्रेनियम कहते है | मानव मस्तिष्क का औसतम वजन 1350-1450 ग्राम होता है | मस्तिष्क के उपर तीन झिल्लियो का आवरण होता है | सबसे बाहरी आवरण द्रढतनिका , मध्य स्तर मृदूतानिका कहलाता है | तथा सबसे आंतरिक भाग जालतानिका कहलाता है | इन झिल्लियो के मध्य एक द्रव पाया जाता है जिसे प्रमस्तिष्क मेरु द्रव कहते है | यह द्रव मस्तिष्क की बाह्य आघातों से सुरक्षा करता है | मस्तिष्क को तीन भागो में बांटा गया है |
(1)अग्रमस्तिष्क – यह पुरे मस्तिष्क का 2/3 भाग होता है | अग्र मस्तिष्क तीन भागो से मिलकर बना है –
प्रमस्तिष्क – प्रमस्तिष्क मान मस्तिष्क का 80 से 85% भाग होता है | प्रमस्तिष्क में ज्ञान , चेतना व सोचने विचारने का कार्य संपन्न होता है |
थैलेमस- थैलेमस संवेदी व प्रेरक संकेतो का केंद्र है | सभी संवेदी सुचनाए थैलेमस में से होकर गुजरती है |
हाइपोथैलेमस – यह थैलेमस में नीचे स्थित होता है | यह भाग भूख, प्यास, निंद्रा, घ्रणा , क्रोध आदि का ज्ञान करवाता है |
(2)मध्यमस्तिष्क – यह चार पिंडो से मिलकर बना होता है जो पश्च मस्तिष्क व हाइपोथैलेमस के मध्य स्थित होता है | प्रत्येक पिंड को कॉपोरा क्वाड्रीजिमेन कहते है |
उपर दो पिंड देखने के लिए व निचे दो पिंड सुनने के लिए उत्तरदाई होते है |
पश्चमस्तिष्क – पश्चमस्तिष्क अनुमस्तिष्क , पाँस तथा मेंडूला आँबलागेट ( मध्यांश ) से मिलकर बना होता है |
अनुमस्तिष्क – यह मस्तिष्क का दूसरा सबसे बड़ा भाग है जो एच्छीक पेशियों को नियंत्रित करता है | अनुमस्तिष्क चलने , फिरने दौड़ने आदि में सहायता करता है |
वांस– यह मस्तिष्क के विभिन्न भागो को आपस में जोडता है |
मेडुला आँबलागेट ( मध्यांश ) – यह समस्त अनएच्छीक क्रियाओ को नियंत्रित करता है | जैसे-खांसना , छिकना , ह्रदय की धड़कन आदि |
( 2 ) परीधीय तंत्रिका तंत्र – परीधीय तंत्रिका तंत्र की 12 जोड़ी कपाल तंत्रिका व 31 जोड़ी मेरु तंत्रिका से मिलकर बना होता है | परीधीय तंत्रिका तंत्र को सन्देश पहुचाने का कार्य करता है |
( 3 ) स्वायत तंत्रिका तंत्र – यह तंत्र उन अंगो की क्रियाओ को नियंत्रित करता है जो व्यक्ति की इच्छा से नहीं बल्कि अपितु स्वन्तय ही कार्य करता है | इसे दो भागो में बांटा गया है –
(A) अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र – यह व्यक्ति से शरीर को आपातकालीन स्थिति में अतिरिक्त उर्जा प्रदान करता है | आपातकालीन स्थिति में ह्रदय की गति का तेज होना , श्वास की गति का बढना आदि क्रियाए इसी के द्वारा संपन्न होती है |
(B) परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र – यह तंत्र शारीरिक उर्जा का संचयन करता है | यह आँख की पुतली को सिकोड़ता है तथा लार व पाचक रसो में वर्धि करता है |
तंत्रिका कोशिका –तंत्रिका कोशिका तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक इकाई है | तंत्रिका कोशिका के द्वारा संदेशो को एक स्थान से दुसरे स्थान तक भेजा जाता है | तंत्रिका कोशिकाए शरीर के प्रत्येक अंग को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से जोडकर रखती है | तंत्रिका कोशिका के निम्नलिखित तीन भाग होते है –
(1)द्रुममाश्य – ये कोशिका काय से निकले छोटे छोटे तंतु होते है | ये तंतु ब्राह्य उद्दीपनो को कोशिका काय की और भेजते है |
(2) कोशिका काय ( साईंटान ) – ये कोशिका काय में एक केंद्र तथा प्रारूपिक कोशिकांग पाए जाते है |
(3) तंत्रिकाक्ष ( एक्सान ) – यह एक लम्बा बेलनाकार प्रवर्ध है जो कोशिका काय के एक भाग से शुरू होकर धागेनुमा शाखाए बनाता है |
तत्रिका कोशिका की क्रिया विधि – सर्वप्रथम पर्यावरण से सुचनाए को द्रुमाशय द्वारा ग्रहण किया जाता है | जिससे यह रासायनिक क्रिया द्वारा बिधुत आवेग उत्पन्न किया जाता है | यह आवेग कोशिकाय तक जाता है और तंत्रिकाक्ष से होता हुवा इसके अंतिम सिरे तक पहुच जाता है | तंत्रिकाक्ष के अंतिम सिरे पर एक रासायनिक पदार्थ स्त्रावित होता है | यह रासायनिक पदार्थ दूसरी तंत्रिका के द्रुमाशय में विधुत आवेश उत्पन्न कर देता है |
अन्त: स्त्रावी तंत्र – अन्त:स्त्रावी तंत्र एक एसा तंत्र है जो तंत्रिका तंत्र के साथ मिलकर शरीर की कोशिकीय क्रियाओ में समन्वय स्थापित करता है | यह तंत्र अंत: स्त्रावी ग्रन्थियो के माध्यम से कार्य करता है |
प्रमुख मानव अन्त: स्त्रावी ग्रन्थियाँ –
- पीयूष ग्रन्थि ( पीट्युटरी ) – यह ग्रन्थि मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस भाग में स्थित होता है | इस ग्रन्थि का आकार मटर के दाने जितना होता है | इसे मास्टर ग्रन्थि भी कहते है | इस ग्रन्थि द्वारा हार्मोन स्त्रावित होते है | जैसे- व्रद्धी हार्मोन , वेसोप्रसिन हार्मोन , ऑक्सीटोसीन हार्मोन और प्रोलैक्टिन हार्मोन इत्यादि |
- पीनियल ग्रन्थि ( आक्रति , जैविक घडी , क्रियाशील , तृतीय नेत्र ) – यह ग्रन्थि अग्र मस्तिष्क के हार्मोन के उपरी भाग में पाई जाती है | इस ग्रन्थि द्वारा मेलेटोनिन हार्मोन स्त्रावित होता है | जो त्वचा के रंग को हल्का करता है तथा जननांगो के विकाश में विलब करता है |
- थायराइड ग्रन्थि – इसे अवतु ग्रन्थि भी कहते है | यह ग्रन्थि गले में स्थित होती है | इसक आकार अंग्रेजी के U आकार जैसा होता है | थायराइड ग्रन्थि से थाईरोक्सिंन हार्मोन स्त्रावित होता है | जो उपापचयी क्रियाओ को नियंत्रित करता है | थाईरोक्सिंन हार्मोन की कमी से गलगंड व घेघा रोग होता है |
- पैराथाइराइड ग्रन्थि – यह ग्रन्थि थायराइड ग्रन्थि पीछे स्थित होती है | ग्रन्थि के द्वारा एक हार्मोन स्त्रावित होता है जिसे पैराथार्मोंन कहते है | जो रक्त में कैल्सियम की मात्रा की नियंत्रित करता है | इस हार्मोन की कमी से टिटेनी रोग हो जाता है |
- अग्नाशय ग्रन्थि – इसे मिश्रित ग्रन्थि भी कहते है | इसमें कोशिकाओ के कुछ विषेश अवशेष पाए जाते है जिन्हें लैंगर हैंस द्वीप कहते है | इनमे दो प्रकार की कोशिकाए पाई जाती है जिन्हें क्रमश: α कोशिका β कोशिका कहते है | कोशिका से ग्लुकोश हार्मोन स्र्तावित होता है | जो ग्लुकोजन को ग्लुकोश में परिवर्तित कर देते है | β कोशिकाओ से इन्सुलिन हार्मोन की कमी से मूत्र में ग्लुकोश को मात्रा बढ़ जाती है जिससे मधुमेह ( डायबिटिज मेलिटस ) रोग कहते है |
- थाईमस ग्रन्थि – थाईमस ग्रन्थि द्वारा ह्रदय के आस पास स्थित होती है | यह ग्रन्थि छोटे बच्चो में सर्वाधिक विकसित होती है | इस ग्रन्थि से थाईमोसिन नामक हार्मोन स्त्रावित होता है | जो शरीर को रोग प्रतिरोधकता क्षमता को बढाता है | यह 10 से 12 वर्ष की आयु में सक्रिय रहता है |
- एड्रीनल ( अधिवृक्क ) ग्रन्थि – यह ग्रन्थि वृक्को के ऊपर स्थित होती है | इस ग्रन्थि से दो हार्मोन निकलते है | जिन्हे क्रमश: एड्रीनलिन तथा नॉटएड्रीनलिन कहा जाता है | एड्रीनलिन हार्मोन व्यक्ति को आपातकालीन परिस्थितियों से सामना करने के लिए तैयार रहता है | इसलिए इसे आपातकालीन हार्मोन या करो या मरो हार्मोन या 3F हार्मोन कहते है |
- जनन ग्रन्थियाँ – ये दो प्रकार की होती है –
(A) वृर्षण – ये नर जनन ग्रन्थिया होती है | इससे टेस्टोंस्टेरोंन नामक हार्मोन स्त्रावित होता है जो नर में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का विकाश करता है | इसकी कमी से नपुसंगता हो सकती है |
(B) अंडाशय – ये मादा जनन ग्रन्थियाँ होती है इसमें एस्ट्रोजन नामक हार्मोन स्त्रावित होती है | जो मादा में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों के लिए उत्तरदाई होती है | इसकी कमी से स्त्रियों में बंध्यता आ जाती है |
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