शब्द विचार हिंदी
शब्द– वर्णो के मेल से बने हुए स्वतंत्र एवं सार्थक ध्वनि-समूह को शब्द कहते हैं ।
जैसे- हम, गाड़ी, मकान, इत्यादि ।
शब्दों का वर्गीकरण– शब्दों का वर्गीकरण मुख्यत: चार आधारों पर किया जाता है
अर्थ, रचना, उत्पत्ति तथा रूपांतर।
अर्थ के अनुसार शब्द के दो भेद हैं- (क) सार्थक और (ख) निरर्थक
अर्थपूर्ण शब्दों को सार्थक तथा अर्थहीन शब्दों को निरर्थक कहा जाता है
रचना की दृष्टि से शब्द तीन प्रकार के होते हैं– (1) रूढ़ (2) यौगिक और (3) योगरूढ़ ।
(1) रूढ़– जिनका कोई भी खंड सार्थक न हो और जो परम्परा से किसी विशेष अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। जैसे-
लोटा, पानी, जल, इत्यादि ।
(2) यौगिक– यौगिक उन शब्दों को कहते हैं, जिनके खंड सार्थक होते हैं ।
जैसे- विद्यालय (विद्या और आलय), दयासागर (दया और सागर), आदि ।
(3) योगरूढ़– ऐसे शब्द, जो यौगिक तो होते हैं, पर सामान्य अर्थ को छोड़कर विशेष अर्थ का बोध कराते हैं, योगरूढ़ कहलाते हैं । जैसे-पंकज शब्द ‘पंक’ और ‘ज’ के मेल् से बना है, जिसका विशेष अर्थ कमल होता है ।
उत्पत्ति के अनुसार शब्द के पाँच भेद हैं-(1) तत्सम, (2) तद्भव, (3) देशज, (4) विदेशज (विदेशी) और (5) संकर ।
(1) तत्सम– तत्सम संस्कृत के वे शब्द, हैं जो अपने मूल रूप में हिन्दी में आये हैं । जैसे-अग्नि, पुष्प, पुस्तक, इत्यादि ।
(2) तद्भव– संस्कृत के वे शब्द, जिनके रूप हिन्दी में आने पर बदल गये हैं, तद्भव कहलाते हैं । जैसे-आग, कपूर, आँख, इत्यादि ।
(3) देशज– जो शब्द स्थानीय बोलियों से हिन्दी में आये हैं, उन्हें देशज कहते हैं ।
जैसे- पेट, डिबिया, लोटा, पगड़ी, इत्यादि ।
(4) विदेशज-जो शब्द विदेशी भाषाओं से लिये गये हैं, उन्हें विदेशज कहते हैं।
जैसे- पुलिस, स्कूल, स्टेशन, इत्यादि ।
(5) संकर– दी भाषाओं के शब्दों को मिलाकर बनाये गये शब्दों को ‘संकर‘ कहा जाता है ।
जैसे-रेलगाड़ी, टिकटघर, आदि ।
रूपांतर के अनुसार शब्दों के दो भेद हैं- विकारी’ और ‘अविकारी’।
‘विकारी‘ वे शब्द हैं, जिनके लिंग, पुरुष और वचन के कारण रूप बदलते हैं।
जैसे- गाय, लड़क, यह, वह, इत्यादि ।
‘अविकारी’ वे शब्द हैं, जिनके रूप कभी नहीं बदलते हैं, इन्हें अव्यय भी कहते हैं ।
जैसे- आज, यहाँ, वहाँ, इत्यादि ।
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