उत्सर्जन तंत्र

उत्सर्जन तंत्र 

उत्सर्जन तंत्र 

अपशिष्ट पदार्थ – प्राणियो में उपापचयी क्रियाओ के फलस्वरूप उपयोगी पदार्थो के साथ-साथ अनेक अनुपयोगी पदार्थ भी बनते है | इन अनुपयोगी पदार्थो को ही अपशिष्ट पदार्थ कहते है |

उत्सर्जन- उपापचयी क्रियाओ के फलस्वरूप प्राणियो में अनेक अपशिष्ट पदार्थ बनते है | जो की शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक होते है | अतः इनको शरीर से बहार निकालना आवश्यक होता है |

“अपशिष्ट पदार्थो को शरीर से बहार निकालने की प्रक्रिया को उत्सर्जन कहते है |”



नाईट्रोजनी अपशिष्ट के प्रकार –

1. अमोनोटेलिक – इसे जीव जिनमे उत्सर्जी पदार्थ के रूप में अमोनिया का उत्सर्जन किया जाता है | उदा.- अस्थिल मछलियाँ , उभयचर , जलीय कीड़े |

२. युरियोटेलिक – इसे जीव जिनमे उत्सर्जी पदार्थ के रूप में यूरिया का उत्सर्जन किया जाता है | युरियोटेलिक जीव कहलाते है |

उदा.- पक्षी , सरीसर्प |

मानव उत्सर्जन तंत्र- मान उत्सर्जन तंत्र में निम्नलिखित प्रमुख अंग होते है –

1. वृक्क ( किडनी ) – मनुष्यों में मुख्य उत्सर्जी अंग एक जोड़ी वृक्क होते है | वृक्क उदरगुहा में पीठ     की और अमाशय के नीचे मेरुदंड के दांये व बांये भाग में स्थित होते है | ये गहरे भूरे रंग केवा सेम के बीज के आकार के होते है |

२. मूत्रवाहिनी – वृक्क  से होती हुई एक लम्बी नलिका निकलती    है जिसे मूत्रवाहिनी कहते है | यह मूत्रवाहिनी मूत्राशय में खुलती है |

3. मुत्राशय – यह पेशीय भित्ति युक्त थैले नुमा संरचना है जो मूत्र का संचय करता है | इसमें लगभग 700-800 ml मूत्र संचित रहता है |

4.नेफ्रोंन ( वृक्काणु ) – वृक्क     में लगभग एक लाख तीस हजार शुक्ष्म नलिकाए पाई जाती है |  इन शुक्ष्म नलिका को नेफ्रोन को संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई होती है | नेफ्रोन को संरचनात्मक द्रष्टि  से दो भागो में बांटा    गया है |

मैलपीधी कोष – इसे दो भागो में बांटा गया है –

(1)प्यालेनुमा संरचना बोमेन सम्पुट कहलाती है |

(2) रुधिर कोशिकाओ का गुच्छा ग्लोमेरुलस कहलाता है |

2. स्त्रावी नलिका-इसे तीन भागो में बांटा गया है –

  1. समीपस्थ – स्त्रावी नलिका का सबसे प्रारंभिक भाग समीपस्थ कुंडलित नलिका कहलाता है |
  2. स्त्रावी नलिका का मध्य भाग हेनले का लूप कहलाता है |
  3. स्त्रावी नलिका का अंतिम भाग दूरस्थ कुंडलित नलिका कहलाता है |

Q.1 मूत्र निर्माण की प्रक्रिया को समझाये ?

उत्तर- मूत्र निर्माण की प्रक्रिया तीन चरणों में संपन्न होती है –

  1. परानिस्यन्दन ( छानना ) – रुधिर को ग्लोमेरुलस द्वारा छानना  परानिस्यन्दन कहलाता है | तथा छनित पदार्थ ग्लोमेरुलस फिल्ट्रेट कहते है |
  2. चयनात्मक पुनरावशोषण – ग्लोमेरुलस फिल्ट्रेट को जब स्त्रावी नलिका से गुजरा जाता है तो उसमे से उपयोगी पदार्थ को अवशोषित कर लिया जाता है |
  3. स्त्रावण – अपशिष्ट पदार्थो को मूत्र के रूप में बहार निकालना स्त्रावण कहलाता है |

मूत्र का पीला रंग युरोक्रोम वर्णक के कारण होता है |

यूरिया सूत्र- NH2CoNH2



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