लोकसभा अध्यक्ष

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गणेश वासुदेव मावलंकर भारत के प्रथम लोकसभा अध्यक्ष

लोकसभा का अध्यक्ष संसद के निम्न सदन का सभापति होता है। ‘लोकसभा अध्यक्ष’ का पद भारतीय लोकतंत्र में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। अध्यक्ष पद के बारे में कहा गया है कि संसद सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, अध्यक्ष सदन के ही पूर्ण प्राधिकार का प्रतिनिधित्व करता है। वह उस सदन की गरिमा और शक्ति का प्रतीक है जिसकी वह अध्यक्षता करता है। अतः यह अपेक्षा की जाती है कि इस उच्च गरिमा वाले पद का पदाधिकारी एक ऐसा व्यक्ति हो, जो सदन के सभी आविर्भावों में उसका प्रतिनिधित्व कर सके। अध्यक्ष को सौंपा गया दायित्व है कि वह संसदीय जीवन के किसी भी पहलू को नजरअंदाज नहीं कर सकता है। सभा में उसके कार्यकलापों की बारीकी से संवीक्षा होती है और जनसंचार माध्यमों में इनका व्यापक रूप से बखान किया जाता है। संसद की कार्यवाही का दूरदर्शन पर प्रसारण आरंभ किये जाने से यह सभा की दिन-प्रतिदिन के कार्यकलापों को देश में लाखों-करोड़ों घरों तक पहुंचा देता है जिससे अध्यक्ष की भूमिका और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है। यद्यपि, अध्यक्ष सभा में कभी-कभार ही बोलता है, परन्तु वह जब भी कुछ बोलता है तो सम्पूर्ण सदन के लिए बोलता है।

संसदीय लोकतंत्र का संरक्षक

अध्यक्ष को संसदीय लोकतंत्र की परम्पराओं का वास्तविक संरक्षक माना जाता है। उसकी अनन्य स्थिति का चित्रण इसी तथ्य से हो जाता है कि उसे हमारे देश के पूर्वता-अधिपत्र में एक अत्यधिक ऊँचा स्थान दिया गया है और उसका नाम राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री के तत्काल पश्चात रखा गया है। भारत में अध्यक्ष के पद को देश के संविधान के द्वारा लोक सभाके प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों तथा प्रथाओं और परिपाटियों के द्वारा संसदीय कार्यवाही का सुचारू संचालन में उसकी सहायता करने और अपने पद की स्वतंत्रता और निष्पक्षता की रक्षा करने हेतु पर्याप्त शक्तियां दी गई हैं। भारत के संविधान में यह प्रावधान है कि अध्यक्ष के वेतन तथा भत्तों पर संसद में मतदान नहीं किया जाएगा और ये भारत की संचित निधि पर भारित होंगे।



 

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अध्यक्ष का कार्यकाल

अध्यक्ष, इस पद पर निर्वाचित किये जाने की तारीख से लेकर जिस लोक सभा में उसका निर्वाचन किया गया हो, उसके भंग होने के बाद नई लोक सभा की प्रथम बैठक के ठीक पहले तक इस पर आसीन रहता है। वह पुनः इस पद पर निर्वाचित हो सकता है। लोक सभा भंग होने की स्थिति में यद्यपि अध्यक्ष संसद सदस्य नहीं रहता है परन्तु उसे अपना पद नहीं छोड़ना पड़ता है। अध्यक्ष किसी भी समय उपाध्यक्ष को लिखित सूचना देकर अपने पद से त्याग-पत्र दे सकता है। अध्यक्ष को उसके पद से लोक सभा में उपस्थित सदस्यों द्वारा बहुमत से पारित संकल्प द्वारा ही हटाया जा सकता है। इस आशय से प्रस्तुत संकल्प में कुछ शर्तें अनिवार्यतः पूरी करनी होती हैं जैसे कि इसमें लगाए गए आरोप सुस्पष्ट होने चाहिये, इसमें तर्क-वितर्क, निष्कर्ष, व्यंग्योक्ति, लांछन और मानहानि संबंधी कोई कथन आदि नहीं होना चाहिए। यही नहीं, बल्कि चर्चा भी संकल्प में लगाये गये आरोपों तक ही सीमित रहनी चाहिए। ऐसे किसी संकल्प को प्रस्तुत किये जाने के कम से कम 14 दिन पहले इस आशय की सूचना देनी भी आवश्यक है।

अध्यक्ष का चुनाव

भारतीय संसद के निचले सदन, लोक सभा में, दोनों पीठासीन अधिकारियों, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन, इसके सदस्यों में से सभा में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा किया जाता है। वैसे तो अध्यक्ष के निर्वाचन के लिए कोई विशेष योग्यता निर्धारित नहीं की गई है और संविधान में मात्र यह अपेक्षित है कि वह सभा का सदस्य होना चाहिए। परन्तु अध्यक्ष का पद धारण करने वाले व्यक्ति के लिए संविधान, देश के क़ानून, प्रक्रिया नियमों और संसद की परिपाटियों की समझ होना एक महत्त्वपूर्ण गुण माना जाता है। लोक सभा अध्यक्ष का निर्वाचन सभा के जीवन की एक महत्त्वपूर्ण घटना होती है। नव-गठित सभा के प्रथम कार्यों में से एक कार्य अध्यक्ष का निर्वाचन करना होता है। सामान्यतः सत्तारूढ़ दल के सदस्य को ही अध्यक्ष निर्वाचित किया जाता है। तथापि, कई वर्षों से एक स्वस्थ परिपाटी विकसित हुई है जिसके अन्तर्गत सत्तारूढ़ दल सदन में अन्य दलों और समूहों के नेताओं के साथ अनौपचारिक विचार-विमर्श करने के पश्चात् ही अपना उम्मीदवार घोषित करता है। इस परिपाटी से यह बात सुनिश्चित होती है कि निर्वाचित होने के बाद अध्यक्ष सदन के सभी वर्गों का सम्मान प्राप्त करता है। ऐसे भी उदाहरण हैं जब कोई सदस्य सत्तारूढ़ दल अथवा सत्तारूढ़ गठबंधन में से किसी का भी सदस्य नहीं था, किंतु फिर भी उसे अध्यक्ष पद हेतु निर्वाचित किया गया था। उम्मीदवार के संबंध में एक बार निर्णय ले लिए जाने पर आमतौर पर प्रधान मंत्री तथा संसदीय कार्य मंत्री द्वारा उसके नाम का प्रस्ताव किया जाता है। यदि एक से अधिक प्रस्ताव प्राप्त होते हैं तो उनकी क्रमबद्ध रूप में प्रविष्टि की जाती है। यदि एक से अधिक प्रस्ताव प्राप्त होते हैं तो उनकी क्रमबद्ध रूप में प्रविष्टि की जाती है। यदि नव-गठित सभा हो तो सामयिक अध्यक्ष उस बैठक की अध्यक्षता करता है जिसमें अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है। यदि लोक सभा के बाद के कार्यकाल के दौरान अध्यक्ष का चुनाव होता है तो उपाध्यक्ष सभा की अध्यक्षता करता है। ऐसे प्रस्तावों को जो प्रस्तुत किये जाते हैं और जो विधिवत अनुमोदित हों, एक-एक करके उसी क्रम में रखा जाता है जिस क्रम में वे प्रस्तुत किये गये हों और यदि आवश्यक हो तो सभा में मत विभाजन द्वारा फैसला किया जाता है। यदि कोई प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो पीठासीन अधिकारी बाद के प्रस्तावों को रखे बिना ही घोषणा करेगा कि स्वीकृत प्रस्ताव में प्रस्तावित सदस्य को सभा का अध्यक्ष चुन लिया गया है। परिणाम घोषित किए जाने के पश्चात् नवनिर्वाचित अध्यक्ष को प्रधान मंत्री और विपक्ष के नेता द्वारा अध्यक्ष आसन तक ले जाया जाता है। तत्पश्चात् सभा में सभी राजनीतिक दलों और समूहों के नेताओं द्वारा अध्यक्ष को बधाई दी जाती है और उसके प्रत्युत्तर में वह सभा में धन्यवाद भाषण देता है और इसके बाद नया अध्यक्ष अपना कार्यभार ग्रहण करता है


पीठासीन अध्यक्ष

लोक सभा कक्ष में अध्यक्ष का आसन इस प्रकार रखा गया है कि वह सबसे अलग दिखायी दे और अपने इस आसन से अध्यक्ष समूचे सदन पर प्रभावी दृष्टि रख सके। जहां तक सभा की कार्यवाही का संबंध है, वह संविधान के उपबंधों और लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों के अनुसार कार्यवाही का संचालन करता है। वह पूर्व अध्यक्षों द्वारा दिए गए निर्देशों, जिन्हें समय-समय पर संकलित किया जाता है, से भी लाभान्वित होता है। इसके अतिरिक्त, लोक सभा के महासचिव और सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारी संसदीय कार्यकलापों और प्रक्रिया संबंधी मामलों में अध्यक्ष की सहायता करते हैं। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष उनके कार्यों का निर्वहन करता है। अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति में सभापति तालिका का कोई सदस्य सभा की अध्यक्षता करता है। अध्यक्ष को अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले प्रशासनिक, न्यायिक और विनियमन संबंधी मामलों में अनेक कार्यों का निष्पादन करना पड़ता है। उसे संविधान और नियमों के अंतर्गत तथा अन्तर्निहित रूप से व्यापक अधिकार प्राप्त हैं। लोक सभा का परम्परागत मुखिया और उसका प्रमुख प्रवक्ता होने के नाते अध्यक्ष समस्त सदन की सामूहिक राय को अभिव्यक्त करता है। वास्तव में सभा के कार्यों से संबंधित प्रावधानों पर उनका निर्णय और उनकी व्याख्या अन्तिम होती है। उनका निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होता है तथा आमतौर पर उसके निर्णय पर न तो कोई प्रश्न चिह्न लगाया जा सकता है, और न ही कोई चुनौती दी जा सकती है अथवा उसकी आलोचना की जा सकती है।

अध्यक्ष की प्रशासनिक भूमिका

अध्यक्ष, लोक सभा सचिवालय का प्रमुख है और यह सचिवालय उसके नियंत्रण और निदेशों के अधीन कार्य करता है। सभा के सचिवालय कर्मियों, संसद परिसर और इसके सुरक्षा प्रबंधन में अध्यक्ष का प्राधिकार सर्वोपरि है। सभी अतिथि, आगंतुक और प्रेस संवाददाता उसके अनुशासन संबंधी नियमों और आदेश के अधीन होते हैं तथा इनमें से किसी का भी उल्लंघन करने पर उल्लंधनकर्त्ता को संसद भवन परिसर से निष्कासन या दीर्घाओं में आने पर निश्चित या अनिश्चित अवधि के लिए रोक लगाए जाने जैसी सजा दी जा सकती है अथवा मामला अधिक गंभीर होने पर इसे अवमानना या विशेषाधिकार हनन का मामला मानकर उपयुक्त सजा दी जा सकती है। अध्यक्ष की अनुमति के बिना संसद भवन में कोई भी परिवर्तन और परिवर्द्धन नहीं किया जा सकता तथा संसदीय संपदा में किसी नए भवन का निर्माण नहीं किया जा सकता।

महत्त्व

भारत में अध्यक्ष का पद एक जीवंत और गतिशील संस्था है जिसे संसद के अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन में आने वाली वास्तविक आवश्यकताओं तथा समस्याओं का समाधान करना पड़ता है। अध्यक्ष सभा का संवैधानिक और औपचारिक प्रमुख होता है। वह सभा का प्रमुख प्रवक्ता होता है। प्रतिनिधिक लोकतंत्र में इस संस्था के महत्त्वपूर्ण स्थान के अनुरूप सभा की कार्यवाही के संचालन का उत्तरदायित्व अध्यक्ष पर ही होता है। हमारे संविधान-निर्माताओं ने हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस पद के महत्व को स्वीकार करके ही देश की शासन प्रणाली में प्रमुख एवं प्रतिष्ठित पदों में से एक के रूप में इस पद को मान्यता प्रदान की थी। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के एक अग्रणी नेता एवं भारतीय संविधान के प्रेरणास्रोत, पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारत में अध्यक्ष पद का सही संदर्भ देते हुए कहा थाः

“अध्यक्ष सभा का प्रतिनिधि है। वह सभा की गरिमा, सभा की स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करता है और चूंकि, सभा राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए एक प्रकार से अध्यक्ष राष्ट्र की स्वतंत्रता और स्वाधीनता का प्रतीक बन जाता है। अतएव, यह उचित ही है कि इस पद का सम्मान एवं स्वतंत्रता क़ायम रहे और इस पर सदैव असाधारण योग्यता एवं निष्पक्षता वाला व्यक्ति ही आसीन हो।”

इससे स्पष्ट है कि प्रत्येक लोक सभा के कार्य-काल में यह पद सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पदों में से एक क्यों रहा है।

लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका और अधिकार

  • संविधान द्वारा दी गई शक्तियों के जरिये लोकसभा की प्रक्रिया व कार्यवाही का संचालन करना।
  • संसदीय कार्यवाही के संचालन में नियमों प्रथाओं-परिपाटियों द्वारा सहायता करना।
  • अपने अधिकार क्षेत्र के प्रशासनिक न्यायिक व विनियमन संबंधी मामलों में विभिन्न कार्यों का का निष्पादन करना।
  • लोकसभा का परंपरागत मुखिया होने के नाते समस्त सदन की सामूहिक राय को अभिव्यक्त करना।
  • लोकसभा के कार्यों से जुड़े प्रावधानी पर उसका फैसला और उसकी व्याख्या अंतिम व बाध्यकारी होती है।
  • उसके निर्णय पर न तो सवाल, न ही कोई चुनौती खड़ी की जा सकती। आलोचना भी नहीं की जा सकती।
  • लोकसभा का पीठासीन अधिकारी होने के नाते प्रत्येक परिस्थिति में संसदीय शिष्टाचार का निर्वहन कराना उसका जिम्मा है।
  • वह लोक सभा सचिवालय का प्रमुख है और यह सचिवालय उसके नियंत्रण और निदेशों के अधीन कार्य करता है।
  • लोकसभा की कार्यवाही का विनियमन।
  • पीठासीन अध्य्क्ष ही तय करता है कि कोई प्रश्न स्वीकार्य है या नहीं।
  • वही तय करता है राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के लिए संशोधन किस रूप में पेश किए जाएं।
  • किसी विधेयक पर कोई भी संशोधन पेश करने के लिए उसकी अनुमति आवश्यक है।
  • सभा में चर्चाओं के बारे में वही फैसला करता है कि कोई सदस्य कब और कितनी देर तक बोलेगा।
  • वह यह तय भी करता है कि किसी सदस्य की गई कोई टिप्पणी सभा की कार्यवाही में शामिल की जाए या नहीं।
  • वह किसी सदस्य को किसी निर्धारित अवधि के लिए सभा से चले जाने का निर्देश भी दे सकता है।
  • वही सभा, सभा की समितियों और सदस्यों के अधिकारों तथा विशेषाधिकारों का संरक्षण करता है।
  • वह धन विधेयकों का प्रमाणन करता है और अंतिम निर्णय लेता है कि कौन से मामले देर तक बोलेगा
  • लोकसभा और राज्यसभा में असहमति होने की स्थिति में संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष ही करता है।
  • संसदीय दलों को मान्यता प्रदान करने के लिए आवश्यक दिशानिर्देश निर्धारित करता है।
  • लोकसभा में विपक्ष के मान्यता प्रदान करने के बारे में निर्णय लेता है।
  • उसके पास-बदल के आधार पर किसी लोकसभा सदस्य को अयोग्य ठहराने की शक्ति है।
  • अध्यक्ष सभा में मतदान के दौरान केवल तभी मतदान करता है जब पक्ष व विपक्ष के मत बराबर हो जाएँ।[1]

भारत के अब तक लोकसभा अध्यक्षों की सूची

क्रमांक

नाम

कार्यकाल

दल / पार्टी

चित्र

1 जी.वी. मावलंकर 15 मई 1952 – 27 फ़रवरी 1956 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
50px G.V.Mavalankar - लोकसभा अध्यक्ष
2 एम. ए. अय्यंगार 8 मार्च 1956 – 16 अप्रॅल 1962 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
50px M.A Ayyangar - लोकसभा अध्यक्ष
3 सरदार हुकम सिंह 17 अप्रॅल 1962 – 16 मार्च 1967 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
50px Sardar hukam singh - लोकसभा अध्यक्ष
4 नीलम संजीव रेड्डी 17 मार्च 1967 – 19 जुलाई 1969 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
50px Neelam Sanjiva Reddy.jpg - लोकसभा अध्यक्ष
5 जी. एस. ढिल्‍लों 8 अगस्त 1969 – 1 दिसंबर 1975 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
50px Gurdial singh dhillon - लोकसभा अध्यक्ष
6 बली राम भगत 15 जनवरी 1976 – 25 मार्च 1977 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
50px Bali ram bhagat - लोकसभा अध्यक्ष
7 नीलम संजीव रेड्डी[2] 26 मार्च 1977 – 13 जुलाई 1977 जनता पार्टी
50px Neelam Sanjiva Reddy.jpg - लोकसभा अध्यक्ष
8 के. एस. हेगड़े 21 जुलाई 1977 – 21 जनवरी 1980 जनता पार्टी
50px K.S Hegage - लोकसभा अध्यक्ष
9 बलराम जाखड़ 22 जनवरी 1980 – 18 दिसंबर 1989 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
50px Balram Jakhar - लोकसभा अध्यक्ष
10 रवि राय 19 दिसंबर 1989 – 9 जुलाई 1991 जनता पार्टी
50px Rabi ray - लोकसभा अध्यक्ष
11 शिवराज पाटील 10 जुलाई 1991 – 22 मई 1996 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
50px Shivraj patil - लोकसभा अध्यक्ष
12 पी. ए. संगमा 25 मई 1996 – 23 मार्च 1998 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
50px P.A.Sangma - लोकसभा अध्यक्ष
13 जी.एम.सी. बालायोगी 24 मार्च 1998 – 3 मार्च 2002 तेलुगु देशम पार्टी
50px G.M.C.Balayogi - लोकसभा अध्यक्ष
14 मनोहर जोशी 10 मई 2002 – 2 जून 2004 शिव सेना
50px Manohar joshi - लोकसभा अध्यक्ष
15 सोमनाथ चटर्जी 4 जून 2004 – 30 मई 2009 भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)
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16 मीरा कुमार 4 जून 2009 – 4 जून 2014 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
17 सुमित्रा महाजन 6 जून 2014 – अब तक भारतीय जनता पार्टी
50px Sumitra Mahajan - लोकसभा अध्यक्ष




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नोट: यह सूची जून 2014 में अपडेट की गयी थी |
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