तेरे बिन गुजरा वो दिन

तेरे बिन गुजरा वो दिन

आज सुबह जब आँखे खुली,
तो लगा कि जैसे रोज की तरह आज फिर आयेगी तेरी यादें और सूरज की किरण,
मगर खिड़की से देखा तो बाहर बादल थे और दिल भी वीरान ।
जब छत पर जाकर बच्चों को खेलते देखा,
तो लगा कि जैसे रोज की तरह आज फिर तुम और तुम्हारी वो प्यारी सी हँसी का दीदार होगा,
मगर उस दिन वक्त और बच्चे दोनों निकल गये तुम्हारा इंतेज़ार करते करते।
जब यूँ ही रास्तों पर आगे बढ़ा,
तो लगा कि जैसे रोज की तरह आगे वाले चौराहे पर तुम बस के इंतज़ार में खड़ी रहोगी,
मगर जब मोबाइल के कैलेंडर में देखा तो पता चला कि आज इतवार हैं।
वैसे तो हमेशा से इतवार का इंतेज़ार रहता है मगर ना जाने आज किस बात का अफसोस था इसके आने से,,
शाम को यूँ ही गलियों में घूम रहा था,
तो लगा कि जैसे रोज की तरह आज फिर तुम छत की मुंडेर पर खड़ी अपने हाथों से बालों की लट संवारती दिखोगी,
मगर ये उसी शाम हुई बिन मौसम की बारिश ने सड़क और मेरे अरमान दोनों पर पानी फ़ेर दिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *