भारत में वर्षा का वितरण | The distribution of rainfall in India

117 - भारत में वर्षा का वितरण | The distribution of rainfall in India
(चित्र: भारत-औसत वार्षिक वर्षा)




भारत में औसत वर्षा 125 सेंटीमीटर होती है। जिसमें 75 प्रतिशत दक्षिणी-पश्चमी मानसून (जून से सितंबर),13 प्रतिशत उत्तरी-पूर्वी मानसून (अक्टूबर से दिसंबर),10 प्रतिशत मानसून पूर्व स्थानीय चक्रवातों द्वारा (अप्रैल से मई) तथा 2 प्रतिशत पश्चिमी विक्षोभ (दिसंबर से फरवरी) के कारण होती है। पश्चिमी घाट व उत्तरी-पूर्वी भारत 400 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त करते हैं।जबकि राजस्थान का पश्चिमी भाग 60 सेंटीमीटर तथा इससे सटे गुजरात, हरियाणा व पंजाब भी कामों-बेस न्यून वर्षा ही प्राप्त करते हैं। वर्षा में भारी कमी सामान्यतः दक्कन पठार के आंतरिक भाग में व सह्याद्रि के पूर्वी  भाग में होती है। जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में भी वर्षा काफी कम होती है तथा देश के अन्य भागों में सामान्यतः अच्छी वर्षा होती है। भारत के उत्तरी सीमा पर हिमालय स्थित होने के कारण इन क्षेत्रों में भी भारी वर्षा होती है।

मानसून की प्रकृति के वजह से प्रतिवर्ष, वर्षा की दर में हमेशा परिवर्तन होता रहता है।राजस्थान, गुजरात तथा पश्चिमी घाट के पश्चिमी भाग में जहाँ निम्न वर्षा होती है वार्षिक औसत वर्षा में भी भारी कमी पायी जाती है।इस तरह से जहाँ उच्च वर्षा होती है वहाँ बाढ़ तथा निम्न वर्षा वाले क्षेत्र में सुखाड़ की संभावना बानी रहती है।

उच्च वर्षा वाले क्षेत्र (Areas of heavy rainfall)

भारत में तीन महत्वपूर्ण स्थान हैं, जहाँ 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है. जो निम्न है:-

1. पश्चिमी घाट का पश्चिमी ढलान

2. उत्तरी-पूर्वी भारत (त्रिपुरा व मिजोरम को छोड़कर)

3. अंडमान व निकोबार द्वीप समूह

अल्प वर्षा के क्षेत्रों (Areas of scanty rainfall)

1. उत्तरी गुजरात, पश्चिमी राजस्थान और पंजाब-हरियाणा का दक्षिणी भाग

2. पश्चिमी घाट का पश्चिमी भाग

3. लद्दाख का मरुस्थलीय भाग




मानसूनी वर्षा में सर्वाधिक विविधता देखने को मिलता है।उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में यह अंतर कम जबकि निम्न वर्षा वाले क्षेत्रों में यह अंतर सर्वाधिक देखने को मिलता है।वर्षा में अंतर का मतलब है कि किसी वर्ष में खास समय में खास जगह का औसत वर्षा की दर को प्राप्त करना।

मानसून का फटना (The bursting of monsoon)

वर्ष के जून माह में तापमान उच्च होने के कारण पुरे उत्तर भारत में न्यून दाब का क्षेत्र बन जाता है जिसके कारण दक्षिणी- पश्चिमी मानसूनी पवन उच्च वेग के साथ कम समय में बिजली की चमक व गरज के साथ बहुत भारी वर्षा करा देती है जो बाढ़ सा दृश्य उत्पन्न कर देती है, इसे मानसून बिस्फोट या मानसून का फटना कहा जाता है।




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