राजस्थान के महत्वपूर्ण शिलालेख एवं प्रशस्तियाँ

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राजस्थान के महत्वपूर्ण शिलालेख एवं प्रशस्तियाँ

जैन कीर्तिस्तम्भ के लेख – चित्तौड के जैन कीर्तिस्तम्भ में उत्कीर्ण तीन अभिलेखों का स्थापनकर्ता जीजा था | इसमें जीजा के वंश तथा मंदिर निर्माण तथा दोनों का वर्णन करता है | ये 13 वी सदी के है |

श्रृंगी ऋषि का लेख – यह एक लिंग जी से कुछ दुरी पर श्रृंगी ऋषि नामक स्थान पर बरामदे में लगा हुवा है | यह महाराणा मोकल के समय का है |

रकणपुर प्रशस्ति – रणकपुर के चौमुख मंदिर के स्तम्भ पर उत्कीर्ण प्रशस्ति 1439 ई. की है इसमें मेवाड़ के राजवंश , धरणक सेठ के वंश एवं  उसके शिल्पी का परिचय मिलता है | इसमें बापा एवं कालभोज को अलग-अलग व्यक्ति बताया गया है | इसम महाराणा कुम्भा की विजयो एवं विरुदो का पूरा वर्णन है |

कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति ( दिसम्बर , 1460 ई. ) – यह चित्तौडगड किले के कीर्ति स्तम्भ में कई शिलाओ पर उत्कीर्ण है | अब केवल दो ही शिलाए उपलब्ध है | इस प्रशस्ति में गुहिल वंश का बापा से लेकर कुंभा तक की विस्तृत वंशावली एवं उनकी उपलब्धियों का वर्णन है | कुम्भा की विजयो का भी विस्तृत विवरण है | इसमें कुंभा के विरुदो के साथ-साथ उसके द्वारा रचित ग्रंथो एवं कुंभा द्वारा मालवा व गुजरात की सेनाओ को हराने का वर्णन है | इसमें इसके प्रशस्तिकार महेश भट्ट का भी वर्णन है | यह प्रशस्ति 15वीं सदी के राजस्थान की राजनीतिक , धार्मिक , सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थति को समझने के लिए बहुत उपयोगी है |



कुंभलगड प्रशस्ति – यह कुंभल गड में प्राप्त हुई | इसमें 1460 ई. के आसपास की मेवाड़ की स्थिति की जानकारी है | यह शिलाओ पर उत्कीर्ण थी जो कुंभश्याम मंदिर ( कुंभल गड ) , जिसे अब मामदेव मंदिर कहते है , में लगाई गई है |

एकलिंगजी के मंदिर के दक्षिण द्वार की प्रशस्ति – यह माहाराणा रायमल द्वारा मंदिर के जीर्णोद्वार के समय  उत्कीर्ण की गई | इसमें मेवाड़ के शासको की वंशावली , तत्कालीन समाज की आर्थिक , सामाजिक , धार्मिक व नैतिक स्तर की जानकारी दी गई है | इसमें बापा के संन्यास लेने का वर्णन है |

सिवाना का शिलालेख – 1537 ई. का यह लेख राव मालदेव (जोधपुर ) की सिवाना विजय का सूचक है |

बीकानेर दुर्ग की प्रशस्ति – बीकानेर नरेश रायसिंह द्वारा यह गुनागड के निर्माण के बाद दुर्ग के एक पार्श्व में स्थापित की गई प्रशस्ति जिसमे दुर्ग के निर्माण की तिथि , राव बीका से लेकर राव रायसिंह तक के शासको की उपलब्धियों , रायसिंह की विजयो आदि का उल्लेख है  इसके रचियता जइता नामक जैन मुनि थे |

आमेर का लेख- 1612 ई. में इस अभिलेख के कछवाहा शासको – पृथ्वीराज से मानसिंह तक की वंशावली , मानसिंह की उपलब्धियों एवं जमुआरामगड के निर्माणों का उल्लेख है |

जगन्नाथराय प्रशस्ति – यह उदयपुर के जगन्नाथ मंदिर के काले पत्थर पर मई , 1652 में उत्कीर्ण किया गया | इसमें पूर्वार्द्ध में बापा से सांगा तक की उपलब्धियों का वर्णन है | इसमें हल्दीघाटी के युद्ध , महाराणा जगतसिंह के युद्धों , पुण्य कार्यो , इस मंदिर के निर्माण तथा प्रशस्ति के रचियता कृष्णभट्ट का भी विस्तृत वर्णन है |

राज प्रशस्ति – राजसमन्द झील की नौ चौकी की ताको में लगी 25 काले पाषाणों पर संस्कृत में उत्कीर्ण यह प्रशस्ति 1676 ई. में महाराजा राजसिंह द्वारा स्थापित कराई गई | यह पद्य मय है | इसका रचियता रणछोड़ भट्ट तैलंग था | प्रशस्ति में उल्लेख है की राजसमन्द झील का निर्माण अकाल रहत कार्यो के तहत किया गया था | इसमें बापा से लेकर राजसिंह तक के शासको की वंशावली व उपलब्धियों का वर्णन है | इसमें महाराणा अमरसिंह द्वारा मुगलों से की गई संधि का भी उल्ल्लेख है |



वैद्यनाथ मंदिर की प्रशस्ति – पिछोला झील के निकट सीमारसा गाँव में वैद्यनाथ मंदिर में स्थित यह प्रशस्ति 1719 ई. की है | इसमें बापा को हरित ऋषि की कृपा से राज्य की प्राप्ति का उल्लेख है |

घोसुण्डी शिलालेख – नगरी ( चित्तौड ) के निकट घोसुण्डी गाँव में प्राप्त |

नान्दसा युप स्तंभ लेख – यह भीलवाडा के निकट नान्दसा स्थान पर एक सरोवर में प्राप्त गोल स्तंभ पर उत्कीर्ण है |

मंडोर का शिलालेख – मंडोर की एक बावड़ी में शिला पर उत्कीर्ण इस लेख में 685 ई. के आसपास विष्णु एवं शिव की पूजा पर प्रकाश पड़ता है |

मानमोरी का लेख – मानसरोवर झील ( चित्तौड ) के तट के एक स्तंभ पर उत्कीर्ण इस लेख में अमृत मंथन का उल्लेख है | यह अभिलेख कर्नल जेम्स टाँड द्वारा इंगलैंड जाते समय समुद्र में फेक दिया गया था |

कणसवा का लेख – कोटा के निकट कणसवा गाँव शिवालय में उत्कीर्ण यह लेख 738 ई. का है |

चाकसू का लेख – चाकसू ( जयपुर ) में 813 ई. के इस लेख में यहाँ पर गुहिल वंशीय राजाओ की वंशावली दी गई है |

घटियाला के शिलालेख – 861 ई. के ये लेख जोधपुर के पास घटियाला में एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण है | इनमे प्रतिहार नरेश कुकुक का वर्णन है | यह लेख संस्कृत में है |

नाथ प्रशस्ति – 971 ई. का यह लेख एकलिंग जी के मंदिर के पास लुकलीश मंदिर के पास प्राप्त हुआ | इसमें नगर एवं बापा , गुहिल तथा नरवाहन राजाओं का वर्णन है |

हर्षनाथ की प्रशस्ति- हर्षनाथ ( सीकर ) के मंदिर की यह प्रशस्ति 973 ई. की है | इस मंदिर का निर्माण आल्ल्ट द्वारा किये जाने का उल्लेख है | इसमें चौहान के वंशक्रम का उल्लेख है |

आर्थुणा के शिव मंदिर की प्रशस्ति – आर्थुणा ( बांसवाडा ) के शिवालय में उत्कीर्ण 1079 ई. के इस अभिलेख में बांगड़ के परमार नरेशो का अच्छा वर्णन है |

किराडू का लेख – किराडू ( बाड़मेर ) के शिव मंदिर में संकृत में उत्कीर्ण लेख जिसमे परमारों की उत्पत्ति ऋषि वशिष्ठ के आबू यज से बताई गई है |



बिजौलिया अभिलेख – बिजौलिया के पार्श्र्वनाथ मंदिर के पास एक चट्टान पर उत्कीर्ण 1170 ई. का यह शिलालेख जैन श्रावक लोलाक द्वारा बनवाया गया | इसमें सांभर व अजमेर के चौहानों को वत्सगौत्रीय ब्राहमण बताते हुए उनकी वंशावली दी गई है | इसका रचियता गुणभद्र है

चौहवा ( उदयपुर ) – एक मंदिर के बाहरी द्वार पर उत्कीर्ण 1273 ई. के इस शिलालेख में बापा रावल के वंशजो की कीर्ति का वर्णन है | इसमें उस समय की धार्मिक स्थिति की भी जानकारी मिलती है |

चित्तौड का शिलालेख – 1278 ई. का यह शिलालेख उस समय के गुहिल शासको की धार्मिक सहिष्णुतापूर्ण नीति को बताता है | इसमें शैव मतावलंबी होते हुए भी राज परिवार द्वारा जैन मंदिर के निर्माण हेतु अनुदान देने का वर्णन है |

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