बिजोलिया किसान आन्दोलन
मेवाड़ राज्य में बिजोलिया (भीलवाड़ा जिला) ठिकाने की स्थापना राणा सांगा के समय अशोक परमार द्वारा की गई। बिजोलिया आन्दोलन
राजस्थान का प्रथम संगठित किसान आन्दोलन था और यह अहिंसात्मक आंदोलन था। इस आंदोलन का कारण जागीरदार द्वारा अधिक लाग-बाग वसूलना था। बिजोलिया की जनता से 84 प्रकार की लाग-बाग ली जाती थी।
जागीरदार ने 1903 ई. में जनता पर कुँवरी कर (प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपनी पुत्री के विवाह के अवसर पर दिया जाने वाला कर) लगाया। साधु सीतारामदास, विजयसिंह पथिक, माणिक्यलाल वर्मा, रामनारायण चौधरी, हरिभाई किंकर, जमनालाल बजाज, हरिभाऊ उपाध्याय, फतेहकरण चारण, ब्रह्मदेव, नारायण पटेल, नानजी व ठाकरी पटेल आदि ने बिजोलिया आंदोलन में सक्रिय भाग लिया।
1897 ई. में ऊपरमाल क्षेत्र (बिजोलिया) के लोगों ने मेवाड़ के महाराणा फतेहसिंह से जागीरदारों के जुल्मों के विरुद्ध शिकायत करने के लिए
नानजी व ठाकरी पटेल को भेजा किन्तु महाराणा ने इस पर ध्यान नहीं दिया। पृथ्वी सिंह द्वारा तलवार बंधाई लाग (नया ठाकुर बनने पर दिया
जाने वाला कर) लागू कर दिया गया। तलवार बंधाई कर के विरोध में साधु सीतारामदास, फतेहकरण चारण व ब्रह्मदेव के नेतृत्व में किसानों ने 1913 ई. में आंदोलन करते हुए भूमिकर नहीं दिया। इस आंदोलन में धाकड़ जाति के किसान सर्वाधिक संख्या में थे।
1916 ई. में साधु सीतारामदास के आग्रह पर विजयसिंह पथिक (भूपसिंह) ने इस आंदोलन का नेतृत्व संभाला। साधु सीतारामदास को
बिजोलिया किसान आंदोलन का जनक कहा जाता है। विजयसिंह पथिक को राजस्थान में किसान आंदोलनों का जनक कहा जाता है। इस आन्दोलन का नेतृत्व 1913 से 1916 ई. तक साधु सीतारामदास, 1916 से 1927 ई. तक विजयसिंह पथिक तत्पश्चात जमनालाल बजाज व हरिभाऊ उपाध्याय ने किया।
बिजोलिया किसान आन्दोलन
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