जैव-प्रक्रम
जैव प्रक्रम क्या है?
कोशिकाएँ (Cell) जीवन का आधार है। सभी जीव कोशिकाओं (Cell) से बनी हैं। कई कोशिकाएँ (Cell) मिलकर उतक (Tissue) बनाती हैं। कई उतक (Tissue) मिलकर अंगों (Organs) का निर्माण करते हैं। प्रत्येक अंग जीवों के लिये विशेष कार्य करते हैं। जैसे दाँत का एक कार्य भोजन को चबाना है, आँख का कार्य देखना है, आदि। कुल मिलाकर जीव का शरीर एक सुव्यवस्थित तथा सुगठित संरचना है जो निरंतर गति में रहकर कार्य करती हैं एवं एक जीव को जीवित रखती हैं।
समय, वातावरण या पर्यावरण के प्रभाव के कारण यह संरचना विघटित होती रहती है जिसके मरम्मत तथा अनुरक्षण की आवश्यकता होती है। जीवों में कई प्रक्रम होते हैं जो शारीरिक संरचना का अनुरक्षण करते हैं।
जैव प्रक्रम की परिभाषा (Definition of Life Processes)
अत: वे सभी प्रक्रम (Processes) जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण (maintenance) का कार्य करते हैं जैव प्रक्रम (Life Processes) कहलाते हैं। ये प्रक्रम हैं पोषण (Nutrition), श्वसन (Respiration), वहन (Transportaion), उत्सर्जन (Excretion) आदि।
पोषण (Nutrition)
जीवों के भोजन ग्रहण करने तथा उसका उपयोग कर उर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया या प्रक्रम पोषण कहलाता है।
जीवों को सभी कार्यों के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है। यथा जब एक जीव चल या दौड़ रहा होता है, या कोई भी अन्य कार्य करता है तो उसे उर्जा की आवश्यकता होती है। यहाँ तक जब एक जीव कोई कार्य नहीं कर रहा होता हो, तब भी शारीरिक क्रियाओं के क्रम के अनुरक्षण अर्थात बनाये रखने के लिये उसे उर्जा की आवश्यकता होती है। यह आवश्यक उर्जा एक जीव पोषण से प्राप्त करता है।
सजीव अपना भोजन कैसे प्राप्त करते हैं?
सभी जीवों को उर्जा की आवश्यकता होती है, जिसे वे भोजन से प्राप्त करते हैं। परंतु सजीवों में उर्जा प्राप्त करने के तरीके भिन्न भिन्न हैं।
पेड़ पौधे तथा कुछ जीवाणु अकार्बनिक श्रोतों से कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल के रूप में सरल पदार्थ प्राप्त करते हैं, जिनसे उन्हें उर्जा मिलती है। ऐसे जीव को स्वपोषी कहा जाता है। स्वपोषी अर्थात खुद से बनाया भोजन से उर्जा प्राप्त करने वाले। अंग्रेजी में ऐसे जीवों को ऑटोट्रोप्स (Autotrophs) कहा जाता है। इस अंग्रेजी के शब्द में ऑटो का अर्थ है खुद तथा ट्रॉप्स का अर्थ है, पोषण, अर्थात खुद से पोषण प्राप्त करने वाले या करना
दूसरे जीव जंतु यथा मनुष्य, गाय, तथा अन्य जानवर, जिनकी संरचना अधिक जटिल हैं, उर्जा प्राप्ति के लिए जटिल पदार्थों का भोजन के रूप में उपयोग करते हैं। इन जटिल पदार्थों को जीव के समारक्षण तथा बृद्धि में प्रयुक्त होने के लिए सरल पदार्थों में खंडित किया जाना अनिवार्य है। इसे प्राप्त करने के लिए जीव जैव उत्प्रेरक का उपयोग करते हैं, जिन्हें एंजाइम कहते हैं। ऐसे जीव विषमपोषी जीव कहलाते हैं। ये प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से स्वपोषी पर आश्रित होते हैं।
अत: जीवों के द्वारा पोषण के लिए आवश्यक उर्जा प्राप्ति के तरीकों में भिन्नता के आधार पर पोषण को दो भागों में बांटा जा सकता है: (a) स्वपोषी पोषण तथा (b) विषमपोषी पोषण।
स्वपोषी पोषण
स्वयं के द्वारा बनाये गये भोजन से पोषण प्राप्त करना स्वपोषी पोषण कहलाता है। हरे पेड़ पौधे तथा कुछ अन्य जीव, खुद भोजन बनाकर स्वपोषण प्राप्त करते हैं, अत: ये जीव स्वपोषी पोषण प्राप्त करने वाले होते हैं। इन्हें स्वपोषी या स्वपोषी पोषित जीव कहा जा सकता है, या कहा जाता है। अन्य जंतु इन स्वपोषी जीव पर भोजन तथा पोषण के लिए निर्भर होते हैं।
स्वपोषी जीव पोषण के लिये आवश्यक उर्जा तथा कार्बन प्रकाश संश्लेषण द्वारा पूरा करते हैं। स्वपोषी पोषण की प्रक्रिया में स्वपोषी बाहर से कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल लेते हैं। इस कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल को प्रकाश तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट, जो उर्जा प्रदान करता है, के रूप में परिवर्तित कर संचित कर लेते हैं। यह प्रक्रिया प्रकाश संश्लेषण कहलाती है।
प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis)
प्रकाश संश्लेषण को अंग्रेजी में फोटोसिंथेसिस (Phostosynthesis) कहते हैं। फोटोसिंथेसिस, दो शब्दों “फोटो” (Photo) तथा “सिंथेसिस (Synthesis)” को मिलाकर बना है। इसमें “फोटो” का अर्थ “प्रकाश” तथा “सिंथेसिस” का अर्थ “बनाना” होता है, अर्थात प्रकाश की उपस्थिति में बनाना या बनाने की प्रक्रिया।
प्रकाश संश्लेषण के लिये आवश्यक पदार्थ
(a) सूर्य का प्रकाश (Sunlight)
(b) कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide)
(c) जल (Water) तथा
(d) क्लोरोफिल (Chlorophyll)
प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया, जिसके द्वारा हरे पेड़ पौधे द्वारा भोजन बनाया जाता है, में सूर्य का प्रकाश, कार्बन डाइऑक्साइड, जल, तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति अनिवार्य है। इसमें से किसी एक की भी अनुपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया पूरी नहीं होगी।
प्रकाश संश्लेषण के प्रक्रिया के चरण
(अ) क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश उर्जा को अवशोषित करना।
(ब) प्रकाश उर्जा को रासायनिक उर्जा में रूपांतरित करना।
(स) जल के अणुओं का हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में अपघटन।
(द) कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन (Reduction)।
हरे पेड़ पौधे की पत्तियाँ हरे रंग की होती हैं। ये पत्तियाँ इनमें उपस्थित क्लोरोफिल के कारण ही हरे रंग की दिखती हैं।
पत्तियों की कोशिकाओं में हरे रंग के बिन्दु कोशिकांग (Cell organelles) होते हैं, जिन्हें क्लोरोप्लास्ट (हरित लवक) कहा जाता है, जिनमें क्लोरोफिल होता है। हरी पत्तियों में उपस्थित ये क्लोरोफिल, सूर्य के प्रकाश से उर्जा अवशोषित कर रासायनिक परिवर्तन द्वारा रासायनिक उर्जा में बदल देती हैं।
पेड़ तथा पौधे जड़ के द्वारा जमीन से जल ग्रहण करते हैं। क्लोरोफिल द्वारा सूर्य की प्रकाश से प्राप्त उर्जा इस जल को हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के अणुओं में विखंडित (Split) कर देती है।
पत्तियों की सतह पर सूक्ष्म धिद्र होते हैं, जिन्हें रंध्र छिद्र (Stomatal pore) कहा जाता है। इन रंध्र छिद्रों (Stomatal pores) के द्वारा पत्तियाँ हवा से कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करती हैं। पत्तियों में गैस का आदान प्रदान इन्हीं रंध्र छिद्रों (Stomatal pores) के द्वारा होता है। पेड़ पौधों में गैसों का आदान प्रदान इन रंध्र छिद्रों (Stomatal pores) के अलावे तने, जड़ तथा पत्तियों की सतह से भी होता है।
चूँकि पेड़ पौधों के इन रंध्र छिद्रों (Stomatal pores) से पर्याप्त मात्रा में जल की हानि भी होती है, अत: जब प्रकाश संश्लेषण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यक्ता नहीं होती है तब ये रंध्र छिद्र (Stomatal pore) बंद हो जाते हैं। छिद्रों का खुलना और बंद होना द्वार कोशिकाओं (Guard cells) का एक कार्य है। जब जल अंदर जाता है तो द्वार कोशिकायें (Guard cells), तो वे फूल जाती हैं और रंध्र का छिद्र खुल जाता है, तथा जब द्वार कोशकाएँ (Guard cells) सिकुड़ती हैं तो छिद्र बंद हो जाता है। छिद्र के बंद हो जाने की स्थिति में पेड़ पौधों से जल की हानि नहीं होती है।
पत्तियों द्वारा प्राप्त कार्बन डाइऑक्साइड जल से प्राप्त ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन अणुओं से प्रतिक्रिया कर ग्लूकोज में अपचयित (Reduced) हो जाता है।
प्रकाश संश्लेषण में निम्नांक्त रासायनिक प्रतिक्रिया होती है।
मरूभूमि में उगने वाले पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया का क्रम
प्रकाश संश्लेषण की प्रतिक्रिया सभी पौधों में इस दिये गये क्रम में ही एक के बाद एक नहीं होती है। मरूभूमि में उगने वाले पौधे रात्रि में कार्बन डाइऑक्साइड प्राप्त करते हैं और एक म्ध्यस्थ उत्पाद (Intermediate product) बनाते हैं। फिर दिन में सूर्य की प्रकाश से उर्जा प्राप्त कर उस मध्यस्थ उत्पाद से ग्लूकोज बनाते हैं।
पेड़ पौधों को उर्जा के साथ साथ शरीर के निर्माण के लिए अन्य कच्ची सामग्री की आवश्यकता होती है। स्थलीय पौधे जल के साथ साथ अन्य कच्ची सामग्रियाँ यथा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, लोहा तथा मौग्नीशियम आदि खनिज पदार्थ मिट्टी से प्राप्त करते हैं। नाइट्रोजन, जो कि एक आवश्यक तत्व है, का उपयोग प्रोटीन तथा अन्य आवश्यक यौगिकों के संश्लेषण (Synthesis) में किया जाता है। नाइट्रोजन (Nitrogen) को अकार्बनिक नाइट्रेट का नाइट्राइट (Nitrite of inorganic nitrate) के रूप में प्राप्त किया जाता है। ये वे अकार्बनिक पदार्थ हैं जिन्हें जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन से बनाते हैं।
जैव-प्रक्रम
- जैव प्रक्रम : वे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण कार्य करते है जैव प्रक्रम कहलाता है।
- पोषण : प्रत्येक जीवधारी को अनुरक्षण प्रक्रम के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है जो उर्जा जीवधारी पोषक तत्वों के अंर्तग्रहण से प्राप्त करता है । इस उर्जा के स्रोत को शरीर के अंदर लेने और उपयोग के प्रक्रम को पोषण कहते है।
- पोषण दो प्रकार के होते है : (i) स्वपोषी पोषण (ii) विषमपोषी पोषण |
- हमारे शरीर में क्षति तथा टूट-फुट रोकने के लिए अनुरक्षण प्रक्रम की आवश्यकता होती है जिसके लिए उन्हें ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा एकल जीव के शरीर के बाहर से आती है।
- उपचयन-अपचयन अभिक्रियाएँ अणुओं के विघटन की कुछ सामान्य रासायनिक युक्तियाँ हैं। इसके लिए बहुत से जीव शरीर के बाहरी स्रोत से ऑक्सीजन प्रयुक्त करते हैं।
- शरीर के बाहर से ऑक्सीजन को ग्रहण करना तथा कोशिकीय आवश्यकता के अनुसार खाद्य स्रोत के विघटन में उसका उपयोग श्वसन कहलाता है।
- एक एक-कोशिकीय जीव की पूरी सतह पर्यावरण के संपर्क में रहती है। अतः इन्हें
भोजन ग्रहण करने वेफ लिए, गैसों का आदान-प्रदान करने लिए या वर्ज्य पदार्थ के निष्कासन के लिए किसी विशेष अंग की आवश्यकता नहीं होती है। - जैव प्रक्रम के अंतर्गत आने वाले प्रक्रम हैं : (i) पोषण (ii) श्वसन (iii) वहन (iv) उत्सर्जन इत्यादि |
- (i) पोषण : जीवों द्वारा जटिल कार्बन पदार्थों को जैव-रासायनिक प्रक्रिया द्वारा सरल अणुओं में परिवर्तित कर उपभोग करना पोषण कहलाता है |
- (ii) शरीर के बाहर से ऑक्सीजन को ग्रहण करना तथा कोशिकीय आवश्यकता के अनुसार खाद्य स्रोत के विघटन में उसका उपयोग श्वसन कहलाता है।
- (iii) वहन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में आवश्यक पोषक तत्व पहुंचाए जाते है जो शरीर के अनुरक्षण का कार्य करते हैं |
- (iv) शरीर से हानिकारक अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन के प्रक्रम को उत्सर्जन कहते हैं |
- जटिल पदार्थों के सरल पदार्थों में खंडित करने के लिए जीव कुछ जैव उत्प्रेरक का उपयोग करते हैं जिन्हें एंजाइम कहते हैं |
- सभी हरे पौधें स्वपोषी पोषण करते हैं |
- विषमपोषी पोषण तीन प्रकार का होता है | (i) मृतजीवी पोषण (ii) परजीवी पोषण (iii) प्राणी समभोजी पोषण |
- हरे पौधों द्वारा सूर्य के प्रकाश और क्लोरोफिल की उपस्थिति में भोजन बनाने की प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं |
- कुछ कोशिकाओं में हरे रंग के बिदु दिखाई देते हैं। ये हरे बिंदु कोशिकांग हैं जिन्हें क्लोरोप्लास्ट कहते हैं इनमें क्लोरोफिल होता है।
- पौधों के पत्तियों पर छोटे-छोटे असंख्य छिद्र पाए जाते हैं जिन्हें रंध्र कहते हैं |
- रंध्र का कार्य (i) गैसों का आदान-प्रदान भी इन्ही रंध्रों के द्वारा होता है | (ii) वाष्पोत्सर्जन की क्रिया रंध्रों के द्वारा होती है |
- स्थलीय पौधे प्रकाशसंश्लेषण के लिए आवश्यक जल की पूर्ति जड़ों द्वारा मिटटी में उपस्थित जल के अवशोषण से करते हैं। नाइट्रोजन, फॉस्पफोरस, लोहा
तथा मैग्नीशियम सरीखे अन्य पदार्थ भी मिट्टी से लिए जाते हैं। - नाइट्रोजन एक आवश्यक तत्व है जिसका उपयोग प्रोटीन तथा अन्य यौगिकों के संश्लेषण में किया जाता है।