संधि
दो अक्षरों के आपस में मिलने से उनमें जो विकार पैदा होता है, उसे संधि कहते हैं ।
संधि और संयोग में बड़ा अंतर है । संयोग में अक्षर अपने मूल रूप में बने रहते हैं ।
जैसे-क् + अ – म् – अ + ल् + अ । इन छह वर्णो के संयोग से ‘कमल’ शब्द बना है और इस शब्द में सभी वर्ण अपने मूल रूप में ही हैं।
परंतु संधि में उच्चारण के नियम के अनुसार दो वर्णो या अक्षरों के मेल से उनके बदले कोई दूसरा अक्षर बन जाता है ।
जैसे – सत् + आनंद = सदानंद । इस शब्द में ‘त्’ और ‘आ’ के आपस में मिलने से एक भिन्न वर्ण ‘दा’ बन गया है।
i दीर्घ संधि
ii गुण संधि
iii वृद्धि संधि
iv यण् संधि
v अयादि संधि ।
1. स्वर संधि (Savar Sandhi)–
दो स्वरों के आपस में मिलने से जो विकार या परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं ।
जैसे-देव + इंद्र = देवेंद्र ।
इसमें दो स्वर ‘अ’ और ‘इ’ आस-पास हैं तथा इनके मेल से (अ + इ) ‘ए’ बन जाता है ।
इस प्रकार दो स्वर-ध्वनियों के मेल से एक अलग स्वर बन गया । इसी विकार को स्वर संधि कहते हैं ।
स्वर संधि के भेद-
i. दीर्घ संधि- (Dirgh Sandhi) यदि दो सुजातीय स्वर आस-पास आर्वे, तो दोनों के मेल से सजातीय दीर्घ स्वर हो जाता है, जिसे स्वरों की दीर्घ संधि कहते हैं
(a) अ और आ की संधि :
अ + अ = आ – कल्प + अंत = कल्पांत; परम + अर्थ = परमार्थ
अ + आ = आ – परम + आत्मा = परमात्मा; कुश + आसन = कुशासन
आ + अ = आ – रेखा + अंश = रेखांश ; विद्या + अभ्यास = विद्याभ्यास
आ + आ = आ – वार्ता + अलाप = वातलिाप; महा + आशय = महाशय
(b) ‘इ’ और ‘ई’ की संधि :
इ + इ = ई – गिरि + इंद्र = गिरींद्र
इ + ई = ई – कवि + ईश्वर = कवीश्वर
ई + ई = ई – सती + ईशा = सतीश, जानकी – ईश = जानकीश
(c) ‘उ’ और ‘ऊ’ की संधि
उ + उ = ऊ – भानु + उदय = भानूदय, विधु + उदय = विधूदय
उ + ऊ =ऊ – सिंधु + ऊर्मि = सिधूर्मि, लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
ऊ + ऊ = ऊ – भू + उर्जित = भुर्जित
ii गुण संधि (Gun Sandhi)- यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’ रहे, तो दोनों मिलकर ‘ए’, ‘उ’ या ‘ऊ’ रहे तो दोनों मिलकर ‘ओ’; और ‘ऋ’ रहे तो ‘अर’ हो जाता है| इस विकार को गुण संधि कहते हैं ।
अ + इ = ए – देव + इंद्र = देवेंद्र
अ + ई = ए – सुर + ईश = सुरेश
आ + ई = ए – रमा + ईश = रमेशा
आ + इ = ए – महा + इंद्र = महेंद्र
अ + ऊ = ओ – समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
आ + ऊ = ओ — महा + ऊरु = महोरू
अ + उ = ओ – चंद्र + उदय = चंद्रोदय
आ + उ = ओ – महा + उत्सव = महोत्सव
अ + ऋ = अर् – सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
आ + ऋ = अर् – महा + ऋषि = महर्षि
iii वृद्धि संधि (vridhhi sandhi)–‘अ’ या ‘आ’ के बाद यदि ‘ए’ या ‘ऐ’ हो, तो दोनों मिलकर ‘ऐ’; और ‘औ’ या ‘औ’ रहे तो दोनों मिलकर ‘औ’ हो जाता है । स्वर वर्ण के इस विकार को वृद्धि संधि कहते हैं ।
अ + ए = ऐ — एक + एक = एकैक
अ + ऐ = ऐ – मत + ऐक्य = मतैक्य
आ + ए = ऐ – सदा + एव = सदैव
आ + ऐ = ऐ – महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्यं
अ + ओ = औ – जल + ओघ = जलौघ
आ + औ = औ – महा + औषध = महौषध
अ + औ = औ — परम + औषध = परमौषध
आ + ओ = औ – महा + ओजस्वी = महौजस्वी
iv यण संधि (Yan Sandhi)–’इ’, ‘ई’,’उ’, ‘ऊ’ या ‘ऋ’ के बाद यदि कोई विजातीय स्वर आये, तो ‘इ’-‘ई’ की जगह ‘य’, ‘उ’-‘ऊ’ की जगह ‘व्’ तथा ‘ऋ’ की जगह ‘र’ होता है। स्वर वर्ण के इस विकार को यण संधि कहते हैं ।
इ + अ = य – यदि + अपि = यद्यपि
इ + आ = या – इति + आदि = इत्यादि
इ + उ = यु — प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
इ + ऊ = यू – नि + ऊन = न्यून
इ + ए = ये – प्रति + एक = प्रत्येक
ई + अ = य – नदी + अर्पण = नद्यार्पण
ई + आ = या – देवी + आगम = देव्यागम
ई + उ = यु – सखी + उचित = सख्युचित
ई + ऊ = यू– नदी + ऊर्मि = नद्युर्मि
ई + ऐ = यै – देवी + ऐश्वर्य = देव्यैश्वर्य
उ + अ = व – मनु + अतर = मन्वतर
उ + अ = वा – सु + आगत = स्वागत
उ + इ = वि — अनु + इत = अन्वित
उ + ए = वे — अनु + एषण = अन्वेषण
ऋ + अ = र् – पितृ + अनुमति = पित्रनुमति
ऋ + आ = रा – पितृ + आदेश = पित्रादेश
v अयादि संधि- (Ayadi Sandhi)– यदि ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’ या ‘औ’ के बाद कोई भिन्न स्वर आता है, तो ‘ए’ का ‘अय’, ‘ऐ’ का ‘आय’, ‘ओ’ का ‘अव’ तथा ‘औ’ का ‘आव’ हो जाता है, स्वर वर्ण के इस विकार को अयादि संधि कहते हैं ।
ने + अन = नयन (न् + ए + अ + न = न्। + अय् + अन = नयन)
चे + अन = चयन, शे + अन्न = प्शयन
गै + अन = गायन (ग् + ऐ + अ + न = ग् + आय् + अ + न = गायन’)
नै + अक = नायक
गो + ईश = गवीश (ग्र + ओ + ईश = गवीश)
नौ + इक = नाविक (न् + औ + इ + क = नाविक)
पो + अन = पवन
श्री + अन = श्रवण
पौ + अक = पावक
पौ + अन = पावन
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