दोहरा निषेचन, भ्रूणपोष, भ्रूण और बीज
दोहरा निषेचन
परागनलिका से नरयुग्मक मुक्त होने के पश्चात एक नर युग्मक अंड कोशिका से संलयित होता है। इसे सत्यनिषेचन (True Fertilization) कहते है। सत्यनिषेचन (True Fertilization) से द्विगुणित युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है।
सत्य निषेचन [ नर युग्मक + अंड कोशिका = युग्मनज]
परागनलिका में उपस्थित दूसरा नरयुग्मक दोनों धुर्वीय केन्द्रकों से संलयित होकर त्रिगुणित प्राथमिक भूर्णपोष कोशिका (Primary Endosperm Cell) का निर्माण करता है। इसे त्रिक संलयन (Triple Fusion) कहते है।
त्रिकसंलयन [नर युग्मक +ध्रुवीय केन्द्रक = प्राथमिक भूर्णपोष कोशिका] .
इस प्रकार भूर्णकोष में दो बार निषेचन होता है। इसलिए इसे दोहरा निषेचन (Double Fertilization) कहते है।
भूर्णपोष का विकास
त्रिकसंलयन से बनी प्राथमिक भूर्णपोष कोशिका (Primary Endosperm Cell) में बार-बार विभाजन होने से भूर्णपोष का निर्माण होता है। इसकी कोशिकाएँ पोषक पदार्थ युक्त होता है। जो विकासशील भूर्ण को पोषण प्रदान करती है।
पादपो में तीन प्रकार के भूर्णपोष पाये जाते हैं-
मुक्त केन्द्रकी भूर्णपोष /केन्द्रिकीय भूर्ण पोष
इस प्रकार के भूर्णपोष में प्राथमिक भूर्णपोष कोशिका (Primary Endosperm Cell) के केन्द्रक में विभाजन होता है। लेकिन कोशिका भित्ति का निर्माण नहीं होता। जिससे बहुकेन्द्रिकी संरचना बन जाती है। ऐसा पॉलीप्टेलस द्विबिजपत्री पादपों में पाया जाता है।
उदाहरण – नारियल (Cocos nucifera) का तरल द्रव।
कोशिकीय भूर्णपोष
इस प्रकार के भूर्णपोष का निर्माण प्राथमिक भूर्णपोष कोशिका (Primary Endosperm Cell) में केन्द्रक विभाजन के साथ–साथ कोशिका भित्ति का भी निर्माण होता है। ऐसा सामान्यत : गेमोपिटेलस द्विबीजपत्रि पादपो में होता है।
उदाहरण – धतुरा, पिटुनिया आदि।
हैलोबियल भूर्णपोष
इस प्रकार के भूर्णपोष में कोशिकीय व केन्द्रिकीय दोनों प्रकार की व्यवस्था पायी जाती है। प्राथमिक भूर्णपोष कोशिका (Primary Endosperm Cell) में शुरुआती विभाजन होते है। तो इसमें कोशिका भित्ति बनती है, परन्तु बाद में केवल केन्द्रक विभाजन होता है।
भूर्ण का विकास
द्विगुणित युग्मनज से भूर्ण का निर्माण होने की प्रक्रिया भूर्णोदभव (embryogenesis) कहलाती है। जब भूर्णपोष का निर्माण हो जाता है। तो युग्मनज में विभाजन प्रारम्भ होता है। जिससे विकासशील भूर्ण को पोषण प्राप्त होता रहता है।
प्रारम्भ में द्विबीजपत्री तथा एकबीजपत्री भूर्ण का विकास एक समान होता है। लेकिन बाद में इसके विकास की प्रकिया अलग-अलग होती है।
द्विबीजपत्री भूर्ण का विकास
इस प्रकार के भूर्ण विकास का अध्ययन Capsella Bursa-pastoris नामक क्रुसीफेरी पादप में किया गया।
इनमें युग्मनज दो असमान कोशिकाओं में विभक्त हो जाता है। जिन्हें आधारी कोशिका (Basal cell –बीजांडद्वार की और supensor cell) तथा अग्रस्थ कोशिका (Apical cell) कहते है।
आधारी कोशिका में अनुप्रस्थ विभाजन से 6 -10 कोशिकाओ से बनी संरचना बनती है। जो निलम्बक (surpenser) कहलाता है। निलम्बक की प्रथम कोशिका आकर में बड़ी होती है जिसे चुषकांग (sucker) कहते है।अंतिम कोशिका जो अग्रस्थ कोशिका के पास होती है वह स्फीतिका (hypophysis) का निर्माण करती है। जो विकसित होकर मुलगोप (radicle tip) बनती है ।
अगस्थ कोशिका में दो अनुदैर्ध्य तथा एक अनुप्रस्थ विभाजन होता है जिससे 8 कोशिकाओ के दो चक्र प्राप्त होते है। ऊपरी चक्र (epibasal) की चार कोशिकाएँ बीजपत्रों व प्रांकुर का निर्माण करती है तथा निचले चक्र (hypobasal) की चार कोशिकाएँ बीजपत्रोंपरिक व मूलांकुर का निर्माण करती है।
एपीबेसल तथा हाइपोबेसल (ऊपरी व निचला चक्र) की चार-चार कोशिकाएँ अष्टक बनाती है। अष्टक की कोशिकाओं में परिनत विभाजन (periclinal) होते है जिससे बाह्यत्वचाजन (protoderm) प्रोकेंबियम (प्राकेम्बियम) तथा भरत उतक (विभज्योतक) का निर्माण होता है।
प्रारम्भ में भूर्ण गोलाकार होता है। लेकिन बाद में यह बीजपत्रों के विकास के कारण हृदयाकार (heart shaped) हो जाता है। परिपक्व भूर्ण में दो बीजपत्र एंव एक भूर्णीय अक्ष होता है। भूर्णीय अक्ष का बीजपत्रों के स्तर से ऊपर का भाग बीजपत्रोपरिक (epicotyl) होता है। जिसका अंतिम सिरा (terminal end) प्रांकुर (plumcle) होता है।
भूर्णीय अक्ष का बीजपत्रों के स्तर का निचला भाग बीजपत्राधार (hypocoty) होता है। जिसका अन्तिम सिरा मुलंकार (radicle) होता है। जो मुलगोप से ढका रहता है।
एकबीजपत्री भूर्ण का विकास
इस प्रकार के भूर्ण के विकास का अध्ययन Luzula forsteri में किया जाता है
इसमें भूर्ण का विकास सेजिटेरिया (sagittaria) प्रकार का कहलाता है ।
एकबीजपत्री भूर्ण में अष्टक स्तर तक का विकास द्विबीजपत्री के समान ही होता है ।
युग्मनज से विभाजन से दो कोशिकाएँ (अग्रस्थ तथा आधारी ) बनती है ।
अग्रस्थ कोशिका में अनुदैर्ध्य विभाजन से आठ कोशिकाएँ बनती है।
ऊपर के स्तर की कोशिकाएँ बीजपत्रोंपरिक व प्रांकुर बनती है।
एकबीजपत्री में एक ही बीजपत्र बनता है। जिसे प्रशल्क (scutellum) स्कुटेल्म कहते है।
नीचे का स्तर मूलांकुर तथा बीजपत्राधार बनाता है। मुलाकुर तथा प्रांकुर पर आच्छादी आवरण (covering sheaths) बनता है जिन्हें
क्रमशः मूलांकुर चोल (coleorrhiza) तथा प्रांकुर चोल (coleoptile) कहते है।
बीज और इसका विकास
एंजियोस्पर्म में लैंगिक जनन का अंतिम परिणाम बीज होता है।
एक बीज में बीजावरण, बीजपत्र तथा एक भूर्णीय अक्ष होता है।
बीज का निर्माण बीजांड से होता है। बीजांड का अध्यावर्ण बीजावरण बनाता है।
बाह्य अध्यावरण के द्वारा टेस्टा तथा आंतरिक अध्यावरण के द्वारा टेगमेन का निर्माण होता है।
बीजांडकाय प्राय: नष्ट हो जाता है। परन्तु कुछ पादपों में यह परिभूर्णपोष का निर्माण करता है।
जैसे – काली मिर्च तथा चकुंदर आदि।
बीजांडवृन्त बीजवृन्त में परिवर्तित हो जाता है।
हाइलम बीज के ऊपर एक धब्बे के रूप में रह जाता है।
बीजांडद्वार बीज में एक छिद्र के रूप में रहता है। जिसके द्वारा अंकुरण के समय जल का अवशोषण होता है ।
परिपक्व बीज में जल की मात्रा बहुत कम होता है तथा उपापचयी क्रियाएँ बहुत धीमी गति से होता है एंव भूर्ण निष्क्रय अवस्था में होता है, इसे प्रसुप्ति (dorminancy) कहते है।
एकबीजपत्री बीज की संरचना
इसमें एकबीजपत्र होता है। ये भूर्णपोषी होता है।
भूर्णपोष के भीतरी स्तर को एपिथिलिय्म स्तर कहते है। बाहरी स्तर को एल्युरान स्तर कहते है ।
उदाहरण – गेंहू, बाजरा, मक्का, घास आदि
द्विबीजपत्री के बीज की सरचना
इसमें दो बीजपत्र होते है। तथा इनमें भूर्णपोष नहीं होता। ये अभूर्णपोषी होते है।
इसका अपवाद अरण्डी है, जो द्विबीजपत्री होते हुए भी भूर्णपोषी होते है।
उदाहरण – चना, मटर, मूंगफली, ग्वार आदि