नाभिकीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन

नाभिकीय शक्ति ग्रह और इसकी क्रियाविधि :
नियंत्रित विखण्डन में उत्पन्न ऊष्मा विद्युत उत्पन्न करने में प्रयुक्त की जा सकती है। नियंत्रित नाभिकीय विखण्डन के दौरान मुक्त हुर्इ ऊष्मा से विध्युत उत्पन्न करने की व्यवस्था को नाभिकीय शक्ति ग्रह या नाभिकीय शक्ति केन्द्र कहलाता है। नियंत्रित नाभिकीय विखण्डन में उत्पन्न ऊष्मा भाप बनाने में प्रयुक्त होती है। इस तरह से बनी भाप टरबाइन को चलाती है। टरबाइन की घूर्णन गति जनित्र के अल्टरनेटर को घूर्णित करती है और विध्युत उत्पन्न होती है। इस प्रकार, एक नाभिकीय शक्ति ग्रह में ऊर्जा निम्न क्रम से रूपान्तरित होती है :
यूरेनियम–235 नाभिकों की नाभिकीय ऊर्जा → भाप की ऊष्मा ऊर्जा → टरबार्इन की गतिज ऊर्जा → अल्टरनेटर की गतिज ऊर्जा → विध्युत ऊर्जा

नाभिकीय शक्ति गृह के अवयव

नाभिकीय शक्ति गृह के अवयव :
एक नाभिकीय शक्ति गृह निम्न अवयवों से बना होता है :
(a) नाभिकीय संयंत्र : यहाँ, एक विखण्डनीय र्इधन जैसे कि 92235U का नियत्रित नाभिकीय विखण्डन कराया जाता है।
(b) ऊष्मा विनियामक : संयंत्र ऊष्मा विनियामक से जुड़ा होता हैं। यहाँ, संयंत्र में उत्पन्न ऊष्मा एक कुण्डलीकृत पाइप से होकर प्रवाहित हो रहे शीतलक द्वारा पानी को स्थानांतरित की जाती है। पानी भाप में परिवर्तित हो जाता है। शीतलक पुन: संयंत्र में पम्प द्वारा भेजा जाता है।
(c) भाप-टरबाइन : ऊष्मा विनियामक में उत्पन्न ऊष्मा भाप-टरबाइन को चलाने में प्रयुक्त होती हैं। व्ययित भाप ऊष्मा विनियामक में गर्म पानी के रूप में वापस भेजी जाती है।
(d) विध्युत जनित्र (या डायनेमो) : भाप-टरबाइन की शाफ्ट एक विध्युत जनित्र (या डायनेमो) से जुड़ी होती है। इस प्रकार उत्पन्न विध्युत संचरण लाइनों में भेजी जाती हैं।
h necular power plant - नाभिकीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन
भारत में नाभिकीय शक्ति केन्द्रों की स्थिति
वर्तमान में भारत में उत्पन्न विध्युत ऊर्जा की लगभग 3% नाभिकीय शक्ति केन्द्रों (परमाणु शक्ति केन्द्र) से प्राप्त की जाती है।
भारत में निम्न परमाणु केन्द्र संचालन में है :
महाराष्ट्र में तारापुर परमाणु शक्ति केन्द्र (420 MW)
राजस्थान में कोटा के निकट राणा प्रताप सागर में राजस्थान परमाणु शक्ति केन्द्र (440 MW)
तमिलनाडू में कल्पक्कम में मद्रास परमाणु शक्ति केन्द्र (420 MW)
उत्तर प्रदेश में बुलन्दशहर के निकट नरोरा परमाणु शक्ति केन्द्र (470MW)

सूर्य “ऊर्जा का एक उत्तम स्त्रोत”

बड़ी मात्रा में सौर ऊर्जा का स्त्रोत सूर्य हल्के नाभिकों के संलयन के कारण है। सूर्य के द्रव्यमान का 90 % हाइड्रोजन एवं हीलियम का बना है तथा शेष 10 % अन्य तत्वों का बना है। सूर्य के आन्तरिक भाग का ताप लगभग 2 × 107K है।
हाइड्रोजन का नाभिक सूर्य के आंतरिक भाग में एक साथ संलयित होकर हीलीयम उत्पन्न करता है और एक बड़ी मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। यह आंकलन किया जाता है कि 1g हाइड्रोजन 620,000 मिलियन जूल ऊर्जा उत्पन्न करता है।
सूर्य में संलयन प्रक्रिया निम्न समीकरण के द्वारा समझायी जा सकती है –
sun nuclear fusion process - नाभिकीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन

नाभिकीय ऊर्जा का भविष्य एवं भारत The Future of Nuclear Energy and India

वर्तमान रिएक्टरों में प्राकृतिक यूरेनियम या आंशिक समृद्ध यूरेनियम ईंधन का उपयोग तापीय (मंद) रिएक्टरों में किया जा रहा है। इन रिएक्टरों में ऊर्जा उत्पादन के साथ ईंधन में उपस्थित यूरेनियम -238 का परिवर्तन प्लूटोनियम- 239 में होता है जो तीव्र प्रजनक रिएक्टरों का ईधन है। तीव्र प्रजनक रिएक्टरों के ईंधन में प्लूटोनियम –239 के साथ थोरियम भी होगा। ऊर्जा उत्पादन के साथ थोरियम का परिवर्तन यूरेनियम-233 ईंधन से तीव्र प्रजनक रिएक्टरों का निर्माण किया जाएगा जिसमें ऊर्जा उत्पादन के साथ थोरियम-232 का परिवर्तन यूरेनियम -233 के किया जाएगा। इस प्रकार सैद्धांतिक तौर पर भविष्य के रिएक्टरों में सिर्फ थोरियम इस्तेमाल किया जा सकगा।

यद्यपि वर्तमान रिएक्टरों का प्रचालन काफी निरापद है, पंरतु इनसे निकलने वाले अपशिष्टों का निपटान एक समस्या बनती जा रही है क्योंकि इसमें कुछ ऐसे विषैले एक्टीनाइड एवं विखंडन उत्पाद मौजूद होते हैं, जिनकी अर्द्धआयु कई हजार वर्षों की होती है। जब तक इन्हें उतने वर्षों तक सुरक्षित रूप में संग्रह करने की तकनीक का पूर्ण विकास न हो जाए, दूर भविष्य के लिए ये खतरनाक हो सकते हैं। यही कारण है कि जनता में नाभिकीय ऊर्जा के प्रति एक रोष-सा पैदा हो रहा है। अत: भविष्य के लिए ऐसी ऊर्जा स्रोतों का विकास करना होगा ताकि आने वाली पीढ़ियों को कई सदियों तक बिना किसी कठिनाई के एवं साफ सुथरी ऊर्जा मिलती रहे।

वर्तमान परमाणु रिएक्टरों के अनुभव के आधार पर ऐसे रिएक्टरों का विकास हो रहा है जो सुरक्षा एवं दक्षता की दृष्टिकोण से काफी अच्छे होंगे। इन प्रगत रिएक्टरों से हाइड्रोजन भी उत्पन्न की जाएगी जो भविष्य में ऊर्जा क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी। इसके अलावा नाभिकीय ऊर्जा का असीमित भंडार ड्यूटीरियम के रूप में समुद्र के पानी में उपलब्ध है जो संलयन प्रक्रिया से ऊर्जा पैदा करती है। इस तकनीक के विकास पर अनुसंधान चल रहे हैं। इसके अतिरिक्त थोरियम से विद्युत ऊर्जा का उत्पादन त्वरित्र द्वारा प्रचालित उपक्रांतिक रिएक्टर में करने के लिए विश्व की अनेक प्रयोगशालाओं में इस तकनीक पर भी विकास कार्य हो रहा है। संभवत: अगले पचास वर्षों में इन तकनीकों के माध्यम से भी परमाणु ऊर्जा का उपयोग, विद्युत उत्पादन के लिए शुरू हो जाएगा। तब मानव जगत के सम्मुख सरलता से उपलब्ध, प्रदूषणरहित सर्वव्यापक एवं असीमित ऊर्जा की प्राप्ति के द्वार सदा के लिए खुल जाएंगे। अत: भविष्य में परमाणु ऊर्जा ही विद्युत उत्पादन का मुख्य हिस्सा होगी।

परमाणु ऊर्जा विभाग के नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम में वाणिज्यिक पैमाने पर दावानुकूलित भारी जल रिएक्टर, तीव्र प्रजनक रिएक्टर तथा थोरियम आधारित निर्मित करने की परिकल्पना है तथा इसमें रिएक्टर के संचालन और अनुरक्षण, अवशेष प्रबंधन, सुरक्षा और पर्यावरण मानीटरिंग से संबंधित प्रौद्योगिकी विकास भी शामिल है।

आज वाणिज्यिक संचालन के अंतर्गत भारत के 12 नाभिकीय ऊर्जा रिएक्टर है। सुरक्षा, विश्वसनीयता तथा मितव्ययिता में और सुधार के लिए उन्नत विशेषताओं को शामिल करने हेतु नए रिएक्टरों के डिजाइनों को उत्तरोत्तर विकसित किया जा रहा है। इसने पुराने संयंत्रों के सेवाकालीन निरीक्षण और इन्हें सुंदर बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का सफलतापूर्वक विकास किया है। यद्यपि दावानुकूलित भारी जल रिएक्टर (पीएचडब्ल्यूआर) को भारत के नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के प्रथम चरण वाले रिएक्टर के रूप में चुना गया था, लेकिन संचालन संबंधी अनुभव हासिल करने के लिए शुरू-शुरू में तारापुर (महाराष्ट्र) में एक परमाणु ऊर्जा केन्द्र स्थापित किया गया। इस केन्द्र में दो क्वथन जल रिएक्टर हैं, जो 1969 से चालू हो गये थे। ये रिएक्टर आज भी चल रहे हैं तथा अच्छी हालत में हैं।

देश में अनुसंधान और विकास तथा औद्योगिकी आधारभूत ढाँचे की सहायता की वजह से 220 मेगावाट के पी.एच.डब्ल्यू आर. के डिजाइन में और सुधार तथा इसका मानकीकरण हुआ। इस डिजाइन के आधार पर नरौरा (उत्तर प्रदेश) में दो रिएक्टर स्थापित किये गये जिन्होंने 1989 और 1991 में कार्य करना आरंभ कर दिया। बाद में, 220 मेगावाट की क्षमता वाले दो और परमाणु ऊर्जा रिएक्टर भी काकरापारा (गुजरात) में 1992 और 1995 में लगाये गये इसके साथ दावानुकूलित भारी जल रिएक्टर की देशज प्रौद्योगिकी वाणिज्यिक परिपक्वता पर पहुँच गयी।

भारतीय नाभिकीय ऊर्जा निगम लि. अद्यतन प्रौद्योगिकी से युक्त 220 मेगावाट के एक-एक पी.एच.डब्ल्यूआर. कैगा (कर्नाटक) और रावतभाटा में तथा 550 मेगावाट के दो पी.एच.डब्ल्यू.आर. तारापुर में स्थापित कर रहा है। इस वर्ष कैगा और रावतभाटा स्थिति एम – एक रिएक्टरों ने वाणिज्यिक संचालन शुरू कर दिया है। नाभिकीय प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत के बढ़ते अनुभवों के फलस्वरूप इसके नाभिकीय संयंत्रों के निष्पादन में सुधार आया है। 1999-2000 के दौरान सकल विद्युत उत्पादन 12000 मिलियन यूनिट को पार कर गया तथा संयंत्रों की औसत क्षमता जो 1995-96 में 60 प्रतिशत थी, 80 प्रतिशत की ऊँचाई को छू गयी। एन.पी. सी.आई.एल. ने अपने निष्पादन में आमूल परिवर्तन को प्राप्त किया। 2000 मेगावाट की कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना तथा 440 मेगावाट की कैगा परमाणु ऊर्जा परियोजना-3 एवं 4 एन.पी.सी. आई.एल. की नयी परियोजनायें हैं। आज भारत ने नाभिकीय ऊर्जा अनुरक्षण करने, सभी संबद्ध उपकरणों एवं घटकों का विर्निमाण करने तथा अपेक्षित नाभिकीय ईंधन तथा विशिष्ट सामग्री का उत्पादन करने संबंधी अपनी क्षमता को प्रदर्शित किया है। नाभिकीय ऊर्जा पैदा करने की कुल क्षमता – 220 मेगावाट है।

भारत के नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम में 12 क्रियाशील रिएक्टर हैं जिनमें 2 क्वचन जल रिएक्टर (बी.डब्ल्यू.आर.) तथा 10 दावानुकूलित भारी जल रिएक्टर (पी.एच.डब्ल्यू.आर.) शामिल हैं। इसके पास इस समय चार पी.एच.डब्ल्यू.आर. निर्माणाधीन हैं जिनमें से दो (कैगा और राजस्थान में स्थित) की क्षमता 220 मेगावाट है जबकि दो (तारापुर में स्थित) की क्षमता अलग-अलग 50 मेगावाट है। नाभिकीय पावर कारपोरेशन लि. (एन.पी.सी.आई.एल.) सार्वजनिक क्षेत्र की कपनी है जो भारत में नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों का स्वामित्व ग्रहण करती है, इनका निर्माण करती है तथा उन्हें संचालित करती है।

भारत में नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का नेतृत्व करने वाले एल.पी.सी.आई.एल. की योजना 2020 तक 20000 मेगावाट क्षमता के नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र लगाने की है। 

उर्जा उत्पादन के चरण

प्रथम चरण

देश में प्राकृतिक यूरेनियम के संसाधनों और औद्योगिक ढांचे की उपलब्धता को ध्यान में रखकर पहले चरण के लिए प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टरों का चुनाव किया गया। इस चरण में 235 मेगावाट तथा 500 मेगावाट प्रति रिएक्टर विद्युत उत्पादन क्षमता वाले अनेक रिएक्टरों के निर्माण की योजना बनाई गई थी तथा प्रत्येक स्थान पर कम-से-कम दो रिएक्टरों के एक साथ निर्माण की योजना भी थी। भारत में तारापुर परमाणु विद्युत गृह के अतिरिक्त सभी परमाणु विद्युत गृहों में प्राकृतिक यूरेनियम का उपयोग किया जाता है।

तारापुर परमाणु विद्युत गृह के 1969 में चालू हो जाने से भारत विश्व के नाभिकीय ऊर्जा मानचित्र पर आ गया। तारापुर में अमेरिकी तकनीकी से परिष्कृत यूरेनियम का ईंधन के रूप में तथा साधारण जल द्वारा ठंडा किए जाने की विधि पर आधारित बॉयलिंग वाटर-रिएक्टर की स्थापना की गई। परन्तु भारत ने इस तकनीक को नहीं अपनाया क्योंकि परिष्कृत यूरेनियम अमरीका से आयात करना पड़ता था तथा देश में यूरेनियम परिष्करण की प्रक्रिया अत्यधिक जटिल एवं अपेक्षाकृत मंहगी भी है।

तारापुर परमाणु संयंत्र के अतिरिक्त अन्य सभी परमाणु संयंत्र, कनाडा के डिजाइन पर आधारित हैं। इनमें ईंधन के तौर पर प्राकृतिक यूरेनियम तथा मंदक के तौर पर गुरू जल का प्रयोग किया जाता है। इन रिएक्टरों को दबावयुक्त गुरू जल रिएक्टर कहते हैं। कनाडा के सहयोग से कोटा के समीप रावतभाटा (राजस्थान) में 150 और 200 मेगावाट क्षमता के दो रिएक्टरों ने 1972 और 1980 में व्यावसायिक तौर पर उत्पादन आरम्भ किया। इसके बाद चेन्नई के समीप कलपक्कम (तमिलनाडु) में स्वदेश में डिजाइन एवं निर्मित दो पी.एच.डब्ल्यू (PH.W.) रिएक्टरों ने 1984 और 1986 में व्यावसायिक उत्पादन आरम्भ कर दिया।

परमाणु विद्युत ऊर्जा उत्पादन के पहले चरण को व्यावसायिक स्तर पर तीव्रता से चलाने हेतु नाभिकीय ऊर्जा बोर्ड को 1987 से भारतीय नाभिकीय ऊर्जा निगम लि. बना दिया गया। मानकीकृत तथा स्वदेशी उन्नत पी.एच.डब्ल्यू.आर. के डिजाइन पर आधारित 200 मेगावाट क्षमता की दो इकाइयों वाले रिएक्टर अलीगढ़ के समीप नरौरा (उत्तर प्रदेश) में 1989 और 1991 में सफलतापूर्वक चालू किए गए, जबकि इतनी ही क्षमता की दो इकाइयों वाले पी.एच.डब्ल्यू. रिएक्टरों ने काकरापारा (गुजरात) में 1992 और 1995 में व्यावसायिक उत्पादन आरम्भ किया। कर्नाटक राज्य के कैगा में 235 मेगावाट क्षमता की दो इकाइयों वाले रिएक्टरों ने 1999 में कार्य करना आरम्भ किया है।

नाभिकीय प्रौद्योगिकी में बढ़ते अनुभव के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के प्रदर्शन में सुधार आया है। 1981-82 में 300 करोड़ इकाइयों का परमाणु विद्युत उत्पादन होता था, जोकि बढ़कर 2002-03 में 1020 करोड़ इकाइयां हो गया। परमाणु संयंत्रों का औसत क्षमता भार 89% तक पहुंच चुका है। केंडु ओनर्स ग्रुप द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका कोगानिजेंट के अनुसार, विश्व में कार्यरत 32 पी.एच.डब्ल्यू.आर. में से काकरापारा परमाणु ऊर्जा स्टेशन की इकाई-1 को सितम्बर, 2002 के अन्त में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन वाला घोषित किया गया क्योंकि इस इकाई का पिछले 12 महीनों में कुल क्षमता भार 98.4% रहा था।

प्रथम चरण में ही देश में ही विकसित स्वदेशी कार्यक्रमों के अतिरिक्त हल्के जल रिएक्टर प्रौद्योगिकी के आयात का भी कार्यक्रम है। इस दिशा में पहला कदम रूस के सहयोग से तमिलनाडु के कुडामलकुलम में 1000 मेगावाट के दो दाबित जल निएक्टरों वाले परमाणु ऊर्जा स्टेशन के निर्माण की योजना बनाकर किया गया है। इन रिएक्टरों का निर्माण कार्य 31 मार्च, 2002 को शुरू हुआ।

नाभिकीय ईंधन क्रमिका

परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की विभिन्न प्रक्रियाओं को संयुक्त रूप से नाभिकीय ईंधन क्रमिका कहा जाता है। इनमें शुरू में खनिजों की खोज, खनन, अयस्क का प्रसंस्करण और ईंधन सविचरण शामिल है जबकि क्रमिका के अंत की क्रियाओं में इस्तेमाल हुए यूरेनियम ईंधन का पुनः प्रसंस्करण और परमाणु अपशिष्ट का प्रबन्धन शामिल

है। सम्पूर्ण ईंधन क्रमिका से सम्बन्धित सभी संयंत्रों/सुविधाओं के डिजाइन और संचालन की पूरी क्षमता भारत ने प्राप्त कर ली है, जिसमें दबावयुक्त गुरूजल पर आधारित नाभिकीय ईंधन क्रमिका की सभी क्रियाएं शामिल हैं। परमाणु ऊर्जा विभाग की जो संस्थाएं क्रमिका के शुरू के कार्य में जुटी हैं, वे हैं – हैदराबाद का परमाणु खनिज अनुसंधान और अन्वेषण निदेशालयजादूगुड़ा का भारतीय रेयर अर्थस लिमिटेडमुम्बई का गुरूजल बोर्डहैदराबाद का नाभिकीय ईंधन परिसर। भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र तथा इन्दिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र ईंधन क्रमिका के अन्त के भाग को चलाते है। प्रथम चरण में निर्मित परमाणु विद्युत संयंत्रों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों के पुनर्संसाधन की तकनीक देश में ही विकसित की गई है। इस तकनीक के उपयोग से नाभिकीय ईंधन के अवशिष्ट पदार्थों से उपयोगी पदार्थों को अलग किया जाता है। इनमें सबसे प्रमुख है प्लूटोनियम-239, जो प्राकृतिक अवस्था में नहीं मिलता जबकि यह एक विखंडनीय तत्व है। जले हुए ईंधन से प्लूटोनियम-239 के पुनर्संसाधन के लिए मुम्बई, तारापुर व कलपक्कम में पुनर्संसाधन संयंत्र लगाया गया है।

प्लूटोनियम-239 का भारत में दो महत्वपूर्ण उपयोग है –

  1. नाभिकीय विस्फोटों में उपयोग
  2. द्वितीय चरण में नाभिकीय ईंधन के रूप में व्यापक उपयोग।
भारत में परमाणु ऊर्जा केन्द्र
A. वर्तमान में कार्यरत
नामरिएक्टर का डिजाइन तथा स्थापना वर्षक्षमता (मेगावाट)विशेषता
तारापुर (महाराष्ट्र) (थाणे)बायलिंग वाटर रिएक्टर (1969)12 × 160अमेरिका की सहायता से स्थापित GE
टैप्स 1,2,3,42 × 540कम्पनी द्वारा शुरू किया गया भारत का पहला परमाणु विद्युत संयंत्र है।
रावतभाटा (राजस्थान) (चितौड़गढ़)प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर(1973, 1981, 2000)4 × 220आरंभ में कनाडा के सहयोग से शुरू की गई यह परियोजना बाद में स्वदेशी तकनीक से पूरी गई।
1 × 100
1 × 200
कलपक्कम (तमिलनाडु) (चेन्नई)प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर (1984, 1986)2 × 220यह पूर्णतया स्वदेशी तकनीक से निर्मित है।
नरौरा (उत्तर प्रदेश) (बुलंदशहर)प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर (1991, 1992)2 × 220यह भारत का चौथा परमाणु ऊर्जा केंद्र है।
कलपक्कम (तमिलनाडु) (चेन्नई)प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर (1984, 1986)2 × 220यह भारत का पांचवा परमाणु ऊर्जा केंद्र है।
कैगा (कर्नाटक)प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर (2000)2 × 220यह भारत का छठा परमाणु ऊर्जा केंद्र है।
काकरापारा (गुजरात) (सूरत)प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर (2000)2 × 220यह भारत का 7वां परमाणु ऊर्जा केंद्र है।
B. निर्माणाधीन
कैगा (कर्नाटक)प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर2 × 220
रावतभाटा (राजस्थान) (चितौड़गढ़)प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर2 × 220
तारापुर परमाणु ऊर्जा केंद्र (थाणे)प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर2 × 220
कुडनकुलम (रूस को सहयोग से)प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर4 × 220
कुल (रिएक्टर) निर्माणाधीन क्षमता2370
कार्यरत क्षमता3802
शोध रिएक्टर
जेरलिना (ट्रांबे)0प्राकृतिक यूरेनियमजनवरी, 1961 में स्थापित यूरेनियम और भारी जल जालक के अध्ययन में किया जाता है।
अप्सरा (ट्रांबे)1एनरिच्ड यूरेनियम- एल्युमिनियम मिश्रधातुभारत का प्रथम परमाणु रिएक्टर जिसकी स्थापना अगस्त 1956 को हुई। यह एशिया का पहला रिएक्टर है।
साइरस (ट्रांबे)40प्राकृतिक यूरेनियमभारत कनाडा के सहयोग से 1960 में स्थापित।
नामरिएक्टर का डिजाइन तथा स्थापना वर्षक्षमता (मेगावाट)विशेषता
पूर्णिमा-I (ट्रांबे)100प्लूटोनियम/ यूरेनियम-233मई, 1972 में स्थापित एवं प्लूटोनियम ईंधन वाला रिएक्टर है। प्रथम चरण में संशोधित किए गए यूरेनियम का उपयोग। तृतीय चरण में विकास की प्रक्रिया में।
पूर्णिमा- II
पूर्णिमा-III
कामिनी (कलपक्कम)30 (कि.वाट)यूरेनियम-233- एल्युमिनियम मिश्रधातुभारत का प्रथम फास्टब्रिडर न्यूट्रान रिएक्टर। भारत विश्व का सातवां और विकासशील देशों में पहला देश है, जिसके पास फास्टब्रिडर प्रौद्योगिकी है।
नोट- अप्सरा और साइरस 350 विभिन्न प्रकार के रेडियोएक्टिव उत्पाद उत्पन्न करता है जिसमें से कुछ का निर्यात फ्रांस, स्वीडन, डेनमार्क, आस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों को किया जाता है।

द्वितीय चरण

नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के द्वितीय चरण में विद्युत उत्पादन के लिए फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों का प्रयोग किया जाना है। इनमें ईधन का इस्तेमाल पी.एच.डब्ल्यू. रिएक्टरों से लगभग साठ गुना अधिक हो सकता है। इस चरण में निर्मित होने वाले एफ.बी.आर. से 21वीं सदी के आरम्भिक वर्षों से विद्युत उत्पादन शुरू करने की आधारशिला बना ली गई है। फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों व उससे सम्बन्धित तकनीकों के विकास के लिए 1971 में कलपक्कम में इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की गई। फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों में प्राकृतिक यूरेनियम और प्रथम चरण से प्राप्त प्लूटोनियम-239 के मिश्रण का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाएगा। इस प्रक्रिया का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि इन रिएक्टरों से विद्युत उत्पादन में जितना ईंधन जलेगा, उससे अधिक प्लूटोनियम-239 या यूरेनियम-233 के रूप में ईंधन का निर्माण किया जा सकेगा। प्राकृतिक यूरेनियम-238 एक अविखंडनीय तत्व है, इसे एफ.बी.आर. के माध्यम से दूसरे चरण में विखंडनीय बनाया जाएगा। फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों के निर्माण एवं संचालन में आ सकने वाली कठिनाइयों के अध्ययन और उनका कुछ अनुभव प्राप्त करने के उद्देश्य से इंदिरा गांधी अनुसंधान केन्द्र, कलपक्कम में 40 मेगावाट क्षमता का एक फास्ट ब्रीडर रिएक्टर सफलतापूर्वक कार्यरत है। इसमें देश में ही विकसित यूरेनियम-प्लूटोनियम कार्बाइड मिश्रित ईंधन कोर का प्रयोग होता है। जुलाई 1997 में एफ.बी.टी.आर. को दक्षिणी ग्रिड के साथ सिंक्रोनाइज कर दिया गया था तथा इसका 11.25 मेगावाट तक के विद्युत स्तर पर संचालन करते हुए विद्युत का उत्पादन भी किया गया है। इसके अतिरिक्त एफ.बी.आर. आधारित परमाणु विद्युत गृहों के डिजाइन के लिए आवश्यक आकड़ों का पता लगाने के लिए दो प्रायोगिक छोटे रिएक्टर पूर्णिमा-1 और पूर्णिमा-2 मुम्बई में तथा एक प्रायोगिक रिएक्टर कामिनी (1985) का निर्माण कलपक्कम में किया गया है। इन सभी प्राप्त अनुभवों के आधार पर एक परमाणु विद्युत गृह (एफ.बी.आर. आधारित) बनाया जायेगा जो कलपक्कम के एफ.बी.टी.आर. की अपेक्षा बहुत अधिक विद्युत का उत्पादन कर सकेगा। इस परमाणु विद्युत गृह के 21वीं शताब्दी के प्रथम दशक में बन जाने की सम्भावना है। एफ.बी.टी. आर. के डिजाइन, निर्माण और संचालन से प्राप्त अनुभवों के आधार पर कलपक्कम में 500 मेगावाट क्षमता के प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर को लगाने की 3492 करोड़ रुपए की परियोजना पर कार्य 2003–2004 में शुरू कर दिया गया। इस परियोजना का व्यावसायिक परिचालन आठ वर्ष में शुरू होने की सम्भावना है। यह रिएक्टर चालू होने के बाद 62.8% क्षमता के माध्यम से वार्षिक 258 करोड़ लाख यूनिट विद्युत पैदा होगी।

फास्ट रिएक्टर ईंधन संविचरण: भारत में अधिक प्लूटोनियम मात्रा वाला मार्क–I मिक्सड कार्बाइड ईंधन कोर का पहली बार विश्व में विकास किया गया है। ईधन का प्रदर्शन अच्छा रहा है और परीक्षण से साबित हुआ है कि ईंधन को अधिक ज्वलन के लिए भी उपयोग किया जा सकता है। मार्क-II के संविचरण का काम ट्राम्बे में चल रहा है। बार्क में अनेक पी.एफ.बी.आर. मोक्स ईंधन इलिमेंट्स बनाए गए हैं, जिन्हें प्रयोगात्मक पी.एफ.बी.आर. सब असेम्बली में उपयोग कर सकते हैं।

फास्ट रिएक्टर ईंधन पुनर्प्रसंस्करण

एफ.बी.टी.आर. के ईंधन के पुनर्प्रसंस्करण के लिए लेड मिनी सैल को कल्पक्कम में लगाया जा रहा है जोकि फास्ट रिएक्टर पुनर्प्रसंस्करण फ्लोशीट तैयार करने में सक्षम है। फास्ट ब्रीडरों से मिलने वाले ईंधन के र्पुनप्रसंस्करण के लिए इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र एक संयंत्र लगा रहा है।

फास्ट रिएक्टर प्रौद्योगिकी विकास

इसके अन्तर्गत इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र इंजीनियरिंग सम्बंधित शोध और विकास कार्य कर रहा है, जैसे थर्मल हाइड्रोलिक और स्ट्रक्चरल अध्ययन, पुर्जों का विकास जैसे कंट्रोल व सेफ्टी परीक्षण और वाष्प उत्पादक परीक्षण के लिए सुविधाएं तैयार की जा रही हैं। कलपक्कम में बोरॉन संयंत्र से सफलतापूर्वक 52% बोरॉन-10 एनरिचमेंट प्राप्त किया गया है।

तृतीय चरण

भारत के नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के तीसरे चरण में थोरियम पर आधारित फास्ट ब्रीडर रिएक्टर तथा प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर के निर्माण की परिकल्पना की गई है। भारत में थोरियम तत्व के भंडार, मोनाज़ाइट रेत के रूप में प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं। ज्ञातव्य है कि थोरियम तत्व विखंडनीय नहीं है अर्थात् थोरियम का प्रयोग प्रत्यक्ष तौर पर नाभिकीय ईंधन के रूप में नहीं किया जा सकता। थोरियम को एफ.बी.आर. में यूरेनियम-233 में परिवर्तित किया जाएगा, जो तीसरे चरण के अन्तर्गत बनने वाले परमाणु विद्युत गृहों में ईंधन के रूप में कार्य करेगा। अनुसंधान तथा ऊर्जा रिएक्टरों में थोरियम के प्रयोग से नाभिकीय ईंधन यूरेनियम-233 बनाने की प्रक्रिया का विकास कर लिया गया है। कलपक्कम में स्थित प्रायोगिक कामिनी रिएक्टर में थोरियम से बने ईंधन यूरेनियम-233 का प्रयोग करको सफलतापूर्वक 30 किलोवाट ऊर्जा क्षमता को प्राप्त किया गया है। कामिनी रिएक्टर में न्यूट्रॉन-परावर्तक के रूप में बेरिलियम ऑक्साइड का प्रयोग किया जाता है। कामिनी रिएक्टर का उपयोग न्यूट्रॉन रेडियोग्राफी, न्यूट्रॉन एक्टीवेशन विश्लेषण में किया जाएगा। कामिनी रिएक्टर की प्रायोगिक सफलता ही भारतीय नाभिकीय कार्यक्रम के तृतीय चरण की शुरुआत है। बार्क ने थोरियम के प्रयोग के लिए उन्नत गुरू जल प्रकार के रिएक्टर के डिजाइन की प्रौद्योगिकी तैयार करने में उल्लेखनीय प्रगति की है और इसक जल्दी ही निर्मित हो जाने की सम्भावना व्यक्त की गई है।

भारत में शोध और विकास

डी.ए.ई. के शोध व विकास कार्यक्रमों में इसके 5 शोध संगठन योगदान करते हैं। यह विभाग देश के 7 अग्रणी शोध संस्थाओं को संपूर्ण सहायता प्रदान करता है, देश के अग्रणी कैंसर संस्थानों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराता है और परमाणु ऊर्जा तथा अन्य संबद्ध क्षेत्रों में उच्चतर अध्ययन व गणित के क्षेत्र में संलग्न विश्वविद्यालयों और संस्थानों में शोध को बढ़ावा देता है।

भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (BARC) मुम्बई, देश में आणविक शोध व विकास का सर्वप्रमुख केन्द्र है। इसकी सुविधाओं (Facilities) में शामिल है – अनुसंधान व रेडियो आइसोटोप उत्पादन में संलग्न, ट्रॉम्बे स्थित अनुसंधान रिएक्टर ध्रुव (100 मे. वा.), सायरस (40 मे.वा.) और अप्सरा (1 मे. वा.); न्यूट्रॉन रेडियोग्राफी के लिए कल्पक्कम स्थित अनुसंधान रिएक्टर कामिनी (30 कि. वा.) तथा यूरेनियम धातु, आणविक ईधनों, ईंधन पुनः प्रसंस्करण (Reprocessing) और अपशिष्ट निपटान से संबंधित संयंत्र तथा भूकम्पीय (Seismic) केन्द्र आदि।

बी.ए.आर.सी. द्वारा स्थापित ईंधन पुनर्प्रसंस्करण संयंत्र तारापुर, ट्राम्बे तथा कलपक्कम में कार्यरत हैं। नाभिकीय अपशिष्ट प्रबंधन के लिए भी बी.ए.आर.सी. ही उत्तरदायी है और यह विभिन्न अपशिष्ट- प्रबंधन-सुविधाओं (Facilities) तथा अपशिष्ट निपटान संयंत्रों – तारापुर और कलपक्कम – का परिचालन करता है।

मुम्बई स्थित विकिरण औषधि केन्द्र – जो बी.ए.आर.सी. की एक ईकाई है – विश्व स्वास्थ्य संगठन का क्षेत्रीय निर्देश (Referral) केन्द्र भी है। मुम्बई में बी.ए.आर.सी. द्वारा, टी.आई.एफ. आर. के सहयोग से स्थापित 14 मिलियन वोल्ट का एक प्लेट्रॉन एक्सीलरेटर, एक राष्ट्रीय अनुसंधान सुविधा (Facility) है।

कलपक्कम, तमिलनाडु स्थित इंदिरा गाँधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (IGCAR-Indira Gandhi Center for Atomic Research) सोडियम द्वारा शीतल किए जा सकने वाले फास्ट ब्रीडर रिएक्टर तकनीक के विकास में संलग्न है। फास्ट ब्रीडर प्रायोगिक रिएक्टर (एफ.बी.टी.आर.) इसकी महत्वपूर्ण सुविधा (Facility) है। आई.जी.सी.ए.आर. ने फास्ट ब्रीडर रिएक्टर तकनीक, यथा-धातु-कर्म (Metallurgy), रिएक्टर इंजीनियरिंग, सोडियम तकनीक, रेडियो केमेस्ट्री, पुर्नप्रस्संकरण तथा सुरक्षा आदि क्षेत्रों में अनुसंधान व विकास के निमित्त उच्चतर प्रयोगशालाएँ स्थापित की है। यह केन्द्र, 500 मे.वा. क्षमता के प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर का विकास कर रहा है।

इंदौर, मध्यप्रदेश, स्थित उन्नत प्रौद्योगिकी केन्द्र (CAT-Center for Advanced Technology) लेजर्स, एक्सीलरेटर्स, उच्च निर्वात (Vacuum) तकनीक, क्रायोजेनिक्स तथा वृहद चुंबकों के विनिर्माण की तकनीक आदि के विकास के राष्ट्रीय प्रयासों में अग्रणी योगदान करता है। सी.ए.टी. एक सिन्क्रोट्रॉन स्रोत सुविधा (Synchrotron sources facility-SRS) की स्थापना कर रहा है, जो देश में एक विशिष्ट प्रकार का अनुसंधान साधन होगा।

कलकत्ता स्थित वेरीएबल ऊर्जा साइक्लोट्रोन केन्द्र (VECC-Variable Energy Cyclotron Center) नाभिकीय क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर का एक अनुसंधान केन्द्र है। वेरीएबल ऊर्जा साइक्लोट्रोन (वी.ई.सी) नाभिकीय भौतिकी, नाभिकीय रसायन आदि के अनुसंधान के निमित्त नाभिकीय कणों का किरणपुंज (BeaMs) प्रदान करता है, तथा विभिन्न साइक्लोट्रोनों के लिए रेडियोआइसोटोप्स का उत्पादन करता है।

हैदराबाद स्थित परमाणु खनिज अन्वेषण और खनन निदेशालय (The Atomic Minerals Directorate for Exploration and Research-AMD)- रेडियोमेट्रिक तथा भूगर्भीय सर्वे, अन्वेषण, पूर्वेक्षण (Prospecting) तथा डी.ए.ई. के आणविक ऊर्जा कार्यक्रम के लिए आवश्यक विभिन्न खनिज संसाधनों के विकास के लिए उत्तरदायी है।

गुरुजल

भारी जल, हाइड्रोजन के गुरुतर समस्थानिक (ड्यूटेरियम) और ऑक्सीजन का यौगिक है। इसका सापेक्षिक घनत्व 101 और हिमांकसाधारण जल से थोड़ा अधिक होता है।

नाभिकीय ऊर्जा के साथ-साथ अनुसंधान रिएक्टरों के लिए आवश्यक गुरूजल माँग की आपूर्ति के निमित्त उत्पादन के लिए गुरू जल बोर्ड, मुम्बई (Heavy Water Board, Mumbai) उत्तरदायी है। आठ गुरू जल संयंत्रों की स्थापना, नांगल (पंजाब), तूतीकोरीन (तमिलनाडु), रावतभाटा (राजस्थान), बड़ौदा (गुजरात), थाल (महाराष्ट्र), तलचर (उड़ीसा), मानगुरू (आंध्र प्रदेश) तथा हजीरा (गुजरात) में की गई है। रावतभाटा और मानगुरू संयंत्रों में, हाइड्रोजन सल्फाइड तथा ट्रॉम्बे में विकसित जल विनिमय प्रक्रिया (Water Exchange Process), का प्रयोग किया जाता है जबकि नांगल संयंत्र में निम्न ताप पर हाइड्रोजन आसवन प्रक्रिया (Distillation Process) का प्रयोग होता है। अन्य संयंत्र, गुरु जल उत्पादन के लिए अमोनिया हाइड्रोजन विनिमय प्रक्रिया पर आधारित है।

गुरू जल का उपयोग तथा भारत में क्षमताएँ

  • भरी जल D2O है। जो ड्यूटेरियम और ट्राइटियम, H2 के आइसोटोप्स हैं।
  • उपयोग  प्रेशराइज्ड गुरू जल रिएक्टरों में शीतलक के साथ-साथ मॉडरेटर को रूप में।
  • साधारणत: हाइड्रोजन अणुओं में, 7000 में से एक डयूटेरियम है।
  • शान्तिपूर्ण उपयोग  ओरल पोलियो वैक्सीन- इसे D2O में ही परिरक्षित किया जाता है।
  • भारत न सिर्फ गुरू जल उत्पादन में आत्मनिर्भर है अपितु इसका निर्यात भी करता है, विशेष रूप से दक्षिण कोरिया को।
  • देश में गुरू जल संयंत्रों का डिजाइन, निर्माण व परिचालन, गुरू जल बोर्ड करता है।
  • एक गौण उत्पाद के रूप में – उर्वरक कारखानों के निकट अवस्थित है। 

परमाणु प्रतिष्ठान

  • बी. ए. आर. सी. के अनुसंधान कद्र, मुम्बई
  • वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रॉन सेंटर, कोलकाता
  • उच्च तंगता अनुसंधान प्रयोगशाला, गुलमर्ग
  • न्यूक्लियर अनुसंधान प्रयोगशाला, कश्मीर
  • सीस्मिक स्टेशन, गौरिबिदनौर (कर्नाटक)

परमाणु खनिज प्रभाग

यह हैदराबाद में स्थित है तथा परमाणु खनिजों के अन्वेषण का कार्य करता है। बिहार में जादूगुड़ा, भाटी व नरवापहर में यूरेनियम खानें खोजने में सहायक हुआ है। इसने डोमियासियाट (मेघालय), आन्ध्र प्रदेश में लांबापुर-येल्लापुर व तुम्मालापाले में यूरेनियम अयस्क का भी पता लगाया।

इसके अधीन तीन औद्योगिक संगठन हैं-

  • हैवी वाटर बोर्ड (एच डब्ल्यू बी), मुम्बई
  • न्यूक्लियर फ्यूल काम्पलैक्स (एन एफ सी), हैदराबाद
  • बोर्ड ऑफ रेडिएशन एंड आइसोटोप टेक्नोलॉजी (बी आर आई टी), मुम्बई

अधीन चार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम

  • न्यक्लियर पावर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लि. (एनपीसीआईएल), मुंबई
  • यूरेनियम कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लि. (सूसीआईएल), जादूगुड़ा, बिहार
  • इंडियन रेयर अर्थ लिमिटिड (आईआरई), मुंबई
  • इलेक्ट्रॉनिक कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लि. (ईसीआईएल), हैदराबाद

डीएई में निम्नलिखित चार सेवा संगठन शामिल हैं-

  • क्रय एवं भंडार निदेशालय (डीपीएस), मुंबई
  • विनिर्माण, सेवा और एस्टेट मैनेजमेंट ग्रुप (सीएसएंडईएमजी), मुंबई
  • सामान्य सेवा संगठन (जीएसओ), मुंबई, कलपक्कम
  • परमाणु ऊर्जा शिक्षा सोसाईटी (एईईएस), मुंबई

देश का सातवां और सबसे बड़ा परमाणु बिजलीघर

नाभिकीय उर्जा परमाणु संयंत्र कार्पोरेशन द्वारा प्रस्तावित परमाणु ताप बिजलीघर हरियाणा के कुम्हारिया, काजलहेड़ी और गोरखपुर के करीब 2400 एकड़ भूमि पर स्थापित किया जाएगा। यह हरियाणा का पहला, देश का सबसे बड़ा और कुल मिलाकर सातवां परमाणु बिजली घर होगा। वर्तमान में इस प्रदेश के यमुनानगर के हाइडल और दो थर्मल प्लांटों में करीब 2000 मेगावाट विद्युत का उत्पादन हो रहा है जो विद्युत उत्पादन की तुलना में मांग दस गुणा है। कुम्हारिया में प्रस्तावित विद्युत तापघर की क्षमता 2800 मेगावाट होगी।

प्रस्तावित योजना के तहत 700-700 मेगावाट की क्षमता के चार बड़े-2 रिएक्टरों की स्थापना की जायेगी।

समझौते (123) के प्रावधानों पर विवाद

हाइडएक्ट को लेकर दिये गये तमाम भरोसों के बावजूद 123 समझौते में यह साफ नजर आ रहा है कि भारत को अपनी तमाम आपत्तियों के बावजूद इस कानून के आगे झुकना पड़ सकता है। समझौते का अनुच्छेद 2.1 के अनुसार दोनों पक्ष अपने राष्ट्रीय कानूनों के मद्देनजर इस कानून को लागू करेंगे।

करार से नाभिकीय बिरादरी में भारत के शीतयुग की समाहित की बात भी समझौते के शब्दों में फिलहाल उलझी नजर आ रही है। नाभिकीय सहयोग में भारत को जिस संवेदनशील तकनीक, हैवी वाटर उत्पाद व जरूरी साजो-सामान तथा नाभिकीय उत्पाद की जरूरत है वह तभी उपलब्ध होंगे जब इस समझौते में संशोधन किया जाए।

समझौते में कहने को तो ईंधन के पुनर्प्रसंस्करण का अधिकार दिया गया है लेकिन यह तभी संभव होगा, जब भारत इसके लिए एक निगम संयंत्र स्थापित करे। समझौते के अनुसार इस संयंत्र के लिए अभी तो बातचीत भी शुरू नहीं हुई है।

समझौते में अनुच्छेद 14.2 के अन्तर्गत परमाणु परीक्षण के लिए छोड़ी गई गली भी इतनी संकरी रखी गई है कि भारत बिना अमेरिका को भनक लगे अगला परमाणु परीक्षण न कर सके।

समझौते से संभावित लाभ

  • परमाणु रिएक्टर और परमाणु ईंधन सहित असैन्य परमाणु कार्यक्रम संबंधी सभी गतिविधियों में अमेरिका का पूर्ण सहयोग।
  • परमाणु उर्जा से संबंधित आधुनिकतम तकनीक और वैज्ञानिकों में तालमेल।
  • परमाणु रिएक्टरों के लिए आजीवन ईंधन की आपूर्ति सुनिश्चित करना।
  • भारत के सैनिक परमाणु कार्यक्रम में कोई बाहरी दखलंदाजी नहीं।
  • परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के दूसरे सदस्यों के साथ भी ऐसे समझौते की संभावना।

संभावित खतरे

  • परमाणु परीक्षण करने पर हाइड कानून की आड़ में अमेरिका करार खत्म कर सकता है।
  • एक वर्ष का नोटिस देकर अमेरिका बिना ऐसी स्थिति के भी समझौते को खत्म कर सकता है। हालांकि यह छूट दोनों ही देश को होगी।
  • भारत से समझौते के तहत आपूर्ति किए गये सभी सामान और तकनीक वापस लौटाने को कहा जा सकता है।
  • भारत को अपने अधिकांश रिएक्टर आई ए ई ए की निगरानी के लिए खोलने होंगे।
  • भारत को अपने शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम से संबंधित सभी सूचनाएँ भी अमेरिका को हर साल सौंपनी होगी।

भारत को यूरेनियम बेचेगा आस्ट्रेलिया

आस्ट्रेलिया ने भारत को यूरेनियम बेचने के संकेत दिए हैं। इसके लिए संघीय मंत्रिमण्डल से मंजूरी लेनी होगी। इसे आस्ट्रेलिया की नीति में बड़ा परिवर्तन माना जा रहा है। आस्ट्रेलिया केवल उन्हीं देशों को यूरेनियम निर्यात करता है, जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए हैं।

  • भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर सहमति बनने के बाद आस्ट्रेलिया के रूख में यह बड़ा परिवर्तन आया है।

नाभिकीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन

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