एलोरा की गुफ़ाएं | |
विवरण | एलोरा में गुफाओं के मंदिर और मठ पहाड़ के ऊर्ध्वाधर भाग को काट कर बनाई गई है। बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दुत्व से प्रभावित ये शिल्प कलाएं पहाड़ में विस्त़त पच्चीकारी दर्शाती हैं। |
राज्य | महाराष्ट्र |
ज़िला | औरंगाबाद |
निर्माण काल | 5वीं से 7वीं सदी के मध्य |
स्थापना | राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा स्थापित। |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 20°01′35″, पूर्व- 75°10′45″ |
मार्ग स्थिति | औरंगाबाद, महाराष्ट्र के उत्तर में 26 किमी की दूरी पर एलोरा गुफ़ाएँ स्थित है। |
कब जाएँ | अक्तूबर से मार्च |
कैसे पहुँचें | हवाई जहाज़, रेल, बस आदि से पहुँचा जा सकता है। |
औरंगाबाद हवाई अड्डा | |
औरंगाबाद रेलवे स्टेशन | |
सिटी बस, टैक्सी, ऑटोरिक्शा | |
क्या देखें | मठ, मंदिर और 34 गुफ़ाएं |
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह |
एस.टी.डी. कोड | 2432 |
ए.टी.एम | लगभग सभी |
गूगल मानचित्र | |
संबंधित लेख | अजंता की गुफ़ाएं, बीबी का मक़बरा |
अन्य जानकारी | यूनेस्को द्वारा 1983 से विश्व विरासत स्थल घोषित किए जाने के बाद अजंताऔर एलोरा की तस्वीरें और शिल्पकला बौद्ध धार्मिक कला के उत्कृष्ट नमूने माने गए हैं और इनका भारत में कला के विकास पर गहरा प्रभाव है। |
बाहरी कड़ियाँ | एलोरा की गुफ़ाएं |
अद्यतन | 11:13, 1 नवम्बर 2011 (IST) |
एलोरा की गुफ़ाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में वेरुल (एलोरा) नामक स्थान पर 7वीं से 9वीं शताब्दी के बीच 34 शैलकृत गुफाएं बनाई गयी, जिसमें 1 से 12 तक बौद्धों तथा 13 से 29 तक हिन्दुओं और 30 से 34 तक जैनों की गुफाएं हैं एलोरा की गुफा में 10 चैत्यगृह हैं जो शिल्प देवता विश्वकर्मा को समर्पित हैं। एलोरा गुहा मन्दिर का निर्माण राष्ट्रकूओं के समय में किया गया। इनके निर्माण कार्यो में एलोरा का कैलासगुहा मन्दिर सर्वाधिक उत्कृष्ट है जिसका निर्माण राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम ने कराया था।
निर्माण काल
महाराष्ट्र में अजंता और एलोरा की गुफ़ाएं बौद्ध धर्म द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्पकला और चित्रकला से ओतप्रोत है जो मानवीय इतिहास में कला के उत्कृष्ट ज्ञान और अनमोल समय को दर्शाती हैं। एलोरा या एल्लोरा[1] एक पुरातात्विक स्थल है। यह राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा निर्मित हैं। बौद्ध तथा जैन सम्प्रदाय द्वारा बनाई गई ये गुफ़ाएं सजावटी रूप से तराशी गई हैं। फिर भी इनमें शांति और अध्यात्म झलकता है तथा ये दैवीय ऊर्जा और शक्ति से भरपूर हैं। दूसरी शताब्दी डी. सी. में आरंभ करते हुए और छठवीं शताब्दी ए. डी. में जारी रखते हुए ।
एलोरा में गुफाओं के मंदिर और मठ पहाड़ के ऊर्ध्वाधर भाग को काट कर बनाई गई है, जो औरंगाबाद के उत्तर में 26 किलो मीटर की दूरी पर है। बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दुत्व से प्रभावित ये शिल्प कलाएं पहाड़ में विस्त़त पच्चीकारी दर्शाती हैं। एक रेखा में व्यवस्थित 34 गुफाओं में बौद्ध चैत्य या पूजा के कक्ष, विहार या मठ और हिन्दु तथा जैन मंदिर हैं। लगभग 600 वर्ष की अवधि में फैले पांचवीं और ग्यारहवीं शताब्दी ए.डी. के बीच यहां के सबसे प्राचीनतम शिल्प ‘धूमर लेना’ (गुफा 29) है। सबसे अधिक प्रभावशाली पच्चीकारी बेशक अद्भुत ‘कैलाश मंदिर’ की है (गुफा 16), जो दुनिया भर में एक ही पत्थर की शिला से बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति है। प्राचीन समय में ‘वेरुल’ के नाम से ज्ञात इसने शताब्दियों से आज के समय तक निरंतर धार्मिक यात्रियों को आकर्षित किया है।
कुल गुफ़ाएं
एलोरा में 34 गुफ़ाएं है तथा इनको देखने के लिए आपके पास पर्याप्त समय होना चाहिए। ये गुफ़ाएं बेसाल्टिक की पहाड़ी के किनारे किनारे बनी हुई हैं। इन गुफ़ाओं में हिन्दू, जैन एवं बौद्ध तीनों धर्मों की जानकारी मिलती है। गुफ़ा नम्बर एक को विश्वकर्मा गुफ़ा के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि ये गुफ़ाएं 350 से 700 ईसा पश्चात अस्तित्व में आई है। दक्षिण की ओर की 12 गुफ़ाएं बौद्ध धर्म एवं मध्य की 17 गुफ़ाएं हिन्दू धर्म एवं उत्तर की 5 गुफ़ाएं जैन धर्म पर आधारित हैं। हिन्दू गुफ़ाओं में एक गुफ़ा तो एक ही पहाड़ को काट कर बनाई गयी है। इस गुफ़ा में मंदिर, हाथी और दो मंजिली इमारत छेनी हथौड़ी से तराश कर बनाई गयी है। जब मैने शिल्पकारों की इस कारीगरी को देखा तो मैं उनके सामने नत मस्तक हो गया। क्योंकि छेनी हथौड़ी से तराश कर भव्य निर्माण करना धैर्य एवं श्रम साध्य कार्य है। इसे देख कर ऐसा नहीं लगता कि इस कार्य को किसी मानव ने अंजाम दिया है। लगता है किसी असीम शक्ति के मालिक या किसी महामानव ने निर्माण कार्य को अंजाम दिया है। पहाड़ को काटकर निर्माण करने में कई सदियां लग गयी होंगी।[2]
विश्व विरासत स्थल
यूनेस्को द्वारा 1983 से विश्व विरासत स्थल घोषित किए जाने के बाद अजंता और एलोरा की तस्वीरें और शिल्पकला बौद्ध धार्मिक कला के उत्कृष्ट नमूने माने गए हैं और इनका भारत में कला के विकास पर गहरा प्रभाव है। एलोरा में एक कलात्मक परम्परा संरक्षित की गई है जो आने वाली पीढियों के जीवन को प्रेरित और समृद्ध करना जारी रखेंगी। न केवल यह गुफा संकुल एक अनोखा कलात्मक सृजन है साथ ही यह तकनीकी उपयोग का भी उत्कृष्ट उदाहरण है। परन्तु ये शताब्दियों से बौद्ध, हिन्दू और जैन धर्म के प्रति समर्पित है। ये सहनशीलता की भावना को प्रदर्शित करते हैं, जो प्राचीन भारत की विशेषता रही है।
अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमे फेसबुक (Facebook) पर ज्वाइन करे Click Now