मेरे स्कूल (विद्यालय) पर निबंध

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मेरे स्कूल (विद्यालय) पर निबंध

भूमिका : मनुष्य इस संसार में आकर कुछ-न-कुछ ज्ञानार्जन करता है। कोई भी मनुष्य जन्म से ही विषय कौशल नहीं होता है बल्कि इस धरती पर आकर ही किसी भी विषय पर ज्ञान प्राप्त करता है। मानव जीवन को सभ्य बनाने में सबसे बड़ा योगदान विद्यालय का होता है।

विद्यालय दो शब्दों से मिलकर बना होता है- विद्या+आलय। जिसका अर्थ होता है जिस स्थान पर विद्या का आवास हो। मैं भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए राजकीय मॉडल स्कूल में जाता हूँ। विद्यालय में सभी जाति, धर्म और वर्ग के बच्चे पढने आते हैं। विद्यालय शासकीय और अशासकीय दोनों प्रकार के होते हैं। हमारा विद्यालय एक मंदिर के समान है जहाँ पर हम रोज अपने जीवन में आगे बढने के लिए पढने और सीखने आते हैं।

हमारे स्कूल में सभी को एक समान समझा जाता है। हमें प्रतिदिन विद्यालय जाना बहुत ही अच्छा लगता है क्योंकि विद्यालय एक ऐसा स्थान है जहाँ पर हमें प्रतिदिन कुछ-न-कुछ नया सीखने को मिलता है। विद्यालय से ही किसी भी बच्चे का भविष्य निश्चित होता है। विद्यालय में हमे बहुत सा समय खाली भी मिलता है जिसमें हम सभी मिलकर खेल खेलते हैं।

विद्यालय की संरचना : मेरा स्कूल दो मंजिला है और यह दो स्थानों पर स्थित है। हमारे स्कूल की बिल्डिंगें एक-दूसरे के सामने पडती हैं। हमारा स्कूल हमारे लिए एक मंदिर के समान है। हमारा विद्यालय एक्सिस बैंक से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हमारे स्कूल को प्रदूषण, शोर, गंदगी और धुएं से दूर बनाया गया है जिससे बच्चे शांतिपूर्ण वातावरण में पढ़ सकें।

हमारे स्कूल में बहुत से पेड़ हैं जिनकी छाया में बच्चे लंच के समय बैठकर वार्तालाप करते हैं। इन पेड़ों को एक पंक्ति में लगाया गया है। छोटे बच्चों के खेलने के लिए झूलों का भी प्रबंध किया गया है। हमारे स्कूल सभी विद्यार्थियों के पढने के लिए एक पुस्तकालय का भी निर्माण किया गया जिसमें विद्यार्थी निश्चिंत होकर अध्धयन कर सकते हैं। हमारे स्कूल में एक बहुत बड़ा स्थान है जहाँ पर कार्यक्रम के समय पर एक सुंदर मंच को सजाया जाता है।

कार्य प्रणाली : हम अपने क्लास टीचर को सुभ नमस्कार करते हैं। हमारे स्कूल में बहुत ही सख्ती से अनुशासन का पालन किया जाता है। बच्चों को घरों से स्कूल तक पहुँचाने के लिए पीले रंग की बस की सुविधा की गई है। सभी बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए वर्दी को निश्चित किया गया है।

हमारे स्कूल में हमारी जरूरत की सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। विद्यार्थियों के लिए कंप्यूटर लैब, दो विज्ञान लैब, एक पुस्तकालय, खेलने का मैदान, कार्यक्रम के लिए सुंदर स्टेज आदि की सुविधाएँ विद्यमान हैं। हमारे स्कुल में नर्सरी से लेकर बारह कक्षा तक के विद्यार्थी पढ़ते हैं।

हमारे स्कूल में पुरुष और महिलाओं सहित 50 शिक्षक, 20 सहायक और एक प्रधानाचार्य जी हैं। हमारे विद्यालय में सभी शिक्षकों का केवल एक ही लक्ष्य होता है बच्चों का उज्ज्वल भविष्य। हमारे विद्यालय में किसी भी विषय पर बहुत गंभीरता से विचार विमर्श किया जाता है तथा विद्यार्थियों के उचित और अनुचित को सर्वप्रथम रखा जाता है।

हमारे विद्यालय में बच्चों को बहुत से विषयों पर शिक्षा दी जाती है। हमारे विद्यालय में प्रत्येक छात्र को कोई भी शंका होने पर वह अपने कक्षा के अध्यापक से प्रश्न पूंछ सकता है और अध्यापक भी उसके प्रश्नों का उत्तर बहुत ही विनम्र और प्रेम भाव से देते हैं।

प्राचार्य कक्ष : प्राचार्य महोदय के लिए एक अलग कक्ष है। इस कक्ष में बैठे ही प्राचार्य महोदय सारे विद्यालय में चल रही गतिविधियों को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। इस कक्ष में कक्षा समय सारिणी और अध्यापक समय सारिणी भी दीवार पर लटकी हुई है। इस कक्ष में अनेक महापुरुषों के चित्र भी दीवार पर सजे हुए हैं।

इस कक्ष में सभी अध्यापक एक साथ-मिलकर बच्चों के भविष्य के बारे में विचार विमर्श करते हैं। किसी भी निर्णय को लेने से पहले सभी अध्यापक प्रधानाचार्य से विचार विमर्श अवश्य करते हैं। अगर कोई बच्चा किसी दूसरे बच्चे को परेशान करता है तो सबसे पहले प्रधानाचार्य को पता चलता है और उस बच्चे को उचित प्रकार से समझाया जाता है जिससे वह इस गलती को दुबारा न दोहरा सके।

पुस्तकालय : हमारे स्कूल में एक बहुत ही विशाल पुस्तकालय है। इसमें विभिन्न विषयों की पुस्तकें हैं। इस पुस्तकालय में हिंदी के दैनिक समाचार पत्र और कई महत्वपूर्ण मासिक अर्धवार्षिक और वार्षिक पत्रिकाएँ भी आती है। पुस्तकालयाध्यक्ष बहुत ही परिश्रमी और अच्छे व्यक्ति हैं। हमें पुस्तकालय से हमारी जरूरत की प्रत्येक पुस्तक मिल जाती है जिसे घर भी ले जाया जा सकता है। पुस्तकालय से पुस्तक को केवल कुछ निश्चित समय के लिए ही घर पर ले जाया जा सकता है।

अध्यापक : हमारे विद्यालय के अध्यापक बहुत ही परिश्रमी विद्वान् और छात्रों के हित का ध्यान रखने वाले अध्यापक हैं। हमारे स्कूल के अध्यापक बहुत ही परिश्रम और लगन से पढ़ाते हैं। वे हमें लिखित कार्य का भी अभ्यास कराते हैं। हमारे विद्यालय के अध्यापक हमें सिलेबस के अनुसार पढ़ाते हैं।

सभी अध्यापक हमारे लिखित कार्य को बहुत ही सावधानीपूर्वक देखते हैं और हमारी अशुद्धियों की ओर हमारा ध्यान दिलाते हैं। इससे हमें शुद्ध भाषा सीखने और उसका शुद्ध प्रयोग करने में सहायता मिलती है। हमारे स्कूल के अध्यापक बहुत ही दयालु हैं जो हमें अनुशासन का अनुसरण करना सिखाते हैं।

हमारे शिक्षक हमेशा हमें खेल क्रियाओं, प्रश्न उत्तर प्रतियोगिता, मौखिक-लिखित परीक्षा, वाद-विवाद, समूह चर्चा, स्कॉउटेड आदि दूसरी क्रियाओं में भाग लेने के लिए भी प्रेरित करते हैं। हमारे स्कूल के अध्यापक हमें स्कूल में अनुशासन को बनाए रखने और स्कूल परिसर को साफ और स्वच्छ बनाए रखने के लिए प्रेरित करते हैं।

खेल : हमारे स्कूल में खेल कूदों पर बहुत महत्व दिया जाता है। सभी विद्यार्थियों के लिए किसी-न-किसी खेल में भाग लेना अनिवार्य होता है। हमारे स्कूल के विद्यार्थी खेल में बहुत रूचि लेते हैं। हमारे स्कूल के खिलाडी कई खेलों में पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं।

हमारे स्कूल में बहुत सी खेल प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं जिससे वह अपने शारीरिक और मानसिक विकास में वृद्धि कर सके। जिस प्रकार से पढाई मनुष्य के भविष्य के लिए बहुत जरूरी होती है उसी प्रकार खेल भी मनुष्य के लिए बहुत जरूरी होते हैं। खेलों से मनुष्य बहुत कुछ जान पाता है तथा अपने विद्यालय के नाम को भी अधिक रोशन कर सकता है।

हमारा कर्तव्य : हमारा विद्यालय हमारा विद्या का मंदिर होता है। जिस तरह से भक्त लोगों के लिए मंदिर और पूजा स्थल पवित्र स्थान होता है उसी तरह से एक विद्यार्थी के लिए उसका विद्यालय एक पवित्र स्थल होता है। इस पवित्र मंदिर के भगवान हैं हमारे गुरुजन जो हमारे अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर हमारे मन में ज्ञान रूपी प्रकाश को फैला देते हैं।

इसी लिए हमें अपने गुरुजनों का सम्मान करना चाहिए। उनके कहने के अनुसार अपने शिक्षण कार्य का संपादन करना चाहिए। हमें अपने विद्यालय के नियमों का श्रद्धा के साथ पालन करना चाहिए। विद्यालय की संपत्ति की हमें अपनी संपत्ति की तरह रक्षा करनी चाहिए।

विद्यालय व वहाँ की साज सामग्रियों के प्रति अपने घर की तरह ममता रखनी चाहिए। इससे एक ओर हमारा नैतिक उत्थान होता है तो दूसरी ओर विद्यालय की सुरक्षा होती है। आज के समय में ऐसी प्रवृत्ति बढ़ रही है कि विद्यालय में तोड़-फोड़ का काम तो एक आम बात हो गई है। इसी वजह से हमें इस प्रवृत्ति को पूरी तरह समाप्त करना होगा।

उपसंहार : विद्यालय सार्वजनिक संपत्ति होते हैं। यह हमारी राष्ट्रिय निधि है, इसलिए विद्यार्थी को इसकी रक्षा के लिए हमेशा जागरूक रहना चाहिए। विद्यालय सिर्फ पुस्तकीय ज्ञान का माध्यम नहीं है बल्कि ज्ञान प्राप्ति के हर अवसर वहाँ पर उपलब्ध होते हैं। विद्यालय बालकों को खेल-कूद, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने का अवसर देता है।

उन्हीं विषयों के मार्ग दर्शन के लिए शिक्षक होते हैं इसलिए विद्यार्थी को अपने विद्या मंदिर से पूरा लाभ उठाना चाहिए। जो बालक इन अवसरों को गंवा देते हैं वे इन अवसरों को दुबारा प्राप्त नहीं कर पाते हैं। विद्यालय से हमें हर प्रकार के ज्ञान का प्रकाश मिलता है। इस तरह से हमारा विद्यालय हर प्रकार से अच्छा है।

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