मानव दाँत हिंदी में
दांत :- मुंह (या जबड़ों) में स्थित छोटे, सफेद रंग की संरचनाएं हैं जो बहुत से कशेरुक प्राणियों में पाया जाती है। दांत, भोजन को चीरने, चबाने आदि के काम आते हैं। कुछ पशु (विशेषत: मांसभक्षी) शिकार करने एवं रक्षा करने के लिये भी दांतों का उपयोग करते हैं। दांतों की जड़ें मसूड़ों से ढ़की होतीं हैं। दांत, अस्थियों (हड्डी) के नहीं बने होते बल्कि ये अलग-अलग घनत्व व कठोरता के ऊतकों से बने होते हैं।
मानव मुखड़े की सुंदरता बहुत कुछ दंत या दाँत पंक्ति पर निर्भर रहती है। मुँह खोलते ही ‘वरदंत की पंगति कुंद कली’ सी खिल जाती है, मानो ‘दामिनि दमक गई हो’ या ‘मोतिन माल अमोलन’ की बिखर गई हो। दाड़िम सी दंतपक्तियाँ सौंदर्य का साधन मात्र नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिये भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
मनुष्य की मुखगुहा में दोनों जबड़ों के किनारों पर दाँतों की एक–एक लगभग अर्द्धवृत्ताकार पंक्ति होती है। मनुष्य के दाँतों की अग्रलिखित विशेषताएँ होती हैं-
- गर्तदन्ती या थीकोडान्ट– ये दाँत अस्थियों के अन्दर गड्ढें में स्थित होते हैं। गड्ढें में हड्डी पर तिरछे धने तन्तुओं से निर्मित परिदन्तीय स्नायु आच्छादित होता है। यह स्नायु दाँत को गड्ढें में दृढ़ता से सीधे रखता है और भोजन को चबाते समय दाँत के दबाव को सहन करता है। हड्डी के ऊपर कोमल मसूड़ा होता है। निचले जबड़े के सभी दाँत डेन्टरी अस्थियों में तथा ऊपरी जबड़े के कृन्तक दन्त मैक्सिला अस्थियों में होते हैं।
- द्विबारदन्ती या डाइफियोडान्ट– मनुष्य के जीवन में चर्वणक दन्त के अतिरिक्त अन्य दाँत जीवन में दो बार निकलते हैं। पहली बार में दो या ढाई वर्ष की आयु तक 20 अस्थाई दाँत दूधिया या क्षीर दन के रूप में निकलते हैं। कुछ समय के बाद इन दाँतों में गोर्द समाप्त हो जाता है और इनकी जड़ों को अस्थिभंजक कोशिकाएँ नष्ट कर देती हैं। अतः ये दाँत गिर जाते हैं। जैसे–जैसे दूधिया दाँत गिरते हैं, इनके स्थान पर नए स्थाई या द्वितीयक दन्त निकल आते हैं।
- विषमदन्ती या हेटेरोडान्ट– कार्यों के अनुसार दाँतों का विभिन्न आकृतियों में विभेदित होना विषमदन्ती अवस्था कहलाती है। मनुष्य के दोनों जबड़ों में चार प्रकार के 32 दाँत पाए जाते हैं-
- कृन्तक या छेदक दन्त (इनसाइजर्स)– ये तेज़ धार वाले छैनी जैसे चौड़े होते हैं तथा भोजन के पकड़ने, काटने या कुतरने का कार्य करते हैं। प्रत्येक जबड़े में इनकी संख्या 4 होती है।
- भेदक या रदनक दन्त (कैनाइन्स)– ये नुकीले होते हैं और भोजन को चीरने–फाड़ने का कार्य करते हैं। प्रत्येक जबड़े में इनकी संख्या 2 होती है।
- अग्रचर्वणक दन्त (प्रीमोलर्स)- ये किनारे पर चपटे, चौकोर व रेखादार होते हैं। इनका कार्य भोजन को कुचलना है। प्रत्येक जबड़े में इनकी संख्या 4 होती है।
- चर्वणक दन्त या (मोलर्स)– इनके सिर चौरस व तेज़ धार युक्त होते हैं। इनका मुख्य कार्य भोजन को पीसना है। प्रत्येक जबड़े में इनकी संख्या 6 होती है।
स्थायी दाँत
इनका कैल्सीकरण इस क्रम से होता है —
प्रथम चर्वणक : जन्म के समय,
छेदक और भेदक : प्रथम छह मास में,
अग्रचर्वणक : तृतीय या चौथे वर्ष,
दवितीय चर्वणक : चौथे वर्ष, और
तृतीय चर्वणक : दसवें वर्ष के लगभग।
ऊपर के दाँतों में कैल्सीकरण कुछ विलंब से होता है। स्थायी दंतोद्भेदन का समयक्रम इस प्रकार है :
प्रथम चर्वणक छठे वर्ष,
मध्य छेदक सातवें वर्ष,
पार्श्व छेदक आठवें वर्ष,
प्रथम अग्रचर्वणक नौवें वर्ष,
द्वितीय अग्रचर्वणक दसवें वर्ष,
भेदक ग्यारहवें से बारहवें वर्ष,
द्वितीय चर्वणक बारहवें से तेरहवें वर्ष तथा
तृतीय चर्वणक सत्रहवें से पच्चीसवें वर्ष।
छठे वर्ष, दूध के दाँतों का गिरना आरंभ होने तक, प्रत्येक बालक के जबड़ों में 24 दाँत हो जाते हैं — दस दूध के और सभी स्थायी दाँतों के अंकुर (तृतीय चर्वणक को छोड़कर)।
छह वर्ष के बच्चे के दाँत ये निचले जबड़े में दूध के दाँत हैं। जबड़े के भीतर के स्थायी दाँत रेखाच्छादित दिखाए गए हैं।
दूध के दाँत
रचना की दृष्टि से ये स्थायी दाँत से ही होते हैं, सिवा इसके कि आकार में अपेक्षाकृत छोटे होते हैं। इनकी ग्रीवा अधिक सँकरी होती है। द्वितीय चर्वणक दाँत सबसे बड़ा होता है। इसके दंतमूल भी छोटे और अपसारी होते हैं, क्योंकि इन्हीं के बीच स्थायी दाँतों के अंकुर रहते हैं। दूध के चर्वणकों का स्थान स्थायी अग्रचर्वणक लेते हैं।
दाँतों की संख्या और प्रकार बताने के लिये दंतसूत्र का उपयोग होता है, यथा
च अ भ छ छ भ अ च 3 2 1 2 2 1 2 3 --------------------------- 3 2 1 2 2 1 2 3
इसमें क्षैतिज रेखा के ऊपर ऊपरी जबड़े के दाँत और रेखा के नीचे निचले जबड़े के दिखाए हैं। शीर्ष में दाँई और बाँईं ओर वाले अक्षर—च, अ, भ और छ — चर्वणक, अग्रचर्वणक, भेदक और छेदक प्रकार के दाँतों के तथा उनके नीचे के अंक उनकी संख्या के, सूचक हैं।
आदमी के दूध के दाँत 20 होते हैं, यथा
च भ छ छ भ च 2 1 2 2 1 2 ------------------- 2 1 2 2 1 2
इनमें चर्वणक का स्थान आगे चलकर स्थायी अग्रचर्वणक ले लेते हैं। स्थायी दाँतों का सूत्र है :
च अ भ छ छ भ अ च 3 2 1 2 2 1 2 3 --------------------------------- 3 2 1 2 2 1 2 3
अर्थात कुल 32 दाँत होते हैं। इनमें चारों छोरों पर स्थित अंतिम चर्वणकों (M3) को अकिलदाढ़ भी कहते हैं।