अव्यय (अविकारी शब्द)

अविकारी शब्द

अव्यय (अविकारी शब्द)
अव्यय (अविकारी शब्द)

ऐसे शब्द जिन पर लिंग, वचन एवं कारक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता तथा लिंग, वचन एवं कारक बदलने पर भी ये ज्यों-के-त्यों बने रहते हैं, ऐसे शब्दों को अव्यय या अविकारी शब्द कहते हैं।

अव्यय शब्दों उदाहरण -जब, तब, अभी, वहाँ, उधर, यहाँ, इधर, कब, क्यों, आह, वाह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किंतु, परंतु, लेकिन, बल्कि, इसलिए, किसलिए, बिलकुल, अत:, अतएव, अर्थात्, चूँकि, क्योंकि, इत्यादि ।

अव्यय वे शब्द हैं जिनपे लिंग, वचन, पुरुष एवं काल का कोई परिवर्तन नहीं पड़ता।
इन्हें अविकारी (अ + विकार + ई = न परिवर्तित होने वाले) शब्द भी कहा जाता है।

(क) बालक दिनभर पढ़ता है।
(ख) बालिका दिनभर पढ़ती है।
(ग) बालक एवं बालिकाएँ दिनभर पढ़ती हैं।
(घ) बालक एवं बालिकाओं ने दिनभर पढ़ा।
(ङ) बालकों को दिनभर पढ़ने दो।
(च) मैं दिनभर पढ़ता हूँ।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘दिनभर’ शब्द अलग-अलग छह वाक्यों में आया है परंतु इस में लिंग, वचन, पुरुष, कारक आदि तत्वों के कारण कोई परिवर्तन नहीं हुआ। अतः ‘दिनभर’ अव्यय या अविकारी शब्द है।

अव्यय के निम्नलिखित कार्य हैं
(1) अव्यय क्रिया का स्थान दिशा, समय, रीति, तुलना, परिमाण, उद्देश्य, सादृश्य इत्यादि का ज्ञान कराते हैं ।
(2) कुछ अव्यय शब्दों, पदबंधो, उपवाक्यों और वाक्यों को आपस में जोड़ने का काम करते हैं
(3) अव्यय शोक, हर्ष, आश्चर्य इत्यादि भावों को व्यक्त करते हैं ।
(4) कुछ अव्यय संबोधन को सूचित करते हैं ।
(5) कुछ अव्यय बल, निषेध, स्वीकार, अवधारणा इत्यादि भी व्यक्ति करते हैं ।

Avyay Ke Bhed (अव्यय के भेद)

सामान्यत: अव्यय के चार भेद हैं-
(1) क्रियाविशेषण
(2) संबंधवाचक
(3) समुच्चय बोधक और
(4) विस्मयादिबोधक

(1) क्रियाविशेषण अव्यय

जिस शब्द से क्रिया की विशेषता का ज्ञान होता है, उसे क्रियाविशेषण कहते हैं।
जैसे-यहाँ, वहाँ, अब, तक, जल्दी, अभी, धीरे, बहुत, इत्यादि ।

क्रियाविशेषणों का वर्गीकरण तीन आधारों पर किया जाता है-
(1) प्रयोग (2) रूप और (3) अर्थ

प्रयोग के आधार पर क्रियाविशेषण तीन प्रकार के होते हैं-
() साधारण () संयोजक और () अनुबद्ध
() साधारण क्रियाविशेषणजिन क्रियाविशेषणों का प्रयोग किसी वाक्य में स्वतंत्र होता है, उन्हें साधारण क्रियाविशेषण कहते हैं । जैसे-‘हाय ! अब मैं क्या करूं ?’, ‘बेटा जल्दी आओ !’, ‘अरे ! वह साँप कहाँ गया ?’
() संयोजक क्रियाविशेषणजिन क्रियाविशेषणों का संबंध किसी उपवाक्ये के साथ रहता है, उन्हें संयोजक क्रियाविशेषण कहते हैं । जैसे- जब रोहिताश्व ही नहीं, तो मैं जी के क्या करूंगी 1′, ‘जहाँ अभी समुद्र है, वहाँ किसी समय जंगल था ।
(ग) अनुबद्ध क्रियाविशेषणअनुबद्ध क्रिय वशेषण वे हैं, जिनका प्रयोग निश्चय के लिए किसी भी शब्द-भेद के साथ हो सकता है ।
जैसे- यह तो किसी ने धोखा ही दिया है ।
मैंने उसे देखा तक नहीं ।
आपके आने भर की देर है।

रूप के आधार पर क्रियाविशेषण तीन प्रकार के होते हैं-
(क) मूल (ख) यौगिक और (ग) स्थानीय ।
(क) मूल क्रियाविशेषण- जो क्रियाविशेषण दूसरे शब्दों के मेल से नहीं बनते, उन्हें मूल क्रियाविशेषण कहते हैं । जैसे- ठीक, दूर, अचानक, फिर, नहीं, इत्यादि
(ख) यौगिक क्रियाविशेषण- जो क्रियाविशेषण दूसरे शब्दों में प्रत्यय या पद जोडने से बनते हैं, उन्हें यौगिक क्रियाविशेषण कहते हैं ।
जैसे-जिससे, किससे, चुपके से, देखते हुए, भूल से, यहाँ तक, झट से, कल से, इत्यादि ।
संज्ञा से -रातभर, मन से
सर्वनाम से -जहाँ, जिससे
विशेषण से-चुपके, धीरे
अव्यय से – झट से, यहाँ तक
धातु से -देखने आते
(ग) स्थानीय क्रियाविशेषण अन्य शब्द-भेद, जो बिना किसी रूपांतर के किसी विशेष स्थान पर आते हैं, उन्हें स्थानीय क्रियाविशेषण कहते हैं।
जैसे – वह अपना सिर पढ़ेगा
तुम दौड़कर चलते हो

अर्थ के आधार पर क्रियाविशेषण के चार भेद किये जा सकते हैं-
(i) स्थानवाचक,
(ii) कालवाचक
(iii) परिमाणवाचक
(iv) रीतिवाचक
(i) स्थानवाचक क्रियाविशेषण- यह दो प्रकार का होता है:
स्थितिवाचक – यहाँ, वहाँ, साथ, बाहर, भीतर, इत्यादि ।
दिशावाचक – इधर उधर, किधर, दाहिने, वॉयें, इत्यादि ।
(ii) कालवाचक क्रियाविशेषण इसके तीन प्रकार हैं
समयवाचक-आज, कल, जब, पहले, तुरन्त, अभी, इत्यादि
अवधिवाचक-आजकाल, नित्य, सदा, लगातार, दिनभर, इत्यादि
पौन:पुण्य (बार-बार) वाचक-प्रतिदिन, कई बार, हर बार, इत्यादि
(iii)परिमाणवाचक क्रियाविशेषण यह भी कई प्रकार का है
अधिकताबोधक – बहुत, बड़ा, भारी, अत्यन्त, इत्यादि
न्यूनताबोधक – कुछ, लगभग, थोडा, प्राय: इत्यादि
पर्याप्तबोधक – केवल, बस, काफी, ठीक, इत्यादि
तुलनाबोधक –इतना, उतना, कम, अधिक, इत्यादि
श्रेणिबोधक – थोड़ा-थोड़ा, क्रमश: आदि
(iv)रीतिवाचक क्रियाविशेषण- जिस क्रिया-विशेषण से प्रकार, निश्चय, अनिश्चय, स्वीकार, निषेध, कारण इत्यादि के अर्थ प्रकट हो उसे रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं ।
इन अर्थों में प्राय: रीतिवाचक क्रियाविशेषण का प्रयोग होता है
प्रकार-जैसे, तैसे, अकस्मात्, ऐसे ।
निश्चय-नि:संदेह, वस्तुतः, अवश्य ।
अनिश्चय-संभवत:, कदाचित्, शायद ।
स्वीकार-जी, हाँ, अच्छा
निषेध-नहीं, न, मत
कारण-क्योंकि, चूँकि, किसलिए
अवधारण-तो, भी, तक
निष्कर्ष-अतः, इसलिए

(2) संबंधवाचक अव्यय

जो शब्द संज्ञा के बाद आकर उसका संबंध वाक्य के दूसरे शब्द के साथ बताता है उसे सम्बन्धवाचक अव्यय कहते हैं. जैसे नीचे, ऊपर, बहार, भीतर, इत्यादि

प्रयोग के अनुसार संबंधवाचक अव्यय दो प्रकार के होते हैं
(क) संबद्ध तथा (ख) अनुबद्ध ।
( क ) संबद्ध संबंधवाचक अव्यय ये संज्ञाओं की विभक्तियों के बाद आते हैं ।
जैसे-धन के बिना, नर की नाई, पूजा से पहले, इत्यादि ।
( ख ) अनुबद्ध संबंद्धवाचक अव्ययये संज्ञा के विकृत रूप के बाद आते हैं ।
जैसे-किनारे तक, सखियों सहित, कटोरे भर, पुत्रों समेत

अर्थ के अनुसार संबंधवाचक अव्ययों के उदाहरण निम्नलिखित अनुसार हैं-
(i) कालवाचक – आगे, पीछे, बाद, पहले, पूर्व, अन्नंतर, उपरांत, लगभग
(ii) स्थानवाचक – निकट, समीप, दूर, भीतर, यहाँ, बीच
(iii) दिशावाचक – ओर, तरफ, पार, आसपास
(iv) साधनवाचक – सहारे, जरिये, मारफत, द्वारा
(v) हेतुवाचक – लिए, निमित, वास्ते, हेतु, खातिर, कारण, सबध
(vi) विषयवाचक – भरोसे, नाम, मुद्दे, विषय
(vii) व्यतिरेकवाचक – सिवा (सिवाय), अलावा, बिना, वगैर, अतिरिक्त, रहित
(viii) विनिमयवाचक – पलटे बदले, जगह, एवज
(ix) सादृश्यवाचक – समान, सम, तरह, भाँति, नाई, बराबर, तुल्य, योग्य, लायक, सदृश, अनुसार, अनुरूप, अनुकूल, देखा-देखी
(x) विरोधवाचक – विरुद्ध, खिलाफ, उलट विपरीत
(xi) सहचरवाचक – संग, साथ, समेत, सहित, पूर्वक, अधीन, स्वाधीन, वश ।
(xii) संग्रहवाचक – तक, पर्यंत, भर, मात्र
(xiii) तुलनावाचक अपेक्षा, बनिस्बत, आगे, सामने

व्युत्पत्ति के अनुसार संबंधवाचक अव्यय दो प्रकार के हैं-
(क) मूल और (ख) यौगिक ।

(क) मूल संबंधवाचक अव्यय – बिना, पर्यंत, नाई, पूर्वक, इत्यादि ।
( ख ) यौगिक संबंधवाचक अव्यय – ये दूसरे शब्द-भेंदों से बने हैं ।
जैसे –

(1) संज्ञा से -पलटे वास्ते, और, अपेक्षा, नाम, लेखे, विषय मारफत, इत्यादि ।
(2) विशेषण से – तुल्य, समान, उलटा, जबानी, सरीखा, योग्य, जैसा
(3) क्रियाविशेषण से – ऊपर, भीतर, यहाँ बाहर, पास, परे, पीछे, इत्यादि
(4) क्रिया से-लिए, मारे, करके, चलते, जाने, इत्यादि ।

(3) समुच्चयबोधक अव्यय

दो शब्दों, वाक्यांशों या वाक्यों को परस्पर जोड़ने या अलग करनेवाले अव्यय को समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं ।
जैसे- या, और, कि, क्योंकि.
समुच्चयबोधक अव्यय के मुख्य दो भेद हैं-(a) समानाधिकरण और (b) व्याधिकरण ।
a. समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय – इनके द्वारा मुख्य वाक्य जोड़े जाते इनके चार उपभेद हैं-
(क) संयोजक (ख) विभाजक (ग) विरोधदर्शक और (घ) पुरिणामदर्शक ।
(क) संयोजक-इनके द्वारा दो या अधिक वाक्यों को आपस में जोड़ा जाता है ।
जैसे- और, व, एवं, तथा, भी । बिल्ली के पंजे होते हैं और उनमें नख होते हैं.

(ख) विभाजक – इन अव्ययों से दो या अधिक वाक्यों या शब्दों में से किसी एक का ग्रहण अथवा दोनों का त्याग किया जाता है ।
जैसे- या, वा, अथवा, किंवा कि, या-या, चाहे-चाहे, क्या-क्या, न-न, न कि, नहीं तो ।
उदाहरण – क्या स्त्री क्या पुरुष, सब ही के मन में आनंद छा रहा था ।

( ग ) विरोधदर्शक – ये दो वाक्यों में से पहले का निषेध या उसकी सीमा सूचित करते हैं ।
जैसे – पर, परंतु, किंतु, लेकिन, मगर, वरन्, बल्कि ।
उदाहरण – झूठ-सच को तो भगवान जाने, पर मेरे मन में एक बात आयी है ।

(घ) परिणामदर्शक – इनसे यह ज्ञात होता है कि इनके आगे के वाक्य का अर्थ पिछले वाक्य के अर्थ का फल या परिणाम है ।
जैसे – इसलिए, सो, अत:, अतएव इस वास्ते, इस कारण इत्यादि ।
उदाहरण – अब भोर होने लगा था, इसलिए दोनों जने अपनी-अपनी जगह से उठे ।

b. व्याधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय – जिन अव्ययों की सहायता से एक वाक्य में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोडे जाते हैं, उन्हें व्याधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं ।
इनके चार उपभेद हैं- (क) कारणवाचक, (ख) उद्देश्यवाचक, (ग) संकेतवाचक और (घ) स्वरूपवाचक ।

(क) करणवाचक – इन अव्ययों से प्रारंभ होनेवाले वाक्य पहले वाक्य का समर्थन करते हैं।
जैसे – क्योंकि, जो कि, इसलिए | उदाहरण – इस नाटक का अनुवाद करना मेरा काम नहीं था, क्योंकि मैं संस्कृत नहीं जानता ।
( ख ) उद्देश्यवाचक – इन अव्ययों के बाद आनेवाला वाक्य दूसरे वाक्य की उद्देश्य या हेतु सूचित करता है।
जैसे – कि, जो, ताकि, इसलिए कि। उदाहरण-मछुआ मछली मारने के लिएं हर घडी मेहनत करता है ताकि उसकी मछली का अच्छा दाम मिले ।
( ग ) संकेतवाचक – इन अव्ययों की सहायता से पूर्ण वाक्य की घटना से उत्तर (बाद के) वाक्य की घटना का संकेत मिलता है । जैसे-जो-तो, यदि-तो, यद्यपि-तथापि, चाहे-परंतु, कि ।
उदाहरण-जो मैंने हरिश्चंद्र को तेजोभ्रष्ट न किया तो मेरा नाम विश्वामित्र नहीं
(घ) स्वरूपवाचक – इन अव्ययों के द्वारा जुड़े हुए शब्दों या वाक्यों में से पहले वाक्य का स्वरूप (स्पष्टीकरण) पिछले शब्द या वाक्य से जाना जाता है । जैसे-कि, जो, अर्थात्, यानी, मानो !
उदाहरण-श्री शुकदेव मुनि बोले कि महाराज अब आगे की कथा सुनिए

4. विस्मयादिबोधक अव्यय

जिन अव्ययों का सम्बन्ध वाक्य से नहीं रहता, जो वक्ता के केवल हर्ष, शोक, विस्मय इत्यादि का भाव सूचित करते हैं, उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं।
उदाहरण-हाय ! अब मैं क्या करूं
भिन्न-भिन्न मनोविकारों को सूचित करने के लिए भिन्न-भिन्न विस्मयादिबोधक अव्ययों का प्रयोग होता है । जैसे –
हर्षबोधक – अहा, वाह-वाह, धन्य-धन्य, जय, शाबाश
शोकबोधक – आह, ऊह, हा-हा, हाय, त्राहि-त्राहि
अश्चार्यबोधक – वाह, क्या, ओहो, हैं

अनुमोदंबोधक – ठीक, वाह, अच्छा, शाबास, हाँ-हाँ,
तिरस्कारबोधक – छिः, हट, अरे, दूर, चुप
स्वीकारबोधक – हाँ, जी, जी हाँ, अच्छा, ठीक
संबोधनबोधक – अरे, रे, अजी, लो, जी, अहो, क्यूँ

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