प्रेम पत्र
मेरे प्रिय प्रेमी,
लिखना चाहती हू ढेर सारी बातें भरे
प्रेम पत्र
पर
लिखा न पाती एक तिनका अक्षर ।
क्यों
समझ न पाती ।
क्या पत्र से निकालनेवाला है प्रेम?
नहीं
आँखों में फँसकर
मन पर लिपटकर
साँस में व्याप्तवाला है प्रेम ।
इसलिए
मेरे प्रिय प्रेमी
लिखना चाहती हू ढेर सारी बातें भरे
प्रेम पत्र
पर
लिखना न पाती एक तिनका अक्षर ।
आप की प्रेयसी
प्रेम पत्र
सीधी रेखाओं से
बहुत ही सरल आकृतियां
बनती रही हमेशा
और मई उनमे ही खोजता रहा तुम्हें
तुम्हारा सौंदर्य
तुम्हारा प्रेम
तुम्हारी चंचलता
अल्हड़ता
कितना कुछ खोजता था
उनमें
पर तुम हरगिज
नहीं थी उनमें
रेखाओं को थोड़ी
वक्रता दी
तो लो तुम चिहुंक उठी
जी उठी
जैसे फूंक दिए हों
प्राण किसी पाषाण में
अब तुम्हारी तस्वीर
मेरे ह्रदय के कैनवास पर
ज्यादा मुकम्मल बन रही है