राजस्थान में जनजातियों के आंदोलन

राजस्थान में जनजातियों के आंदोलन

  • राजस्थान में भील, मीणा, मेर, गरासिया आदि जनजातियां प्राचीन काल से ही निवास करती आई है।
  • राजस्थान के डूंगरपुर में बांसवाड़ा क्षेत्र में भील जनजाति का बाहुल्य है। मेवाड़ राज्य की रक्षा में यहां के भीलों ने सदैव महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इसलिए मेवाड़ राज्य के राजचिन्ह में राजपूत के साथ एक धनुष धारण किए हुए भील का चित्र अंकित है।
  • यह सभी जनजातियां जंगलों से प्राप्त संसाधनों से अपनी आजीविका चलाते हैं।
  • यह जनजातियाँ स्वतंत्र और स्वछन्द थी।
  • अंग्रेजों के आने से इनकी स्वतंत्रता और स्वछन्दता पर रोक लग जाती है।

मेर आन्दोलन ( 1818 – 1821 ) 

  • मेर जाति के लोगों द्वारा आबाद क्षेत्र मेरवाड़ा अंग्रेजों के आगमन से पूर्व किसी एक रियासत के अधीन न होकर मेवाड़, मारवाड़ तथा अजमेर के अधीन आता था।
  • मेर लूटपाट कर अपना जीवन व्यतीत करते थे।
  • सन् 1818 में अंग्रेज सुपरिन्टेन्डेट एफ. वेल्डर मेरों से समझौते करके कर लगा देता है।
  • सन् 1819 में वेल्डर समझौते तोड़ देता है।
  • सन् 1821 में मेर झाक नामक चौकी में आग लगा देते है।
  • मेरों को नियंत्रित करने के लिए सन् 1822 में मेरवाड़ा बटालियन की स्थापना होती है। जिसका मुख्यालय ब्यावर (अजमेर) को बनाया जाता है।

भील आन्दोलन  ( 1818 – 1860 )

  • भील महुआ के पेड़ से शराब बनाने का कार्य करते थे।
  • व्यापारिक मार्गो पर कर वसूल करने का कार्य करते थे।
  • सन् 1825 में अंग्रेजी भीलों से समझौते करके कर लगा देते हैं। भील इनका विरोध करते हैं।
  • भीलों को नियंत्रित करने के लिए सन 1841 में M.B.C. (मेवाड़ भील कोर) की स्थापना होती है। जिसका मुख्यालय खेरवाड़ा, उदयपुर को बनाया जाता है।
  • भीलों में स्वयं में बुराइयां थी जैसे मदिरापान, बाल-विवाह, बहु विवाह, तंत्र-मंत्र और जादू टोने में विश्वास रखना।
  • भीलों में स्वयं में बुराइयां थी जैसे मदिरापान, बाल-विवाह, बहु विवाह, तंत्र-मंत्र और जादू टोने में विश्वास रखना।

गोविंद गिरी का भगत आंदोलन

गोविंद गिरी का जन्म सन् 1858 में बाँसिया गांव, डूंगरपुर में बंजारा परिवार में होता हैं।
  • गोविंद गिरी का जन्म सन् 1858 में बाँसिया गांव, डूंगरपुर में बंजारा परिवार में होता हैं।
  • इनके गुरु का नाम: साधु राजगिरी
  • गोविंद गिरी दयानंद सरस्वती से प्रभावित थे।
  • 1881 ईसवी में दयानंद सरस्वती उदयपुर आए तो गोविंद गिरी ने उनसे मिलकर उन्हीं की प्रेरणा से आदिवासी सुधार एवं स्वदेशी आंदोलन शुरू किया।
  • दयानंद सरस्वती
    • 1875 में मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की।
    • ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश की रचना की और 4 ‘स्व’
      1. स्वधर्म
      2. स्व भाषा
      3. स्व राज
      4. स्वदेशी
    • और इनका नारा था – वेदों की ओर लौटो
    • दयानंद सरस्वती का राजस्थान में  प्रवेश –
      1. सन् 1865 – करौली आए
      2. सन् 1881 – मेवाड़ आए
    • सन् 1883 में उदयपुर में परोपकारिणी सभा की स्थापना की।
  • सन् 1883 में गोविंद गिरी द्वारा सम्प सभा की स्थापना की जाती है।
  • गोविंद गिरी ने सम्प सभा का पहला अधिवेशन सन् 1903 में मानगढ़ की पहाड़ी गुजरात में किया।
  • सन् 1911 में गोविंद गिरी ने भगत पंथ की स्थापना की।
  • बेड़सा सा गांव में धूणी स्थापित की।
  • गोविंद गिरी ने ही बेड़सा गांव में रहते हुए भगत पंथ की स्थापना की।
  • सन् 1913 मानगढ़ की पहाड़ियां, बांसवाड़ा में संप सभा का अधिवेशन होता है। हजारों भील उपस्थित होते हैं।
  • M.B.C के सैनिक मशीनगनों से गोलीयां चला देते हैं। 1500 के आसपास मारे जाते हैं।
  • इस घटना को भारत का दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड भी कहा जाता है।
  • गुरु गोविंद गिरी जीवन के अंतिम दिन कंबोई, गुजरात में गुजारता है।

मोतीलाल तेजावत का एकी आंदोलन / मातृकुंडिया / भोमट भील आंदोलन

भील मोतीलाल तेजावत को बावजी कहते थे। तेजावत को आदिवासियों का मसीहा कहा जाता है।
  • मोतीलाल तेजावत का जन्म सन् 1886 में कोल्यारी गांव, उदयपुर के ओसवाल परिवार में होता है।
  • इन्हें झाडोल ठिकाने का कामदार नियुक्त किया था।
  • 1921 में मातृकुंडिया (चित्तौड़गढ़) से आंदोलन की शुरुआत होती है।
  • मोतीलाल तेजावत ने भीलों की मांगों का 21 सूत्री मांग पत्र तैयार करके मेवाड़ के महाराणा के समक्ष प्रस्तुत किया। इसे मेवाड़ पुकार कहा जाता है।
  • भील मोतीलाल तेजावत को बावजी कहते थे। तेजावत को आदिवासियों का मसीहा कहा जाता है।

नीमडा़ हत्याकांड (7 मार्च 1922)

  • नीमडा़ गांव में आदिवासी सभा कर रहे थे। सिपाही गोलियां चला देते हैं। 1200 के आसपास आदिवासी मारे जाते हैं।

पाल गांव की घटना (7 अप्रैल 1922)

यहां मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में आदिवासी सभा कर रहे थे। अंग्रेज मेजर सटन के नेतृत्व में मेवाड़ भील कापर्स गोलियां चला देते है। 20 के आसपास से भील मारे जाते हैं।

  • पाल गांव में आदिवासियों का नारा था –  हाकीम और हुक्म नहीं (न ही राजा और न ही हुक्म)
  • सन् 1935 में माणिक्य लाल वर्मा ने खांडलोई आश्रम की स्थापना की।
  • मोतीलाल तेजावत ने 3 जून, 1929 ई. को खेडब्रह्मा नामक स्थान पर आत्मसमर्पण कर दिया।
  • 5 दिसंबर, 1963 ई. को मोतीलाल तेजावत का निधन हो गया।
  • भीलों में जनचेतना जगाने का श्रेय दयानंद सरस्वती और सुरजीत भगत कोर को है।
  • मोतीलाल तेजावत को मेवाड़ का गांधी कहा जाता है।

मीणा आंदोलन (meena protest)

  • नेतृत्व – ठक्कर बप्पा
  • प्रारंभ क्षेत्र – 1. जयपुर 2. सीकर 3. सवाई माधोपुर
  • आंदोलन का कारण – 1. जयराम पेशवा कानून 1918 2. क्रिमिनल एक्ट 1923-24
  • मीणा समाज का जन नेता – पंडित बंशीधर शर्मा
  • संगठन – मीणा क्षेत्रीय सभा (1920)
  • स्थान – जयपुर में
  • उद्देशय – मीणा समाज का नेतृत्व करना

प्रथम सत्याग्रह – 1933 में जयपुर में विफल रहा।

दूसरा सत्याग्रह – 1944 में नीम का थाना सीकर

  • आयोजक – पंडित बंशीधर शर्मा
  • नेतृत्व – जैन मुनि मगन सागर ने
  • ज्ञापन दिया – 1944 में जैन मुनि ने लॉर्ड वेवेल को
  • लॉर्ड वेवेल ने जयराम पेशवा कानून के अंतर्गत मीणा समाज के स्त्री व बच्चों को छूट दी।

नोट :- 1. 1952 में पंडित नेहरू के आदेश पर राज्य के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री टीकाराम पालीवाल ने जयराम पेशवा कानून का अंत कर दिया था।

2. जैन मुनि मगन सागर ने मीणा समाज पर आदि मीन पुराण साहित्य लिखा जिसमें मीणा जाति की 5200 शाखाओं का उल्लेख है।

मीणा आंदोलन का इतिहास

  • जैन मुनि मगन सागर जी के द्वारा मीणा पुराण नामक पुस्तक लिखी गई इसमें लिखा गया कि मीणा प्रारंभ में शासक हुए तथा इनका राज्य ढूंढाड मैं था।
  • मीणा ने दोसा के बड़ गुर्जरों के विरुद्ध आमंत्रण देकर नरवर (मध्य प्रदेश) से कच्छावा वंश के शासक तेजकरण या दूल्हे राय को बुलाया।
  • प्रारंभ में उन्होंने बड़ गुर्जरों को पराजित किया परंतु बाद में कछवाहो ने मीणा को ही पराजित कर दिया।
  • जिन मीणाओं की खेती योग भूमि थी उन्हें जमीदार मीणा कहा गया। तथा जिनको रियासत की सुरक्षा सौंपी उन्हें चौकीदार मीणा कहा गया
  • रियासत में कोई भी चोरी होने पर उसका भुगतान चौकीदार मीणाओं को ही करना होता था। बाद में चौकीदार मीणाओं ने चोरी करना प्रारंभ कर दिया था।

• 1924 में क्रिमिनल tribal act लागू हुआ

• 1920 में जयपुर रियासत के द्वारा जयराम पेशा कानून लागू किया गया इसके तहत 12 वर्ष से अधिक आयु के सभी मीणाओं को आपने निकटवर्ती स्थानों सुबह शाम उपस्थित होकर हाजिरी देनी होती थी।

  • इसके विरोध में 1933 में मीणा क्षेत्रीय सभा गठित की गई अप्रैल 1944 को चौकीदार मीणा का सम्मेलन नीमकाथाना सीकर में आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता मुनि मगन सागर जी ने की थी।
  • इसी सम्मेलन में जयपुर राज्य मीणा सुधार समिति गठित की गई जिसके अध्यक्ष पंडित बंशीधर शर्मा बनाए गए।
  • 31 दिसंबर 1945 व 1 जनवरी 1946 को उदयपुर में अखिल भारतीय देसी राज्य लोक परिषद का अधिवेशन आयोजित हुआ। इसकी अध्यक्षता पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी।
  • पिछड़ी जातियों के मसीहा के नाम से प्रसिद्ध ठक्कर बाप्पा ने नेहरू से मुलाकात की व इस एक्ट के बारे में बताया
  • नेहरू ने जयपुर के प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल को पत्र लिखा।
  • 1946 में बच्चे व महिलाओं को इस एक्ट के तहत उपस्थित होने से छूट प्रदान की गई तथा 1952 में इसे पूरे एक्ट को समाप्त कर दिया गया।
राजस्थान में जनजाति आंदोलन
👉जनजातीय आंदोलन का उद्देश्य-
➯राजस्थान में जनजातीय आंदोलन का मुख्य उद्देश्य आदिवासियों को सामाजिक रूप से उन्नत करना था।

👉दयानंद सरस्वती-
➯राजस्थान में सामाजिक सुधार आंदोलनों का जनक दयानंद सरस्वती को माना जाता है।
➯दयानंद सरस्वती नें सन् 1883 में परोपकारिणी सभा नामक संगठन बनाया।

1. भगत आंदोलन-
➯राजस्थान में जनजातियों के प्रभाव क्षेत्र दक्षिणी राजस्थान में आदिवासियों के सामाजिक सुधार के लिए सुरजी भगत ने आंदोलन प्रारम्भ किया जिसे भगत आंदोलन कहा जाता है।
➯भगत आंदोलन का वास्तविक जनक गोविंद गिरी था।
➯गोविंद गिरी दयानंद सरस्वती का आदिवासी शिष्य था।
➯भगत आंदोलन का नेतृत्व गोविंद गिरी ने किया था।
➯गोविंद गिरी का जन्म सन् 1858 में राजस्थान के डुंगरपुर जिले के बांसिया गांव में एक बंजारे के घर में हुआ था।
➯गोविंद गिरी ने दयानंद सरस्वती से आशीर्वाद लेकर दक्षिणी जनजातीय क्षेत्र में भगत आंदोलन को नई दिशा दी।

➯भगत आंदोलन को नई दिशा देने के लिए गोविंद गिरी ने सन् 1883 में राजस्थान के सिरोही जिले में सम्प सभा की स्थापना की।
➯भगत आंदोलन का वास्तविक जनक गोविंद गिरी को कहते है।
➯गोविंद गिरी को सामाजिक सुधार आंदोलन का नेतृत्व करने के कारण गुरू कहा जाने लगा था।
➯गुरू गोविंद गिरी ने भगत आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में मानगढ़ पहाड़ी पर कार्यस्थल या कार्यक्षेत्र बनाया था।
➯सम्प सभा का प्रथम वार्षिक अधिवेशन 7 दिसम्बर, 1908 को बांसवाड़ा जिले की मानगढ़ पहाड़ी पर आयोजित किया गया था।
➯सम्प सभा का दूसरा वार्षिक अधिवेशन 7 दिसम्बर 1913 को बांसवाड़ा जिले की मानगढ़ पहाड़ी पर आयोजित किया गया था।
➯सम्प सभा के दूसरे वार्षिक अधिवेशन में कर्नल शैटर्न के नेतृत्व में मेवाड़ भील कौर के सैनिकों ने गोलीबारी की जिसमें लगभग 1500 भील मारे गए तथा गुरू गोविंद गिरी को गिरफ्तार कर लिया गया था।
➯मानगढ़ पहाड़ी कि इस गोलिबारी घटना को मानगढ़ हत्याकांड कहते है।
➯गुरू गोविंद गिरी ने अपना अंतिम समय कम्बोई (गुजरात) में व्यतित किया था।
➯गुरू गोविंद गिरी का समाधि स्थल राजस्थान के बांसवाड़ा जिले की मानगढ़ पहाड़ी पर बना हुआ है।
➯राजस्थान सरकार का पर्यटन विभाग गुरू गोविंद गिरी समाधि स्थल को मानगढ़ धाम नाम से पर्यटन के लिए विकसित कर रहा है।
➯भगत आंदोलन का उद्देश्य भीलों को मौलिक अधिकारों के प्रति जागरूक करना तथा भील समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करना था।
➯गुरू गोविंद गिरी का गीत “भूरटिया नी मानू रे नी मानू” आज भी भील क्षेत्र में प्रचलित है।

2. एकी आंदोलन या भोमट भील आंदोलन (1921)-
➯एकी आंदोलन या भोमट भील आंदोलन का नेतृत्व मोतीलाल तेजावत द्वारा किया गया था।
➯एकी आंदोलन या भोमट भील आंदोलन का उद्देश्य भीलों में एकता स्थापित करना था।
➯एकी आंदोलन या भोमट भील आंदोलन की शुरुआत राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जले के मातृकुंडिया धाम में हुई थी।
➯एकी आंदोलन का कार्यस्थल चित्तौड़गढ़ जिले के मातृकुंडिया धाम को बनाया गया था।
➯एकी आंदोलन के तहत पहली आम सभा झाड़ोल (उदयपुर) में हुई थी।
➯एकी आंदोलन का प्रभाव क्षेत्र भोमट का पठारी भाग था इसी कारण एकी आंदोलन को भोमट आंदोलन भी कहा जाता है।
➯भीलों ने मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में 7 मार्च, 1922 को राजस्थान के अजमेर जिले के नीमड़ा गांव में भील सभा का आयोजन किया था।
➯7 मार्च, 1922 की नीमड़ा गांव की भील सभा पर मेवाड़ भील कौर के सैनिकों ने गोलीबारी की जिसमें लगभग 1200 भील मारे गए तथा इस गोलीबारी कांड को नीमड़ा हत्याकांड कहते है।
➯सन् 1929 में गांधी जी के कहने पर मोतीलाल तेजावत ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया तथा सन् 1945 तक जेल में रहे थे।
➯मोतीलाल तेजावत को आदिवासियों का मसीहा तथा भीलों का संत मावजी कहते है।
➯राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित मातृकुंडिया धाम को राजस्थान तथा मेवाड़ा का हरिद्वार कहते है।

3. मीणा आंदोलन या मीणा जनजाति आंदोलन-
➯मीणा आंदोलन जयपुर के आसपास रहने वाले मीणा जनजाति के द्वारा चलाया गया आंदोलन था।
➯मीणा जनजाति के दो भाग माने जाते है-
1. जमीदार मीणा
2. चौकीदार मीणा
➯सन् 1924 में ब्रिटिश सरकार ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट/अधिनियम/ कानून पारित किया।
➯क्रिमिनल ट्राइब्स अधिनियम के अन्तर्गत सन् 1930 में जयपुर राज्य जयराम पेशा कानून बनाया गया था।
➯जयराम पेशा कानून के अन्तर्गत 12 वर्ष से अधिक आयु के सभी मीणा युवकों को यह आदेश दिया गया की उन्हें प्रतिदिन थाने में उपस्थिति दर्ज करानी होगी।
➯जयराम पेशा कनून को समाप्त करने के लिए 1933 में मीणा क्षेत्रीय महासभा की स्थापना की गई।
➯सन् 1944 में नीम का थाना (सीकर) में मीणाओं की महासभा हुई इस सभा की अध्यक्षता जैन मुनि मगन सागर ने की थी।
➯इस सभा के दौरान सन् 1944 में मीणा समाज में जागृति के लिए मीणा राज्य सुधार समिति का गठन किया गया था।
➯मीणा राज्य सुधार समिति का अध्यक्ष पंडित बंशीधर शर्मा को बनाया गया था।
➯चौकीदार मीणाओं को एक टैक्स या हर्जाना देना पड़ता था चाहे चोरी कोई भी करे हर्जाना चौकीदार मीणाओं को ही देना पड़ता था इसी को दादरसी कानून कहा जाता था।
➯सन् 1945 में मीणाओं का राज्यव्यापी आंदोलन चला।
➯28 अक्टूबर 1946 को मीणाओं ने मुक्ति दिवस के रूप में मनाया था।
➯सन् 1952 में क्रिमिनल ट्राइब्स तथा जयराम पेशा कानून रद्द कर दिये गये और मीणाओं को अपने मूलभूत अधिकारों की प्राप्ति हुई।

 

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