साधारण विधेयक और धन विधेयक क्या होते हैं
जब कोई प्रस्ताव संसद में कानून बनाने के लिए रखा जाता है, तो उसे विधेयक कहते हैं. विधेयक भी दो प्रकार का होता है – साधारण विधेयक (ordinary bill) और धन विधेयक (money bill). दोनों विधेयकों में अंतर है. धन विधेयक (money bill) को छोड़कर अन्य विधेयक साधारण विधेयक (ordinary bill) कहे जाते हैं. अतः, धन विधेयकों को समझ लेने के बाद दोनों का अंतर स्पष्ट हो जायेगा. धन विधेयक उस विधेयक को कहते हैं जिसका सम्बन्ध संघ की आय, व्यय, निधियों, हिसाब-किताब और उनकी जाँच इत्यादि से हो. निम्नलिखित विषयों से सम्बन्ध विधेयकों धन विधेयकों होते हैं –
- कर लगाने, घटाने, बढ़ाने या उसमें संशोधन करने इत्यादि से सम्बन्ध विधेयक.
- ऋण या भारत सरकार पर आर्थिक भार डालने की व्यवस्था से
- भारत की संचित या आकस्मिक निधि को सुरक्षित रूप से रखने या उसमें से धन निकालने की व्यवस्था से
- भारत की संचित निधि पर किसी व्यय का भार डालने या उसमें से किसी व्यय के लिए धन की स्वीकृति देने से
- सरकारी हिसाब में धन जमा करने या उसमें से खर्च करने, उसकी जाँच करने आदि से
कोई विधेयक धन विधेयक (money bill) है या नहीं, इसका निर्णय करने का अधिकार लोक सभा के अध्यक्ष को प्राप्त है.
साधारण और धन (ordinary and money bill), दोनों तरह के विधेयकों को पारित करने की प्रक्रिया संसद में अलग-अलग है.
भारतीय संसद में धन विधेयक (Money Bill) कैसे पारित होता है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 107 से 122 तक में कानून-निर्माण-सम्बन्धी प्रकिया का उल्लेख है. कानून बनाने के लिए संसद के समक्ष जो प्रारूप या मसविदा प्रस्तुत किया जाता, उसे विधेयक कहते हैं. धन विधेयक के लिए दूसरी प्रक्रिया निर्धारित की गयी है, जो साधारण विधेयकों (ordinary bill) की प्रक्रिया से सर्वथा भिन्न है. प्रजातंत्र का आधारभूत सिद्धांत यह है कि राष्ट्रीय वित्त पर लोक सभा का नियंत्रण हो. अतः, भारत में भी राष्ट्रीय वित्त पर लोक सभा का नियंत्रण है. इसी कारण धन विधेयक (money bill) सर्वप्रथम लोक सभा में ही उपस्थित हो सकते हैं, राज्य सभा में नहीं. संविधान के अनुच्छेद 110 में धन विधेयक की परिभाषा दी गई है.
धन विधेयक (money bill) राष्ट्रपति की पूर्वस्वीकृति से लोक सभा में ही प्रस्तुत हो सकता है, राज्य सभा में नहीं. फिर, साधारण विधेयकों की ही तरह धन विधेयक को भी लोक सभा में विभिन्न पाँच स्थितियों से गुजरना पड़ता है. लोक सभा द्वारा पारित होने पर वह राज्य सभा में विचारार्थ भेजा जाता है. लोक सभा का अध्यक्ष अपना हस्ताक्षर कर उसे धन विधेयक (money bill) घोषित करता है. यदि राज्य सभा विधेयक प्राप्त करने के 14 दिनों के भीतर अपनी सिफारिशों के साथ लोक सभा के पास उस विधेयक को वापस कर दे तो लोकसभा उसकी सिफारिशों पर विचार करेगी. लेकिन, लोक सभा को पूर्ण अधिकार है कि वह उन सिफारिशों को स्वीकृत करे या अस्वीकृत. यदि सभा किसी सिफारिश को मान ले तो सिफारिश के साथ और यदि वह नहीं माने तो जिस रूप में वह लोक सभा में पारित हुआ हो उसी रूप में दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जायेगा. इसका सर्वोत्तम उदाहरण 1977 ई. की एक घटना है. संसद के इतिहास में पहली बार राज्य सभा ने 28 जुलाई, 1977 को एक विक्त विधेयक सिफारिशों के साथ लोक सभा को लौटा दे. परन्तु, लोक सभा ने बहुमत से सिफारिशों के बिना ही विधेयक वापस कर दिया. यदि राज्य सभा 14 दिनों के अन्दर धन विधेयक नहीं लौटाती है तो उक्त अवधि की समाप्ति के बाद वह विधेयक दोनों सदनों द्वारा उसी रूप में पारित समझा जाता है जिस रूप में लोक सभा ने उसे पारित किया था. उसके बाद धन विधेयक (money bill) राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति को उसपर अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है. उसकी स्वीकृति मिलने के बाद धन विधेयक कानून का रूप धारण कर लेता है.
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