राजस्थान की चित्रकला

राजस्थान की चित्रकला

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राजस्थान की चित्रकला



राजस्थानी चित्रकला अपनी कुछ खास विशेषताओं की वज़ह से जानी जाती है।

ब्राउन महोदय के अनुसार राजस्थानी चित्रकला का उदभव राजपूताना शैली से माना जाता है। राजस्थान की विभिन्न चित्र कलाओं के अधिकांश चित्र गोपी कृष्ण कानोड़िया संग्रहालय (उदयपुर) मे संग्रहित है। 

प्राचीनता  

प्राचीनकाल के भग्नावशेषों तथा तक्षणकला, मुद्रा कला तथा मूर्तिकला के कुछ एक नमूनों द्वारा यह स्पष्ट है कि राजस्थान में प्रारंभिक ऐतिहासिक काल से ही चित्रकला का एक सम्पन्न रुप रहा है। वि. से. पूर्व के कुछ राजस्थानी सिक्कों पर अंकित मनुष्य, पशु, पक्षी, सूर्य, चन्द्र, धनुष, बाण, स्तूप, बोधिद्रम, स्वास्तिक, ब्रज पर्वत, नदी आदि प्रतीकों से यहाँ की चित्रकला की प्राचीनता स्पष्ट होती है। वीर संवत् ८४ का बाड़ली-शिलालेख तथा वि. सं. पूर्व तीसरी शताब्दी के माध्यमिक नगरी के दो शिलालेखों से भी संकेतित है कि राजस्थान में बहुत पहले से ही चित्रकला का समृद्ध रुप रहा है। बैराट, रंगमहल तथा आहड़ से प्राप्त सामग्री पर वृक्षावली, रेखावली तथा रेखाओं का अंकन इसके वैभवशाली चित्रकला के अन्य साक्ष्य है।

कलात्मकता

राजस्थान भारतीय इतिहास के राजनीतिक उथल-पुथल से बहुत समय तक बचा रहा है अत: यह अपनी प्राचीनता, कलात्मकता तथा मौलिकता को बहुत हद तक संजोए रखने में दूसरे जगहों के अपेक्षाकृत ज्यादा सफल रहा है। इसके अलावा यहाँ का शासक वर्ग भी सदैव से कला प्रेमी रहा है। उन्होने राजस्थान को वीरभूमि तथा युद्ध भूमि के अतिरिक्त ठकथा की सरसता से आप्लावित भूमि’ होने का सौभाग्य भी प्रदान किया। इसकी कलात्मकता में अजन्ता शैली का प्रभाव दिखता है जो नि:संदेह प्राचीन तथा व्यापक है। बाद में मुगल शैली का प्रभाव पड़ने से इसे नये रुप में भी स्वीकृती मिल गई।

रंगात्मकता

चटकीले रंगो का प्रयोग राजस्थानी चित्रकला की अपनी विशेषता है। ज्यादातर लाल तथा पीले रंगों का प्रचलन है। ऐसे रंगो का प्रयोग यहाँ के चित्रकथा को एक नया स्वरुप देते है, नई सुन्दरता प्रदान करते है।


विविधता

राजस्थान में चित्रकला की विभिन्न शैलियाँ अपना अलग पहचान बनाती है। सभी शैलियों की कुछ अपनी विशेषताएँ है जो इन्हे दूसरों से अलग करती है। स्थानीय भिन्नताएँ, विविध जीवन शैली तथा अलग अलग भौगोलिक परिस्थितियाँ इन शैलियों को एक-दूसरे से अलग करती है। लेकिन फिर भी इनमें एक तरह का समन्वय भी देखने को मिलता है।

विषय-वस्तु

इस दृष्टिकोण से राजस्थानी चित्रकला को विशुद्ध रुप से भारतीय चित्रकला कहा जा सकता है। यह भारतीय जन-जीवन के विभिन्न रंगो की वर्षा करता है। विषय-वस्तु की विविधता ने यहाँ की चित्रकला शैलियों को एक उत्कृष्ट स्वरुप प्रदान किया। चित्रकारी के विषय-वस्तु में समय के साथ ही एक क्रमिक परिवर्त्तन देखने को मिलता है। शुरु के विषयों में नायक-नायिका तथा श्रीकृष्ण के चरित्र-चित्रण की प्रधानता रही लेकिन बाद में यह कला धार्मिक चित्रों के अंकन से उठकर विविध भावों को प्रस्फुटित करती हुई सामाजिक जीवन का प्रतिनिधित्व करने लगी। यहाँ के चित्रों में आर्थिक समृद्धि की चमक के साथ-साथ दोनों की कला है। शिकार के चित्र, हाथियों का युद्ध, नर्तकियों का अंकन, राजसी व्यक्तियों के छवि चित्र, पतंग उड़ाती, कबूतर उड़ाती तथा शिकार करती हुई स्रियाँ, होली, पनघट व प्याऊ के दृश्यों के चित्रण में यहाँ के कलाकारों ने पूर्ण सफलता के साथ जीवन के उत्साह तथा उल्लास को दर्शाया है।

बारहमासा के चित्रों में विभिन्न महीनों के आधार पर प्रकृति के बदलते स्वरुप को अंकित कर, सूर्योदय के राक्तिमवर्ण राग भैरव के साथ वीणा लिए नारी हरिण सहित दर्शाकर तथा संगीत का आलम्बन लेकर मेघों का स्वरुप बताकर कलाकार ने अपने संगीत-प्रेम तथा प्रकृति-प्रेम का मानव-रुपों के साथ परिचय दिया है। इन चित्रों के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि कथा, साहित्य व संगीत में कोई भिन्न अभिव्यक्ति नहीं है। प्रकृति की गंध, पुरुषों का वीरत्व तथा वहाँ के रंगीन उल्लासपूर्ण संस्कृति अनूठे ढंग से अंकित है।

स्री -सुन्दरता

राजस्थानी चित्रकला में भारतीय नारी को अति सुन्दर रुप में प्रस्तुत किया गया है। कमल की तरह बड़ी-बड़ी आँखे, लहराते हुए बाल, पारदर्शी कपड़ो से झाक रहे बड़े-बड़े स्तन, पतली कमर, लम्बी तथा घुमावदार ऊँगलियाँ आदि स्री-सुन्दरता को प्रमुखता से इंगित करते है। इन चित्रों से स्रियों द्वारा प्रयुक्त विभिन्न उपलब्ध सोने तथा चाँदी के आभूषण सुन्दरता को चार चाँद लगा देते है। आभूषणों के अलावा उनकी विभिन्न भंगिमाएँ, कार्य-कलाप तथा क्षेत्र विशेष के पहनावे चित्रकला में एक वास्तविकता का आभास देते है।




मेवाड़ चित्र शैली

  • यह राजस्थान की प्राचीनतम चित्र शैली है।
  • 1261 में मेवाड़ के महाराजा तेजसिंह के काल में रचित श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी इस शैली का प्रथम चित्रित ग्रन्थ है।
  • मेवाड़ चित्र शैली का वास्तविक विकास महाराजा अमर सिंह के काल में सर्वाधिक हुआ।
  • महाराजा अमर सिंह के काल में गीत गोविन्द, रागमाला, भागवत, रामायण, महाभारत इत्यादि धार्मिक ग्रन्थों के कथानकों पर चित्र बने थे।
  • मेवाड़ चित्र शैली का स्वर्ण युग महाराजा जगत सिंह के काल को माना जाता है।
  • मेवाड़ चित्र शैली मे सर्वाधिक लाल एवं काले रंगों का प्रयोग हुआ है।
  • मेवाड़ चित्र शैली में सर्वाधिक कदम्ब के वृक्षों का चित्रण हुआ है।
  • मेवाड़ चित्र शैली में पंचतन्त्र के कथानकों पर जो चित्र बने है उन्हीं मे से एक चित्र के दो नायकों का नाम कलीला-दमना है।
  • मेवाड़ चित्र शैली में सर्वाधिक श्रीकृष्ण की लीलाओं के चित्र बने है।

मारवाड़ चित्र शैली

  • 687 में शिवनाथ द्वारा बनायी गयी धातु की मूर्ति जो वर्तमान पिण्डवाड़ा ( सिरोही ) मे है इस चित्र शैली का मूल आधार है।
  • मारवाड़ चित्र शैली में सर्वाधिक श्रृंगार रत्न प्रधान चित्र बने है।
  • मारवाड़ चित्र शैली में सर्वाधिक लाल एवं पीले रंगों का प्रयोग हुआ है।
  • मारवाड़ चित्र शैली मे सर्वाधिक आम के वृक्षों का चित्रांकन हुआ है।
  • मारवाड़ चित्र शैली के नायक एवं नायिकाओं को गठीले कद-काठी के चित्रांकित किया गया है।
  • मारवाड़ चित्र शैली में राग-रागिनी, ढोला-मारू तथा धार्मिक ग्रन्थों कथानकों पर चित्र बने है।
  • राव मालदेव के काल में मारवाड़ चित्र शैली पर मुगल शैली का प्रभाव पड़ा था।
  • मुगल शैली से प्रभावित मारवाड़ चित्र शैली जोधपुर चित्र शैली कहलायी।
  • 1623 में वीरजी नामक चित्रकार द्वारा बनाया गया रागमाला का चित्र इस शैली का सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है।

जोधपुर चित्र शैली

  • जोधपुर चित्र शैली को महाराजा सूर सिंह महाराजा जसवन्त सिंह, महाराजा अजीत सिंह तथा महाराजा अभय सिंह ने संरक्षण दिया था।
  • महाराजा अभय सिंह के काल में जोधपुर शैली का सर्वाधिक विकास हुआ।

ढूॅंढाड़ चित्र शैली




  • जयपुर तथा उसके आस पास के क्षेत्रों में विकसित ढूॅंढाड़ चित्र शैली में लाल, पीले, हरे एवं सुनहरी रंगों को प्रधानता दी गई है।
  • ढूॅंढाड़ चित्र शैली में चॉंदी तथा मोतियों का भी प्रयोग किया गया।
  • ढूॅंढाड़ चित्र शैली में धार्मिक ग्रन्थों के अतिरिक्त लोक संस्कृति के ग्रन्थों पर भी चित्र बने है।
  • ढूॅंढाड़ चित्र शैली का वह स्वरूप जिस पर मुगल शैली का प्रभाव पड़ा वह आमेर चित्र शैली कहलायी।
  • राव भारमल के काल से आमेर चित्र शैली का प्रारम्भ माना जाता है।
  • महाराजा मानसिंह के काल में आमेर चित्र शैली का वास्तविक विकास हुआ।
  • सवाई प्रतापसिंह का काल आमेर चित्र शैली का स्वर्ण युग माना जाता है।
  • आमेर चित्र शैली में मोर, हाथी, पपीहा के साथ-साथ पीपल एवं बड़ के पेड़ों का भी चित्रांकित किया गया।

किशनगढ़ चित्र शैली

  • राजस्थान की राज्य प्रतिनिधि चित्र शैली मानी जाती है।
  • किशनगढ़ के महाराजा सावन्त सिंह का काल इस चित्र शैली का स्वर्णयुग माना जाता है। जो इतिहास में नागरीदास के नाम से प्रसिद्व हुए है।
  • नागरीदास ने अपनी प्रेयसी बणी-ठणी की स्मृति में अनेकों चित्र बनवाये थे।
  • बणी-ठणी का प्रथम चित्र मोर ध्वज निहाल चन्द के द्वारा बनाया गया था।
  • बणी-ठणी को राजस्थान की मोनालिसा कहा जाता है।
  • इस शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय डॉ0 फैययाज अली एवं डॉ0 एरिक डिकिन्सन को दिया जाता है।
  • इस शैली में सर्वाधिक नारियल का वृक्ष चित्रांकित किया गया है।
  • इस चित्र शैली में किशनगढ़ का स्थानीय गोदाला तालाब भी चित्रांकित किया गया है।




बूॅंदी चित्र शैली

  • हाड़ौती की सबसे प्राचीन चित्र शैली है।
  • बूॅंदी चित्र शैली में सर्वाधिक पशु-पक्षी एवं पेड़ों के चित्र बने है।
  • पशु-पक्षियों को सर्वाधिक महत्व इसी चित्र शैली में दिया गया है।
  • बूॅंदी चित्र शैली में सर्वाधिक धार्मिक कथानकों पर चित्र बने है।
  • बूॅंदी चित्र शैली में सर्वाधिक चम्पा के वृक्षों का चित्रांकित किया गया है।
  • बूॅंदी चित्र शैली में लाल पीले एवं हरे रंगों को महत्व दिया गया है।
  • राव सुर्जन सिंह हाड़ा के काल में बूॅंदी चित्र शैली का सर्वाधिक विकास हुआ।
  • महाराव उम्मेद सिंह के काल में बना चित्रशाला इस शैली का सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है।
  • बूॅंदी चित्र शैली से ही कोटा चित्र शैली का उद्धभव हुआ है।

नाथद्वारा चित्र शैली

  • 1672 में महाराणा राजसिंह के द्वारा राजसमन्द के नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के मन्दिर की स्थापना के साथ ही नाथद्वारा शैली का विकास हुआ जिसे वल्लभ चित्र शैली के नाम से भी जाना जाता है।
  • नाथद्वारा शैली मे मेवाड़ की वीरता, किशनगढ़ का श्रृंगार तथा ब्रज के प्रेम भी समन्वित अभिव्यक्ति हुई है।
  • नाथद्वारा चित्र शैली में श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के सर्वाधिक चित्र बने है।

बीकानेर चित्र शैली

  • मारवाड़ की शैली की ही उप शैली के रूप में विकसित बीकानेर चित्र शैली के कलाकारों को उस्ताद कहा जाता है।
  • राजस्थान में बीकानेर एकमात्र ऐसी चित्र शैली है जिसमें चित्रकारों ने चित्र के साथ अपने नाम भी लिखे है।
  • महाराजा अनूप सिंह के काल में बीकानेर चित्र शैली का सर्वाधिक विकास हुआ है।
  • बीकानेर चित्र शैली में भी दरबार, शिकार तथा वन-उपवन के चित्र बने हुए है।
  • बीकानेर चित्र शैली में धार्मिक ग्रन्थों के कथानकों पर भी महाराजा करणी सिंह के काल में सर्वाधिक चित्र बने।

अलवर चित्र शैली

  • आमेर तथा दिल्ली चित्र शैली की मिश्रित रूप में विकसित चित्र शैली है।
  • अलवर चित्र शैली पर सर्वाधिक मुगल चित्र शैली का प्रभाव पड़ा है।
  • अलवर चित्र शैली राजस्थान की एकमात्र ऐसी चित्र शैली है जिसमें मुगल गणिकाओं के भी चित्र बने है।
  • महाराजा बख्तावर सिंह के काल में अलवर चित्र शैली को मौलिक स्वरूप प्राप्त हुआ था।
  • महाराजा विनय सिंह का काल अलवर चित्र शैली का स्वर्ण युग था।
  • राजस्थान में मुगल बादशाहों के चित्र भी केवल अलवर चित्र शैली में बने।

राजस्थान की चित्रकला

Q.1 किस चित्र शैली में पीले रंग की बहुलता रही है एवं शैली के  भित्ति चित्र अजारा की ओवरी , व मोती महल आदि में देखने को मिलते हैं
(A) मेवाङ शैली
(B) देवगढ़ शैली ✔
(C) बूँदी शैली
(D) अजमेर शैली

Q.2 किस शैली के पूर्ण विकास का काल 16वीं  से 17 शताब्दी रहा है तथा किस शैली में कला एवं संस्कृति का नवीन परिवेश देने का श्रेय मालदेव को है
(A) जोधपुर शैली ✔
(B) देवगढ शैली
(C) जैसलमेर शैली
(D) मथेन शैली

Q.3 जोधपुर चित्र शैली में किस राजा के समय ऐतिहासिक सचित्र ग्रंथों में ढोला मारू तथा पुस्तक प्रकाश ,जोधपुर की `भागवत´ का प्रमुख स्थान माना जाता है
(A) मालदेव
(B) जसवन्तसिंह
(C) सूरसिंह ✔
(D) गजसिंह

Q.4 महाराजा मानसिंह ने किस चित्रशैली को चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया तथा इसके चित्रकार शिवदान द्वारा सन 1816 में बने इस शैली कें चित्र में स्त्री को हुक्का पीतेहुए दिखाया गया है बताइए यह सभी विशेषता किस चित्रशैली की मानी गई है
(A) बिकानेर शैली
(B) मेवाङ शैली
(C) किशनगढ़ शैली
(D) जोधपुर शैली ✔

Q.5 किस चित्र शैली में आकाश को सुनहरे छल्लो युक्त मेगाच्छादित दिखाया गया है बरसते बादलों में से सारस -मिथुनों की नयनाभिराम आकृतियां भी इस शैली की प्रमुख विशेषताएं यहाँ फ़व्वारों , दरबार के दिखाओ आदी में दक्षिणी शैली का प्रभाव दिखाई देता :निम्न विशेषताएं किस शैली को दर्शाती है
(A) किशनगढ शैली
(B) बीकानेर शैली ✔
(C) बूदी शैली
(D) देवगढ़ शैली

Q.6 राजस्थान की प्रमुख शैलियों में से किस शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय `एरिक डिकिन्सन तथा ड्रा फ़ैयान अली´ को जाता हैं।
(A) अजमेर शैली
(B) जैसलमेर शैली
(C) जयपुर शैली
(D) किशनगढ़ शैली ✔



Q.7 निम्न में से किस शैली की प्रमुख विशेषताएं में कानों में कुंडल, गले में मोतियों का हार, माथे पर वैष्णवी तिलक, हाथ में तलवार, कमर में कटार, तथा पैरों में मोजड़ी धारण किए सांमत कला के उत्तम उदाहरण माने जाते हैं
(A) नागौर शैली
(B) अजमेर शैली✔
(C) बूँदी शैली
(D) किशनगढ़ शैली

Q.8 राजस्थान की प्रमुख शैलियों में से एक कौन सी शैली की प्रमुख विशेषता यह रही है कि इसमें मुगल या जोधपुरी शैली का प्रभाव में आने दिया बल्कि यह एकदम स्थानीय शैली है जिसको वैज्ञानिको द्वारा स्थानीय सैनी की मान्यता प्रदान की गई हैं
(A) जैसमेर शैली ✔
(B) नागौर शैली
(C) बिकानेरी शैली
(D) देवगढ़ी शैली

Q.9 बूंदी शैली की प्रमुख विशेषताओं में रंगमहल है तो बताइए प्रसिद्ध रंगमहल किस शासक ने बनाया जो सुंदर भित्ति चित्रों के लिए विश्व प्रसिद्ध है यहां के भित्ती चित्रों की सुंदरता व अनुपम रंग उपन्यास को देख दर्शक आश्चर्यचकित सा रह जाते है
(A) रसराज
(B) राव उम्मेदसिंह
(C) छत्रसाल✔
(D) सुर्जन हाङा

Q.10 आकाश में उमड़ते हुए काले कजरारे मेघ, बिजली की कौध, घनघोर वर्षा ,नदी में उड़ती जल तरंगें ,हरे भरे वृक्ष ,और उन पर चहकती चिड़िया ,नाचते मोर,  कलाबाजी दिखाते वानर, तथा पहाड़ की तलहटी में विचरण करते वन्य-जीवों का चित्र किस शैली में बड़ा ही मनोहारी है
(A) कोटा शैली
(B) बणी-ठणी
(C) बूँदी शैली ✔
(D) झालावाङ शैली

Q.11 किस शैली में नारियों एवं रानियों को भी शिकार करते हुए दिखाया जाना एक गहन जंगलों में शिकार की बहुलता के कारण यह इस शैली का प्रतीक चिन्ह बन गया यह किस शैली की बात है
(A) कोटा शैली ✔
(B) बूँदी शैली
(C) ढ़ूंढाङ शैली
(D) जयपुर शैली

Q.12 कोटा शैली में एक नवीन परिवर्तन सन 1771 में आया जिसका श्रेय उमेद सिंह को है कोटा शैली का चरमोत्कर्ष उमेद सिंह के समय में हुआ ।जवान महाराव को शिकार का शोक था। कोटा का गहन एवं विकट जंगल शिकार के लिए अत्यधिक उपयोगी था ।*कोटा के किस खाने के कलाकारों ने भित्तीयों पर तो बड़े बड़े चित्र बनाए ही, साथ ही बड़ी-बड़ी वसलियों पर शिकार का समूह चित्रण हूआं।जिसने कोटा शैली को विशिष्टा प्रधान की वों किस खाने के व्यक्ति थे
(A) मेथेनखाने
(B) डाड़ीखाने
(C) चूरूडियाखाने
(D) मुसिव्विरखाने✔

Q.13 सोहरियाँ क्या हैं
(A)  व्याधि निवारण हेतु ग्रामीण अंचलों में गोबर का पात्र
(B) भोजन सामग्री रखने के मिट्टी के पात्र✔
(C) ढूंढाड़ अंचल में बनाए जाने वाले भटवाडी
(D) होली के अवसर पर लकड़ी के तलवार नुमा खड़े

Q.14 कैनवास की चितेरी?
(A)  श्रीमती प्रतिभा पांडे✔
(B) श्रीमती जानकी देवी
(C) श्रीमती लक्ष्मी बाई
(D) श्रीमती गवरी बाई

Q.15  राई के दाने पर मीरा का चित्रांकन करने वाला चित्रकार कौन था
(A) समंदर सिंह खंगारोत
(B) कैलाश चंद्र शर्मा
(C) प्रदीप मुखर्जी
(D) किशन शर्मा✔

PART 02

Q.1 _राजस्थान में बैराठ जयपुर , दर भरतपुर नामक स्थानों से शैलाश्रयों में आदिमानव द्वारा बनाए रेखाकण इस प्रदेश की प्रारंभिक चित्र परंपरा का उद्घाटिन करते हैं प्राचीन अभिलेखों से भी उद्घाटित होता है तो बताइए राजस्थान में आलनिया दर्रा किस जिले में स्थित है
(A) अलवर
(B) कोटा ✔
(C) फतेहपुर
(D) सांगानेर

Q.2 मेवाड़ शैली में प्रारंभिक चित्र 1260 ईस्वी में प्राप्त हुआ इस ग्रंथ का चित्रांकन तेज सिंह के समय हुआ तो बताइए मेवाड़ शैली का दूसरा प्रमुख ग्रंथ जो देलवाडा में चित्रित हुआ उसका नाम क्या है
(A) श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
(B) दस वैकालिका सूत्र चूर्णि
(C) ओध निर्युक्ति वृत्ति
(D) सुपानसाह चरियम ✔

Q.3 रायकृष्णदास जी के अनुसार राजस्थानी चित्र कला का उद्भव किस अपभ्रंश से किस शैलियों के प्रभाव द्वारा 15वीं सदी में हुआ माना जाता है
(A)  गुजरात एवं मेवाड़ में कश्मीर शैली✔
(B)गुजरात मालवा शैली
(C) पश्चिमी भारतीय शैली में उदयपुर में मेवाड़ शैली
(D) गुजरात में पश्चिम की मालवा शैली

Q.4 भारतीय चित्रकला के नामकरण पर विद्वानों में बड़ा मतभेद है तो बताइए राजस्थानी चित्रकला का सबसे पहला विज्ञानिक विभाजन किसने किया था
(A) रायकृष्ण दास जी
(B) आनंद कुमार स्वामी✔
(C) एच सी मेहता
(D) डब्लू एच ब्राउन

Q.5 राजस्थानी चित्रकला के लिए वैज्ञानिक एस सी मेहता ने अपने स्टेटस इन इंडियन पेंटिंग में राजस्थानी चित्र शैली का नाम क्या बताया
(A) राजपूत चित्रकला
(B) गुजरात चित्र शैली
(C) राजस्थानी चित्रकला
(D) हिंदू चित्र शैली✔

Q.6 डगलस बैरेट एवं बेसिल ग्रे ने चौरपंचाशिका शैली का उद्गम किस शैली से माना है
(A) मारवाङ शैली
(B) ढूँढ़ाङ शैली
(C) हाङौती शैली
(D) मेवाङ शैली ✔

Q.7 मेवाड़ राज्य राजस्थानी चित्रकला का सबसे प्राचीन केंद्र माना जा सकता है तो बताइए मेवाड़ शैली में राणा जगतसिंह कालीन प्रमुख दो चित्रकारों के नाम कौन-कौन से हैं जिन्होंने मेवाड़ शैली को एक अच्छी शैली को चित्र से लिखा गौरव प्राप्त करवाया
(A) निशारदीन और मनोहर
(B) राजू भाटी व जीतमल
(C) साहबदीन व मनोहर ✔
(D) मतिराम व सूरध्वज

Q.8 राजा राजसिंह को काव्य तथा भवन में विशेष रुचि थी सन 1655 ईस्वी में साहबदीन कलाकार द्वारा चित्र दो प्रमुख महान उपलब्धियों का नाम
(A) सुंगर क्षेत्र महात्मय तथा भ्रमरगीत ✔
(B) ज्ञातसूत्रं व कल्पसूत्र
(C) बणी-ठणी में मूगल
(D) संजीवनी व सामोद

Q.9 निम्नलिखित में से मेवाड़ शैली की उत्कृष्ट उदाहरणों में  शामिल नहीं है
(A) रसिकप्रिया
(B) नायिका भेद
(C) रामायण
(D) भगवत गीता✔

Q.10 उस्ताद कहलाने वाले चित्रकारों ने भित्ति चित्र किस नगर में बनाई थे
(A) चूरु
(B) बीकानेर✔
(C) झुंझुनू
(D) जोधपुर

Q.11 चावंड शैली  के प्रसिद्ध चित्र नसीरुद्दीन  ने रागमाला का चित्रण किस शासक के सरंक्षण में किया बताइए
(A) करण सिंह
(B) सुर्जनसिंह
(C) अमरसिंह✔
(D) जगत सिंह

Q.12 पक्षियों को महत्व देने वाली चित्र शैली कौनसी मानी जाती है
(A) बूंदी शैली✔
(B) चावंड शैली
(C) जयपुर शैली
(D) देवगढ़ शैली

Q.13 जयपुर राज्य के कारखानों का नाम जहां कलाकार चित्र और लघु चित्र बनाते थे बताइए
(A) सुतर खाना
(B) तोषा खाना
(C) सूरत खाना✔
(D) जवाहर खाना



Q.14 मंडावा क्यों प्रसिद्ध है
(A)  भित्तिचित्र के लिए✔
(B)  मंदिरों के लिए
(C) चित्र शैलियों के लिए
(D) चित्रकला के लिए

Q.15  ओका -नोका -गुणा क्या है
(A)  भोजन सामग्री रखने के मिट्टी के बने कलात्मक पत्र
(B) व्याधि निवारण हेतु ग्रामीण अंचलों में गोबर से बनाया जाने वाला आकार जो चेचक निकलने पर विशेष कर पूजा जाता है✔
(C) ग्रामीण अंचलों में गोबर के द्वारा बनाया गया थेपड़ा
(D) ग्रामीण क्षेत्रों में गोबर से बनाया गया पात्र जिसमें दही बिलोया जाता है



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