राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद हिंदी | NCERT Solutions for Class 10th

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद हिंदी

साहस और शक्ति द्वारा हम अनेक काम पूरा कर सकते हैं| हालांकि इसमें अगर विनम्रता भी जुड़ जाए तो बेहद कारगर साबित होता है|

विनम्रता हमें संयमित बनाती है जिससे व्यक्ति को आंतरिक ख़ुशी मिलती है|

विनम्रता के भाव से विपक्षी भी उस व्यक्ति का आदर करते हैं| यह व्यक्ति कार्य को और सुगम बनती है|

7. भाव स्पष्ट कीजिए –

(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी||
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू||

उत्तर

इन पंक्तियों में लक्ष्मण अभिमान में चूर परशुराम स्वभाव पर व्यंग्य किया है|

लक्ष्मण मुस्कुराते हुए कहते हैं कि आप मुझे बार-बार इस फरसे को दिखाकर डरा रहे हैं|

ऐसा लगता है मानो आप फूँक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हों|

(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं||
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना||

उत्तर

इन पंक्तियों में लक्ष्मण ने परशुराम के अभिमान को चूर करने के लिए अपनी वीरता को बताया है| वे कहते हैं कि हम कुम्हड़े के कच्चे फल नहीं हैं जो तर्जनी के दिखाने से मुरझा जाता है| यानी वे कमजोर नहीं हैं जो धमकी से भयभीत हो जाएँ| वह यह बात उनके फरसे को देखकर बोल रहे हैं| उन्हें स्वयं पर विश्वास है|

(ग) गाधिसू नु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ||

उत्तर

इन पंक्तियों में विश्वामित्र मन ही मन मुस्कराते हुए सोच रहे हैं कि परशुराम ने सामन्य क्षत्रियों को युद्ध में हराया है तो इन्हें हरा-ही-हरा नजर आ रहा है| राम-लक्ष्मण को साधारण क्षत्रिय नहीं हैं| परशुराम इन्हें गन्ने की बनी तलवार के समान कमजोर समझ रहे हैं पर असल में ये लोहे की बनी तलवार हैं| परशुराम के अहंकार और क्रोध ने उनकी बुद्धि को अपने वश में ले लिया है|

8. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।

उत्तर

• यह काव्यांश तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरितमानस के बालकांड से ली गयी जो अवधी भाषा में लिखी गई है। • इसमें तत्सम शब्दों का प्रयोग भरपूर मात्रा में किया गया है|
• इसमें दोहा, छंद, चौपाई का अच्छा प्रयोग किया है।
• भाषा में लयबद्धता है|
• प्रचलित मुहावरे और लोकक्तियाँ ने काव्य को सजीव बनाया है|
• वीर और रौद्र रस का प्रयोग मुख्य से रूप किया गया|
• कहीं-कहीं शांत रस का भी उपयोग हुआ है|
• अनुप्रास, उपमा, रुपक, उत्प्रेक्षा व पुनरुक्ति अलंकार का सुयोजित ढंग से प्रयोग हुआ है|
• व्यंग्यों का प्रयोग अनूठा है|
• प्रसंगानुकूल भाषा का प्रयोग किया गया है|

9. इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

तुलसीदास द्वारा रचित परशुराम – लक्ष्मण संवाद मूल रूप से व्यंग्य काव्य है। उदाहरण के लिए –

• बहु धनुही तोरी लरिकाईं।
कबहुँ न असि रिसकीन्हि गोसाईं||

लक्ष्मण परशराम से कहते हैं कि हमने बचपन में भी इस जैसी कई धनुहियाँ तोड़ीं हैं परन्तु तब आप हम पर इतने क्रोधित नहीं हुए|

• मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥

परशुराम जी क्रोधित होकर लक्ष्मण से कहते हैं कि अरे राजा के बालक! तू अपने माता-पिता के बारे में सोच| यह जो मेरा फरसा बहुत भयानक है, यह गर्भ में पल रहे बच्चों का भी नाश कर देता है|

• अपने मुँह तुम्ह आपनि करनी|
बार अनेक भाँति बहु बरनी||

परशुराम द्वारा की जा रही खुद की बड़ाई को लक्ष्मण अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना कहते हैं|

• मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े|
द्विजदेवता घरहि के बाढ़े||

लक्ष्मण कहते हैं कि आपका सामना कभी योद्धाओं से नहीं हुआ इसीलिए आप घर के शेर हैं|

10. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए –

(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।

अनुप्रास अलंकार – ‘बालकु बोलि बधौं’ में ‘ब’ वर्ण की एक से अधिक बार आवृत्ति हुई है।

(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।

• अनुप्रास अलंकार – कोटि कुलिस में ‘क’ वर्ण की एक से अधिक बार आवृत्ति हुई है।
• उपमा अलंकार – कोटि कुलिस सम बचनु में उपमा अलंकार है चूँकि परशुराम जी के वचनों की तुलना वज्र से की गयी है और वाचक शब्द ‘सम’ का प्रयोग किया गया है|

(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
बार बार मोहि लागि बोलावा||

• उत्प्रेक्षा अलंकार – ‘काल हाँक जनु लावा’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है। यहाँ ‘जनु’ वाचक शब्द है।
• पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार – ‘बार-बार’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। क्योंकि बार शब्द की दो बार आवृत्ति हुई पर अर्थ भिन्नता नहीं है।

(घ)लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु||

• उपमा अलंकार
→ लक्ष्मण के उत्तर आहुति के समान और वाचक शब्द ‘सरिस’ के कारण ‘आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु’ में उपमा अलंकार है।
(ii) जल सम बचन में भी उपमा अलंकार है क्योंकि भगवान राम के मधुर वचन जल के समान कार्य रहे हैं और वाचक शब्द ‘सम’ का प्रयोग हुआ है।

2. रुपक अलंकार – रघुकुलभानु में रुपक अलंकार है चूँकि श्री राम के गुणों की समानता सूर्य से की गई है।

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