ऊष्मागतिकी

ऊष्मागतिकी

ऊष्मागतिकी

तन्त्र या निकाय (System):ब्रहमाण्ड का वः भाग जो ऊष्मागतिकी अध्ययन के लिये चुना जाता है , तन्त्र कहलाता है |

( उष्मा + गतिकी = उष्मा की गति संबंधी या ऊष्मा और गति )

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ऊष्मागतिकी

पारिपार्श्विक या परिवेश (Surroundings):- चुने गए निकाय के अलावा ब्रह्माण्ड का शेष भाग पारिपार्श्विक कहलाता है |

परिसीमा(boundary):- निकाय तथा पारिपार्श्विक को अलग करने वाली सीमा रेखा परिसीमा कहलाती है |

तन्त्र के प्रकार:-

खुला तन्त्र:- वह तन्त्र जो अपने पारिपार्श्विक से उर्जा व पदार्थ दोनों को विनिमय कर सकता है , खुला तन्त्र कहलाता है |
जैसे:- खुले बिकर में लिया गया गर्म जल |

बंद तन्त्र(Closed system):-  वह तन्त्र जो अपने पारिपार्श्विक से केवल उर्जा  का विनिमय करता है पदार्थ का नहीँ , बन्द तन्त्र कहलाता है |

जैसेः- बन्द पात्र में रखा गर्म जल |

विलगित तन्त्र :- वह तन्त्र जो अपने पारिपार्श्विक से न तो उर्जा का विनिमय करता है  और न ही पदार्थ का विलगित तन्त्र कहलाता है |

जैसेः- थर्मश फ्लास्क में रखा गर्म जल |

संघटन के आधार पर तन्त्र के प्रकार :-

समांगी तन्त्र [Homogeneous system]:- किसी निकाय के गुण उसके प्रत्येक भाग में पूर्ण रूप से सामान हो तो तन्त्र समांगी तन्त्र कहलाता है अथार्त निकाय के प्रत्येक भाग में रासायनिक संघटन सामान होता है |
जैसे:-  गैसों का मिश्रण , नमक का जलीय विलयन , मिश्रणीय द्रवों का मिश्रण |

विषमांगी तन्त्र [Heterogeneous system] :-  किसी निकाय

के गुण उसके प्रत्येक भाग में पूर्ण रूप से सामान नहीं हो तो निकाय विषमांगी तन्त्र कहलाता है | इन तंत्रों में दो या दो से अधिक प्रावस्थाये होती हैं |
जैसेः- अधुल नशील दर्वो का मिश्रिण , कोलाइडी नीलमन आदि |

तन्त्र के गुण:-

इन्हें दो भागो में विभाजित किया गया है –

मात्रात्मक या विस्तीर्ण गुण :- तन्त्र के वे गुण जो उसमें उपस्थित पदार्थ की मात्रा पर निर्भर करते है मात्रात्मक गुण कहलाते है |
जैसेः- आयतन, द्रव्यमान, उर्जा, आंतरिक उर्जा आदि |

विशिष्ट अथवा गहन गुण :- तन्त्र के वे गुण जो उसमें उपस्थित प्रदार्थ की मात्रा पर निर्भर नहीं करते है बल्कि प्रदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करते है गहन गुण कहलाते है |
जैसे :- घनत्व, विशिष्ट ऊष्मा , ताप, दाव आदि |

तन्त्र की अवस्था :- किसी निकाय की अवस्था को पूर्णतया व्यक्त करने के लिए कुछ गुण जैसेः- ताप, दाप, आयतन, संगठन आदि की आवस्यकता होती है , जिन्हें उस तन्त्र की अवस्था के चर कहते हैं| इन चरो के मान ज्ञात होने पर अन्य गुण जैसे:-घनत्व,श्यानता आदि ज्ञात कर सकते है तन्त्र की यह अवस्था निश्चित अवस्था कहलाती है |

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