मेरे हमनशीं

मेरे हमनशीं

ऐ मेरे हमनशीं ! मेरे हमदम !,

तुम है पास  तो  फिर क्या है गम .

तुम जहाँ कहीं भी हो ,जैसे भी हो ,

मेरी दुआएं साथ है तुम्हारे हरदम .

तुम दूर होकर भी हो साथ मेरे ,

मेरे तसव्वुर में हर घड़ी ,हर शाम .

देखती हूँ तुम्हारी तस्वीर में रंग नए ,

तुम्हारी बेजान आँखें भी छलकाती जाम .

तुम्हारी शहद सी आवाज़ जब दे सुनाई  ,

तुम्हारे गीतों पर तब झूम उठते है हम .

मेरी आरजू, मेरी तमन्ना और मेरी चाह ,

मेरी जुस्तजू का है बस एक ही नाम .

ओ मेरे आफताब ! तुम्हारी रौशनी से ,

रौशन  होता है जिंदगी का हर गाम .

तुम हो प्यार और इंसानियत के फ़रिश्ते ,

जहाँ वालों को देते हो मुहोबत का पैगाम .

यूँ ही नहीं कोई शैदा हुआ तुम्हारी सादगी पर,

खुदा का तराशा  अनोखा मुजस्सिमा हो तुम .

कैसे भूल सकता हैतुम्हें हमारा दिल,तुम्हीं कहो !

हम करेंगे इंतज़ार कयामत तक जब तक है दम .

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