शरीर के तंत्र | Body System
अंग तंत्र अंगों का एक समूह है जो एक कार्य विशेष को अकेले या समूहिक रूप से मिल कर करते हैं। मानव शरीर के विभिन्न अंग तंत्र हैं– पाचन तंत्र, परिसंचरण तंत्र, अंतःस्रावी तंत्र, उत्सर्जन तंत्र, प्रजनन तंत्र, तंत्रिका तंत्र, श्वसन तंत्र, कंकाल तंत्र और मासंपेशी तंत्र।
इन अंगों के अलग अलग कार्य होते हैं लेकिन ये एक दूसरे से अलग होकर स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकते हैं| ये मानव शरीर में एक दूसरे से संपर्क में रहते हैं और अपने काम जैसे शरीर में हार्मोन्स के उत्पादन को विनियमित करने, शरीर की रक्षा और गतिशीलता प्रदान करने, शरीर के तापमान को नियंत्रित करने आदि के लिए एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं।
मानव शरीर के तंत्रः
1. पाचन तंत्रः
मानव पाचन तंत्र एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें बड़े जैविक तत्वों को छोटे कणों में तोड़ा जाता है जिसका प्रयोग शरीर ईंधन के तौर पर करता है। पोषक तत्वों को छोटे कणों में तोड़ने के लिए मुंह, पेट, आंतों और जिगर में उपस्थित विशेष कोशिकाओँ से निकलने वाले कई एन्जामों के समन्वय की आवश्यकता होती है। मानव पाचन तंत्र के विभिन्न अंगों का क्रम इस प्रकार हैः मुंह, ग्रासनली (भोजन नली), पेट, छोटी आंत और बड़ी आंत। मानव पाचन तंत्र से जुड़ी ग्रंथियां हैं– लार ग्रंथी, यकृत और अग्न्याशय।
पाचन प्रक्रिया में एन्जाइम् महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं औऱ पाचन की क्रिया मुंह में शुरु होती है एवं छोटी आंत में समाप्त होती है। बड़ी आंत में किसी प्रकार का पाचन कार्य नहीं होता है| इसमें उपस्थित जीवाणु विटामिन B और विटामिन K का उत्पादन करते हैं।
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2. श्वसन तंत्रः
भोजन से ऊर्जा निर्गमन करने की प्रक्रिया श्वसन कहलाती है। इसके अंतर्गत कोशिकाओं में ऑक्सीजन ग्रहण करना, उस ऑक्सीजन का इस्तेमाल भोजन को जलाकर ऊर्जा प्राप्त करने में करना और फिर शरीर से अपशिष्ट पदार्थ कार्बन–डाईऑक्साइड और पानी को बाहर निकालना शामिल है।
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भोजन + ऑक्सीजन ——-> कार्बन डाईऑक्साईड + पानी + ऊर्जा
श्वसन प्रक्रिया में ऊर्जा का निर्गमन शरीर की कोशिकाओं के भीतर होता है। इसके अलावा, जीवन के लिए श्वसन अनिवार्य है क्योंकि यह जीवों को जीवत रखने के लिए अनिवार्य सभी प्रक्रियाओं को करने के लिए ऊर्जा मुहैया कराता है।
बाहरी श्वसन
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आंतरिक श्वसन
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1. बाहरी श्वसन फेफड़ों और रक्त में गैसों (O2,CO2) के आदान-प्रदान की प्रक्रिया है।
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1. आंतरिक श्वसन रक्त और कोशिकाओं के बीच गैसों के आदान–प्रदान की प्रक्रिया है।
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2. बाहरी श्वसन के दौरान, ऑक्सीजन रक्त में जाता है और CO2 रक्त से बाहर निकलता है|
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2. आंतरिक श्वसन के दौरान, रक्त द्वारा ले जाया जाने वाला ऑक्सीजन ऊतकों में जाता है और ऊतकों से CO2 बाहर निकलता है|
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3. यह श्वसन का पहला चरण होता है।
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3. यह श्वसन का दूसरा चरण होता है।
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4. इसमें दो चरण होते हैं– सांस लेना और सांस छोड़ना|
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4. इसमें कोई उपचरण नहीं होता है|
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5. इस प्रक्रिया में रक्त में ऑक्सीजन बाहरी स्रोतों ( हवा/पानी) से पहुंचता है।
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5. इस प्रक्रिया में ऊतक रक्त से ऑक्सीजन अवशोषित करते हैं।
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6. इस प्रक्रिया में कार्बनडाईऑक्साइड ऊतक से निकलकर शरीर से बाहर चला जाता है।
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6. इस प्रक्रिया में कार्बनडाईऑक्साइड ऊतक से निकलकर रक्त में जाता है।
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श्वसन की प्रक्रिया में शामिल हैः शरीर में वायु लेना और बाहर निकालना; ऊर्जा पैदा करने के लिए वायु से ऑक्सीजन का अवशोषण; कार्बन डाईऑक्साइड का निस्तारण जो इस प्रक्रिया में उत्पाद के रूप में निकलता है|
12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों और व्यस्कों में श्वसन की सामान्य दर प्रति मिनट 14 से 18 श्वास होती है।
निःश्वसन: हवा को भीतर की ओर खींचना जिसके कारण वक्ष गुहा के आयतन में वृद्धि होती है।
उच्छ्श्वसन: हवा को बाहर निकलना जिसके कारण वक्ष गुहा के आयतन में कमी होती है।
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श्वसन के प्रकार:
वायवीय/ऑक्सी श्वसन
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अवायवीय/अनॉक्सी श्वसन
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1. वायवीय श्वसन में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है|
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1. अवायवीय श्वसन की क्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होती है|
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2. अधिकांश पादप एवं जन्तु कोशिकाओं में वायवीय श्वसन की क्रिया होती है|
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2. अवायवीय जीवाणु, यीस्ट की कोशिकाओं, प्रोकैरियोटीज और मांसपेशी कोशिकाओं में अवायवीय श्वसन की क्रिया होती है|
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3. वायवीय श्वसन अवायवीय श्वसन की अपेक्षा अधिक प्रभावकारी होता है| इसमें ग्लूकोज के 1 अणु से ATP के 38 अणु बनते हैं|
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3. अवायवीय श्वसन वायवीय श्वसन की अपेक्षा कम प्रभावकारी होता है| इसमें ग्लूकोज के 1 अणु से ATP के 2 अणु बनते हैं|
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4. वायवीय श्वसन की क्रिया सामान्यतः माइटोकॉन्ड्रिया में होती है|
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4. अवायवीय श्वसन की क्रिया सामान्यतः कोशिका द्रव्य में होती है|
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5. वायवीय श्वसन की क्रिया के अंत में उत्पाद के रूप में कार्बन डाईऑक्साइड और जल प्राप्त होते हैं|
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5. अवायवीय श्वसन की क्रिया के अंत में उत्पाद के रूप में कार्बन डाईऑक्साइड और इथाईल एल्कोहल या लैक्टिक अम्ल प्राप्त होते हैं|
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6. वायवीय श्वसन की क्रिया में उर्जा मुक्त होने में अधिक समय लगता है|
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6. अवायवीय श्वसन की क्रिया बहुत कम समय में सम्पन्न होती है|
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3. परिसंचरण तंत्र :
मनुष्यों में मुख्य परिसंचरण तंत्र ‘रक्त परिसंचरण तंत्र’ है। परिसंचरण तंत्र को द्वि परिसंचरण तंत्र भी कहा जाता है क्योंकि यह दो फंदों (लूप्स) से बना होता है और रक्त हृदय से होकर दो बार गुजरता है। हृदय इस तंत्र के केंद्र में होता है और दो भागों में बंटा होता है– दायां और बायां।
इस तंत्र में रक्त ऑक्सीजन, पचा हुआ भोजन और अन्य रसायनों जैसे हार्मोन एवं एन्जाइम को शरीर के अन्य हिस्सों में लेकर जाता है। साथ ही यह यकृत कोशिकाओं द्वारा उत्पादित अपशिष्ट या उत्सर्जक उत्पादों जैसे कार्बन डाईऑक्साइड और यूरिया को भी बाहर निकालने का काम करता है।
मानव के रक्त परिसंचरण तंत्र में हृदय (वह अंग जो रक्त को पंप करता है और पुनः प्राप्त करता है) और रक्त वाहिकाएं या नलिकाएं होती हैं जिसके माध्यम से शरीर में रक्त का प्रवाह होता है। रक्त तीन प्रकार की रक्त वाहिकाओं से प्रवाहित होती है:
(i) धमनियां
(ii) नसें और
(iii) केशिकाएं
परिसंचरण तंत्र की रक्त वाहिकाएं मनुष्य के शरीर के प्रत्येक अंग में मौजूद होती हैं। इनके द्वारा ही रक्त शरीर के सभी अंगों तक पहुंचता है।
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4. नियंत्रण और समन्वय तंत्र :
उच्च श्रेणी के पशुओं जिन्हें कशेरुकी (मनुष्यों समेत) कहा जाता है, में नियंत्रण और समन्वय तंत्रिका तंत्र के साथ– साथ हार्मोन तंत्र जिसे अंतःस्रावी तंत्र कहा जाता है, के माध्यम से होता है।
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तंत्रिका कोशिकाओं से बने तंत्र को तंत्रिका तंत्र कहते हैं और इसका काम हमारे शरीर की गतिविधियों के बीच समन्वय स्थापित करना होता है। इसलिए, यह हमारे शरीर को मिलकर काम करने में मदद करता है। तंत्रिका तंत्र विशेष प्रकार की कोशिकाओं से बना होता है जिसे न्यूरॉन्स कहते हैं। ये शरीर की सबसे बड़ी कोशिका होती है। तंत्रिका तंत्र के मुख्य अंग हैः मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और नसें। मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी हमारे शरीर की सभी इंद्रियों और अन्य अंगों से लाखों नसों से जुड़े होते हैं।
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विभिन्न प्रकार के अंतःस्रावी हार्मोन उत्पादित करने वाले अंतःस्रावी ग्रंथियों के समूह को अंतःस्रावी तंत्र कहते हैं। तंत्रिका तंत्र के साथ मिल कर अंतःस्रावी तंत्र हमारे शरीर की गतिविधियों के बीच समन्वय स्थापित करने में भी मदद करते हैं। हमारे शरीर में मौजूद अंतःस्रावी ग्रंथियां हैं– शीर्षग्रंथि, हाइपोथैलमस ग्रंथि, पिट्यूटरी ग्रंथि, थायराइड ग्रंथि, पाराथायराइड ग्रंथि, थैलमस, अग्न्याशय, अधिवृक्क ग्रंथि, वृषण (सिर्फ पुरुषों में) और अंडाशय (सिर्फ महिलाओं में)|
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अंतःस्रावी ग्रंथियों द्वारा उत्पादित हार्मोन हमारे शरीर के अंगों और तंत्रिका तंत्र के बीच संदेशवाहक का काम करते हैं।
5. उत्सर्जन तंत्र:
मनुष्यों में, एक अंग तंत्र द्वारा उत्सर्जन का कार्य किया जाता है, जिसे मूत्र तंत्र या उत्सर्जन तंत्र कहते हैं। इसमें निम्नलिखित अंग होते हैं– सेम के बीज के आकार के दो गुर्दे जो पेट के बीच के हिस्से के नीचे और पीछे की तरफ रहते हैं, दो उत्सर्जक नलियां या मूत्रवाहिनियां जो दोनों गुर्दे से जुड़े होते हैं, एक मूत्राशय जिसमें मूत्रवाहिनी खुलती हैं और एक मांसल नली जिसे मूत्रमार्ग कहते हैं जो मूत्राशय से निकलती है। मूत्रमार्ग के अंतिम सिरे पर मूत्रत्याग स्थान होता है। इसके अलावा, उत्सर्जन के दो मुख्य प्रक्रियाएं होती हैं– निस्पंदन और पुनः अवशोषण। दोनों गुर्दे न सिर्फ नाइट्रोजन वाले अपशिष्टों को बाहर निकालने का काम करते हैं बल्कि यह शरीर में पानी की मात्रा को विनियमित (परासरणनियमन– osmoregulation) भी करते हैं और रक्त में खनिजों का संतुलन समान्य बनाए रखते हैं। नेफ्रॉन गुर्दे का संरचनात्मक और कार्यात्मक हिस्सा होता है।
गुर्दे का काम विषैले पदार्थ यूरिया, अन्य अपशिष्ट लवणों और रक्त से अतिरिक्त पानी को बाहर करना और पीलापनलिए तरल मूत्र के रूप में उनका उत्सर्जन करना होता है।
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6. प्रजनन तंत्र
एक ही प्रजाति के मौजूद जीवों से नए जीवों की उत्पत्ति को प्रजनन कहते हैं। पृथ्वी पर प्रजातियों के अस्तित्व के लिए यह अनिवार्य है। प्रजनन में जीव अपने माता– पिता के जैसे मूल गुणों के साथ पैदा होता है। जीवों में प्रजनन के दो मुख्य तरीके होते हैं:
(a) अलैंगिक प्रजनन
(b) लैंगिक प्रजनन
अलैंगिक प्रजनन: एकल जनक द्वारा यौन कोशिकाओं या युग्मक के सहयोग के बिना नए जीव को जन्म देना। उदाहरणः अमीबा में होने वाला द्विआधारी विखंडन, हाइड्रा में कोंपल निकला, राइजोपस कवक में बीजाणु का बनना, प्लानारिया (flarworm) में पुनर्जनन, स्पाइरोगाइरा में विखंडन, फूल वाले पौधों (जैसे गुलाब का पौधा) में वनस्पति विस्तार।
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लैंगिक प्रजनन: दो जीवों, माता–पिता, द्वारा उनके यौन कोशिकाओं या युग्मकों का प्रयोग कर नए जीव को जन्म देना। यौन प्रजनन में शामिल दो जीव नर और मादा होते हैं।
![शरीर के तंत्र | Body system Hum an Body10 - शरीर के तंत्र | Body system](https://i0.wp.com/3.bp.blogspot.com/-Fc4OIe3VyGM/WHxA2RMI-6I/AAAAAAAABDw/XAx5EA0-aKYm6Er56NThV5WgZ_sWnCj4QCLcB/s1600/Hum-an-Body10.jpg?resize=517%2C201&ssl=1)
7. कंकाल तंत्र:
कंकाल तंत्र हड्डियों, उससे संबद्ध उपास्थियों और मानव शरीर के जोड़ों का तंत्र होता है। व्यस्क मानव शरीर में 206 हड्डियां होती हैं। हड्डियों के अलावा कंकाल में कार्टिलेज और लिगामेंट भी होते हैं।
कार्टिलेज सघन संयोजी ऊतक होते हैं जो प्रोटीन फाइबर से बने होते हैं और जोड़ों पर हड्डियों की गतिशीलता के लिए चिकती सतह मुहैया कराते हैं। लिगामेंट रेशेदार संयोजी ऊतक का बैंड है जो हड़्डियों को एक साथ जोड़े रखता है और उनके स्थान पर उन्हें बनाए रखता है। हालांकि जोड़ मानव कंकाल का महत्वपूर्ण घटक है क्योंकि ये मानव कंकाल को गतिशील बनाता है। जोड़ “दो या अधिक हड्डियों”, “हड्डियों और कार्टिलेज” एवं “कार्टिलेज और कार्टिलेज” के बीच हो सकता है।
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