अतिरिक्त एवं महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (धातु और अधातु)

अतिरिक्त एवं महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (धातु और अधातु)

Q1. – धातु क्या है ?

उत्तर- धातुएँ वे तत्व होती है जो इलैक्ट्रान खोकर धनात्मक आयन बनाते है। धातु के बाह्यतम कोश मे सामान्यत: एक दो या तीन इलैक्ट्रान होते हैं। धातुऐ चमकिली होती है और ठोस होती है। धातु उष्मा तथा विधुत की सुचालक होती है।

Q2. – अधातु क्या है ?
उत्तर – अधातु वे तत्व है जो इलैक्ट्रान लेकर ऋणात्मक आयन बनाती है। अधातुऐं परमाणुओं के बाह्यतम कोश में पॉच, छः, सात तथा आठ इलैक्ट्रान होता है। केवल हाइड्रोजन तथा हीलियम को छोडकर के अधातु ठोस, द्रव्य और गैस तीनो होते है। यह सामान्य ऊष्मा तथा विदुयुत के कुचालक होते है।

Q3. – खनिज क्या है ?
उत्तर – खनिज पृथ्वी के अन्दर पाए वाले वह प्राकृतिक पदार्थ है जिसमें धातुऐें के यौगिक पाये जाते है। जैसे मैग्निज, बाक्साइड आदि।

Q4. – अयस्क क्या है ?

उत्तर – अयस्क वह खनिज होते हैं। जिनसे धातुओं का निष्कर्षण लाभप्रद हो और जिनमें धातु की मात्रा अधिक हो |

सभी अयस्क खनिज होती है। परन्तु सभी खनिज अयस्क नही होता है। वह खनिज जो सस्ते से सस्ते विधी से किसी तत्व को प्राप्त करते है वह तत्व का अयस्क कहलाता
है।
Q5. – गैंग किसे कहते है ?

उत्तर – पृथ्वी से प्राप्त खनिज अयस्कों में मिटटी, रेत आदि जैसे कई अशुद्धियाँ होती है जिन्हें गैंग कहते है।

Q6. – धात्विक या धातुक्रम क्या है ?

उत्तर – अयस्क से धातुओं का निष्कर्षण करने तथा धातुओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया को धात्विक या धातु क्रम कहते है ।

Q7. – निस्तापन क्या है ?
उत्तर – कार्बोनेट अयस्कों को वायु कि अनुपस्थिति में अयस्क को गर्म करके ऑक्साइड में परिवर्तित करना निस्तापन कहलाता है ।

Q8. – अयस्क का समृद्धिकरण क्या है ?
उत्तर – अयस्कों में से अंवाछनिय अशुद्धियों को दूर करने की प्राक्रिया को अयस्क का समृद्विकरण या साद्ररण कहते हैं ।

Q9. – भर्जन क्या है ?
उत्तर – सल्फाइड अयस्कों को वायु की उपस्थिति में गर्म करके ऑक्साइड में परिवर्तित करना भर्जन कहलाता है
Q10. – धातु परिष्करण क्या है ? धातु परिष्करण की कितनी विधियाँ है।
उत्तर – अशुद्ध धातुओं को शुद्ध करना धातु परिष्करण कहलाता है।

धातु परिष्करण की चार विधियाँ है ।

1. परिसमापन
2. आसवन
3. विद्युत अपघट्य परिष्करण
4. जोन परिष्करण विधि

Q11. – धातु का सक्षांरण क्या है ?

उत्तर – धातु का सक्षांरण धातु के क्षय होने की एक धीमी प्रक्रिया है जो अपने आस-पास उपस्थिति वायु (अॅाक्सीजन) तथा नमी तथा प्रदूषको की क्रिया के कारण अपने ऊपर एक धातु ऑक्साइड की परत बना लेता है और जिससे धातु धीरे-धीरे क्षय होने लगता है | यही धातु का संक्षारण कहलाता है | लोहे मे जंग लगना लोहे के संक्षारण का एक उदाहरण है ।

Q12. – रंबड का वाल्वनीकरण क्या है ?
उत्तर – प्राकृतिक रंबड को सल्फर के साथ गर्म करने की प्रक्रिया को रबंड का वाल्वनीकरण कहते है | ऐसा उनके गुणों में सुधार करने के लिए किया जाता है ।

Q13. – अघातवर्ध्यता तथा तन्यता का क्या अभिप्राय है ? 
उत्तर -अघातवर्ध्यता – धातुओं का वह गुण जिनसे उनकों हथौड़े से पीट कर पतली चादर बनाई जा सकती है । धातुओं के इस गुण को अघातवर्ध्यता कहते हैं । सोना तथा चॉदी सबसे अधिक अघातवर्ध्य धातुऐ हैं |
तन्यता – धातुओं का वह गुण जिनसे उनकों खीचकर पतली तार बनाया जा सकता है धातुओं के इस गुण को तन्यता कहते हैं ।

Q14. – मिश्रधातु क्या है ?

उत्तर – किसी धातु का अन्य धातु या अधातु के साथ समांगी मिश्रण को मिश्रधातु कहते हैं | उन्हे पिघली अवस्था मे रख कर प्राप्त किया जाता है ।

Q15. – धातुओं की संक्षारण रोकने की दो विधियो को लिखों। 

उत्तर -1. रोधी विधि द्वारा – वायु तथा धातु के बीच में रोधी का परत लगाकर धातु का संक्षारण रोका जा सकता है। यह पेन्ट, वारनिस या टिन, कॉपर, क्रोनियम, निकेल का विद्युत लेपन करके किया जाता है।
2. उत्सर्ग विधि द्वारा – इस प्रक्रिया में जिंक की परत से उस तत्व को ढ़ककर उस धातु का संक्षारण रोका जा सकता हैं । इस प्रक्रिया को गैल्वीनीकरण (यशदलेपन) कहते है।
Q16. – यशद् लेपन या जस्तीकरण या  गैल्वीनीकरण किसे कहते है ?
उत्तर – किसी धातु पर जस्ता लेपन की प्रक्रिया को जस्तीकरण या गैल्वीनीकरण कहते है।

Q17. – अयस्क को समृधि करने की विधियो का वर्णन करो । 

उत्तर –

1. द्रव्य चालित ढुलाई – इस विधि का उपयोग आक्साइड अयस्क को समृद्ध करने के लिए किया जाता है । गैग कण समान्यता अयस्क कणों के सपेक्षा हल्के होते हैं। इस प्रक्रम मे संक्षालित एंव बारिक पीसेे हुऐ अयस्क को जल धारक द्वारा धुलाई करते है । जिसके फलस्वरूप हमे हल्के गेंग कण जल धारा के साथ बहने के उपरांत भारी अयस्क कण प्राप्त होते है ।
2. फेन प्लवन प्रक्रम – यह विधि विशेष रुप से कॉपर जिंक एंव लेड के सल्फाइड अयस्को को गैग से पृथक करने के लिए उपयोग मे लाई जाती है। इस प्रक्रम मे बारिक हुऐ अयस्क एक बडे टेक मे जल  के साथ मिश्रत करके कर्दम बना लेते है। तत्पश्चात उसमे चीड का तेल डालते है। इस कर्दम मे जब तीव्र गति से वायु प्रवाहित की जाती है तो उसके फलस्वरूप हल्का तेल फेन जिसमें प्रमुख्यता सल्फाइड अयस्क होता है। ऊपर उठ कर टैक की ऊपरी सतह पर मलफेन के रूप मे तैरता है। जिसे अपमलन करके सुखा लेते है। चूँकि अयस्क गेंग भारी होते है। इसलिए जल मे डुबोकर टैंक के तल पर जमा हो जाते है।

फेन प्लवन प्रक्रम
फेन प्लवन प्रक्रम

3. विधुत चुम्बकिय पृथक्करण – इस विधी से चुम्बकिय अयस्कों अलग किया जाता है। चुम्बकिय पृथ्क्करण मे एक चमडे का पट्टा होता है जो दो रोलरो पर घूमता है जिसमे से एक रोलर विधुत चुम्बकीय होता है बारीक पिसे हुऐ अयस्क को घुमते हुऐ पटटे के एक सिरे पर डालते है। तो अयस्क का चुम्बकिय भाग , चुंबक से आकर्षित होकर उसके समीप एक ढेर के रूप में इक्कठा हो जाता बनाती हैं।
4. रासायनिक पृथ्क्करण – रासायनिक पृथ्क्करण प्रक्रम मे अयस्क एंव गैंग के रासायनिक गुणधर्मो के भिन्नता के आघार पर बानाने है, इस प्रक्रम से शुद्ध घातु प्राप्त कराने के लिए विभिन्न रासायनिक प्रक्रिया का उपयोग करते है।
Q17. –  अपचयन क्या हैं ?
उत्तर –  धातु यौगिको से धातुओं को प्राप्त करने के प्रक्रम को अपचयन कहते है।

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