अनुच्छेद 35A के बारे में जानें – Art. 35A Explained in Hindi
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि वह संविधान की धारा 35A की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई की तिथि के विषय में कक्ष के अन्दर (in-chamber) निर्णय लेगा. विदित हो कि धारा 35A जम्मू-कश्मीर राज्य के स्थायी निवासियों को अलग अधिकारों एवं विशेषाधिकारों का प्रवाधान करती है.
ज्ञातव्य है कि जब बिना किसी औपचारिक न्यायालय कार्यवाही के न्यायाधीश के कक्ष में कोई आदेश निर्गत होता है तो यह प्रक्रिया कक्ष के अन्दर की प्रक्रिया कहलाती है.
पूर्ववृतांत
पिछले वर्ष अगस्त में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की धारा 35A को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई स्थगित करते हुए कहा था कि अब इन पर 2019 के जनवरी महीने में सुनवाई की जायेगी. इसके लिए यह तर्क दिया गया था कि केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार ने बतलाया था कि राज्य में कानून एवं व्यवस्था की कोई समस्या चल रही है.
धारा 35A क्या है?
धारा 35A संविधान में बाद में प्रवृष्ट किया गया एक प्रावधान है जो जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को यह खुला अधिकार देता है कि वह यह निर्धारित करे कि राज्य के स्थायी निवासी कौन हैं और उन्हें अलग अधिकार (special rights) और विशेषाधिकार प्रदान करे. ये अधिकार और विशेषाधिकार जिन क्षेत्रों से सम्बंधित हैं, वे हैं – सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियाँ, राज्य में सम्पत्ति खड़ा करना, छात्रवृत्ति लेना, अन्न सार्वजनिक सहायताओं और कल्याण कार्यक्रमों का लाभ उठाना. कहने का अभिप्राय यह है कि ये सभी लाभ केवल उन व्यक्तियों को मिलेंगे जो राज्य के स्थायी निवासी हैं.
इस धारा में यह भी प्रावधान है कि इसके तहत विधान सभा द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई को संविधान अथवा देश के किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं माना जाएगा.
विवाद क्या है?
- सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई याचिकाओं में कहा गया है कि धारा 35A भारत की एकात्मता की भवाना के ही प्रतिकूल है क्योंकि इससे भारतीय नागरिकों के अंदर वर्ग के भीतर वर्ग (class within a class) का निर्माण होता है.
- यह धारा जम्मू-कश्मीर राज्य के अस्थायी नागरिकों को राज्य के अन्दर आजीविका पाने और सम्पत्ति का क्रय करने से रोकती है. अतः यह धारा भारतीय संविधान की धारा 14, 19 और 21 में दिए गये मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है.
- यह धारा राज्य के अस्थायी नागरिकों को दोयम दर्जे के नागरिकों के रूप में व्यवहार करती है.
- इस धारा के कारण राज्य के अस्थायी निवासी चुनाव नहीं लड़ सकते.
- अस्थायी नागरिकों के बच्चों को छात्रवृत्ति नहीं मिलती है और वे इसके लिए किसी न्यायालय की शरण भी नहीं ले सकते हैं.
- जम्मू-कश्मीर का संविधान विभाजन के समय राज्य में आने वाले शरणार्थियों से सम्बंधित विषयों को “राज्य का विषय” नहीं मानता.
- धारा 35A को असंवैधानिक रूप से घुसाया गया था क्योंकि संविधान की धारा 368 के अनुसार संविधान में संशोधन केवल संसद ही कर सकती है.अनुसार संविधान में संशोधन केवल संसद ही कर सकती है.अनुसार संविधान में संशोधन केवल संसद ही कर सकती है.
- धारा 35A का अनुसरण करते हुए जो-जो कानून बने हैं, वे सभी संविधान के भाग 3 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों, विशेषकर धारा 14 (समानता का अधिकार) और धारा 21 (जीवन की सुरक्षा का अधिकार) का उल्लंघन है.
संविधान में धारा 35A की प्रवृष्टि कैसे हुई?
- धारा 35A संविधान में 1954 में केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के आदेश से प्रविष्ट की गई थी.
- यह आदेश संविधान (जम्मू-कश्मीर में लागू करना) आदेश, 1954 कहलाया. यह आदेश 1952 में हुए नेहरू और जम्मू-कश्मीर के वजीरे आजम शेख अब्दुल्ला के बीच हुए दिल्ली समझौते पर आधारित था. दिल्ली समझौते के द्वारा जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को भारतीय नागरिक करार कर दिया गया था.
- राष्ट्रपति के द्वारा दिया गया आदेश संविधान की धारा 370 (1) (d) के तहत निर्गत हुआ था. ज्ञातव्य है कि यह धारा राष्ट्रपति को यह अधिकार देती है कि वह जम्मू-कश्मीर की प्रजा के लाभ के लिए संविधान में कतिपय अपवाद और सुधार कर सकती है.
सूचना
अभी-आभी आपने जितना पढ़ा, वह कंटेंट 23 जनवरी, 2019 को लिखा गया है. नीचे का कंटेंट पुराना है.Uh oh. If it looks like something went wrong, red is the alert box to use.
भूमिका
- We the Citizen नामक एक NGO ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी. उसमें 35A को ख़त्म करने की प्रार्थना की गई और आधार यह दिया गया कि यह एक संवैधानिक संशोधन था जिसको Aritcle 368 के तहत संसद् द्वारा विचारित किया जाना था और यह संसद् में कभी भी स्वीकृति हेतु पेश नहीं किया गया.
- संविधान में कुल मिलाकर 395 अनुच्छेद हैं जिनमें 35A कहीं नहीं है. यह संविधान के परिषिस्ट (appendix) में एक जगह यह पाया जाता है.
- इस अनुच्छेद को हटाने हेतु एक दलील यह दी जा रही है कि इसे संसद् के जरिए लागू नहीं करवाया गया था.
- भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने अनुरोध किया है कि वह इस जटिल विषय में निर्णय दे. दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर सरकार ने यह गुहार लगाई है कि Art 35A को निरस्त नहीं किया जाए क्योंकि यह कानून 60 वर्षों से चला आ रहा है.
- दो कश्मीरी महिलाओं ने भी Article 35A को यह कहते हुए चुनौती दी है कि यह पक्षपातपूर्ण है. यदि वे राज्य के किसी बाहर के व्यक्ति से शादी करती हैं तो उनके और उनके बच्चों के सारे अधिकार भी ख़त्म हो जाते हैं.
एक बार और उठा था मामला
पूरनलाल लखनपाल बनाम भारत के राष्ट्रपति मामले में मार्च, 1961 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि राष्ट्रपति को यह शक्ति है कि वह संविधान के किसी वर्तमान प्रावधान को 370 के तहत संशोधन कर सकता है. परन्तु सर्वोच्च न्यायालाय ने यह स्पष्ट नहीं किया कि आर्टिकल 370 के तहत राष्ट्रपति कोई नया अनुच्छेद/article बना सकता है या नहीं.
370 (1)(D) के तहत जम्मू कश्मीर के लोगों के लाभ के लिए राष्ट्रपति को यह शक्ति है कि वह संविधान में कुछ अपवाद या सुधार कर सकता है. 14 मई, 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा एक आदेश (The Constitution Order, 1954) जारी करके संविधान में अनुच्छेद 35 (ए) जोड़ा गया. यह अनुच्छेद संविधान की धारा 370 – clause (1) के तहत आता है. इस अनुच्छेद में जम्मू और कश्मीर की नागरिकता को राज्य का मामला घोषित किया गया है. इसी का लाभ उठाकर 35A का आदेश पास हुआ, जिसमें जम्मू-कश्मीर राज्य को छूट मिल गई कि अपने राज्य के स्थाई निवासी कौन हैं, यह तय कर सकता है.
जम्मू-कश्मीर का नागरिक कौन है?
जम्मू कश्मीर का अपना संविधान है जो 1956 में बना था. उस संविधान में यह उल्लिखित है कि जम्मू कश्मीर का नागरिक वही है जो –
i) 14 मई 1954 को जम्मू कश्मीर का नागरिक रहा हो या
ii) उससे पहले के 10 साल से वह सम्पत्ति हासिल करके J&K में रह रहा हो.
नागरिक होने के फायदे
जो नागरिक हैं, उनको सरकार –
- सरकारी नौकरी में विशेष अधिकार दे सकती है.
- राज्य में जायदाद खरीदने का अधिकार दे सकती है.
- छात्रवृत्ति और अन्य कल्याणकारी लाभ दे सकती है.
नागरिक नहीं होने के नुक्सान
जो नागरिक नहीं हैं यानी शरणार्थी हैं, वे –
- राज्य में अपनी सम्पत्ति नहीं खरीद सकते.
- विधान सभा में वोट नहीं दे सकते.
- चुनाव में खड़े नहीं हो सकते.
- सरकारी नौकरी नहीं पा सकते.
वर्तमान परिदृश्य
एक विश्वसनीय आंकड़े को यदि देखा जाए तो उसके अनुसार, भारत के विभाजन के समय पाकिस्तान से लगभग 5764 परिवार जम्मू में आकर रहने लगे. जम्मू-कश्मीर में आज भी वाल्मीकि और गोरखा समुदाय लोग कई सालों से भारी संख्या में रह रहे हैं पर न तो इन्हें विधानसभा चुनाव में वोट देने का अधिकार है, न जमीन खरीदने का हक प्राप्त है और न ही सरकारी नौकरी इन्हें कभी मिल सकती है क्योंकि इन्हें आज भी as refugee देखा जाता है और स्थायी निवासी मानने से इनकार किया जाता है.
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