भारत में बायोस्फीयर रिज़र्व: मानदंड और अंतर्राष्‍ट्रीय स्थिति

बायोस्फीयर रिजर्व, प्राकृतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करता है जिनका विस्तार स्थलीय या तटीय / समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों या इनके मिश्रण वाले बड़े क्षेत्र में होता है| उदाहरण के रूप में: जैव-भौगोलिक क्षेत्र/प्रांत
Biosphere Reserve - भारत में बायोस्फीयर रिज़र्व: मानदंड और अंतर्राष्‍ट्रीय स्थिति



बायोस्फियर रिजर्व के लिए मानदंड

• एक क्षेत्र जो प्रकृति संरक्षण के दृष्टिकोण से संरक्षित और न्यूनतम अशांत क्षेत्र होना चाहिए।
• संपूर्ण क्षेत्र एक जैव – भौगोलिक इकाई की तरह होना चाहिए और इतना बड़ा होना चाहिए जो पारिस्थितिकी तंत्र के सभी पौष्टिकता स्तरों का प्रतिनिधित्व कर रहे जीवों की आबादी को संभाल सकें।
• प्रबंधन प्राधिकरण को स्थानीय समुदायों की भागीदारी / सहयोग सुनिश्चित करना चाहिए ताकि जैव विविधता के संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक विकास को आपस में जोड़ते समय प्रबंधन और संघर्ष को रोकने के लिये उनके ज्ञान और अनुभव का लाभ उठाया जा सके।
• वह क्षेत्र जिनमे पारंपरिक आदिवासी या ग्रामीण स्तरीय जीवनयापन के तरीको को संरक्षित रखने की क्षमता हो ताकी पर्यावरण का सामंजस्यपूर्ण उपयोग किया जा सके।

बायोस्फीयर रिजर्व की अंतरराष्ट्रीय स्थिति

यूनेस्को ने ‘बायोस्फीयर रिजर्व’ की शुरुआत प्राकृतिक क्षेत्रों में विकास और संरक्षण के बीच संघर्ष को कम करने के उद्येश्य से की है। बायोस्फीयर रिजर्व का चुनाव राष्ट्रीय सरकार द्वारा किया जाता है जिसमें यूनेस्को के मानव और बायोस्फीयर रिजर्व कार्यक्रम के अंतर्गत तय न्यूनतम मापदंड पाये जाते हैं एवं वे बायोस्फीयर रिजर्व के वैश्विक जाल में शामिल होने के लिए निर्धारित शर्तों का पालन करते हैं। वैश्विक स्तर पर अब तक बायोस्फीयर रिजर्व के समूह में 117 देशों के 621 बायोस्फीयर रिजर्व को शामिल किया जा चुका है।

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संरचना और कार्य

बायोस्फीयर रिजर्व को एक-दूसरे से संबंधित निम्नलिखित 3 क्षेत्रों में विभाजित किया गया हैं:
• कोर क्षेत्र: इस क्षेत्र में बहुसंख्यक पौधे और पशु प्रजातियों के लिए उपयुक्त निवास स्थान होना चाहिए, इसके अलावा परभक्षियो की व्यवस्था सहित स्थानिकता का केन्द्र भी शामिल होना चाहिए । कोर क्षेत्रों में अक्सर आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण जंगली प्रजातियों का संरक्षण किया जाता है एवं यह क्षेत्र असाधारण वैज्ञानिक रुचि वाले महत्वपूर्ण आनुवंशिक जलाशयों का प्रतिनिधित्व करता है। एक कोर क्षेत्र को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत राष्ट्रीय उद्यान या अभ्यारण्य के रूप में संरक्षित/विनियमित किया जाता है।




• बफर क्षेत्र: यह क्षेत्र कोर क्षेत्र के समीप या उसके चारों ओर फैला होता है एवं इस क्षेत्र का उपयोग या इसके गतिविधियों का प्रबंधन इस तरीके से किया जाता है कि वह प्राकृतिक अवस्था में कोर जोन के संरक्षण में मदद में करता हैं। इस उपयोग और गतिविधियों में पुनःस्थापन, संसाधनों के मूल्य संवर्धन को बढ़ाने के लिए कार्यस्थलों का प्रदर्शन, सीमित मनोरंजन, पर्यटन, मत्स्य पालन, चराई आदि शामिल है, जो कोर क्षेत्र पर उसके प्रभाव को कम करने के लिए अनुमति देता है। इस क्षेत्र में अनुसंधान और शैक्षिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाता है। बायोस्फीयर रिजर्व के भीतर मानव गतिविधियों को भी जारी रखा जा सकता हैं यदि वे पारिस्थितिक विविधता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं करते हैं।
• संक्रमण क्षेत्र: यह क्षेत्र बायोस्फीयर रिजर्व का सबसे बाहरी हिस्सा है। यह सामान्यतया एक सीमांकित क्षेत्र नहीं बल्कि सहयोगात्मक क्षेत्र है जहाँ पर बायोस्फीयर रिजर्व के उद्देश्य के साथ संरक्षण ज्ञान और प्रबंधन कौशल का उपयोग होता है। इस क्षेत्र के अंतर्गत बस्तियां, फसल भूमि, प्रबंधित जंगल , गहन मनोरंजन का क्षेत्र और अन्य आर्थिक उपयोग वाले क्षेत्र शामिल हैं।

बायोस्फीयर रिजर्व के त्रिपक्षीय कार्यों (संरक्षण, विकास और परिवहन सहायता) का उल्लेख

• प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के भीतर पौधों और जानवरों की विविधता और समग्रता का संरक्षण करना।
• प्रजातियों के आनुवंशिक विविधता की रक्षा करना, जिस पर उनका सतत विकास निर्भर करता है।
• सबसे उपयुक्त प्रौद्योगिकी के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग द्वारा स्थानीय लोगों की आर्थिक भलाई के सुधार के लिए सुनिश्चित करना।
• बहुआयामी अनुसंधान और निगरानी के क्षेत्र प्रदान करना।
• शिक्षा और प्रशिक्षण की सुविधाएं प्रदान करना।

बायोस्फीयर रिजर्व का प्रबंधन

बायोस्फीयर रिजर्व योजना के तहत 100% अनुदान की सहायता प्रदान की जाती है जिसका प्रयोग संबंधित राज्यों / केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा प्रस्तुत प्रबंधन कार्य योजनाओ के क्रियान्वयन से संबंधित गतिविधियों के लिए की जाती है । इस योजना के तहत स्वीकृत गतिविधियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है:
• मूल्य संवर्धन गतिविधियां
• खत्म हो रहे संसाधनों का सतत उपयोग
• संकटग्रस्त प्रजाति और पारिस्थितिकी प्रणालियों के परिदृश्य का पुनर्वास
• स्थानीय समुदायों का सामाजिक-आर्थिक उत्थान
• गलियारे क्षेत्रों का रखरखाव और सुरक्षा
• संचार प्रणाली और नेटवर्किंग का विकास
• पारिस्थितिकी पर्यटन का विकास
बायोस्फीयर रिजर्व योजना अन्य संरक्षण से संबंधित योजनाओं से अलग है। इस योजना ने कोर क्षेत्र के प्राकृतिक भंडार की जैव विविधता पर जैविक दबाव को कम करने के लिए बफर और संक्रमण क्षेत्रों में लोगों के लिए पूरक और वैकल्पिक आजीविका समर्थन के प्रावधान के माध्यम से स्थानीय निवासियों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित किया है।




भारत में बायोस्फीयर रिजर्व

भारत में 18 अधिसूचित बायोस्फीयर रिजर्व हैं। अभी तक केवल नौ अर्थात नीलगिरि (2000), मन्नार की खाड़ी(2001), सुंदरबन (2001), नंदा देवी (2004), नोकरेक (2009), पंचमढ़ी (2009), सिमलीपाल (2009), अचानकमार-अमरकंटक बायोस्फियर रिजर्व (2012) और ग्रेट निकोबार बायोस्फीय रिजर्व (2013) यूनेस्को की बायोस्फीयर रिजर्व विश्व सूची में शामिल हैं।

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बायोस्फीयर रिजर्व -उनके क्षेत्र, नाम, वर्ष और पाये जाने वाले जीव की सूची:-




वर्ष
नाम
राज्य 
प्रकार
प्रमुख जीव
2008
कच्छ का रण
गुजरात
रेगिस्तान
भारतीय जंगली गधा
1989
मन्नार की खाड़ी
तमिलनाडु
समुद्रतट
डुगोंग  या समुद्री गाय
1989
सुंदरवन
पश्चिम बंगाल
गंगा के डेल्टा
रॉयल बंगाल टाइगर
2009
कोल्ड डेजर्ट
हिमाचल प्रदेश
पश्चिमी हिमालय
हिम तेंदुआ
1988
नंदा देवी
बायोस्फीयर रिजर्व
उत्तराखंड
पश्चिमी हिमालय
हिम तेंदुआ
1986
नीलगिरी 
बायोस्फीयर रिजर्व
तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक
पश्चिमी घाट
नीलगिरि तहर, शेरमकाक
1998
दिहांग  – दिबांग
अरुणाचल प्रदेश
पूर्वी हिमालय
NA
1999
पचमढ़ी 
बायोस्फीयर रिजर्व
मध्य प्रदेश
अर्द्ध शुष्क
विशालकाय गिलहरी ,फ्लाइंग गिलहरी
2010
शेषचलम पहाड़ियाँ
आंध्र प्रदेश
पूर्वी घाट
NA
1994
सिमलीपाल
ओडिशा
दक्कन प्रायद्वीप
गौर, रॉयल बंगालटाइगर, जंगली हाथी
2005
अचानकमार-अमरकंटक
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़
माइकल  हिल्स
चार सींग वाला हिरण
1989
मानस
असम
पूर्वी हिमालय
सुनहरा लंगूर , लाल पांडा
2000
कंचनजंगा
सिक्किम
पूर्वी हिमालय
हिम तेंदुआ, लाल पांडा
2001
अगस्थ्यमलाई बायोस्फीयर रिजर्व
केरल, तमिलनाडु
पश्चिमी घाट
नीलगिरि तहर , हाथी
1989
ग्रेट निकोबार 
बायोस्फीयर रिजर्व
अंडमान व नोकोबार द्वीप समूह
द्वीप
खारे पानी के मगरमच्छ
1988
नोकरेक
मेघालय
पूर्वी हिमालय
लाल पांडा
1997
डिब्रू – सैखोवा
असम
पूर्वी हिमालय
सुनहरा लंगूर
2011
पन्ना
मध्य प्रदेश
केन नदी का जलग्रहण क्षेत्र
बाघ , चीतल, चिंकारा, भालू संभार एवं  आलसी भालू




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